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गोलकुंडा किला किसने बनवाया , गोलकुंडा का किला किस राजवंश ने बनवाया golconda fort was built by in hindi
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गोलकुंडा
यह कुतुबशाही वंश की राजधानी तथा दक्षिण भारत में सबसे बड़े दुर्ग- गोलकोंडा दुर्ग- का मुख्य केन्द्र था । गोलकुंडा क्षेत्र मध्य काल में कई हीरों की खानों के कारण बड़ा सम्मानित स्थान रहा है। माना जाता है कि इस क्षेत्र के खानों ने कोहिनूर, होप डायमंड तथा नस्सक हीरा प्रदान किया है।
गोलकुंडा शब्द का अर्थ होता है ‘गोल्ला-कोंडा‘, अर्थात ‘गड़रिये की पहाड़ी‘। गोलकोंडा दुर्ग का निर्माण, सर्वप्रथम, काकातिया वंश ने करवाया था, तत्पश्चात्, यह लूट-मार करने वाली शक्तियों के हाथों में गया, किन्तु वर्ष 1507 में कुतुब शाह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया तथा इसकी प्राचीन गरिमा को पुनर्स्थापित कर दिया। इसके प्रांगण में चार किले, आठ द्वार तथा चार उठाऊ पुल इसकी विशालता को प्रदर्शित करते हैं। इस किले में स्थापत्य शिल्प का सबसे बड़ा आश्चर्य ‘फतेह दरवाजा‘ (विजय द्वार) है। मुगल बादशाह औरंगजेब की विजयी सेनाओं के इसमें प्रवेश करने पर इसका निर्माण करवाया गया। इसके प्रांगण में कई मस्जिदें हैं, किन्तु सर्वाधिक प्रसिद्ध है तारामती मस्जिद। इस दुर्ग के सबसे ऊंचे स्थल को ‘बल हिस्सार‘ कहा जाता है। इस दुर्ग को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षित स्मारकों में से एक माना गया है।
एलिफैण्टा की गुफाएं
इन गुफाओं को मराठी भाषा में ‘घरपुरिची लेनी‘ के नाम से जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘गुफाओं का शहर‘ होता है। ये गुफाएं एक द्वीप पर अवस्थित हैं जो मुंबई बंदरगाह के 10 किलोमीटर की सीमा में स्थित हैं। इस द्वीप पर गुफाओं के दो मुख्य समूह हैं।
ऽ पांच हिन्दू गुफाओं का एक समूह जिनमें चट्टानों से काट कर बनाई गयी शिल्पाकृतियां हैं। वे, मुख्यतः, हिन्दू धर्म के ‘शैव मत से संबंधित हैं, यथा उनमे से अधिकाँश भगवान् शिव को समर्पित हैं।
ऽ द्वीप के किनारे पर कुण्ड युक्त बौद्ध गुफाओं के दो समूह हैं। पहाड़ी के पास एक टीला है जो बौद्ध स्तूप से मिलता-जुलता है।
पुर्तगाली जहाजों के अरब सागर में आने-जाने तथा इन गुफाओं को अपने अड्डे के रूप में उपयोग करने के कारण 14वीं से 17वीं शताब्दी के बीच इन गुफाओं को बहुत नुकसान पहुंचा। उन्होंने प्रतिमाओं को बहुत क्षति पहुंचाई जो बाद में जल-जमाव तथा वर्षा-जल के टपकने के कारण और भी बुरी अवस्था में पहुँच गयी। वर्ष 1970 में इन गुफाओं का पुनरुद्धार आरम्भ हुआ। यू.एन.इ.एस.सी.ओ. द्वारा वर्ष 1987 में इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किए जाने के बाद इस काम में और तेजी आयी।
ये गुफाएं ठोस बेसाल्ट चट्टानों की बनी हैं। अधिक पुरानी शिल्पाकृतियों पर रंगों के निशान हैं। प्रारम्भिक गुफा (गुफा संख्या 1) में चट्टान को काट कर बनाया गया एक मंदिर समूह है जिसमे भगवान् शिव को समर्पित एक मुख्य प्रकोष्ठ है, दो पार्श्व प्रकोष्ठ, सहायक मंदिर है, तथा इसे उन नक्काशियों से ढका गया है जिसमें उनके जीवन, तथा उनके जीवन से जुड़ी हुई कई कड़ियाँ, यथा पार्वती से उनका विवाह तथा गंगा का उनके सिर में उतरना, आदि सम्मिलित हैं।
इन गुफाओं को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के औरंगाबाद मंडल द्वारा सुरक्षित तथा संरक्षित किया जा रहा है। वे गुफाओं की संरचना को वहाँ सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं जहां खम्भे गिर चुके हैं, तथा चट्टान की सतहों को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करते हैं। हाल में, आई.ए.टी.ए.सी.एच. जैसे अन्य संगठन ए.एस.आई. के साथ मिल कर इन गुफा-स्थलों पर स्थानीय स्थितियों में सुधार करने, पानी के रिसने की स्थिति को बंद करने संरक्षण संबंधी संरचनात्मक और रासायनिक उपायों की निगरानी को आगे आये हैं।
