JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

फेबियन समाजवाद के प्रवर्तक कौन है | Fabian Socialism in hindi | फेबियनवाद का अर्थ क्या है

फेबियनवाद का अर्थ क्या है फेबियन समाजवाद के प्रवर्तक कौन है | Fabian Socialism in hindi ?
 फेबियन समाजवाद (Fabian Socialism)
समाजवाद की चर्चा के दौरान फेबियन समाजवाद की चर्चा करना विशेष तौर पर महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय संविधान पर जिस समाजवाद का सबसे अधिक प्रभाव है, वह इंग्लैंड का फेबियन समाजवाद ही है। गौरतलब है कि कार्ल मार्क्स ने अपने जीवन के आखिरी तीस साल लंदन में ही गुजारे थे पर इंग्लैंड के समाज पर तब भी मार्क्सवाद का विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था। जिस समय जर्मनी में एडवर्ड बर्नस्टीन ‘विकासात्मक समाजवाद‘ की रूपरेखा बना रहा था, लगभग उसी समय इंग्लैंड में उससे मिलता-जुलता समाजवाद उभर रहा था जिसे फेबियन समाजवाद के नाम से जाना जाता है।
फेबियन समाजवाद की वैचारिक शुरुआत 1884 ई. में ‘फेबियन सोसायटी‘ के गठन के साथ हुई थी और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इसका महत्त्व काफी बढ़ गया था। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, सिडनी वैब, ग्राहम वैलेस, एनी बेसेंट, रेम्जे मैकडॉनल्ड आदि इसके सदस्यों में शामिल थे। इस विचारधारा पर मार्क्सवाद की तुलना में जे.एस. मिल. जैसे विचारकों का ज्यादा प्रभाव था। ब्रिटेन की लेबर पार्टी (स्ंइवनत च्ंतजल) का जन्म इसी विचारधारा के आधार पर हुआ। ध्यातव्य हैं कि 1900 ई. में लेबर पार्टी के गठन के समय इसके संविधान का प्रमुख अंश ‘सिडनी वैब‘ (Sidney Webb) ने ही लिखा था।
फेबियन सोसायटी का नाम एक प्रसिद्ध रोमन सेनापति क्विन्टस फेबियस मैक्सिमस (Quintus Fabius Maximus) के नाम पर पड़ा है जिसने हेनीबॉल (Hannibal) के साथ हुए प्रसिद्ध युद्ध को एक विशेष रणनीति से जीता था। रणनीति यह थी कि जब तक सही मौका न मिले, तब तक इन्तजार करना चाहिये और जैसे ही सही मौका मिले, तभी पूरी शक्ति से प्रहार करना चाहिये। इसका तात्पर्य यह था कि अभी पूंजीवाद से सीधे तौर पर संघर्ष करना निरर्थक है क्योंकि अभी हमारी शक्ति उतनी नहीं है। इसलिये, फेबियन सोसायटी के सदस्यों ने धीमे प्रयासों, विशेषतः विधि-निर्माण के लिए आंदोलन चलाने तथा समाज की चेतना बदलने के माध्यम से समाजवाद की स्थापना का प्रयास किया। उन्होंने जमींदारों की अंधाधुंध आय के खिलाफ आन्दोलन चलाया, 1906 में न्यूनतम मजदूरी (Minimun wages) की घोषणा करवाने का सफल आन्दोलन चलाया तथा 1911 में सभी नागरिकों को निरूशुल्क चिकित्सा (Free health care) के अधिकार के लिये बड़ा आन्दोलन चलाया। इन्होंने एडम स्मिथ के पूंजीवादी अर्थशास्त्र (Capitalist Economics) विरोध में सहकारी अर्थशास्त्र (Cooperative Economics) की धारणा प्रस्तुत की तथा अपने समूह के कुछ धन से ‘लंदन स्कूल ऑफ इक्नॉमिक्स‘ (London School of Economics) की स्थापना की। इनका बल इस बात पर था कि शिक्षा और संस्कृति के संत्र में प्रयास करते हुये समाज की चेतना (Society’s Consciousness) में ऐसे परिवर्तन लाये जाने चाहिये कि पूरा समाज, विशेषतः मध्यवर्ग शोषण के तंत्र को समझ सके तथा समाजवाद की जरूरत महसूस कर सके। इन्होंने समाज को यह समझाने की कोशिश को कि समाजवादी होना उतना ही आसान है जितना कि उदारवादी (Liberal) या रूढ़िवादी (Conservative) होना। इन्हें विश्वास था कि चेतना को यह परिवर्तन हो जाने के बाद पूंजीवाद से सीधे-सीधे लड़ने का सही समय आ जायेगा।
फेबियनवादियों ने पूंजीपतियों की जगह जमींदारों को अपने प्रहार का लक्ष्य जमींदारों ने बड़ी-बड़ी जागीरें बना रखी थीं जबकि समाज के बड़े वर्ग के पास कोई संपत्ति नहीं थी। इससे पूर्व जे.एस. मिल तथा टी.एच. ग्रीन आदि सकारात्मक उदारवादी विचारकों ने सामाजिक अन्याय की जड़ें-भूमि के स्वामित्व में देखी थीं, पूंजीवाद में नहीं। फेबियनवाद ने इसी से प्रेरणा कण की। गौर करने की बात है कि फेबियनवादी पूंजी या लाभ को ऐसी वस्तु नहीं मानते जिसे पूंजीपति ने मजदूर की मजदूरी म चुरा लिया हो। इस विंदु पर वे मार्क्स से असहमत हैं। उनका मानना है कि पूंजीपति अपने उद्यम और साधनों के बल पर समाज का लाभ पहुंचाता है और उसे उसका पारिश्रमिक ‘लाभ‘ के रूप में मिलता है जो कि उसकी ‘अर्जित आय‘ है। फेबियन समाजवादियों के प्रहार का वास्तविक लक्ष्य भूमि से प्राप्त होने वाली ‘अनर्जित आय‘ (Unearned Income) अर्थात् बिना मेहनत का आय है। उनकी राय है कि यह आय जमींदार से वापस लेकर पूरे समाज को हस्तान्तरित कर देनी चाहिए क्योंकि भूमि का मूल्य इसलिए है कि समाज को उसकी जरूरत है।
फेबियन समाजवाद का असली योगदान सिद्धांत से ज्यादा व्यवहार के क्षेत्र में है। यह एक मध्यवर्गीय तथा बुद्धिजीवियों का आंदोलन था, मजदूरों या किसानों का नहीं। अपने मध्यवर्गीय चरित्र के कारण यह इंग्लैंड के मध्यवर्ग को यह समझाने में सफल रहा कि समाजवाद कोई अजीबोगरीब विचार नहीं है। इसके अलावा, इंग्लैंड के संसदीय लोकतंत्र को आम जनता के नजदीक पहुँचाने के कारण भी इसका महत्त्व है।
फेबियन समाजवाद को समझना इसलिये भी जरूरी है कि जवाहरलाल नेहरू पर समाजवाद के इसी प्रारूप का प्रमुख प्रभाव था। उनकी रणनीतियों में भी वैज्ञानिक मनोवृत्ति (Scientific Temper) का विकास, लोक कल्याणकारी राज्य (Welfare state) जैसी योजनाओं का खासा महत्त्व था।

