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फासिस्ट सिंडिकैलिज्म एवं निगमित राष्ट्र क्या है , fascist syndicalism in hindi फासिज्म के सिद्धांत की विवेचना कीजिए

पढ़िए फासिस्ट सिंडिकैलिज्म एवं निगमित राष्ट्र क्या है , fascist syndicalism in hindi फासिज्म के सिद्धांत की विवेचना कीजिए ?

प्रश्न: फासिस्ट सिंडिकैलिज्म एवं निगमित राष्ट्र
उत्तर: 19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में, फ्रांस में श्रमजीवी वर्ग के लिए एक नवीन सामाजिक सिद्धांत का जन्म हुआ, जिसे श्रम-संघवाद या सिण्डीकेलिज्म कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति फ्रेंच, भाषा के शब्द सिण्डीकेट (Syndicat) से हुई है.जिसका अर्थ है श्रमसंघ।
प्रश्न: फासिज्म के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
उत्तर: फासिज्म के सिद्धांत रू फासिज्म का कोई निश्चित राजनीतिक दर्शन नहीं था।
उसका ध्येय इटली और उसके शासन को शक्तिशाली एवं गौरवपूर्ण बनाना है राष्ट्र तथा उसकी शक्ति के प्रति फासिस्टवादियों का दृष्टिकोण हेगेल (Hegel) के राष्ट्र-सिद्धांत के समान था। उसका यह विश्वास था कि राष्ट्र का जीवन, उसके सदस्यों के जीवन की अपेक्षा अधिक स्थायी और महत्वपूर्ण है।
फासिस्टवाद, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लोकतंत्रीय सिद्धांत का प्रबल विरोधी था। वह उसे राष्ट्र प्रदत्त वस्तु मानता था, जो एक अधिकार न होकर कर्त्तव्य था।
राष्ट्र का विधान अभिजाततंत्रीय या कुलीन-तंत्रीय (aristocratic) होना चाहिए, क्योंकि, उनके मतानुसार कुछ चुने हुए व्यक्ति ही राष्ट्रीय हितों को समझ सकते है।
इसके बावजूद फासिज्म के कुछ आधारभूत सिद्धांत निम्नवत् थे :
1. सर्वसत्तात्मक राज्य की स्थापना में विश्वास –
2. व्यक्तिवाद का विरोध
3. प्रजातंत्र का विरोध
4. साम्यवाद का विरोध
5. शांति का विरोध
6. आर्थिक स्वतंत्रता का अंत
प्रश्न: फासिस्ट सिंडिकैलिज्म एवं निगमित राष्ट्र की स्थापना
उत्तर: 1914 के पर्व इटली का मजदूर वर्ग श्रम-संघवाद या सिंडिकैलिज्म (ैलदकपबंसपेउ) (19वीं शताब्दी के अंतिम चरण मे, फ्रांस में श्रमजीवी वर्ग के लिए एक नवीन सामाजिक सिद्धांत का जन्म हुआ, जिसे श्रम-संघवाद या सिण्डीकलिज्म का जाता है। इसकी उत्पत्ति फ्रेंच, भाषा के
शब्द सिण्डीकेट (Syndicat) से हुई है, जिसका अर्थ है (श्रमसंघ) की फ़्रांसिसी विचारधारा से काफी प्रभावित हो चुका था। सिण्डिकैलिज्म,
श्रमसंघों को नवीन समाज की आधारशिला तथा नवीन समाज की स्थापना का साधन भी मानता था। अक्टूबर, 1925 में मुसोलिनी की अध्यक्षता में निगमित फासिस्ट सिडीकेट संघ श्उद्योगपतियों के संघश् (Confederation of Industrialists) के प्रतिनिधियों की एक बैठक
आमंत्रित की गयी, जिसम दान पक्षों की वार्ता के फलस्वरूप श्पेलेजा-विडोनी का अनुबंधश् (Pact of PalazZo Vidoni) स्वीकृत हुआ।
इस अनुबंध अनुसार, उद्योगपतियों ने केवल फासिस्ट श्रमिक संघों (सिण्डीकेटों) को ही मान्यता देने तथा उनके ही साथ काम के घण्टा एवं
