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प्रयोग : फैराडे व हेनरी के प्रयोग , प्रेरित विद्युत वाहक बल , faraday and henry experiment in hindi

faraday and henry experiment in hindi , प्रयोग : फैराडे व हेनरी के प्रयोग विद्युत चुम्बकीय प्रेरण में , प्रेरित विद्युत वाहक बल  :-

विद्युत चुम्बकीय प्रेरण

फैराडे व हेनरी के प्रयोग :

प्रयोग (1) :

फैराडे ने एक कुण्डली से एक धारामापी जोड़ दी तथा एक शक्तिशाली चुम्बक ली उसने देखा कि –

  1. जब चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली समीप लाया जाता है तो कुंडली से जुड़े धारामापी में दायी ओर विक्षेप आता है तथा जब चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुण्डली से दूर ले जाते है तो कुंडली से जुड़े धारामापी में बायीं ओर विक्षेप आता है।
  2. जब चुम्बक के दक्षिण ध्रुव को कुण्डली के समीप लाया जाता है तो कुंडली से जुड़े धारामापी में बायीं ओर विक्षेप आता है तथा जब दक्षिणी ध्रुव को दूर ले जाते है तो धारामापी में दायी ओर विक्षेप आता है।
  3. यदि चुम्बक को स्थिर रखकर कुण्डली को समीप लाये अथवा दूर ले जाए तो भी इसी प्रकार विक्षेप प्राप्त होगा।
  4. यदि चुम्बक और कुण्डली दोनों स्थिर रहे तो कुण्डली से जुड़े धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होता।

अत:

जब चुम्बक और कुण्डली के बीच सापेक्ष गति होती है तो कुण्डली के सिरे के बीच एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जिसे प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते है। यदि परिपथ बंद है तो वहां धारा बहने लगती है तो उसे प्रेरित धारा कहते है। तथा इस घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते है।

विक्षेप का मान :

  1. चुम्बक ध्रुव प्राबल्य अधिक होने पर विक्षेप का मान भी अधिक होगा।
  2. चुम्बक और कुंडली के बीच सापेक्ष गति अधिक होने पर विक्षेप का मान अधिक होगा।

प्रयोग (2) : P और S दो कुंडलियाँ है , P को प्राथमिक व S को द्वितीयक कहते है। ये दोनों कुण्डलियाँ एक दूसरे के समीप स्थित है। P कुण्डली के साथ एक बैटरी धारा नियंत्रक व कुंजी जोड़े है जबकि द्वितीय कुंडली के साथ एक धारामापी लगा है।

जब P कुंडली में धारा प्रवाह प्रारंभ करते है , धारा प्रवाह बंद करते है या धारा के मान में परिवर्तन करते है तो द्वितीय कुण्डली से जुड़े धारामापी में विक्षेप उत्पन्न हो जाता है। यदि P कुण्डली में प्रवाहित धारा के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो द्वितीय कुण्डली (S) से जुड़े धारामापी में कोई विक्षेप उत्पन्न नहीं होता।

व्याख्या : प्रत्येक चुम्बक से चुम्बकीय बल रेखायें गुजरती है , यदि किसी चुम्बक के पास एक कुण्डली रख दी जाए तो कुछ चुम्बकीय बल रेखाएँ कुण्डली से होकर गुजरती है। जो चुम्बकीय बल रेखाएँ कुण्डली से होकर गुजरती है उन्हें चुम्बकीय फ्लक्स कहते है। यदि चुम्बकीय या कुण्डली या दोनों को एक दुसरे के समीप लाया जाए तो इस स्थिति में कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्धि होगी जिस कारण कुण्डली के सिरों के बीच प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।

यदि चुम्बक या कुण्डली या दोनों को एक दुसरे से दूर ले जाए तो कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में कमी होगी अत: कुंडली के सिरों के बीच प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जायेगा परन्तु इस बार इसकी दिशा पहले के विपरीत होगी।

यदि चुंबक और कुंडली दोनों स्थिर रहे तो कुंडली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में कोई परिवर्तन नहीं होता अत: कुंडली के सिरों के बिच प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न नहीं होता।

चुम्बकीय फ्लक्स : किसी कुंडली से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स Θ , चुम्बकीय क्षेत्र (B) तथा कुंडली के क्षेत्रफल A , के अदिश गुणनफल के बराबर होता है।

Θ = B.A   समीकरण-1

Θ = B.Acosθ   समीकरण-2

यदि B व A एक ही दिशा में हो तो θ = 0

Θ = B.Acos0

cos0 =1

Θ = B.A  (अधिकतम)

यदि B व A लम्बवत हो तो θ = 90

 Θ = B.Acos90

cos90 = 0

Θ = 0  (शून्य)

यदि θ = 60

 Θ = B.Acos60

cos60 = 1/2

Θ = BA/2

फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरक के नियम :

फैराडे का प्रथम नियम : जब किसी कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो कुण्डली के सिरों के बीच एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है तथा प्रेरित धारा बहने लगती है। यह प्रेरित विद्युत वाहक बल उसी समय तक रहता है जब तक की चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है।

फैराडे का द्वितीय नियम : प्रेरित विद्युत वाहक बल चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर के बराबर होता है।

यदि dt समय में चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन dθ हो तो –

