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अच्छा प्रश्न पत्र किसे कहते है , अच्छे प्रश्न पत्र की विशेषताएं गुण विशेषता क्या होती है good question paper in hindi

good question paper in hindi अच्छा प्रश्न पत्र किसे कहते है , अच्छे प्रश्न पत्र की विशेषताएं गुण विशेषता क्या होती है ?

प्रश्न  अच्छे प्रश्न पत्र से आप क्या समझते हैं। एक अच्छे प्रश्न पत्र निर्माण के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
What do you understand by a good question paper ?  Describe the important steps of preparation of a good question paper.
उत्तर – एक अच्छा प्रश्न-पत्र शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है । अच्छा प्रश्न-पत्र एक गुणात्मक निर्णय लेने का साधन होता है। एक अच्छे प्रश्न-पत्र में निम्न गुण होने चाहिए-
1. विश्वसनयीता-एक अच्छे प्रश्न-पत्र में विश्वसनीयता होनी चाहिए। इसके लिए प्रश्न पत्र में प्रश्नों की संख्या पर्याप्त होनी चाहिए।
2. वस्तुनिष्ठता-जिस परीक्षण पर परीक्षक का व्यक्तिगत प्रभाव नहीं पड़ता हो वह परीक्षण वस्तुनिष्ठ परीक्षण कहलाता है।
3. व्यापकता-प्रश्न-पत्र की यह प्रमुख विशेषता होती है अर्थात् प्रश्न-पत्र विभिन्न पक्षों का मापन करने में समर्थ होना चाहिए। अतः प्रश्न-पत्र सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को स्पर्श करता हुआ होना चाहिए।
4. विभेदीकरण-एक अच्छे प्रश्न-पत्र में विभेदीकरण का गुण होना चाहिए अर्थात उसमें सभी प्रकार के छात्रों के लिए सभी प्रकार के प्रश्नों का समावेश होना चाहिए।
5. उपयोगिता-एक अच्छे प्रश्न-पत्र में उपयोगिता का गुण भी होना चाहिए। यह गुण उसमें तभी आएगा जब उसमें सभी प्रकार के प्रश्नों का समावेश हो, जिन्हें छात्र आसानी से समझ सके और आसानी से उत्तर दे सके अर्थात् जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए परीक्षा ली जा रही है उसकी पूर्ति हो जाए और उसके आधार पर उन्हें उचित निर्देशन दिया जा सके।
6. सहजता या व्यवहारिकता-प्रश्न-पत्र के व्यवहारिक होने का तात्पर्य है कि उसमें निम्न गुण होने चाहिए-
1. निर्माण में आसानी 2. परीक्षा लेने में आसानी
3. अंक देने में आसानी
उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त अच्छे प्रश्न-पत्र में निम्न गुण भी होने चाहिए-
1. आधुनिक धारणा पर आधारित प्रश्न-पत्र निर्माण करते समय प्रश्न-पत्र निर्माण की आधुनिक धारणा पर भी ध्यान देना चाहिए। इसमें निबन्धात्मक, लघुउत्तरात्मक, अति लघूत्तरात्मक, वस्तुनिष्ठ आदि सभी प्रकार के प्रश्न होने चाहिए।
2. स्पष्टता-स्पष्टता से तात्पर्य है कि प्रत्येक प्रश्न स्पष्ट हों। छात्र को उसका उत्तर देते समय संशय की स्थिति नहीं आनी चाहिए अन्यथा छात्र अनावश्यक बातें अपने उत्तर में समाहित करेगा।
3. अंक विभाजन-अंक विभाजन से तात्पर्य है कि छात्र समझ सके कि अमुक प्रश्न कितने अंक का है।
अंक विभाजन में स्पष्टता होनी चाहिए जैसे कोई निबंधात्मक प्रश्न 20 अंक का है तो प्रश्न-पत्र में प्रश्न के आगे एक साथ 20 न लिखकर उसके सभी घटकों के अंक लिखने. चाहिए। जैसे यदि प्रश्न में चार घटक हैं तो उसे 5$5$5$5 लिखा जा सकता है। इससे छात्रों में प्रश्न का उत्तर देते समय स्पष्टता बनी रहेगी।
4. उद्देश्यों पर बल-प्रश्न-पत्र बनाते समय इस बात का पूर्ण स्थान रखना चाहिए कि जिस विषय वस्तु में जो प्राप्त उद्देश्य और छात्र के व्यवहार में परिवर्तन हम लाना चाहते हैं वे पूर्ण होते हैं या नहीं। प्रायः सभी प्रश्न पत्रों में ज्ञान पर बल दिया जाता है। ज्ञान के साथ-साथ यदि कौशल, अवबोध आदि पर भी बल दिया जाए तो ही एक अच्छा प्रश्न-पत्र बन सकेगा।
5. विकल्प व्यवस्था- यदि प्रश्न-पत्र में बहुत अधिक विकल्प हो तो प्रश्न-पत्र का उद्देश्य अपूर्ण रह जाता है। प्रश्न-पत्र निर्माता को केवल कुछ ही प्रश्नों में आंतरिक विकल्प देना चाहिए। तभी छात्र उसकी तैयारी हेतु सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पढ़ने में रुचि लेगा।
6. कठिनाई स्तर- प्रश्न-पत्र को न तो कठिन बनाना चाहिए और न ही अति सरल। प्रश्न-पत्र में प्रश्नों का निर्माण आयु स्तर कक्षा स्तर के अनुरूप ही करना चाहिए।
एक अच्छे प्रश्न-पत्र निर्माण के लिए अध्यापक को एक निश्चित प्रक्रिया से गुजरना होता है।

