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मुगल काल के प्रसिद्ध चित्रकार कौन थे | famous painter of mughal period in hindi अकबर के काल का सर्वोत्कृष्ट चित्रकार कौन था

famous painter of mughal period in hindi मुगल काल के प्रसिद्ध चित्रकार कौन थे | अकबर के काल का सर्वोत्कृष्ट चित्रकार कौन था  ?

प्रश्न: ’जहांगीर कालीन चित्रकला को मुगल चित्रकला का “चरमोत्कर्ष काल’’ कहा जा सकता है।’ जहांगीर कालीन चित्रकला की विशेषताओं के संदर्भ में कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर: जहांगीर के समय में मुगल चित्रकला पूर्ण परिपक्व होकर अपने चरम पर पहुंच गई। वह स्वयं चित्रकला प्रेमी, पारखी और संरक्षक था। उसके समय में अकबरकालीन अनेक चित्रकार बने रहे तथा नये भी भर्ती हुए। आकारिजा, अबुल हसन, मुहम्मद नादिर, मुहम्मद मुराद, मु. मुशद, उस्ताद मन्सूर आदि विदेशी चित्रकार थे। फारूख बेग, गोवर्धन, बिशनदास, दौलत, मनोहर, माधव, तुलसी आदि भारतीय चित्रकार थे। जहाँगीर ने हेरात के प्रसिद्ध चित्रकार ’आकारिजा’ (आगा रजा) के नेतत्व में आगरा में एक चित्रशाला की स्थापना की। जहाँगीर के शासनकाल में देशी व विदेशी मिश्रित शैलियों से बनी मुगल चित्रकारी के लिए प्रयोग की पद्धति का महत्त्व कम होकर उसके स्थान पर छवि चित्र, प्राकृतिक दृश्यों व हस्तियों के जीवन से सम्बन्धित चित्रण की परम्परा आरम्भ हुई। इस तरह छवि चित्रण की तुलना में पाण्डुलिपि चित्रण का महत्व कम हुआ। ’रूपवादी शैली’ के अन्तर्गत यथार्थ चित्रों को बनाए जाने का प्रयत्न किया गया। चित्रों में चैड़े हाशिए का प्रयोग प्रारम्भ हुआ जिसमें फूल-पत्तियों, मानव आकृतियों से अलंकरण होता था।
उस्ताद मंसूर पक्षियों व फूलों के चित्र बनाने में विशेषज्ञ था और अबुल हसन व्यक्ति चित्र में विशेषज्ञ था। उस्ताद मंसूर और अबुल हसन जहाँगीर के समय के सर्वश्रेष्ठ चित्रकार थे। जहाँगीर ने उस्ताद मंसूर को ’नादिर-उद-असर’ की तथा
अबुल हसन को ’नादिर-उद्-जमा’ की उपाधि दी थी। उस्ताद मंसूर ने दुर्लभ पशु पक्षियों और अनेक पुष्पों के अनेक चित्र बनाये। उसकी महत्वपूर्ण कृतियों में ’साइबेरिया का एक बिरला सारस’ तथा ’बंगाल का एक अनोखा ’पुष्प’ है। अबुल हसन जो आकारिजा का पुत्र था ने पहले ड्यूटर के सन्त जान पॉल की तस्वीर की एक नकल बनाई। अबुल हसन ने तुजुक-ए-जहाँगीरी के मुख पृष्ठ के लिए भी चित्र बनाया था। अबुल हसन के चित्रों की सबसे प्रमुख विशेषता रंग योजना थी। लंदन की एक लाइब्रेरी से एक चित्र प्राप्त हुआ है, जिसमें ‘‘एक चिनार के पेड़ पर असंख्य गिलहरियां, अनेक प्रकार की मुद्राओं में चित्रित हैं।’’ इसे अबुल हसन की कृति माना जाता है किन्तु इसके पीछे अबुल हसन एवं मंसूर दोनों का नाम अंकित होने के कारण इसे दोनों की संयुक्त कृति माना जा सकता है।
बिशनदास जहाँगीर के समय अग्रणी चित्रकार था। बिशनदास (छवि चित्र) मानव आकृति के चित्रांकन में विशेषज्ञ था। मनुष्य आकृति का अंकन जहाँगीर के काल में चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। जहाँगीर ने बिशनदास को अपने दूत खान आलम के साथ फारस के शाह के दरबार में शाह व उसके परिवार का चित्र बनाकर लाने के लिए भेजा था और वह शाह, उसके अमीरों तथा उनके परिजनों के अनेक छवि-चित्र बनाकर लाया।
मनोहर अकबर के चित्रकार बसावन का पुत्र था। तुजुक-ए-जहाँगीरी में मनोहर का नाम नहीं मिलता है। मनोहर भी छवि चित्र बनाने में विशेषज्ञ था। मनोहर ने अनेक शहजादों, अमीरों एवं विदेशी राजदूतों के सामूहिक छवि चित्र बनाये थे।
