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भू पृष्ठीय तरंग संचरण , भू पृष्ठीय संचार व्यवस्था (ground or surface wave propagation in hindi) ,
(ground or surface wave propagation in hindi) भू पृष्ठीय तरंग संचरण , भू पृष्ठीय संचार व्यवस्था : जैसा कि हम पढ़ चुके है की तारहिन संचार व्यवस्था में विद्युत चुम्बकीय तरंगों को एक स्थान से दुसरे स्थान पर सूचना के रूप में भेजा जाता है , इस संचार व्यवस्था में दोनों सिरों पर अर्थात प्रेषित और ग्राही सिरों पर एंटीना लगे रहते है।
ग्राही सिरे पर सिग्नल को मोडुलेसन के बाद अन्तरिक्ष से होते हुए ग्राही एंटीना तक पहुँचाया जाता है जहाँ वास्तविक सिग्नल को डी-मोडुलेसन के बाद अन्तरिक्ष से प्राप्त कर लिया जाता है और इस प्रकार एक स्थान से दुसरे स्थान पर सूचना का आदान प्रदान होता है इस संचार व्यवस्था को तारहिन संचार कहते है।
यहाँ एंटीना की लम्बाई λ/4 होनी चाहिए।
यहाँ λ = सिग्नल की तरंग दैर्ध्य होती है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों का संचरण तीन प्रकार से संभव है जो निम्न है –
1. भू पृष्ठीय तरंग संचरण
2. अन्तरिक्ष तरंग या क्षोभमण्डल तरंग संचरण
3. आकाशीय संचरण
हम यहाँ केवल भू पृष्ठीय तरंग संचरण का अध्ययन करेंगे बाकी अन्य दो तरंग संचरण का अध्ययन आगे के भाग में करेंगे।
ग्राही सिरे पर सिग्नल को मोडुलेसन के बाद अन्तरिक्ष से होते हुए ग्राही एंटीना तक पहुँचाया जाता है जहाँ वास्तविक सिग्नल को डी-मोडुलेसन के बाद अन्तरिक्ष से प्राप्त कर लिया जाता है और इस प्रकार एक स्थान से दुसरे स्थान पर सूचना का आदान प्रदान होता है इस संचार व्यवस्था को तारहिन संचार कहते है।
यहाँ एंटीना की लम्बाई λ/4 होनी चाहिए।
यहाँ λ = सिग्नल की तरंग दैर्ध्य होती है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों का संचरण तीन प्रकार से संभव है जो निम्न है –
1. भू पृष्ठीय तरंग संचरण
2. अन्तरिक्ष तरंग या क्षोभमण्डल तरंग संचरण
3. आकाशीय संचरण
हम यहाँ केवल भू पृष्ठीय तरंग संचरण का अध्ययन करेंगे बाकी अन्य दो तरंग संचरण का अध्ययन आगे के भाग में करेंगे।
1. भू पृष्ठीय तरंग संचरण
जब कोई सिग्नल निम्न आवृत्ति का हो तो ऐसे निम्न आवृत्ति के सिग्नल के संचरण के लिए भू पृष्ठीय तरंग संचरण संचार व्यवस्था काम में ली जाती है। इस संचरण में तरंगों को पृथ्वी सतह के अनुदिश संचरित किया जाता है या भेजा जाता है अर्थात जब तरंगों को प्रेषि एंटीना से ग्राही एंटीना तक भेजा जाता है तो ये तरंगे पृथ्वी के वक्रपृष्ठ के अनुदिश संचरित होती है और इसलिए ही इस संचरण को भू-पृष्ठीय तरंग संचरण कहते है।
जब ये तरंगें पृथ्वी सतह के अनुदिश गति करती है तो इन तरंगों के कारण पृथ्वी की सतह में तरंग प्रेरित हो जाती है जो संचरण तरंगों को ठीक से संचरित नहीं होने देती है जिससे तरंगों का हास होने लगता है इसलिए इस विधि द्वारा अधिक दूरी तक संचार संभव नहीं है।
भू पृष्ठीय संचरण विधि स्थानीय प्रसारण के लिए उपयोग किया जाता है , जब तरंगों की आवृत्ति को बढाया जाता है तो प्रेरित तरंगों के कारण हास् या हानि बहुत अधिक बढ़ जाती है और यही कारण है कि भू-पृष्ठीय तरंग संचरण में निम्न आवृत्ति और अधिक तरंग दैर्ध्य के सिग्नल या तरंग का संचरण किया जाता है।
इस संचरण में तरंगों की आवृत्ति कुछ किलोहर्ट्ज़ से लेकर लगभग 5 मेगाहर्ट्ज़ रखी जाती है।
लाभ
भू पृष्ठीय तरंग संचरण में उच्च तरंग दैर्ध्य के सिग्नल या तरंग का संचरण किया जाता है इसलिए यह सिग्नल पृथ्वी की सतह के अनुसार मुड जाने में सक्षम होता है कहने के तात्पर्य है कि यदि रास्ते में कोई रुकावट आती है तो यह मुड जाता है और ग्राही तक अच्छी तरह से पहुँच जाता है।
नुकसान
इस संचरण द्वारा केवल कम दूरी तक तरंगों का संचरण किया जा सकता है। अत: अधिक दूरी तक सिग्नल को इस व्यवस्था द्वारा नहीं भेजा जा सकता है।
जब सिग्नल को आयाम मॉड्यूलेट किया जाता है तो सिग्नल में शोर या noise आ जाती है।
इसमें केवल वे ही सिग्नल भेजे जा सकते है जिनकी आवृत्ति कम हो।
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