ये पद या प्रक्रिया निम्न हैं-
1. योजना निर्माण- किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसकी योजना बनाई जाती है न पत्र निर्माण के लिए योजना निम्न प्रकार से बनाई जाती है।
(1) चरण-उद्देश्यों का चयन-रसायन विज्ञान के समस्त उद्देश्यों में से उन उद्देश्यों का जयन किया जाता है जिन्हें परीक्षण निर्माण में आधार बनाना है। इसमें निम्न बातों पर ध्यान दिया जाता है
1. पाठ्यवस्तु कितनी पढ़ाई गई है।
2. छात्रों की आवश्यकता क्या है।
3. किसी प्रकरण विशेष का महत्व
(ii) चरण-उद्देश्यों का अंक भार निर्धारित करना-इन चयन किये हुये उद्देश्यों को अध्यापक अपने द्वारा किये गये कार्य एवं उद्देश्यों के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए भारित-मूल्य प्रदान करता है। उदाहरणार्थ निम्न तालिका का प्रयोग किया जा सकता है।
क्रमांक उद्देश्य अंक प्रतिशत
1. ज्ञान 30 60
2. प्रयोग 10 20
3. कौशल 10 20
योग 50 100

(iii) चरण-पाठ्यवस्तु का अंक भार देना-उद्देश्यों की प्राप्ति के साधन क्योंकि पाठ्यवस्तु ही होती है एवं उसी को आधार मानकर प्रश्नों का निर्माण करना होता है, इस कारण उसको उचित भारित मूल्य देना आवश्यक हो जाता है। इसके लिये निम्न तालिक प्रयुक्त की जा सकती है।
क्रमांक उद्देश्य अंक प्रतिशत
1. 2 4
2. 10 20
3. 6 12
4. 18 36
5. 14 28
योग 50 100

(iv) चरण-प्रश्नों के प्रकार को अंक भार देना-इस चरण में शिक्षक निम्न बातों पर विचार करता है-
(i) कितने प्रश्न हों ?
(ii) किस-किस प्रकार के प्रश्न हों ?
(iii) कितने-कितने अंकों के प्रश्न हो ?
इसके लिए निम्न तालिका का उपयोग किया जा सकता है-
क्रमांक प्रश्नों का प्रकार प्रश्नों की संख्या अंक प्रतिशत
1. निबन्धात्मक 1 10 20
2. लघुउत्तरीय 5 20 40
3. वस्तुनिष्ठ 10 20 40
योग 16 50 100

