JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

फाह्यान कौन था , चीनी यात्री फाह्यान किसके समय के दौरान भारत आया था faxian was a pilgrim of in hindi

faxian was a pilgrim of in hindi फाह्यान कौन था , चीनी यात्री फाह्यान किसके समय के दौरान भारत आया था ?

 फाहियान द्वारा किये गये भारत के विवरण की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर: भारत में विभिन्न बौद्ध यात्रियों का समय-समय पर भ्रमण होता रहा। इनके दृष्टिकोण भले ही एकांगी रहे हो परन्त दन द्वारा प्रदत्त सूचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। फाह्यान के विवरण से समकालीन जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय का समकालीन फाह्यान गुप्त शासक के नाम का उल्लेख नहीं करता है लेकिन के मुख्य स्थानों जैसे खोतान, गान्धार, तक्षशिला, पेशावर, मध्य देश आदि का भ्रमण कर उसका उल्लेख कि लिखता है कि मध्य देश ब्राह्मणों का देश था जहां लोग सुखी व सम्पन्न थे तथा मृत्युदण्ड नहीं दिया जाता के निवासी किसी जीवित प्राणी की हत्या नहीं करते थे। न ही पशुओं का व्यापार करते थे और न ही मांस र लहसुन आदि का सेवन करते थे, परन्तु चाण्डाल इसके अपवाद थे तथा समाज से बहिष्कृत थे। इस प्रकार – विस्तृत वर्णन करने वाला फाह्यान पहला विदेशी यात्री था।
फाह्यान ने अपने भ्रमण के दौरान संकिषा तथा श्रावस्ती में अनेक बौद्ध स्मारक तथा भिक्षु देखे तथा वह धर्मशालाओं का भी उल्लेख करता है। पाटलिपुत्र की प्रशंसा करते हुए वह कहता है कि ‘‘यहां का राजप्रासाद दुला और सुन्दर है कि इसे सामान्य मनुष्यों द्वारा नहीं बल्कि देवताओं द्वारा निर्मित किया गया होगा।‘‘ वह यहां हर तथा महायानियों के अलग-अलग मतों का उल्लेख करता है।
बंगाल की आर्थिक अवस्था का उल्लेख करते हुए वह कहता है कि यहां के निवासी लेन-देन में कौड़ियों का प्रयोग करते थे। फाह्यान की यात्रा के क्रम में संकिसा, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, वैशाली, सारनाथ, पाटलिपुत्र, राजगृह आदि सम्मिलित उसका यात्रा वृत्तान्त बौद्ध धर्म पर आधारित होने के बावजूद. गुप्तकालीन समाज को वर्णित करने में सक्षम है परन्त उसका दृष्टिकोण धार्मिक होने के कारण उसके वृत्तान्त को पूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत के रूप में सम्मिलित नहीं किया जा सकता।
प्रश्न: ह्वेनसांग के भारत विवरण पर लेख लिखिए।
उत्तर: चीनी बौद्ध यात्री फाह्यान के समान ही ह््वेनसांग का भारत विवरण सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उसने हर्षवर्धन के शासक काल में 636 ई. में कन्नौज में प्रवेश किया। वह हर्ष की राजधानी कन्नौज का वर्णन करने हए कहता है कि यहां के लोग सभ्य, समृद्ध और नैतिक दृष्टि से उन्नत थे। हर्ष की उदारता की प्रशंसा करते हुए वह कहता है कि हर्ष व्यक्तिगत रूप से शासन की विविध समस्याओं में रुचि लेता था। प्रजा सुखी व समृद्ध थी, कर अपेक्षाकृत कम थे, बेगार नहीं लिया जाता था। दण्ड विधान साधारण था तथा सामाजिक नैतिकता एवं सदाचार के विरुद्ध आचरण करने वालों को कड़ी सजा दी जाती थी। परन्तु वह कहता है कि आवागमन के मार्ग पूर्णतः सुरक्षित नहीं थे। वह स्वयं चोर, डाकुओं का शिकार हुआ था।
लोग पारलौकिक जीवन के दुखों से डरते थे, इस कारण पाप बहुत कम होते थे। सामाजिक वर्गीकरण चार वर्णों के अतिरिक्त कई जातियों एवं उपजातियों में था। कसाई, मछुआरे, नट, जल्लाद आदि अछूत समझे जाते थे तथा वे गाँवों, नगरों से बाहर रहते थे। विभिन्न वर्गों तथा जातियों के मध्य अन्तर बढ़ रहा था। वेनसांग ब्राह्माण को सर्वाधिक पवित्र व सम्मानित जाति कहता है जबकि क्षत्रियों को राजा की जाति कहता है। वैश्यों के हाथों में देश की अर्थशक्ति थी। वैश्यों में अहिंसा का विशेष प्रचार था और वे मांसाहार नहीं करते थे। इस समय तक शूद्रों को कुछ राजनैतिक शक्ति प्राप्त हो गई थी। ह्वेनसांग के अनुसार सिन्ध का राजा शूद्र था।
तत्कालीन समाज में अनेक धर्म एवं सम्प्रदाय प्रचलित थे। सूर्य, शिव, विष्णु, दुर्गा आदि देवी-देवताओं के साथ अन्य देवताओं की उपासना का व्यापक प्रचलन था और गंगाजल को पवित्र समझा जाता था।