मजदूरी से संबंधित समझौते करने का वचन दिया।
1926 में मसोलिनी ने श्सिडीकेट व्यवस्थाश् को राष्ट्रव्यापी रूप दिया। आर्थिक क्षेत्र के छः प्रमुख व्यवसायों अर्थात् उद्योग, कृषि, वाणिज्य बैंकिंग एवं बीमा, समद्री एवं वायु परिवहन, तथा स्थल-परिवहन में मजदूरों एवं नियोक्ताओं (मालिकों) के अलग-अलग श्राष्ट्रीय सिण्डीकेट संघश् बनाये गये। इसके अतिरिक्त व्यवसायी वर्ग एवं कलाकारों के लिए पृथक सिण्डीकेट संघ बनाया गया। इस प्रकार 13 श्राष्ट्रीय सिण्डीकेट संघश् स्थापित किये गये। सिण्डीकेट व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य उद्योगपतियों एवं श्रमिकों के बीच वर्ग-संघर्ष को समाप्त करना तथा उनकी समस्याओं तथा विवादों का पारस्परिक सहयोग और समझौते द्वारा निराकरण करना था।
प्रश्न: इटली में फासीदल के उत्कर्ष एवं सत्ता प्राप्ति का विवरण दीजिए।
उत्तर: फासिस्ट दल का गठन रू मुसोलिनी ने, 23 मार्च, 1919 को मिलान (Milan) नगर में, फासियो डि कंबत्तिमेंतो (Fasciodi Combat ttimento) या फासी (सैन्यदल) की स्थापना की। मुसोलिनी के नेतृत्व में इस दल ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की तथा सेवानिवृत्त सैनिकों, समाजवादियों, विद्यार्थियों, किसानों, मजदूरों, पूँजीपतियों तथा मध्यम वर्ग के व्यक्तियों ने बड़े उत्साह के साथ फासिस्ट दल की सदस्यता को स्वीकार किया।
फासिस्ट दल का प्रथम अधिवेशन श्मिलानश् (Milan) नामक नगर में आयोजित किया गया था। मिलान की पहली सभा में केवल 54 व्यक्तियों ने, जिनमें अधिकांश भूतपूर्व सैनिक तथा उग्रविचारों के कट्टर राष्ट्रवादी थे, नये संगठन में सम्मिलित होना स्वीकार किया।
फासियों ने देश के समक्ष जो प्रथम कार्यक्रम रखा उसमें कुछ समाजवादी सुधारों की मांग की गयी।
जनता में आशा की किरण फूट पड़ी। फासिस्टों की संख्या जो सन् 1919 में कुल 22,000 थी वह सन् 1921 में 5 लाख पर पहुंच गई। बोल्शेविकों की हिंसात्मक क्रांति को रोकने के लिए मुसोलिनी ने अपने अनुयायियों को सैनिक ढंग से श्काली कमीजोंश् (Black Shirts) की अनुशासित सेना के रूप में संगठित किया।
नवम्बर, 1921 में उसने राष्ट्रीय फासिस्ट दल (Partito Nazionale Fasoista) के नाम से फासिस्टों का एक पृथक राजनैतिक दल संगठित किया।
24 अक्टूबर, 1922 को फासिस्ट नेता मुसोलिनी ने नेपल्स में एक सभा की और अंतिम कार्यवाही की योजना पर बातचीत करने के उपरान्त तत्कालीन सरकार को यह धमकी दी कि यदि शासन-सत्ता उसे न सौंप दी गई तो रोम पर चढ़ाई कर दी जाएगी। 27 अक्टूबर, 1922 को 30,000 फासिस्ट सैनिकों ने चार विभिन्न दलों में विभाजित होकर रोम की ओर प्रयाण कर दिया। मुसोलिनी या ड्यूस (Duce) (इटालियन भाषा में फासिस्ट दल के नेता या प्रधान के लिए एल ड्यूस (Ile Duce) शब्द का प्रयोग किया गया था) ने इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए एक विनाशकारी गृहयुद्ध से बचने के लिए श्सम्राट विक्टर इमेनुअल तृतीयश् (Victor Emmanuel III) ने तत्कालीन फेक्टा मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दिलवाकर, 30 अक्टूबर, 1922 को मुसोलिनी को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया तथा 31 अक्टूबर को मुसोलिनी ने मंत्रिमडल का गठन किया। ष्इटली के इतिहास में यह एक रक्तहीन क्रांति थी।
