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किण्वन (fermentation in hindi) , किण्वन क्या है , परिभाषा , प्रकार , किण्वन क्रिया तथा श्वसन क्रिया में अंतर
ग्लाइकोलाइसिस से निर्मित प्य्रुविक अम्ल का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में विघटन : glycolysis से निर्मित होने वाले pyruvic acid का ऑक्सीजन (O2) की अनुपस्थिति में सर्वप्रथम किण्वन की क्रिया के द्वारा एसीटैल्डिहाइड का निर्माण होता है।
किण्वन की इस क्रिया को Decarboxylation के नाम से भी जाना जाता है। एसीटैल्डिहाइड के निर्मित होने के साथ साथ कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
एसीटैल्डिहाइड के निर्मित होने के पश्चात् एसीटैल्डिहाइड स्वयं अपचयित होकर एल्कोहल का निर्माण करती है तथा इसके साथ NADH2 का NAD में अपचयन हो जाता है।
किण्वन की इस क्रिया को Decarboxylation के नाम से भी जाना जाता है। एसीटैल्डिहाइड के निर्मित होने के साथ साथ कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
एसीटैल्डिहाइड के निर्मित होने के पश्चात् एसीटैल्डिहाइड स्वयं अपचयित होकर एल्कोहल का निर्माण करती है तथा इसके साथ NADH2 का NAD में अपचयन हो जाता है।
किण्वन (fermentation in hindi)
अधिकांश जीवाणु तथा कवको में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होने वाली ऐसी क्रिया जिसके अन्तर्गत ग्लूकोज रुपी शर्करा को एल्कोहल या लेटिक अम्ल या किसी अन्य प्रकार के कार्बनिक अम्ल में कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन के साथ परिवर्तित किया जाए किण्वन या fermentation कहलाता है।
सन 1857 में लुई पास्चन नामक वैज्ञानिक के द्वारा यह सिद्ध किया गया कि एल्कोहोलिक किण्वन की क्रिया यीस्ट कोशिकाओ में संपन्न होने वाली उपापचयी क्रियाओ से संपन्न होती है।
सन 1897 में ब्रुकनर नामक वैज्ञानिक के द्वारा यीस्ट की कोशिकाओं से एक जटिल एंजाइम Zymase पृथक किया गया तथा इसके उपयोग से यह सिद्ध किया गया कि बिना जीवित कोशिकाओ के किण्वन की क्रिया सम्पन्न की जा सकती है।
किण्वन की क्रिया सामान्यत: निम्न प्रकार की हो सकती है –
1. एल्कोहोलिक किण्वन : इस प्रकार का किण्वन मुख्यतः यीस्ट कवक व उच्च वर्गीय पादपों में देखने को मिलता है।
इस प्रकार का किण्वन मुख्यतः दो चरणों में संपन्न होता है तथा संपन्न होने वाले यह दो चरण निम्न प्रकार से है –
चरण – I: ग्लाइकोलाइसिस से प्राप्त → Pyruvic acid → एसीटैल्डिहाइड + CO2
चरण – II : एसीटैल्डिहाइड → NADH2 → NAD → एथिल एल्कोहल
2. लैक्टिक अम्ल किण्वन : इस प्रकार की क्रिया किण्वन की क्रिया lactobacillus clostridium तथा मांशपेशियो में पायी जाती है। इसके अंतर्गत ग्लाइकोलाइसिस से उत्पन्न pyruvia acid → lactobacillus dehydrogenase एंजाइम की उपस्थिति में लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है तथा NADH2 → NAD में परिवर्तित हो जाते है।
3. एसिटिक अम्ल किण्वन : Acetobacter aceth में पाया जाता है , इसमें ग्लाइकोलाइसिस से उत्पन्न प्य्रुविक अम्ल सर्वप्रथम एसीटैल्डिहाइड में परिवर्तित होता है तत्पश्चात इसे एसिटिक अम्ल मे परिवर्तित कर दिया जाता है।
नोट : इस प्रकार के किण्वन में जल जोड़ा जाता है तथा 2H निकाले जाते है।
4. butyric acid किण्वन : इस प्रकार के किण्वन की क्रिया सामान्यत: बेसिलस बुटीरिकस तथा क्लॉस्ट्रीडियम बुटीरिकस नामक जीवाणु में पायी जाती है , इस प्रकार की किण्वन की क्रिया के अंतर्गत ग्लाइकोलाइसिस से निर्मित होने वाला pyruvic acid → acetoacetic acid में परिवर्तित होता है।
