हिंदी माध्यम नोट्स
स्त्रीवाद क्या है | स्त्री वाद किसे कहते है , परिभाषा लिखिए feminism in hindi in india history इतिहास
feminism in hindi in india history स्त्रीवाद क्या है | स्त्री वाद किसे कहते है , परिभाषा लिखिए इतिहास बताइए ?
प्रारंभिक स्त्रीवाद
प्रारंभिक स्त्रीवाद ने ही महिला आन्दोलनों का बीजारोपण किया था। यह यूरोप, लेटिन अमेरिका तथा संयुक्त राज्य में मध्य वर्गीय महिलाओं की प्रतिक्रिया थी जो अपने ही वर्ग के पुरुषों द्वारा स्थापित राजनीतिक व पेशेवर संगठनों से अपने को अलग थलग महसूस कर रही थी। न केवल पश्चिमी यूरोप वरन् विश्व के अन्य भागों जैस पेरू, कैरीबियन, ट्रिनीडाड और इंडोनेशिया में भी प्रारंभिक स्त्रीवाद का प्रमुख विषय समान अधिकार और महिला मताधिकार था जबकि आंरभिक काल में इस आन्दोलन पर कई अन्य मुद्दे भी महत्वपूर्ण रहे। जैसे जैसे यूरोप और उत्तरी अमेरिका में महिलाएँ सवैतनिक कार्यों में संलग्न होने लगी महिला आन्दोलनों के संदर्भ बदलने लगे और श्महिलाओं के हितों के प्रतिनिधित्व के लिए महिला समूह गठित होने लगे। महिलाओं की इन बदली हुई सामाजिक-आर्थिक दशाओं के कारण स्पष्ट रूप से स्त्रीवादी संगठनों का निर्माण होने लगा। ऐसा एक महत्वपूर्ण स्त्रीवादी संगठन 1966 में अमेरिकी महिलाओं द्वारा गठित किया गया – द नेशनल आरगेनाइजेशन ऑफ विमैनद्य यूरोप व उत्तरी अमेरिका में अन्य अनेक स्त्रीवादी संगठन निर्मित हुए। इन संगठनों की कार्यसूची में महिलाओं के लिए समान अधिकार, बेहतर अवसर, आर्थिक स्वतंत्रता और कार्य के लिए महिलाओं को अधिक आजादी शामिल थे। इन्होंने रोजगार, वेतन, समझौते, संपत्ति अधिकार, गर्भ निरोध, गर्भपात इत्यादि के क्षेत्र में प्रचलित कानूनों व प्रथाओं को चुनौती दी। इन्होंने महिलाओं की यौन विषयवस्तु की छवि या एक कमजोर, निष्क्रिय और निर्भर प्रजाति की रूढिबद्ध अवधारणा को भी चुनौती दी। आधुनिक महिला आन्दोलनों पर सर्वाधिक प्रभाव साइमन डी बीवौयर (ैपउवदम कम ठमंनअवपत) की 1949 में मूल रूप से फ्रांसीसी भाषा में छपी पुस्तक द सैकण्ड सैक्स और बैटी फ्रीडैस (ठमजजल थ्तपमकंे) की पुस्तक द फैमीनीन मिस्टीक का पड़ा।
महिलाओं की गतिशीलता और आन्दोलनों में भागीदारी
महिला आन्दोलनों के संगठन से पूर्व भी कई देशों में विभिन्न मुद्दों पर भागीदारी के लिए महिलाओं को प्रेरित किया गया हालांकि उनका सम्बन्ध तब लिंग हितों से नहीं था। यथा, अनेक औपनिवेशिक राज्यों में महिलाओं ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम में भाग लिया। इन्डोनेशिया, सोमालिया और सूडान जैसे देशों में महिला आन्दोलन राष्ट्रीय हितों से सम्बन्धित थे। कई देशों में जाति भेद विरोधी आन्दोलनों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी थी। दुनिया भर में संगठित श्रम आन्दोलनों में भी महिलाओं ने भाग लिया।
विभिन्न आन्दोलनों की गतिविधियों में इस प्रकार की भागीदारी से प्रत्यक्ष रूप से महिला आन्दोलनों के संगठन पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव नहीं पड़ा, न ही इसने स्त्रीवादी कार्यक्रम को उकसाया या स्त्रियों के मुद्दे उठाए, परन्तु फिर भी इनसे महिलाओं में लिंग चेतना का प्रादुर्भाव हुआ। महिलाओं को इन सामान्य मुद्दों के आधार पर संगठित करने की प्रक्रिया में उनका राजनीतिकरण हुआ और गतिशीलता बढ़ी – यह ऐसी प्रक्रिया थी जिससे बाद में वे विशिष्ट रूप से लिंग सम्बन्धी मुद्दों के आधार पर संगठित होने में सफल हुई।
बोध प्रश्न 1
नोटः क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) महिला आन्दोलनों के विश्व व्यापी और स्थानीय संदर्मों का परिचय दीजिए।
2) अमेरिका व इंग्लैण्ड के अतिरिक्त अन्य देशों में महिला आन्दोलनों की पृष्ठभूमि क्या थी?
3) पुरुषों के साथ बराबरी के आधार पर अमेरिका व इंग्लैण्ड में महिलाओं को मताधिकार कब प्राप्त हुआ?
