JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Uncategorized

गांधीवाद की आलोचना | गांधीवाद की परिभाषा क्या है ? किसे कहते है ? अर्थ के विपक्ष में तर्क gandhiwad kya hai

gandhiwad kya hai गांधीवाद की आलोचना | गांधीवाद की परिभाषा क्या है ? किसे कहते है ? अर्थ के विपक्ष में तर्क ?

गाँधीवादी विचारों पर कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियाँ
आधुनिक सभ्यता की जो समीक्षा गाँधी ने की, उसे इस तथ्य के आधार पर समझा जा सकता है कि गाँधी इस सभ्यता के आंशिक अंतरंगी (इनसाइडर) और आंशिक बाहरी व्यक्ति (आउटसाइडर) थे। आंशिक रूप से एक अंतरंगी व्यक्ति के रूप में गाँधी जी ने आधुनिक उदारताधाद की नागरिक स्वतंत्रताओं और उत्तर-ज्ञानोदय आधुनिकतावाद के वैज्ञानिक मनोवृत्ति को महत्व दिया। आशिक रूप से एक बाहरी आदमी के रूप में गाँधी किसी भी पश्चिमी आलोचक की अपेक्षा पश्चिमी आधुनिकता के अंधेरे पक्षों को ज्यादा गहराई से देख सकते थे तो इसलिए, क्योंकि गाँधी एक दूसरी सभ्यता के निवासी थे जो पश्चिम के द्वारा एक उपनिवेश बना ली गयी थी। वे पश्चिमी आधुनिकता को रूपांतरित करने के लिए भारतीय सभ्यता से कुछ अवधारणात्मक श्रेणियाँ एवं नैतिक नियमों, जैसे सत्य और अहिंसा को ग्रहण करने के पक्ष में थे।

पश्चिमी आधुनिकता के प्रति रवैया
पश्चिमी आधुनिकता के प्रति गाँधी का आरम्भिक रूख इतना अधिक नकारात्मक था कि नेहरू का यह कहना गलत नहीं था कि वे आधुनिक जीवन के कुछ पक्षों के प्रति किसानी अंधता (पैजेंट्स स्लाइंडनेस) से ग्रसित थे। यद्यपि अपने बाद के वर्षों में गाँधी ने आधुनिकता की समीक्षा में काफी नरमी लाई, जैसा कि हम लोगों ने देखा। तब भी आधुनिक सभ्यता के विषय में उन्होंने जिस आदर्श स्वराज की कल्पना की थी, उसकी वैधता एवं प्रासंगिकता के वे बराबर तरफदार रहे। वस्तुतः गाँधी का यह आदर्श एवं आधुनिक सभ्यता की उनकी गहरी आलोचना ने भारतीय जनता में नेहरू के शब्दों में ‘‘महान मनोवैज्ञानिक क्रांति’’ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अन्ततः अहिंसक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को सफल बनाया। गाँधी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पश्चिमी आधनिकता की परियोजना में निहित विभाजकता, शोषण, हाशियाकरण, हिंसा और नैतिक अपूर्णतया को चिन्हित किया था। आधुनिकता की मनुष्य की जो भौतिकवादी एवं परमाणुवादी अवधारणा है, गाँधी की उसकी समीक्षा अन्तर्दृष्टिपूर्ण एवं हितकारी है।

