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अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौनसे है ? (factors affecting rate of reaction in hindi)
1. ठोस क्रियाकारक का पृष्ठीय क्षेत्रफल : जब किसी ठोस क्रियाकारक के क्षेत्रफल को बढाया जाता है तो क्रियाकारको के कणों के मध्य टक्करों की संख्या बढ़ जाती है जिससे अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है अर्थात क्रियाकारक या अभिकारक का पृष्ठीय क्षेत्रफल का मान जितना अधिक होता है अभिक्रिया का वेग उतना ही अधिक होता है।
उदाहरण : मान लेते है कि हमारे पास एक मग्नेशियम का घन है , अब यदि इसको चार भागों में तोड़ दिया जाए तो पहले की तुलना में इसका पृष्ठीय क्षेत्रफल का मान बढ़ जाता है क्यूंकि पहले छ: सतह थी लेकिन तोड़ने के बाद 4 घन बन गए इन सभी के छ: सतह है , इसी प्रकार इसको जितना अधिक तोडा जाता है क्षेत्रफल का मान उतना ही अधिक हो जाता है , यही कारण है कि ठोस अभिकारकों का वेग बढ़ाने के लिए इसको बारीक पीसकर काम में लिया जाता है।
सरल शब्दों में इसे समझ सकते है कि मिश्री पानी में देरी से घुलती है लेकिन बारीक़ चीनी पानी में शीघ्रता से घुल जाती है।
2. क्रियाकारको की सान्द्रता : टक्कर के सिद्धांत के अनुसार जब क्रियाकारक की सांद्रता को बढाया जाता है तो इन क्रियाकारको के कणों के मध्य टक्कर अधिक होगी और टक्कर अधिक होने से अभिक्रिया का वेग अधिक होगा।
अत: क्रियाकारक या अभिकारक की सांद्रता का मान जितना अधिक होता है रासायनिक अभिक्रिया का वेग उतना ही अधिक होता है।
जब कोई क्रिया संपन्न होती रहती है तो क्रियाकारक , उत्पाद में बदलते रहते है अर्थात समय के साथ क्रियाकारकों की सांद्रता का मान समय के साथ कम होता जाता है जिसके कारण अभिक्रिया का वेग भी समय के साथ कम होता है।
उदाहरण : एक पात्र में HCl का 6M विलयन लेते है और दुसरे पात्र में 1M विलयन लेते है , दोनों में 2 ग्राम जिंक डाल देते है तो हम देखते है कि यह 6M वाले विलयन में अधिक तेजी से घुलता है , क्यूंकि इसमें क्रियाकारक की सांद्रता अधिक है इसलिए क्रिया तेजी से संपन्न होती है।
3. दाब : यह तब लागू होता है जब किसी अभिक्रिया में क्रियाकारक गैसीय अवस्था में हो अर्थात क्रियाकारक गैस हो।
जब समान गैस के कणों पर दाब का मान बढाया जाता है तो गैस के अणु कम आयतन में सिकुड़ जाते है जिससे इनकी सांद्रता का मान अधिक हो जाता है और इस स्थिति में गैस के कण अधिक टक्कर करते है अर्थात अधिक क्रियाशील होंगे जिससे अभिक्रिया के कण अधिक क्रिया करेंगे और अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।
अर्थात दाब का मान बढ़ाने से रासायनिक अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है बशर्ते यहाँ क्रियाकारक गैस हो।
4. ताप : कुछ तीव्र अभिक्रियाओं जैसे आयनिक अभिक्रियाओं को छोड़कर बाकी अन्य अधिकतर अभिक्रिया का वेग ताप बढ़ाने पर बढ़ता है।
ताप बढ़ाने से कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है जिसे टक्करों की संख्या बढ़ जाती है अर्थात टक्कर तेजी से होते है जिससे अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।
ताप का केल्विन में मान , कणों की गतिज ऊर्जा के समानुपाती होती है , अर्थात यदि ताप को दोगुना बढ़ा दिया जाए तो कणों की गतिज ऊर्जा भी दोगुना बढ़ जाती है।
यही कारण है कि ताप का मान लगभग 10 डिग्री सेल्सियस बढ़ाने से अभिक्रिया का वेग 2 से 2 गुना तक बढ़ जाता है।
5. अभिकारको या क्रियाकारको की प्रकृति : ठोस या द्रवीय अवस्था वाले क्रियाकारक की तुलना में गैसीय क्रियाकारक अधिक तेजी से क्रिया करते है अर्थात गैसीय क्रियाकारको के लिए अभिक्रिया तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। अत: हम कह सकते है कि अभिक्रिया का वेग क्रियाकारक की अवस्था पर भी निर्भर करता है।
किसी भी रासायनिक अभिक्रिया के दौरान पुराने बंध टूटते है और नए बन्ध बनते है , इसलिए हम कह सकते है कि अभिक्रिया का वेग क्रियाकारकों के बंधों पर भी निर्भर करते है।
6. उत्प्रेरक : वह पदार्थ जिसे किसी अभिक्रिया में मिलाने पर अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है , उस पदार्थ को उत्प्रेरक कहते है और इस घटना को उत्प्रेरण कहते है | , अर्थात उत्प्रेरक पदार्थ की उपस्थिति के कारण किसी रासायनिक अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।
किसी अभिक्रिया में उत्प्रेरक की उपस्थिति से सक्रियण ऊर्जा कम हो जाती है जिससे क्रिया का वेग बढ़ जाता है। उत्प्रेरक के उदाहरण : NO और CO को N2 and CO2 में बदलने के लिए pt उत्प्रेरक काम में लिया जाता है।
याद रखिये उत्प्रेरक केवल अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित करता है , लेकिन अभिक्रिया को शुरू नहीं कर सकते है , अर्थात उत्प्रेरक केवल अभिक्रिया के वेग को अधिक करने की क्षमता रखता है।
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