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गैस नियतांक क्या है , परिभाषा , गैस नियतांक की विमा व मात्रक , SI , cgs , Gas constant in hindi
SI , cgs , Gas constant in hindi , गैस नियतांक क्या है , परिभाषा , गैस नियतांक की विमा व मात्रक :-
प्रश्न : हिमांक किसे कहते है ?
उत्तर : वह निश्चित ताप जिस पर किसी द्रव की द्रव तथा ठोस दोनों अवस्थाओ का वाष्पदाब समान हो जाता है , उस ताप को द्रव का हिमांक कहते है।
शुद्ध जल का हिमांक 0 डिग्री सेल्सियस या 273 होता है।
प्रश्न : हिमांक अवनमन को समझाइये।
या
अवाष्पशील विलेय युक्त विलयन का हिमांक शुद्ध विलायक के हिमांक से कम होता है।
जब शुद्ध विलायक में अवाष्पशील विलेय घोला जाता है तो उसका वाष्प दाब कम हो जाता है अर्थात विलयन का वाष्पदाब शुद्ध विलायक से कम होता है जिससे विलयन अपेक्षाकृत कम ताप पर जमता है अर्थात विलयन का हिमांक कम हो जाता है इसे हिमांक अवनमन कहते है।
माना शुद्ध विलायक तथा विलयन के हिमांक क्रमशः Tf0 तथा Tf तो हिमांक में अवनमन
△Tf = Tf0 – Tf
ग्राफ से उपरोक्त तथ्य की व्याख्या ग्राफ द्वारा निम्न प्रकार से की जा सकती है।
चित्रानुसार विलायक तथा विलयन के लिए वाष्पदाब तथा ताप के मध्य ग्राफ खिंचा गया है।
बिंदु A पर विलायक की द्रव तथा ठोस दोनों अवस्थाओ का वाष्प दाब समान है अत: परिभाषा के अनुसार बिंदु A के संगत ताप Tf0 को शुद्ध विलायक का हिमांक कहते है , इसी प्रकार से बिंदु P पर विलयन की द्रव B तथा ठोस दोनों अवस्थाओ का वाष्प दाब समान होता है अत: बिंदु B के संगत ताप Tf को विलयन का हिमांक कहते है। उपरोक्त ग्राफ से स्पष्ट है कि विलयन का हिमांक शुद्ध विलायक के हिमांक से कम होता है।
प्रयोगों द्वारा ज्ञात हुआ कि हिमांक में अवनमन (△Tf) मोललता के समानुपाती होता है।
अर्थात △Tf ∝ m
△Tf = mKf समीकरण-1
यहाँ Kf मोलल अवनमन स्थिरांक / हिमांक अवनमन स्थिरांक / क्रायो स्क्रोपिक स्थिरांक है।
इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है –
यदि m = 1 मोलल है तो समीकरण-1 से
अत: △Tf = Kf
1 मोलल विलयन के हिमांक में अवनमन को मोलल अवनमन स्थिरांक कहते है।
विसरण
पदार्थ के अणु अधिक सांद्रता वाले क्षेत्र से कम सांद्रता वाले क्षेत्र की ओर स्वत: ही गति करते रहते है। जब तक कि सभी जगह सान्द्रता समान नहीं हो जाती। इसे विसरण कहते है।
जैसे – इत्र की शीशी खोलने पर उसके अणु कमरे में सभी जगह चले जाते है।
उदाहरण-2 : स्याही की बूंद को जल में डालने पर समांगी विलयन बनता है।
अर्द्ध पारगम्य झिल्ली (semipermeable membrane) (SPM)
यह तनी हुई सतत झिल्ली है जिसमे असंख्य छिद्र होते है। इन छिद्रों में से केवल जल के अणु ही गुजर सकते है। यह झिल्ली दो प्रकार की होती है।
प्राकृतिक अर्द्ध पारगम्य झिल्ली :- जंतु झिल्ली , वनस्पति झिल्ली तथा सूअर का मूत्राशय।
संश्लेषित अर्द्ध पारगम्य झिल्ली :- सेलुलोस एसिटेट
परासरण : अर्द्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा जल के अणु कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर जाते है इसे परासरण कहते है जैसे –
किशमिश को जल में रखने पर वह फुल जाती है। परासरण के कारण।
उदाहरण-2 सूखे चने , मटर आदि को जल में रखने पर वे ताजा दिखाई देते है।
प्रश्न : विसरण तथा परासरण में अंतर लिखो ?
उत्तर :
विसरण | परासरण |
1. अर्द्धपारगम्य झिल्ली नहीं होती। | अर्द्ध पारगम्य झिल्ली होती है। |
2. विलेय अथवा विलायक के अणु अधिक सांद्रता वाले क्षेत्र से कम सांद्रता वाले क्षेत्र की ओर गति करते है। | केवल विलायक के अणु कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर जाते है। |
परासरण दाब
इसकी व्याख्या निम्न दो प्रयोगों द्वारा की जा सकती है।
- एक U आकार की कांच की नली के मध्य में अर्द्ध पारगम्य झिल्ली व्यवस्थित कर देते है। इसमें एक तरफ विलायक (जल) तथा दूसरी तरफ विलयन भर लेते है। जिससे जल के अणु अर्द्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक से विलयन में प्रवेश करते है जिससे विलयन की सतह पर स्थित पिस्टन ऊपर की ओर सरकने लगता है इसे पुनः उसी अवस्था में वापिस लाने के लिए विलयन की सतह पर जो दाब डाला जाता है उसे परासरण दाब कहते है। इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है –
अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक (जल) का विलयन में परासरण रोकने के लिए विलयन की सतह पर जो दाब डाला जाता है उसे परासरण दाब कहते है इसे π से व्यक्त करते है।
- एक थिसेल कीप के मुंह पर अर्द्ध पारगम्य झिल्ली व्यवस्थित कर देते है। इसमें शर्करा का विलयन भर लेते है इसे चित्रानुसार जल से भरे पात्र में व्यवस्थित कर देते है। परासरण की क्रिया द्वारा जल के अणु पात्र से शर्करा विलयन में प्रवेश करते है जिससे शर्करा विलयन एक निश्चित ऊंचाई ग्रहण कर लेता है। निश्चित ऊँचाई ग्रहण करने के पश्चात् ऊंचाई में और अधिक परिवर्तन नहीं होता क्योंकि यहाँ द्रव स्थैतिक दाब परासरण दाब के बराबर हो जाता है अत: वह द्रव स्थेतिक दाब जो परासरण द्वारा उत्पन्न होता है उसे परासरण दाब कहते है। इसका मान निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करते है।
π = hdg
यहाँ d = शर्करा विलयन का घनत्व
g = गुरुत्वीय त्वरण है। परासरण दाब ज्ञात करने का वांट हाफ समीकरण –
π = CRT
π = परासरण दाब
C = विलयन की मोलर सांद्रता (मोल/लीटर)
R = गैस नियतांक
T = परम ताप (केल्विन में)
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