इस क्रिया हेतु जल का संयोजन होता है तथा कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
इस प्रकार के किण्वन के द्वितीय चरण के अंतर्गत aceto एसिटिक अम्ल से ब्यूटिरिक अम्ल का निर्माण होता है तथा इस क्रिया के अंतर्गत 4H+ उपयोग किये जाते है तथा जल के अणु का उत्सर्जन होता है।
किण्वन की क्रिया तथा श्वसन की क्रिया के मध्य पाए जाने वाले अंतर निम्न है –
| श्वसन | किण्वन |
| 1. श्वसन की क्रिया ऑक्सीजन (O2) की उपस्थिति में संपन्न होती है। | इस क्रिया के अन्तर्गत ऑक्सीजन (O2) की आवश्यकता नहीं होती है। |
| 2. श्वसन की क्रिया सामान्यत: केवल सजीव कोशिकाओ में संपन्न होती है। | इस क्रिया हेतु सजीव की कोशिकाएं आवश्यक नहीं होती है। |
| 3. इस क्रिया के फलस्वरूप ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण के फलस्वरूप CO2 तथा H2O का निर्माण होता है। | इस क्रिया के फलस्वरूप ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से एल्कोहल या कार्बनिक अम्ल तथा CO2 का होता है परन्तु H2O का निर्माण नहीं होता है। |
| 4. इस क्रिया के फलस्वरूप अधिक ऊर्जा का निर्माण होता है। | इस क्रिया के फलस्वरूप ऊर्जा कम मात्रा में निर्मित होती है। |
शर्करा के विघटन में अन्य पद
सामान्यत: ग्लूकोज का विघटन ऑक्सी श्वसन के द्वारा संपन्न होता है जिसके अन्तर्गत ग्लाइकोलाइसिस तथा kreb cycle संपन्न होते है परन्तु उपरोक्त पद के अतिरिक्त कुछ सजीवो में ग्लूकोज के विघटन हेतु अन्य वैकल्पिक पद पाए जाते है जिससे pentos pathway के नाम से जाना जाता है।
Pentose pathway : ग्लूकोज के विघटन हेतु पाया जाने वाला यह पथ HMP या PPP (hexo mono फॉस्फेट पाथवे / पेन्टोज फॉस्फेट pathway)
ग्लूकोज के विघटन हेतु इस path की खोज warburg व pickson के द्वारा सन 1938 में की।
उपरोक्त वैज्ञानिको के द्वारा इस पथ की खोज कुछ जन्तुओ के उत्तको में की गयी।
उपरोक्त पथ को विस्तृत अध्ययन racker नामक वैज्ञानिक के द्वारा सन 1954 में की।
सामान्यत: उपरोक्त path कोशिका के कोशिका द्रव्य में संपन्न होता है।
इस पथ के अन्तर्गत संपन्न होने वाली प्रमुख क्रियाएं निम्न है –
1. ग्लूकोज का फास्फोरिलीकरण
सर्वप्रथम ग्लूकोज को Hexokinase की उपस्थिति में ग्लूकोज-6-फॉस्फेट में बदला जाता है तथा इस हेतु ऊर्जा के स्रोत के रूप में ATP का उपयोग किया जाता है।
2. ग्लूकोस-6-फॉस्फेट का oxidetive decarboxylation : उपरोक्त पथ के इस चरण में ग्लूकोज-6-फॉस्फेट को 5 कार्बन वाले अणु Ribulose-5-फॉस्फेट में परिवर्तित किया जाता है तथा NADPH → NADPH2 में परिवर्तित हो जाता है।
3. उपरोक्त पथ में निर्मित 5 कार्बन वाले अणु Ribulose-5-फॉस्फेट के ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण से तथा निर्मित होने वाले एक कार्बन डाइ ऑक्साइड के अणु के साथ 2 NADPH2 के अणुओं का निर्माण होता है।
नोट : उपरोक्त पथ के द्वारा मध्यवर्ती उत्पाद के रूप में डीएनए , RNA , acetyl co-A , FAD आदि का निर्माण होता है।
कुछ जीवाणुओं में श्वसन की क्रिया हेतु एक विशेष प्रकार का path पाया जाता है जिसे Entner pudoroff pathway के नाम से जाना जता है , इस पथ के अंतर्गत पायरूविक एसिड का निर्माण होता है परन्तु इसमें निर्मित होने वाले मध्यवर्ती उत्पाद ग्लाइकोलाइसिस से भिन्न होता है।
इस पथ का अध्ययन सर्वप्रथम Pseudo munase नामक जीवाणु में किया गया।
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