गुवाहाटी
यह असम राज्य के सबसे बड़े शहरों में से एक तथा पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक राजधानी है। इस शहर को ‘पूर्वोत्तर भारत का द्वार‘ भी कहा जाता है। यह शहर ब्रह्मपुत्र नदी के तटों तथा शिलॉग के पठार की तराइयों में स्थित है।
यह हिन्दुओं के लिए एक पूज्य स्थान है चूँकि कामाख्या मंदिर यही स्थित है। प्रमुख मेलों में से एक ‘अम्बुबाची मेले‘ का आयोजन यहाँ हर वर्ष होता है, तथा पूरे देश से लोग इस उत्सव में भाग लेने के लिए गुवाहाटी आते हैं। गुवाहाटी में पीकॉक द्वीप भी है जो विश्व का सर्वाधिक छोटा नदी द्वीप है। अत्यंत प्रसिद्ध लेखक, निर्देशक तथा गायक पद्म भूषण पुरस्कार विजेता डॉक्टर भूपेन हजारिका गुवाहाटी से ही संबंध रखते थे।
गोवा
गोवा पाश्चात्य देशों से आने वाले पर्यटकों का सर्वाधिक प्रसिद्ध स्थल है। यह उत्तर में महाराष्ट्र तथा पूर्व और दक्षिण में कर्नाटक से घिरा हुआ है। पश्चिम में इसे अरब सागर ने अपने आलिंगन में ले रखा है जिस कारण गोवा में भारत के कुछ सर्वोत्तम समुद्री तट हैं। क्षेत्रफल में यह भारत का सबसे छोटा राज्य है तथा जनसंख्या की दृष्टि से यह चैथा सबसे छोटा राज्य है। यहाँ मिश्रित संस्कृति का बोलबाला है।
गोवा पर वर्ष 1961 तक पुर्तगालियों का कब्जा था तथा गोवा के बहुत-से पुराने भागों में उनकी संस्कृति आज भी जीवित है। पणजी स्थित फॉन्टेनहास को एक ‘सांस्कृतिक स्थल‘ घोषित किया गया है, चूँकि यह भारतीय-पुर्तगाली नस्ल के गोवावासियों के जीवन, संस्कृति तथा वास्तुकला को प्रदर्शित करता है। गोवा के बहुत-से गिरिजाघरों से वहां के जीवन पर इसाई धर्म का प्रभाव प्रकट होता है। उनकी सांस्कृतिक उत्कृष्टता के कारण यू.एन.इ.एस.सी.ओ. ने पुर्तगाली युग के गोवा के गिरिजाघरों तथा कॉन्वेंटों को 1986 में विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया।
यू.एन.इ.एस.सी.ओ. की विश्व विरासत सूची में सम्मिलित होने वाला एक और प्रमुख चर्च है बॉम जीजस बैसीलिका जिसमे संत फ्रांसिस डेवियर के अवशेष सुरक्षित हैं। संत फ्रांसिस डेवियर को कुछ कैथोलिक समूहों द्वारा गोवा का संरक्षक संत समझा जाता है। सांस्कृतिक रूप से, गोवा में कई कला विधाएं, यथा देखनी, फुगड़ी, मैण्डो, इत्यादि पाई जाती हैं। वहाँ कोंकणी, अंग्रेजी या पुर्तगीज भाषा में नाटकों, फिल्मों तथा संगीत का निर्माण भी होता है।
हम्पी
हम्पी का शाब्दिक अर्थ होता है ‘विजेता‘ तथा यह विजय नगर साम्राज्य की पूर्व राजधानी रहे विजय नगर शहर की खंडहरों के बीच स्थित एक प्रमुख बस्ती का प्रतीक है। कर्नाटक में एक छोटा-सा स्थल होने के बावजूद, यह अब भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक तथा सांस्कृतिक केंद्र है। इसके नाम हम्पी को एक कन्नड़ शब्द ‘हम्पे‘ से लिया गया है, जो ‘पम्पा‘ (तुंगभद्रा नदी का और प्राचीन नाम) से निकला है। हम्पी में अशोक युग के छोटे चट्टानी शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं, किन्तु यह अपने चरम पर विजयनगर के शासकों (1343-1565) के संरक्षण में पहुंचा था।
हम्पी के सभी स्मारकों तथा शिल्पाकृतियों को वर्ष 1986 में यू.एन. इ.एस.सी.ओ. द्वारा विश्व विरासत (स्थल) घोषित कर दिया गया था। हम्पी में सबसे बड़ा मंदिर समूह है विट्ठल मंदिर समूह, जिसमे शानदार पत्थर का रथ बना हुआ है। कर्नाटक पर्यटन विभाग ने इसे प्रतीक चिन्ह बनाया है।
इन स्मारकों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैः धार्मिक, नागरिक तथा सैन्य। सैन्य किलाबंदियों में बहुत से बुर्ज तथा द्वार हैं तथा ऐसे कई आवासन क्षेत्र हैं जिन्हें भारतीय पुरातव-सर्वेक्षण विभाग के द्वारा चिन्हित और रेखांकित किया गया है। यहाँ कई हिन्दू मंदिर, यथा अच्युतराय मंदिर, बाडावी लिंग मंदिर, चन्द्रमौलेश्वर मंदिर, हजारा राम मंदिर समूह, इत्यादि हैं।