प्रश्न: प्रथम महायुद्ध का एक महत्वपूर्ण प्रभाव था इटली में फासीवाद की स्थापना, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध शुरु करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उत्तर: प्रथम महायुद्ध में मित्रराष्ट्रों की विजय हुई और इटली ने विजेता राज्यों में स्थान ग्रहण किया, किन्तु पेरिस के शांति-सम्मेलन ने उसकी
समस्त आशाओं पर पानी फेर दिया। राष्ट्रपति विल्सन के विरोध के कारण उसकी अफ्रीका में साम्राज्य-विस्तार की महत्वाकांक्षा अतृप्त
रह गई और उसकी भूमध्यसागर प्रभुत्व की आकांक्षा एंग्लो-फ्रेंच अनिच्छा के कारण पूरी नहीं हुई। फ्यूम उसे नहीं मिला। उसे केवल
अफ्रीका में लीबिया के सीमान्त के कुछ प्रदेश मिले. निकट पर्व में डोडेकनीज और रोड्स टापू मिले, उत्तर में आस्ट्रिया से ट्रैण्टिनो, टिरोल,
ट्रीस्ट, इरिट्रया तथा जारा और लागोस्टा टाप प्राप्त हुए। इस तरह सम्पूर्ण डालमेशियन तट पर हावी होने, अल्बानिया पर कब्जा जमाने,
फ्यूम एवं लघु एशिया का अगालिया हस्तगत करने तथा अफ्रीका के जर्मन साम्राज्य को पीने की उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई। सन् 1919 के
शांति-समयौते से उसके अंतर्राष्टीय सम्मान में वृद्धि नहीं, वरन् हास हुआ। इटली के लिए पेरिस-सम्मेलन में लंदन संधि श्कूटनीतिक शवश्
में परिवर्तित हो गई। पेरिस-समझौते ने उसको शांति की लाश पर निराशा का उन्माद और आहत अभिमान ही प्रदान किया।
पेरिस-सम्मेलन से मिले निराशा और असंतोष के उपहार ने इटली की तत्कालीन संसदीय सरकार को बहुत बदनाम कर दिया। महायद्ध के
कारण इटली की आर्थिक दशा भी अत्यन्त शोचनीय हो गई। जन-साधारण का जीवन-निर्वाह कठिन हो गया। असंतष्ट और निराश जनता
का प्रजातंत्रीय शासन-पद्धति से विश्वास हट गया। स्थान-स्थान पर विद्रोह और हड़तालें होने लगी। इस अर्द्ध-अराजकता की स्थिति में
धनिक लोग साम्यवाद के प्रसार के भय से आतंकित हो उठे। इसी समय इटली में मुसोलिनी का उदय हुआ और उसके नेतृत्व में फासिस्ट
दल शक्तिशाली होने लगा। फासीवाद वास्तव में इटली में किसानों और मजदूरों की साम्यवादी क्रांति को विफल बनाने के लिए जमींदारों
और पूंजीपतियों द्वारा समर्थित आंदोलन था जो इटली की संसदीय सरकार की अक्षमता, अराजकता, साम्यवाद के आतंक और जनता के
सभी वर्गों के तीव्र असंतोष का सहारा पाकर तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ता गया।
फासीवाद की लोकप्रियता के कारण
