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पारजीवी जीव/पारजीववी जीव/GM animals/ट्राँसजैनिक जंतु , जैविक मुद्धे/जैव नैतिकता
पारजीवी जीव/पारजीववी जीव/GM animals/ट्राँसजैनिक जंतु:- जिनके जीन हस्तकौशल के द्वारा परिवर्तित कर दिये जाने तथा उनमें वाँछित लक्षणों की अभिव्यक्ति हो जाये तो उसे ट्राँसजैनिक जन्तु कहते है।
उदाहरण:- GM चूहे 25 प्रतिशत खरगोश, गाय, भैंस, मछली, बकरी भेड, आदि
2 रोगों का अध्ययन- रोग मांडल का विकास:- रोग का विकासएवं निदान तथा उपचार के अध्ययन हेतु ट्राँस जैविक जन्त बनाये जाते है।
उदाहरण:- ओन्क्रोमाउस केंसर रोग के अध्ययन के लिए इसी प्रकार पुटी रेशमयता, आनावती संधि शोध एल्जाइमर्स आदि रोगों के अध्ययन हेतु भी GMA बनाये गये है।
3 टीका सुरक्षा:- उदाहरण:- पोलियों का टीका
4 रासायनिक (आविषालुप्ता) परीक्षण:- GM जीव अधिक संवेदी होते है अतः कम मात्रा में अधिक प्रभाव उत्पन्न होता है एवं कम समय लगता है।
5 जैविक उत्पाद:- जीवों के लिए लाभदाय जीव होते है।
उदारहण:- 1-GM भेड के दूध में AAT एल्फा -1 एंटी ट्रिप्सिन पाया जाता है जिसके कारण एफाइसीया रोग का उपचार किया जाता है।
1- रोजी गाय:- इसमें मानव दुग्ध प्रोटीन सम्पन्न होती है। 2.4 ग्राम लीटर इसमें ALA एल्फालेक्ट एलेबुमिन पाया जाता है यह अधिक पोष्टिक होता है।
जैविक मुद्धे/जैव नैतिकता:- मनुष्य द्वारा अपने लाभ के लिए अन्य जीवों का प्रयोग किया जा रहा है इसके सिमित प्रयोग के नियंत्रण संबंधी मुद्धे को जैविक मुद्धे या जैव-नैतिकता कहते है।
जैव तकनीकी एवं इससे संबंधी कार्यो के अनुमोदन के लिए एक समिति बनी हुई है GEAC आनुवाँशिक अभियाँत्रिकी संस्तुति समिति जो कार्यो की वैज्ञानिकता एवं जीवों की सुरक्षा का नियंत्रण करती है।
मुख्य मुद्धे- अन्य जीवों में सुरक्षा
जीवों को उद्योग की श्रेणी में रखना।
उत्पाद से उत्पन्न प्रभावों कापूर्ण अध्ययन नहीं (हानिकारक प्रभाव)
ळड जीवों के परितंत्र में शामिल होने पर अप्रत्याशित परिणाम
परितंत्र असंतुलित हो सकता है।
6 एकस्व या पेटेन्ट:-
आनुवाँशिक पदार्थो, पदपों एवं अन्य जैविक संसाधनों से जैव तकनीक के द्वारा बने उत्पादों एवं सक्रमों को विशेष अधिकार को पेटेन्ट जैव पैटेन्ट कहते है।
भारत सरकार ने 1972 से एकस्व कानून लागू किया।
अमेरिका की एक कम्पनी ने 1977 में बासमती चावल का पेटेन्ट प्राप्त करने का प्रयास किया जिसे भारत में सदियों से बोया एवं प्रयोग किया जा रहा है तथा इसका वर्णन हमारे ऐतिहासिक ग्रंथों में है।
भारत में लगभग 27 किस्में एवं धान की 2 लाख किस्मे पायी जाती है।
बायोपाइरेसी:- बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों और नियमों द्वारा बिना व्यवस्थित अनुमोदन और क्षतिपूर्ति भुगतान के जैविक संसाधनों का प्रयोग करना बायोपाइरेसी कहलाता है।
विकासशील देश जेव विविधता से भरपूर है तथा इनके पास परम्परागत ज्ञान है।
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