हैदराबाद
यह उन दुर्लभ शहरों में से एक है जो दो राज्यों: आंध्र प्रदेश तथा हाल ही में बने राज्य तेलंगाना, की राजधानी है। भारत के अधिकाँश बड़े शहरों की भांति हैदराबाद भी नदी तट (मुसी) पर स्थित है, तथा भारत के चार सबसे अधिक जनसंख्या वाले शहरों में से एक है।
मुसी नदी के अतिरिक्त, हैदराबाद मानव निर्मित तथा प्राकृतिक झीलों (जैसे हुसैन सागर झील) से भरा हुआ है। हुसैन सागर झील एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है।
मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने 1591 में इस मध्यकालीन नगर की स्थापना की, तथा यह नगर एक दशक से अधिक समय तक उसके वंश के नियंत्रण में रहा। 1724 में असफ जाह के सत्ता संभालने के साथ वंश बदल गए, तथा नए शासकों को हैदराबाद के निजाम के नाम से जाना गया। इन दोनों वंशों ने चारमीनार तथा गोलकोंडा के किले जैसे ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करा कर शहर के परिदृश्य को एक नया आकार दिया।
यह शहर अपने हीरे के खादानों के कारण भी राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उभरा। हीरों तथा अर्द्ध-मूल्यवान पत्थरों का व्यापार उनकी संस्कृति का मुख्य अंग है। हैदराबाद असली मोतियों के लिए भी इतना विख्यात है कि इस शहर का नाम ही ‘मोतियों का शहर‘ रख दिया गया। इस शहर के बहुत से बाजार और हाट, तथा लाड बाजार, बेगम बाजार और सुलतान बाजार, मध्यकालीन युग से चले आ रहे हैं। यह शहर हैदराबादी बिरयानी तथा हैदराबादी हलीम के लिए भी प्रसिद्ध है।
हाल ही में, यह शहर उन आई.टी. कंपनियों का केंद्र बन गया है जिन्होंने शहर में सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी क्रान्ति ला दी है। औषधीय कंपनियों द्वारा इस शहर में अपनी शोध प्रयोगशालाओं को स्थापित करने के कारण इसे ‘जीनोम घाटी‘ कहा जाता है। हैदराबाद भारत के उन चुनिन्दा शहरों में से एक हैं जहां अब भी उर्दू भाषा बोली जाती है, तथा उर्दू भाषा के उन्नयन हेतु राष्ट्रीय परिषद् आदि जैसी अकादमियों के माध्यम से इसे बढ़ावा भी दिया जाता है।
जोगेश्वर और कन्हेरी की गुफाएं
ये गुफाएं मुंबई के एक उपनगरीय इलाके जोगेश्वरी के निकट अवस्थित हैं। जोगेश्वरी गुफाएं एलोरा समूह की कैलाश गुफा के बाद द्वितीय सबसे बड़ी ज्ञात गुफा है। पुरातत्वविदों के अनुसार, यद्यपि उन गुफाओं का निर्माण 1500 वर्ष पूर्व हुआ था किन्तु प्रमुख शिव मंदिर 6ठी शताब्दी का बना है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये अजन्ता और एलिफैन्टा गुफाओं के बीच की संक्रमण गुफाओं का समूह हैं क्योंकि वह शैली इन्हीं गुफाओं से विकसित हुई हैं।
जोगेश्वरी समूह के पास ही कन्हेरी गुफाओं का समूह भी है। यह बोरिविली राष्ट्रीय उद्यान के निकट अवस्थित है। यह गुफाओं का एक विशाल समूह है जिनकी संख्या 109 बताई जाती है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, यद्यपि ये गुफाएं 200 वर्ष ईसा पूर्व की हो सकती हैं, इनकी अधिकांश संरचनाएं बाद में निर्मित की गयीं या जोड़ी गयीं। उदाहरण के लिए, यहां दो विशाल बुद्ध प्रतिमाएं छठी शताब्दी की हैं, वे गुफा संख्या तीन के प्रवेश द्वार को सुशोभित करती हैं।
इसके अतिरिक्त, बौद्ध धर्म के कई पहलुओं को प्रदर्शित करने वाली ये गुफाएं पूरे क्षेत्र पर प्रभाव डालती हैं। कन्हेरी गुफा समूहों में कुछ ऐसी गुफाएं भी हैं जिनमे बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान, दोनों सम्प्रदाय के दर्शन को दर्शाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये गुफाएं बहुसांस्कृतिक प्रकृति की थीं तथा इनका उपयोग एक ही धार्मिक संगठन के विभिन्न धर्मों के द्वारा पूजा स्थल के रूप में किया जाता था।
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