हिंदी माध्यम नोट्स
घन वाद्य किसे कहते हैं , घन वाद्य यंत्र कौन-कौन से हैं परिभाषा क्या है नाम ghana vadya instruments list in hindi
ghana vadya instruments list in hindi name घन वाद्य किसे कहते हैं , घन वाद्य यंत्र कौन-कौन से हैं परिभाषा क्या है नाम ?
घन वाद्य
यह ठोस वाद्य यंत्र की शैली है, जिसके लिए किसी भी ट्यूनिंग की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें इडियो फोन वाद्य यंत्र भी कहा जाता है। घन वाद्य के सबसे लोकप्रिय उदाहरण मंजीरा, जलतरंग, कांच-तरंग, झांझ, करताल आदि हैं।
मंजिरा छोटा-सा पीतल का झांझ होता है। सामान्यतः इसका मंदिरों में प्रयोग किया जाता है। पुरातात्विक उत्खननों में मंजीरा को हड़प्पा सभ्यता जितना पुराना पाया गया है। इन वाद्य यंत्रों का मंजीरा प्रकार्य गाए जा रहे गीत के साथ लय और ताल बनाए रखना है।
मुख्यतः शास्त्रीय रूपों में उपयोग किया जाने वाला एक और वाद्य यंत्र घटक है। यह धातु के साथ मिश्रित मिट्टी से बना एक बर्तन होता है और इसकी दीवारें 2 सेंटीमीटर मोटी होती हैं। इस यंत्र से सर्वश्रेष्ठ संगीत निकालने के लिए उंगली के चारों ओर लगे पीतल के छल्ले से इसे बजाना होता है। सुविदित घटक वादकों में से एक थीटाकुदी हरिहरन विनायकराम है।
संगीत वाद्य यंत्र
किसी भी संगीत के लिए, संगीत वाद्य यंत्रों के बारे में जानना आवश्यक होता है। सम्मिलित वाद्य यंत्र के प्रकार के आधार पर संगीत वाद्य यंत्रों की चार प्रमुख पारंपरिक श्रेणियां हैं। ये हैंः
अवानाद / अवानाद्य वाद्य
ये मेम्ब्रोफोनिक वाद्य यंत्र हैं क्योंकि इनमें बाहरी झिल्ली होती है जिससे विशेष संगीतात्मक ध्वनि निकालने के लिए इन पर आघात किया जाता है। इन्हें आघात वाद्य यंत्र के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि संगीतमय ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इन पर आघात किया जाता है। इनमें सामान्यतरू खाल या चमड़े से ढंके एक या दो पक्ष होते हैं। इस श्रेणी में सबसे प्राचीनतम भूमि दुंदुभी हैं।
सामान्यतः इस श्रेणी में सम्मिलित संगीत वाद्य यंत्र हैं रू तबला, ड्रम, ढोल, कांगो, मृदंगम्, आदि। जहां तबला अधिकांश हिन्दुस्तानी शास्त्रीय कंठ संगीत की संगत है वहीं मृदंगम् कर्नाटक संगीत के प्रदर्शनों के साथ संगत करने वाला वाद्य यंत्र है।
सुशिर वाद्य / सुषिर वाद्य
ये एरोफोन श्रेणी के हैं अर्थात इनमें सभी वायु वाद्य यंत्र सम्मिलित हैं। सबसे आम वाद्य यंत्रों में बांसुरी, शहनाई, पुंगी, निन्कनस् आदि है।
इस श्रेणी में सबसे आम लेकिन बजाने में दुष्कर वाद्य यंत्र शहनाई है। यह सिरे पर चैड़ी ट्यूब वाला दोहरी नली वाला वायु वाद्य यंत्र है। यह भारत में सबसे पुराने वायु वाद्य यंत्रों में से एक है।
‘शहनाई राजा‘ की उच्च पदवी महान उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को दी गयी थी। अपने भावपूर्ण वादन के माध्यम से है शहनाई को उसकी परकाष्ठा पर ले गए। प्रत्येक घर में पाए जा सकने वाले सबसे आम वाद्य यंत्रों में से एक बांसुरी है। यह वैदिक काल से ही उपयोग में रही है। प्रारंभ में इसे नाड़ी या तुनावा कहा जाता था। यह तब एक श्रद्धेय वस्तु बन गई जब बांसुरी बजाते हुए भगवान कृष्ण की छवि हिन्दू कल्पना का प्रतीक बनी। भारत के सबसे प्रसिद्ध बांसुरी नाटकों में से एक पंडित हरिप्रसाद चैरसिया हैं।
ताल/टाटा वाद्य
ये कार्डोफोन या स्ट्रिंग वाद्य यंत्र हैं। इसकी ध्वनि में हाथ से संशोधन करने पर ये सबसे प्रभावपूर्ण संगीत उत्पन्न करते हैं। ताल वाद्य यंत्रों के तीन प्रमुख प्रकार हैंः
(ं) धनुषाकारः वे वाद्य यंत्र जिनमें ध्वनि तार के आर-पार धनुष चलाकर निकाली जाती है। उदाहरण के लिए, सारंगी और वायलिन।
(इ) प्लेक्टरलः वे वाद्य यंत्र, जिनमें तार को उंगलियों से या तार या सींग से खींचा जाता है। उदाहरण के लिए, सितार और वीणा।
(ब) वे वाद्य यंत्र, जिन पर छोटी-सी हथौड़ी या डंडों के जोड़ों से आघात किया जाता है। उदाहरण के लिए, गोटूवाद्यम् और स्वरमंडल।