ह्वेनसांग यहां के ज्ञान-विज्ञान तथा अध्ययन के उच्च स्तर की प्रशंसा करता है तथा कहता है कि यहां एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नालन्दा विश्वविद्यालय था जहां प्रवेश के लिए कठिन परीक्षा देनी पड़ती थी। वह वल्लभी तथा पल्लव राज्य की भी जानकारी प्रदान करता है। ह्वेनसांग का यात्रा विवरण सी-यू-की नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न: हर्ष की रचनाओं व उनकी विषयवस्तु पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: हर्ष एक महान् विद्वान एवं उच्च प्रतिभा का नाटककार था। हर्ष की विद्वता एवं उसके विद्या-प्रेम की प्रशंसा अनेक कवियो ने की है। जयदेव ने उसे कविता कामिनी का, हर्ष और सोड़ढ़ल ने उसे वाणी का हर्ष कहा। हर्ष को तीन नाटकों की रचयिता माना जाता है जिनमें रत्नावली, नागानन्द व प्रियदर्शिका हैं।
रत्नावली में चार अंक हैं जिनमें सिंहल देश की राजकुमारी रत्नावली तथा कौशाम्बी के राजा उदयन की प्रणय कथा तथा दोनों के विवाह की कथा का नाटकीय वर्णन है। यह एक प्रसिद्ध नाटक है जिसमें हर्ष ने एक आदर्श कथानक को भव्य रूप से प्रस्तुत किया है तथा चरित्र-चित्रण कुशलतापूर्वक किया है।
दूसरी रचना नागानन्द पाँच अंकों का नाटक है जिसका कथानक बौद्ध धर्म से लिया गया है। इसके प्रथम भाग में विद्याधर कुमार जीमूतवाहन तथा सिद्धकन्या मलयवन्ती के प्रणय का वर्णन है तथा द्वितीय भाग में सर्यों की रक्षा की जीमूतवाहन द्वारा स्वयं को गरुड़ के समक्ष अर्पित करने और उसके पुनर्जीवित होने तथा गरुड़ द्वारा भविष्य में सपे भर न करने की प्रतिज्ञा आदि घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसका नायक जीमूतवाहन अपने आदर्श चारत्र लिए प्रसिद्ध है। इसमें परोपकार के लिए आत्म-त्याग की भावना दिखाई पड़ती है।
तीसरा प्रसिद्ध नाटक प्रियदर्शिका चार अंकों का नाटक है जिसमें वत्सराज उदयन तथा महाराज दृढ़वर्मा की कन्या प्रियदर्शिका की प्रणय कथा का चित्रण है। इस नाटक का कथानक कथासरित्सागर तथा वृहत्कथा मंजरी से ग्रहण किया ऋऋगया है किन्तु हर्ष ने अपनी ऊँची कल्पनाओं द्वारा इसे अत्यन्त रमणीय बना दिया।
हर्ष की काव्य शैली सरल तथा सुबोध है। प्राकृतिक दृश्यों का सुन्दर वर्णन है। प्रणय नाटकों के रचयिता के रूप में हर्ष का नाम अमर रहेगा।
प्रश्न: एक ऐतिहासिक स्त्रोत के रूप में राजतरंगिणी का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर: कल्हण द्वारा संस्कृत भाषा में रचित श्राजतरंगिणीश् में कश्मीर का सर्वप्रमाणिक इतिहास प्राप्त होता है। इस पुस्तक में कल्हण ने भू-वैज्ञानिक युग से लेकर 12वीं शताब्दी तक के कश्मीर के इतिहास का विवरण दिया है।
राजतरंगिणी में कुल 8 तरंग तथा लगभग 8000 श्लोक हैं। इसकी रचना ‘महाभारत की शैली‘ के आधार पर की गई, जिसमें प्रथम तीन तरंगों में कश्मीर का प्राचीन इतिहास है। चैथे, पाँचवें तथा छठे तरंगों में कार्कोट तथा उत्पल वंशों का इतिहास है तथा अन्तिम सातवें, आठवें, तरंगों में लोहार वंश का इतिहास वर्णित है। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर लिखित होने के कारण चैथे से आठवें तरंगों का वर्णन अपेक्षाकृत अधिक प्रमाणिक है।
कल्हण की ‘राजतरंगिणी‘ निष्पक्ष विवरण के लिए प्रसिद्ध है क्योंकि वह शासकों के गुणों के साथ-साथ उसके अवगुणों का स्पष्ट उल्लेख करता है। इसमें राज्य कर्मचारियों में व्याप्त अवगुणों, राजनीतिक विचारधारा, नैतिक शिक्षा तथा सामन्तवादी व्यवस्थाओं आदि के विषय में विशद विवरण प्राप्त है।
कल्हण का विचार था कि लोग इतिहास के द्वारा सांसारिक जीवन तथा भौतिक ऐश्वर्य की नश्वरता को समझे तथा अपने अतीत की गलतियों से सबक लें।
राजतरंगिणी की रचना उन्होंने स्थितियों और घटनाओं का विश्लेषण करके की थी। यह विश्लेषण ही ‘राजतरंगिणी‘ को अन्य ऐतिहासिक स्त्रोतों में विशिष्ट बना देता है। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इसमें तिथियों को लेकर कुछ भ्रम पैदा होता है, परन्तु यह भ्रम ऐतिहासिक स्त्रोतों की संदिग्धता की वजह से है। इन सबके बावजूद श्राजतरंगिणीश् महत्वपूर्ण प्रासंगिक ऐतिहासिक स्त्रोत है।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now