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Categories: chemistry

झाग प्लवन विधि (froth flotation process in hindi) , सिद्धांत , झागकारक , प्लवन कारक

(froth flotation process in hindi) झाग प्लवन विधि : हम यहाँ पहले इसके सिद्धांत , फिर इस विधि की प्रक्रिया आदि का अध्ययन करते है।
झाग प्लवन विधि का सिद्धान्त : यह इस सिद्धांत पर कार्य करता है कि सल्फाइड अयस्क के कण तेल में भीगते है और अशुद्धि या आधात्री के कण पानी में भीगते है अर्थात जब सल्फाइड के अयस्को को तेल और पानी के मिश्रण में डाला जाता है तो सल्फाइड अयस्क के कण मिश्रण में उपस्थित तेल में भीग जाते है और अशुद्धियों के कण मिश्रण में पानी द्वारा भीगते है।
झाग प्लवन विधि द्वारा किन अयस्कों का सांद्रण किया जाता है ?
इस विधि द्वारा सल्फाईड अयस्को या सांद्रण आसानी से किया जाता है।

झाग प्लवन विधि

सबसे पहले तो यह याद रखे कि इस विधि द्वारा केवल सल्फाइड अयस्क का सांद्रण किया जाता है , इस विधि में पानी और तेल का मिश्रण लेते है और इस मिश्रण में उस सल्फाइड अयस्क को डाला जाता है जिसका सांद्रण करना है।
सिद्धांत के अनुसार सल्फाइड अयस्क के कण तेल में आसानी से भीग जाते है और अशुद्धि के कण पानी द्वारा आसानी से भीग जाते है।
सल्फाइड अयस्क के निलम्बन में , जब वायु प्रवाहित की जाती है तो इसमें झाग उत्पन्न होने लगते है और जिसके कारण सल्फाइड अयस्क के कण इस उत्पन्न झाग के द्वारा अधिशोषित होकर ऊपर सतह पर आ जाते है तथा दूसरी तरफ अशुद्धियो के पानी में भीगने के कारण ये भारी हो जाती है और भारी होने के कारण गुरुत्वीय प्रभाव के कारण पैंदे में नीचे की तरफ बैठ जाती है इस प्रकार हमें इसकी सतह पर सांद्रित अयस्क प्राप्त हो जाता है।
याद रखे कि झाग प्लवन विधि अधिशोषण सिद्धान्त का एक उदाहरण है।
झागकारक : इस विधि में झाग उत्पन्न करने के लिए जिन पदार्थो का इस्तेमाल किया जाता है उन्हें झाग कारक कहते है। झाग प्लवन विधि में चिढ़ का तेल , यूकेलिप्टस तेल या तारपीन का तेल आदि काम में लिए जाते है इन सब में से चिढ का तेल सबसे अधिक काम में लिया जाता है , इन सभी पदार्थों को झाग कारक कहते है।
प्लवन कारक : वे पदार्थ जो सल्फाइड अयस्कों को जल में भीगने से रक्षा करते है और सतह पर आने में मदद करते है उन्हें प्लवन कारक कहते है।
सोडियम या पोटेशियम एथिल जैन्थेट की थोड़ी मात्रा मिलाने से ये पदार्थ सल्फाइड अयस्कों के कणों को पानी में भीगने से बचाते है अर्थात जल के साथ अयस्क का प्रतिकर्षण बनाये रखते है और अयस्क को सतह तक आने में मदद करते है , इन पदार्थो को प्लवन कारक कहते है।
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