भारत ने ताल वाद्य यंत्र के क्षेत्र में कई श्रेष्ठ कलाकारों को जन्म दिया है। बंगश परिवार को 20 वीं सदी में सरोद के अग्रदूतों में माना जाता है। सितार बजाने वाले कई घराने हैं, उदाहरण के लिए, जयपुर, वाराणसी. इटावा (इम्माद खानी) घराना। देवी सरस्वती से संबंधित सबसे प्राचीन और श्रद्धेय वाद्य यंत्रों में से एक वीणा संगीत वाद्य यंत्र की इस श्रेणी के अंतर्गत आती है।
संगीत में आधुनिक विकास
अपने उद्भव से ही संगीत के विकास की प्रक्रिया अंतहीन रही है। 21वीं सदी में संगीत उद्योग के तीव्र विकास के लिए कई प्रयास किए गए है। ऐसे संस्थान हैं जो छात्रों को संगीत सिखाते हैं तथा इस विषय में उन्हें सैद्धांतिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि उपलब्ध कराते हैं। जनता के लिए खुला प्रदर्शन आयोजित करके आम जनता के लिए कलाकार की प्रतिभा का प्रदर्शन करने का प्रयास करने वाले संस्थानो की तीव्र गति से वृद्धि हुई है। कुछ महत्वपूर्ण विकास इस प्रकार हैः
गंधर्व महाविद्यालय
वी.डी.पलुस्कर ने आने वाली पीढ़ियों को भारतीय संगीत के शिक्षण और ज्ञान के संचारण के अभिव्यक्त उद्देश्य के साथ 1901 में इस विद्यालय की स्थापना की थी। प्रारंभ में, इसे लाहौर में खोला गया था लेकिन विभाजन के बाद, इसे मुंबई में स्थानांतरित कर दिया गया। यह महाविद्यालय संगीत के हिंदुस्तानी और कर्नाटक शास्त्रीय रूपों पर केंद्रित है। मन के भक्तिमय झुकाव के कारण इलाहाबाद में प्रयाग समिति की स्थापना की गयी।
संगीत नाटक अकादमी
संगीत नाटक अकादमी 1952 में भारत सरकार द्वारा कला के लिए स्थापित पहली राष्ट्रीय अकादमी थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन किया था। यह अकादमी भारत के संगीत, नाटक और नत्य के लिए व्यवस्था का निर्माण करने पर केंद्रित है। इससे देश में प्रदर्शन कला के लिए प्राथमिक निकाय होने की अपेक्षा की जाती है। इससे संगीत, नृत्य और नाटक के रूपों के माध्यम से प्रदर्शित भारत की विशाल अमूर्त विरासत को बढ़ावा देने की भी अपेक्षा की जाती है।
इससे न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर दृष्टि रखने वाली केंद्रीय एजेंसी होने की अपेक्षा की जाती है बल्कि इसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों के साथ राष्ट्रीय मंच पर उनकी संस्कृति का संरक्षण करने और बढ़ावा देने के लिए सहयोग करने की भी आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। संगीत नाटक अकादमी ऐसे कई संस्थानों का संरक्षण देती है जो मुख्य रूप से नृत्य या संगीत या नाटक पर केंद्रित हैं। उदाहरण के लिए, 1959 में स्थापित राष्ट्रीय या विद्यालय का प्रशासन संगीत नाटक अकादमी द्वारा किया जाता है।
मेरिस संगीत महाविद्यालय
यह भारत में शास्त्रीय संगीत का अध्ययन करने के प्रमुख संस्थानों में से एक है। 1929 में इसकी स्थापना महान संगीतज्ञ विष्णु नारायण भातखंडे ने की थी। वे इस विद्यालय की स्थापना के लिए अपने मूल स्थान लखनऊ वापस चले आए। यह संगीत के सिद्धांत के साथ-साथ गायन और वाद्य यंत्रों के वादन के अभ्यास पर केंद्रित है। आगे चलकर इसका नामकरण भातखंडे संगीत विद्यालय के रूप में किया गया।
स्पिक मैके
किरण सेठ ने 1977 में स्पिक मैके समुदाय की स्थापना की। इस संगठन का पूरा नाम ‘युवाओं के मध्य भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति के संवर्धन के लिए सोसायटी‘ है। यह स्वैच्छिक युवा आंदोलन के रूप में प्रारंभ हुआ और विकसित होकर आम जनता के लिए, विशेष रूप से भारतीय शास्त्रीय जड़ों से संपर्क खोने वाली युवा पीढ़ी के लिए भारत की संस्कृति प्रदर्शित करने का मंच बन गया।
इस संगठन के पीछे मूल तर्क भारतीय शास्त्रीय संगीत, नृत्य और भारतीय संस्कृति के अन्य पहलुओं को बढ़ावा देना है। यह कई निःशुल्क प्रवेश वाले कार्यक्रमों का आयोजन करके आम लोगों और युवाओं को लक्षित करता है। धीरे-धीरे यह विशालकाय संगठन बन गया है, जिसकी विश्व भर में 200 से भी अधिक शाखाएं हैं।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…