जहाँगीर के समय फारूख बेग ने ’बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह का चित्र’ बनाया था। दौलत फारूख बेग का शिष्य था। उसने जहाँगीर के कहने पर अपने साथी चित्रकारों बिशनदास, गोवर्धन व अबुल हसन का चित्र बनाया।
जहाँगीर ने तुजुक-ए-जहाँगीर में लिखा है कि ’चित्रकला में मेरी रूचि व ज्ञान इस सीमा तक पहुंच गया है कि यदि मेरे सम्मुख किसी मृत अथवा जीवित चित्रकार की कलाकृति प्रस्तुत की जाती है और मुझे उस चित्रकार का नाम नहीं बताया जाता है तब भी मैं तुरन्त बता देता हूँ कि यह अमुक व्यक्ति के द्वारा किया गया कार्य है। यदि एक ही चित्र अलग-अलग कलाकारों द्वारा सामूहिक रूप से बनाया जाता है तो मैं यह बता सकता हूँ कि अमूक आकृति अमूक चित्रकार ने बनाई है।’
अकबर के काल में शिकार, युद्ध व राजदरबार के चित्र अधिक बने किन्तु जहाँगीर के काल में इन चित्रों के अलावा छवि चित्रों तथा प्राकृतिक दृश्यों (पशु-पक्षी) के चित्र भी अधिक मात्रा में बने।
जहाँगीर के काल से यूरोपीय चित्रकला तकनीक एवं शैली ने मुगल चित्रकला को प्रभावित करना शुरू किया। यूरोपीय प्रभावों से युद्ध के चित्रांकन में प्रकाश व छाया का प्रयोग, नये रूपकों जैसे पर वाले देवदूत व घुमड़ते बादल व तैल चित्र की तकनीक का मुगल चित्रकला में प्रयोग शुरू हुआ।
पर्सी ब्राउन ने लिखा है कि ’जहाँगीर के साथ ही मुगल चित्रकला की वास्तविक आत्मा पतनोन्मुख हो गई।’
प्रश्नः ’शाहजहाँ एवं औरंगजेब कालीन चित्रकला को मुगल चित्रकला का ‘‘ह्रास काल’’ कहा जा सकता है।’ कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तरः शाहजहां और औरंगजेब का काल मुगल चित्रकला का ह्रास काल था।
शाहजहां के धार्मिक (कट्टरता) विचारधारा का होने के कारण चित्रकला इस्लाम विरोधी थी इसलिए विशेष रूचि न ली। शाहजहां ने मुहम्मद फखरूला खां, शहजादा दारा शिकोह को चित्रकला का निरीक्षण सौंपा गया। इन्होंने चित्रकारों को प्रश्रय देकर चित्रकला को जीवित रखने की कोशिश की लेकिन उसकी निर्मम हत्या कर दी गई। शाहजहाँ के काल के प्रसिद्ध चित्रकार फकीर उल्ला, मीर हाशिम, मुरारी, हुनर मुहम्मद नादिर, अनूप आदि थे। शाहजहाँ दैवी संरक्षण में चित्र बनवाना अधिक पसन्द करता था। शाहजहाँ का एक चित्र भारतीय संग्राहलय में है जिसमें शाहजहाँ को सूफी नृत्य करते हुए दिखाया गया है। शाहजहाँ के युग में स्थापत्य कला की तुलना में चित्रकला को कम महत्व दिया गया किन्तु रेखांकन व बॉर्डर बनाने में उन्नति हुई। चित्रकारी में रंगों की चमक व अलंकरणों की अधिकता से भव्यता बढ़ी किन्तु मौलिकता, सजीवता कम हुई।
औरंगजेब ने चित्रकला को इस्लाम विरूद्ध मानकर बन्द करवा दिया। इससे चित्रकार अन्य प्रान्तों की राजधानियों में चले गये। इससे क्षेत्रीय चित्र शैली विकसित हुई। मनूची लिखता है कि ’औरंगजेब की आज्ञा से अकबर के मकबरे वाले चित्रों को चूने से पुतवा दिया गया था।’
17वीं सदी के अन्त में दक्षिण में मुगलों के प्रवेश के साथ वहां जिस शाही शैली का विकास हुआ वह ’दक्कनी कलम’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। औरंगजेब के उत्तराधिकारी फर्रुखसियर ने चित्रकला को पुनः संरक्षण दिया। मुहम्मदशाह ’रंगीला’ के काल में चित्रकला का फिर से उत्थान हुआ। इसके अलावा मुगल काल में क्षेत्रीय कलाओं जैसे – राजपूत शैली व पहाड़ी शैली का विकास हुआ। मुगल कला व क्षेत्रीय कला ने परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित किया।
