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n-p संधि डायोड एवं उसके अभिलाक्षणिक वक्र ,characteristics of p-n junction diode in hindi
इसे अर्द्धचालक डायोड भी कहते है।
किसी भी डायोड के दोनों सिरों के मध्य विभव का परिवर्तन करने पर उससे प्रवाहित विद्युत धारा में भी परिवर्तन होने लगता है।
किसी भी P-N संधि डायोड के लिए उससे प्रवाहित विद्युत धारा तथा उसके दोनों सिरों के मध्य आरोपित विभव के बीच खिंचा गया परिवर्तन का ग्राफ ही अभिलाक्षणिक वक्र कहा जाता है।
किसी भी P-N संधि डायोड का प्रतिक चिन्ह निम्न प्रकार से दर्शाया जाता है –
किसी भी P-N संधि डायोड के लिए निम्न दो प्रकार के अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त होते है –
1. अन्त अभिलाक्षणिक वक्र
2. पश्च अभिलाक्षणिक वक्र
1. अन्त अभिलाक्षणिक वक्र : किसी भी डायोड के लिए उसके दोनों सिरों के बीच लगाये गए अग्र वोल्टता तथा उससे प्रवाहित अग्र धारा के बीच खिंचा गया ग्राफ ही डायोड के लिए अग्र अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है।
इस अभिलाक्षणिक वक्र को प्राप्त करने के लिए निम्न परिपथ के अनुसार डायोड को जोड़ा जाता है –
अग्र बायस की अवस्था में किसी भी PN संधि डायोड के लिए उसका अग्र अभिलाक्षणिक वक्र निम्न प्रकार से प्राप्त होता है।
जब डायोड के दोनों सिरों के बीच अग्र वोल्टता शून्य होती है तब संधि पर उत्पन्न रोधिका विभव के कारण अग्र धारा भी शून्य प्रवाहित होती है। अग्र वोल्टता को बढाकर अल्प मान का करने पर संधि के रोधिका विभव में कुछ कमी होती है जिससे बहुत अल्प मान की अग्र धारा प्रवाहित होती है। जब अग्र वोल्टता का मान बढाकर संधि के रोधिका विभव V0 के बराबर किया जाता है तथा अवक्षय परत की चौड़ाई घटकर शून्य हो जाती है इस वोल्टता के पश्चात् अग्र वोल्टता को थोडा सा भी बढ़ाने पर अग्र धारा में तेजी से वृद्धि होने लगती है।
किसी भी डायोड के लिए अग्र वोल्टता का वह न्यूनतम मान जिसके पश्चात् धारा में तेजी से वृद्धि होने लगती है इसी अग्र वोल्टता को नी-विभव या अंतक विभव कहा जाता है।
इसका मान डायोड की संधि के लिए रोधिका विभव के बराबर होता है। यदि डायोड सिलिकोन अर्द्धचालक से बना हो तब उसके लिए अन्तक विभव लगभग 0.7 V जबकि जर्मेनियम (Ge) से बने डायोड के लिए अंतक विभव 0.3 वोल्ट होता है।
2. पश्च अभिलाक्षणिक वक्र
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