(V) चरण-विकल्पों का निर्धारण-इस स्तर पर यह निश्चित किया जाता है कि किस प्रकार के प्रश्नों में छात्रों को कितनी छूट विकल्पों (Choice) के आधार पर देनी है। वस्तु निष्ठ एवं लघुउत्तरीय प्रश्नों में सामान्यतः छूट नहीं देनी चाहिये निबन्धात्मक प्रकार में भी केवल आन्तरिक छूट दी जानी चाहिये।
(vi) चरण-प्रश्नों का खण्डों में विभाजन-इसमें अध्यापक को यह निश्चित करना होता है कि परीक्षण के लिए खण्ड में किस प्रकार के प्रश्न रखे जायें।
इसके लिए निम्न तालिका बनाई जा सकती है-
क्रमांक खण्ड प्रश्नों के प्रकार अंक प्रतिशत
1. अ वस्तुनिष्ठ 20 40
2. ब लघु उत्तरीय निबन्धात्मक 30 60
योग 50 100
(vii) चरण-समय निर्धारण-इसमें यह निर्धारित किया जाता है कि प्रश्न-पत्र में कितना समय लगेगा। इसके लिए निम्न तालिका बनाई जा सकती है-
क्रमांक प्रश्नों का प्रकार प्रश्नों की संख्या अंक प्रतिशत
1. वस्तु निष्ठ 10 20 10 मिनट
2. लघु उत्तरीय 5 20 30 मिनट
3. निबन्धात्मक 1 10 20 मिनट
योग 16 50 60 मिनट

2. ब्लू प्रिन्ट का निर्माण-उपरोक्त योजना के अनुसार ब्लू प्रिन्ट का निर्माण करना चाहिए। इसमें सारणी बनाकर उद्देश्य, विषय-वस्तु और प्रश्नों के आकार-प्रकार एक साथ लिखे जाते हैं। यह निम्न प्रकार से होता है-

उद्देश्य ज्ञान प्रयोग कौशल अंको का योग
क्रमांक प्रकरण (विषय वस्तु) निबन्धा
त्मक लघु
उत्तरीय वस्तु
निष्ठ निबन्धा
त्मक लघु
उत्तरीय वस्तु
निष्ठ निबन्धा
त्मक लघु
उत्तरीय वस्तु
निष्ठ
1.
2.
3.
4.
5.
योग

ब्लू प्रिंट पर आधारित प्रश्नों का निर्माण-ब्लू प्रिंट के निर्माण के बाद प्रश्नों का निर्माण किया जाता है। प्रश्न क्योंकि पाठ्यक्रम के विभिन्न प्रकरणों पर आधारित होते हैं। अतः इन प्रकरणों को दृष्टिगत रखते हुए उनका विभाजन कर दिया जाता है।
प्रश्न-पत्र का निर्माण- प्रश्नों के निर्माण के बाद इनको व्यवस्थित ढंग से रखा जाता है और एक प्रश्न-पत्र का स्वरूप दे दिया जाता है। अब इन प्रश्नों से पहले पूर्णांक, अवधि व उत्तर सीमा सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्देश लिए-दिए जाते हैं। इस प्रकार सभी कार्य पूर्ण हो जाने के बाद उसे टाइप या छपने के लिए दे दिया जाता है।
कुंजी का निर्माण-प्रश्न-पत्र निर्माण के बाद अगला चरण कुंजी का निर्माण करना होता है। इसमें प्रश्नों के अपेक्षित उत्तर लिखे जाते हैं। इसके साथ उनके अंक भार, उत्तर सीमा आदि का उल्लेख भी किया जाता है। वस्तुनिष्ठता लाने के लिए यह आवश्यक है कि परीक्षक को यह ज्ञात हो कि छात्रों से किस प्रकार के उत्तरों की अपेक्षा की गई है।
इस प्रकार उपरोक्त चरणों के आधार पर हम एक आदर्श प्रश्न-पत्र का निर्माण कर सकते हैं तथा विषय का मूल्यांकन कर सकते हैं।

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