प्रश्न: मुगल चित्रकला समकालीन सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों को दर्शाती है। विवेचना कीजिए।
उत्तर: मुगलकाल में भवन निर्माण, चित्रकारी, नृत्य, संगीत एवं अन्य विविध कलाओं का विकास हुआ। इस समय हिन्दू-मुस्लिम एवं ईरानी कला शैलियों के प्रभाव से मुगल-शैली का विकास हुआ।
मुगलकाल में चित्रकला की अत्यधिक प्रगति हुई। इस काल में नए दृश्यों एवं विषयों पर चित्र बनाए गए तथा नए रंगों एवं आकारों का प्रयोग आरम्भ किया गया। मुगलों ने चित्रकला की ऐसी जीवन्त परम्परा की नींव डाली, जो मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भी देश के विभिन्न भागों में जीवित रही।
मुगल चित्रकला की विषयवस्तु में राजदरबार के चित्र, दैवीय संरक्षण में चित्र बनाना, धार्मिक ग्रन्थों के चित्र आदि विभिन्न विषयों का रोचक चित्रण किया गया जो समकालीन सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों को दर्शाती है। यद्यपि बाबर को चित्रकला में रुचि थी, परन्तु समायाभाव के कारण वह इस पर ध्यान नहीं दे सका। हुमायूँ ईरान से अपने साथ दो कुशल चित्रकारों-मीर सैयद अली तथा ख्वाजा अब्दुल समद को भारत लाया। इनके सहयोग से अकबर ने चित्रकला को ’एक राजसी कारखाने’ के रूप में गठित किया।
चित्रकला की सुदृढ़ नींव अकबर ने रखी और अपने दरबार में अनेक अच्छे चित्रकारों को आमंत्रित किया। ऐसे चित्रकारों में दसवंत एवं बसावन प्रमुख थे। इन चित्रकारों द्वारा अकबर ने फारसी कहानियों, महाभारत, अकबरनामा तथा अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को चित्रित करवाया। फलस्वरूप चित्रकला पर ईरानी प्रभाव कम हुआ।
अकबर के समय से भारतीय दृश्यों एवं विषयों पर अधिक चित्र बनने लगे। चित्रों में फिरोजी तथा लाल रंगों का प्रचलन बढ़ गया। इसके साथ-साथ ईरानी शैली के स्पष्ट प्रभाव का स्थान भारतीय शैली के वृत्ताकार प्रभाव ने ले लिया और इससे चित्रों में त्रिविमीय प्रभाव आ गया। पुर्तगाली पादरियों के प्रभाव से अकबर के दरबार में यूरोपीय चित्रकला का भी आरम्भ हुआ।
मुगल चित्रकला जहाँगीर के समय में अपने विकास की चरम सीमा पर पहुंच गई। जहांगीर चित्रकला का अनोखा पारखी था। एक ही चित्र में विभिन्न कलाकारों के कार्यों को वह स्पष्ट रूप से पहचान सकता था। जहांगीर के समय का सबसे बड़ा चित्रकार मंसूर था।
उसके समय में शिकार, युद्ध एवं राजदरबार के दृश्यों के अतिरिक्त मनुष्य एवं पशुओं के भी चित्र बनाए गए। जो समकालीन सामाजिक-राजनीतिक दृश्यों की स्पष्ट झाँकी प्रस्तुत करते हैं।
जहाँगीर के बाद चित्रकला में गिरावट आ गई। फिर भी शाहजहाँ द्वारा स्वयं का चित्र बनवाया गया। बॉर्डर एवं किनारों का विकास तथा संयोजन उत्कृष्ट रूप से होने लगा। औरंगजेब चित्रकला का विरोधी था इसलिए उसने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
फलतः मुगल दरबार से चित्रकार क्षेत्रीय राजाओं के दरबार में चले गए और विभिन्न क्षेत्रीय चित्रकला शैलियों का विकास हुआ, जैसे – राजस्थानी शैली, काँगड़ा शैली आदि।
उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि मुगल चित्रकला समकालीन, राजनैतिक व्यवस्था का स्पष्ट रूप प्रस्तुत करती है और अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण वह इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकी और परवर्ती चित्रकला के विकास में आदर्श प्रस्तुत करती रही।

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