सारांश
वर्ष 1975 से स्त्री आंदोलनों ने महत्वपूर्ण पड़ाव देखे हैं। दुनिया भर में स्त्रियों ने अपने अनेक संगठन स्थापित किए हैं और अपने लिंगीय हितों के अतिरिक्त अन्य कई मुद्दे उठाए हैं। अतः महिला आंदोलनों की राजनीति बहु आयामी है और उन विषयों से जुड़ी है जो समाज के घरेलू, सांस्कृतिक, आर्थिक व पारिस्थितिक क्षेत्रों से संबंध रखते हैं। उनकी कार्यसूची में सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन और राजनीतिक लोकतांत्रिकरण शामिल हैं। विरोध और सामाजिक विरोध के द्वारा वह प्रचलित प्रथाओं और विचारधारा को चुनौती देते हैं।
इस प्ररिप्रेक्ष्य में स्त्री आंदोलनों को ‘असम्बद्ध व्यवहार‘ की संज्ञा दी गई है। असम्बद्ध व्यवहार का तात्पर्य विरोध की वह प्रक्रिया है जिसके कई अर्थ निकलते हैं। सामूहिक विरोध द्वारा स्त्री आंदोलनों ने स्त्रीवाद की परम्परागत परिभाषा को चुनौती दी है और लिंगीय भूमिका के प्रचलित विचार पर प्रहार किया है। दुनिया भर में महिला संगठनों द्वारा उठाए गए विविध मुद्दों से यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं में राजनीति की एक निर्धारित दिशा नहीं है। महिलाओं का सुर एक नहीं है। वास्तव में अस्सी व नब्बे के दशकों में महिला आंदोलनों ने महिलाओं में परस्पर अंतर को स्पष्ट किया है। अतः महिला आंदोलन की राजनीति का लक्षण विविधता है। यह विविधता में अच्छी बात है क्योंकि यह आधिपत्य के विभिन्न रूपों की परिचायक है जिससे स्त्रियाँ विभिन्न स्तरों पर आधिपत्य पर प्रहार करने में सक्षम होती हैं।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बैल हुक्स, 1982, एन्ट आइ अ वुमैन, लंदन सिडनी, प्लूटो प्रेस।
मुमताज खावर और फरीदा शाहीद, (सं.), 1987, विमैन ऑफ पाकिस्तान: टू स्टैप्स फार्वड, वन स्टैप बैक, लंदन, जैड।
मोनिका थैलफॉल, (सं.) 1996, मैपिंग द विमैन्स मूवमैन्ट, वर्सी, लंदन, न्यूयार्क।
डायने रॉथबार्ड मार्गोलीस, 1993, विमैन्स मूवमैअ अराऊण्ड द वर्ल्डः क्रास कल्वरल कम्पैरिजन्स, जैन्डर व सोसाइटी, खण्ड 7, अंक 3, सितंबर।
मैक्साइन मौलीनैक्स, 1998, एनैलाइजिग विमैन्स मूवमैंट सीसिल जैक्सन व रुथ पार्सन्स (सं.) में, फैमीनिस्ट विशन्स ऑफ डेवलपमैंट, लंदन, राऊटलेज।
ओमवैट, गेल, 1993, रीइन्वैटिग रिवोल्यूशन: न्यू सोशल मूवमैंट्स एण्ड द सोशलिस्ट ट्रेडीशन इन इंडिया, न्यूयार्क ईस्ट गेट।
सास्किया वेअरिंगा, (सं.) 1995, सबवर्सिव विमैनः विमैन्स मूवमैंट्स इन अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका एण्ड द कैरीबियन।
लोकतंत्र, नागरिक समाज तथा महिला आंदोलन
अन्य सामाजिक आंदोलनों के साथ साथ महिला आंदोलनों ने विश्व में राजनीति व समाज लोकतांत्रिकरण की प्रक्रिया को भी पुष्ट किया है। इस प्रक्रिया द्वारा महिलाओं के उत्थान, अधिकार व सामाजिक न्याय की अवधारणाओं का पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है। इसी पुनर्मूल्यांकन के कारण महिला आंदोलन पर विचार श्अधिकारोंश् पर केन्द्रित होने लगा है। महिलाओं को सामाजिक नागरिक, राजनीतिक अधिकारों का उपभोग करने वाले व सत्ता के स्तरों तक पहुँचने वाले पुर्ण नागरिक मानने की माँग उठी है। (मौलीनैक्स)। नागरिकता का विस्तार राजनीति क्षेत्र तक सीमित न होकर विशाल माना जा रहा है। अतः महिला अधिकारों की सीमा सार्वजनिक क्षेत्र तक सीमित न होकर उन सामाजिक व निजी क्षेत्रों तक हैं जो उनके जीवन को प्रभावित करते हैं। अतः पहले जो मुद्दे महिलाओं के जीवन के श्निजीश् क्षेत्र के अंतर्गत माने जाते थे अब महिला आंदोलनों की राजनीति का हिस्सा बने हैं। अतः स्त्री आंदोलनों ने राजनीतिक व गैर-राजनीतिक, सार्वजनिक निजी के बीच अंतर को चुनौती दी है।
बोध प्रश्न 5
नोटः क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) महिला संगठन आम तौर पर राज्य की आलोचना क्यों करती हैं?
2) संरचनात्मक सामंजस्य कार्यक्रम महिलाओं को किस प्रकार प्रभावित करता है?
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…