प्रेरित विद्युत वाहक बल t = dθ/dt

यदि कुण्डली में N फेरो है तो –

E = N dθ/dt

प्रेरित धारा –

I = E/R

चूँकि E = dθ/dt

E का मान

I = dθ/Rdt

N फेरे हो तो –

I = Ndθ/Rdt

लेंज का नियम

कुंडली के जिस सिरे पर प्रवाहित धारा की दिशा वामावर्त होती है , उस सिरे पर उत्तरी ध्रुव उत्पन्न हो जाता है तथा कुण्डली के जिस सिरे पर प्रवाहित धारा की दिशा दक्षिणावर्त होती है उस सिरे पर दक्षिणी ध्रुव उत्पन्न हो जाता है। विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की प्रत्येक अवस्था में प्रेरित विद्युत वाहक बल या प्रेरित धारा की दिशा सदैव इस प्रकार होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है जिस कारण से उसकी उत्पति हुई है।

व्याख्या :

  1. जब चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली के समीप लाया जाता है तो कुंडली में प्रवाहित धारा की दिशा वामावर्त होती है अत: कुंडली के सिरे पर उत्तरी ध्रुव उत्पन्न हो जाता है। चूँकि समान ध्रुवो के बीच प्रतिकर्षण बल कार्य करता है अत: कुंडली का उत्तरी ध्रुव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के पास आने का विरोध करता है।
  2. जब चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली से दूर ले जाते है तो कुंडली में प्रवाहित धारा की दिशा दक्षिणावर्त होती है अत: कुंडली के सिरे पर दक्षिणी ध्रुव उत्पन्न हो जाता है। चूँकि विपरीत ध्रुवों के मध्य आकर्षण बल कार्य करता है अत: कुंडली का दक्षिणी ध्रुव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के दूर जाने का विरोध करता है।

लेन्ज के नियम में ऊर्जा संरक्षण के नियम की अनुपालना :

  1. जब चुम्बक के उत्तरी ध्रुवों को कुंडली के समीप लाया जाता है तब कुण्डली के सिरे पर उत्तरी ध्रुव उत्पन्न हो जाता है चूँकि समान ध्रुवो के बीच प्रतिकर्षण बल कार्य करता है अत: अब यदि चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुण्डली के ओर समीप लाया जाए तो इस प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ेगा यही कार्य विद्युत ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जायेगा।
  2. यदि चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुण्डली से दूर ले जाया जाए तो कुंडली के सिरे पर दक्षिणी ध्रुव उत्पन्न हो जाता है। चूँकि वितरित ध्रुवों के मध्य आकर्षण बल कार्य करता है अत: अब यदि चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुण्डली से दूर ले जाए तो इस आकर्षण बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ेगा। यही कार्य विद्युत ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जायेगा।

गतिक विद्युत वाहक बल :

प्रथम विधि : PQRS एक आयताकार चालक है जिसमे PQ गति करने के लिए स्वतंत्र है तथा PQ , V वेग से बायीं ओर गति कर रहा है। यहाँ PQ की लम्बाई l तथा R-Q = x है।

फैराडे व लेन्ज के नियमानुसार –

 e = -dΘ/dt   समीकरण-1

चूँकि Θ = BA

Θ का मान रखने पर –

e = -dBA/dt   समीकरण-2

चूँकि A = lx

A का मान e = -dBlx/dt

e = -Bl[dx/dt]   समीकरण-3

dx/dt = -V

चूँकि समीकरण-3 से –

e = -Bl(-V)

e = BVl

प्रेरित इस विद्युत वाहक बल को गतिक विद्युत वाहक बल कहते है।

द्वितीय विधि : लोरेन्ज बल की सहायता से गतिक विद्युत वाहक बल का मान ज्ञात करना –

माना एक चालक छड़ PQ जिसकी लम्बाई l है , सम चुम्बकीय क्षेत्र B में V वेग से गति कर रही है। यदि चालक के भीतर कोई आवेश q है तो वह आवेश भी V वेग से गति करेगा।

q आवेश पर लगने वाला लोरेन्ज चुम्बकीय बल –

F = qVB   समीकरण-1

यदि आवेश को P से Q तक लाया जाए तो किया गया कार्य = बल x विस्थापन

W = qVBl  समीकरण-2

प्रेरित विद्युत वाहक बल e = w/q

w का मान रखने पर

e = qVBl/q

e = VBl

इसे ही गतिक विद्युत वाहक बल कहते है।

एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में गति करती हुई चालक छड के लिए ऊर्जा संरक्षण :

एक आयताकार चालक PQRS है जिसकी PQ भुजा का प्रतिरोध r है तथा शेष भुजाओं PS , SR तथा RQ का प्रतिरोध नगण्य है। माना PQ भुजा V वेग से बायीं ओर गति कर रही है।

गतिक (प्रेरित) विद्युत वाहक बल e = VBl  समीकरण-1

अत: प्रेरित धारा I = e/r

e का मान I = VBl/r  समीकरण-2

अत: PQ चालक पर बल F = IlB

I का मान रखने पर –

F = (VBl/r).lB

F = VB2l2/r   समीकरण-3

शक्ति = कार्य/समय

शक्ति = बलxविस्थापन/समय

P = FV

F का मान –

P = (VB2l2/r ).V

P =  V2B2l2/r  समीकरण-4

1 सेकंड में उत्पन्न ऊष्मा

H = i2r

i का मान –

H = ( VBl/r)2r

H = V2B2l2/r   समीकरण-4

समीकरण-4 व समीकरण-5 से –

P = H

प्रेरित आवेश :

फैराडे की नियमानुसार –

e = △Θ/△t समीकरण-1

चूँकि e = Ir  समीकरण-1

Ir = △Θ/△t

I = △Θ/r△t  समीकरण-2

चूँकि I = △Θ/△t

समीकरण-2 से

△Θ/△t = △t /r△t

△Θ = △t/r

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