सत्याग्रह की अव्यावहारिकता
गाँधी के सत्याग्रह के सिद्धान्त एवं आचार के बारे में कई विचारकों का मत है कि हिंसक उत्पीड़न के विरुद्ध अहिंसा और स्वपीड़न अव्यावहारिक विधियाँ हैं। उन लोगों का कहना है कि गाँधी की विधियाँ असांसरिक एवं अमानवतावादी है। उदाहरण के लिए, लोकमान्य तिलक का यह कहना था कि गाँधी राजनीति को नैतिकता से जोड़ने की जो बात कहते हैं, वह सांसरिक सरोकारों के मेल में नहीं है। गाँधी को लिखे अपने प्रसिद्ध पत्र में वे कहते हैं: ‘‘राजनीति साधुओं का नहीं, सांसरिक लोगों का खेल है। इसलिए बुद्ध के वनिस्पत. श्री कृष्ण की प्रविधि इस संसार की मेल में है‘‘। अपने उत्तर में गाँधी का कहना था कि अहिंसा और स्वीपीड़न असांसरिक नहीं है बल्कि अनिवार्यतः सांसरिक है। उन्होंने यह स्वीकार किया था कि प्रयोग के लिए ये सिद्धांत कुछ मश्किल जरूर हैं, लेकिन इन्हीं सिद्धांतों पर चलने की आवश्यकता है। उनका कहना था कि पूर्ण अहिंसा का सिद्धान्त यूक्लिड के बिंदु या सीधी रेखा के सिद्धान्त की तरह है, लेकिन हमें जीवन के प्रत्येक क्षण में प्रयत्नशील रहना होगा। गाँधी का कहना सही था कि अहिंसक समाज सम्भव भी है और अपेक्षणीय भी।

यह आलोचना का विषय है कि सत्याग्रह में सत्याग्रही से मृत्यु तक स्वपीड़न की मांग की जाती है। यह सही है कि स्वपीड़न सत्याग्रह का एक महत्वपूर्ण तत्व है, तथापि हिंसक प्रतिरोध के मामले में भी स्वपीड़न की भूमिका होती है। उत्पीड़न के विरुद्ध हिंसक और अहिंसक प्रतिरोध दोनों में ष्मृत्यु तक बलिदान की भावनाष् एक सामान्य तत्व है। यही कारण है कि गाँधी अहिंसा की सभी विधियों के असफल हो जाने पर और वो भी, सिर्फ मूलभूत समस्याओं पर ही सत्याग्रह को अपनाने की सम्मति देते थे। सन् 1921 में उन्होंने लिखा थाः ष्मुझे गहरी पीड़ा होगी अगर हम कल्पनीय अवसर पर हम लोग स्वयं के समक्ष एक नियम रखें और उसी के अनुसार भविष्य की राष्ट्रीय सभा के लिए कार्य निर्धारित करें। अधिकांश मामलों में मैं अपने निर्णय को राष्ट्रीय प्रतिनिधियों को सुपूर्द कर दूंगा।रू ष्लेकिन जब हिंसक उत्पीड़न की स्थिति बरकरार हो और अहिंसक प्रतिरोध की सभी नरम विधियाँ आजमाई जा चुकी हों, तब भी गाँधी का मानना था कि सामुदायिक सत्य के लिए स्वपीड़न से अहिंसक योद्धा की मृत्यु हिंसक प्रतिरोध में हारकर मरने वाला योद्धा की मृत्यु के अपेक्षा व्यक्ति स्वातंत्रय का सच्चा उद्घोष हैष्।

पश्चिमी विचारकों द्वारा मूल्यांकन
निष्कर्षतः गाँधी जी के सत्याग्रह का पश्चिमी विचारकों द्वारा दो मूल्यांकनों पर हम लोग विचार करेंगे। अपनी पुस्तक ‘‘फिलासफीज ऑफ इंडिया‘‘ में एच. जिमर लिखते हैंः ‘‘गाँधी के सत्याग्रह की योजना उस प्राचीन हिन्दू विज्ञान के क्षेत्र में एक गम्भीर शक्तिशाली प्रयोग है जो उच्चतर शक्तियों में प्रवेश कर निम्नतर शक्तियों को अतिक्रमित कर जाती हैं। ग्रेट ब्रिटेन के ‘‘असत्य‘‘ का भारत के ‘‘सत्य‘‘ के साथ गाँधी सामना कर रहे हैं। अंग्रेजों ने हिंदू पवित्र धर्म के साथ समझौता किया। यह एक चमत्कारिक पुजारी युद्ध है जो विशाल आधुनिक पैमाने पर लड़ा जा रहा है‘‘ और ‘‘रॉयल सैनिक कॉलेज के टेकस्ट बुक में लिखित सिद्धान्त बजाय बह्मा के सिद्धांतों पर लड़ा जा रहा है‘‘।