फासीवाद आंदोलन को तेजी से लोकप्रियता इसलिए हासिल हुई कि जनता का प्रत्येक वर्ग किसी न किसी कारण तत्कालीन समाजवादी सरकार से रुष्ट था। दूकानदार इसलिए परेशान था कि सरकार मूल्य निश्चित कर रही थी और कर बढ़ा रही थी। जमींदारों को कृषक संघों और भूमि के पुनर्वितरण से, मिल मालिक हड़तालों से और श्रमिकों की बढती हुई शक्ति से भयभीत थे। वे और अन्य पूंजीपति सरकार से.उनकी वैयक्तिक सम्पत्ति की रक्षा करने में असमर्थ थी। मध्यम वर्ग भी तत्कालीन शासन में असुरक्षा के भय से ग्रस्त था। सैनिक सेवा से निवृत सिपाही, छात्रगण एवं अन्य युवक मजदूर-आंदोलनों से तथा राजनीतिज्ञों की अयोग्यता से पीड़ित और परेशान थे।
सरकार की अकर्मण्यता के विरोध में सन् 1920 में समाजवादी दल के सहयोग से देश के श्रमिकों व कृषकों ने विद्रोह कर दिया और उन्होंने
लगभग एक सौ कारखानों पर अधिकार कर लिया। इतना ही नहीं, उन्हें चैम्बर ऑफ डेपुटीज (Chamber of Deputies) की कुल सीटो
के एक-तिहाई भाग पर अधिकार करने में भी सफलता प्राप्त हो गयी। किन्त सरकार ने समाजवादियों की बढ़ती हुई शक्ति का दमन करने
का कोई प्रयास नहीं किया। फासिस्टवादियों ने इटली की अयोग्य व अकर्मण्य सरकार की अनुचित, जन-विरोधी व उदासीन नीतियों का पूरा
लाभ उठाया। फासिस्ट दल के नेता मुसोलिनी ने जब समाजवादियों का दमन किया तो सरकार ने यह सोचकर कोई कदम नहीं उठाया कि
परस्पर संघर्ष से समाजवादी व फास्टिवादी दलों की शक्ति का ह्रास होगा।
22 मई, 1939 को इटली और जर्मनी में एक राजनीतिक तथा सैनिक समझौता सम्पन्न हुआ जो ष्फौलादी समझौताश् (Steel Pact) के नाम
से विख्यात है। इस समझौते के अनुसार दोनों ही देशों ने पारस्परिक विचार-विमर्श, सामान्य हितों की रक्षा, पारस्परिक राजनीतिक एवं
कूटनीतिक समर्थन, सैनिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग, एक पक्ष के किसी अन्य देश से युद्ध के अनुरूप कठिनाइयों में फंसने पर
पारस्परिक सैनिक सहायता आदि का दृढ़ निश्चय किया गया। समझौते में यह भी तय किया गया कि हंगरी, जापान और माँचूको के साथ
मैत्री संबंध रखे जाएंगे।
मुसोलिनी द्वारा बारम्बार रोके जाने के बावजूद हिटलर ने 1 सितम्बर, 1939 को युद्ध छेड दिया। इटली इस युद्ध में जर्मनी की ओर से सम्मिलित नहीं हुआ। इधर तुष्टिकरण की नीति में असफल होने पर ब्रिटेन और फ्रांस ने भी घोषणा कर दी कि यदि जर्मन फौजें पोलैण्ड से हुआ ली जाएं तो वे इटली की मध्यस्थता स्वीकार कर लेंगे, अन्यथा पोलैण्ड की रक्षा के लिए उन्हें आगे आना होगा। हिटलर द्वारा यह प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने पर 3 सितम्बर, 1939 को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया।
हिलटर द्वारा फ्रांस को लगभग पूरी तरह पछाड़ देने के बाद 11 जून, 1940 को बारह बजे मुसोलिनी ने युद्ध में सम्मिलित होने को शुभ घड़ी समझा। अब मुसोलिनी जर्मनी की ओर से पूरी तरह युद्ध में कूद पड़ा। जब 22 जून, 1941 को हिटलर ने रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी तो मुसोलिनी ने उसका साथ दिया और जब उसी वर्ष दिसम्बर में जापान ने पर्ल हारबर पर बमवर्षा की तो मुसोलिनी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी (Italy-Germany-Japan) पूर्ण सहयोग के साथ मित्रराष्ट्रों के विरुद्ध जूझने लगे।

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