इसी प्रकार अपनी पुस्तक साइंस, लिबर्टी एन्ड पीस में एल्डस हक्सले लिखते हैंः
‘‘ऐसा मालूम पड़ता है कि आने वाले वर्षों में सत्याग्रह पश्चिम में भी अपनी जड़े जमा लेगा। किसी हृदय परिवर्तन की वजह से नहीं बल्कि सिर्फ इसलिए कि विजित देशों में जनता का यह एकमात्र ऐसी राजनैतिक कार्यवाही है, जिसे प्रयोग में लाया जा सकता है। रुर और पालातिनेत के जर्मनों ने फ्रांसीसी लोगों के विरुद्ध सन् 1913 में सत्याग्रह का आश्रय लिया था। यह आन्दोलन स्वतः स्फूत था। दार्शनिक, नैतिक या संगठनात्मक रूप में यह तैयार नहीं था इसलिए यह आन्दोलन अन्ततः टूट गया। लेकिन यह काफी दिनों तक चला जिससे यह सिद्ध हुआ कि पश्चिमी लोग (जो किसी भी दूसरे देश में अधिक सैनिक प्रवृत्ति के हैं) भी आत्मत्याग एवं पीड़ा को स्वीकार कर अहिंसा की सीधी कार्यवाही अपनाने में उतने ही सक्षम हैं।

बोध प्रश्न 7
टिप्पणी: 1) उत्तर के लिए रिक्त स्थानों का प्रयोग करें।
2) अपने उत्तर का परीक्षण दिए गए उत्तर से करें।
1) गाँधी का पश्चिमी विचारकों ने जो मूल्यांकन किया है, उसका संक्षेप में वर्णन करें।

सारांश
प्रस्तुत इकाई में आप लोगों ने सत्याग्रह और स्वराज्य के बारे में गाँधी की अवधारणाओं का अध्ययन किया। आप लोग उन कारणों से परिचित हुए जिनकी वजह से गाँधी पश्चिम की आलोचना करते थे। अन्त में गाँधी का मूल्यांकन किया गया। यह आशा की जाती है कि इस इकाई के अध्ययन से आप लोगों को उन विषयों को लेकर एक अन्तर्दृष्टि प्राप्त हो गयी होगी जिनके प्रति गाँधी कटिबद्ध थे।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
पंथम थोमस एवं द्योश केनेथ एल., पोलिटकल थॉट इन मॉडर्न इंडिया, सेज पब्लिकेशनस
इंडिया, प्रा. लि., 1986, नई दिल्ली।
जे. बंदोपाध्याय, सोशल एंड पोलिटिकल थॉट ऑफ गाँधी, एलायड पब्लिशर्स, बम्बई, 1969।
विनोवा भावे, स्वराज शास्त्र, सर्व सेवा संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी, 1963।
जय प्रकाश नारायण, टूवार्डस टोटल रिवोल्यूशन, खंड-1, रिकमंड पब्लिकेशन, जय प्रकाश नारायण, प्रिजन डायरी, (स) ए.बी. शाह, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी प्रेस, सीएटल, 1977।
मोहनचंद करमचंद गाँधी: एन औटोबायोग्राफी, द स्टोरी विद टूथ, लंदन, 1949।
म.क. गाँधी, हिन्दू धर्म, नवजीवन पब्लिशिंग हाऊस, अहमदाबाद, 1950।
म.क. गाँधी, सत्याग्रह, नवजीवन पब्लिशिंग हाऊस, अहमदाबाद, 1951।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now