 समष्टिवाद (Collectivism)
फेबियनवाद की ही प्रेरणा से इंग्लैंड तथा आसपास के कुछ देशों में एक मध्यवर्गीय समाजवादी आंदोलन शुरू हुआ जिसे समष्टिवाद (Collectivism) कहा गया। इसे ‘राज्य समाजवाद‘ (State Socialism) भी कहा जाता है। यह किसी विशेष दार्शनिक या विचारक की विचारधारा नहीं है। इंग्लैंड, जर्मनी, फ्राँस, बेल्जियम और स्वीडन के कई अलग-अलग विचारकों से इसका संबंध जोड़ा जाता है।
समष्टिवाद की मूल मान्यता यह है कि समस्त ‘मूल्य‘ का जन्मदाता समाज है। उदाहरण के लिए, भूमि का मूल्य सिर्फ इसलिए है कि समाज को उसकी जरूरत है। जहाँ समाज की जरूरतें ज्यादा होती हैं, वहाँ भूमि या वस्तुओं के मूल्य भी ज्यादा हो जाते हैं। चूंकि समस्त ‘मूल्य‘ का जन्म समाज के हाथों होता है, इसलिए उस पर समाज का ही नियंत्रण और अधिकार होना चाहिए थोड़े से जमींदारों या पूंजीपतियों का नहीं जो अपने लाभ के लिए सामाजिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करते हैं। यह तभी हो सकता है जब समाज को लाभ पहुँचाने वाली सार्वजनिक सेवाएँ, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, नहरें तथा खाने समुदाय के ही अधीन हों। पर, चूँकि समुदाय इस विशाल कार्य को अपने आप संभालने में समर्थ नहीं, इसलिए उसके पास कोई ऐसा प्रतिनिधि संगठन होना चाहिए जिसमें सबकी इच्छा (अर्थात् ‘सामूहिक इच्छा‘) को अभिव्यक्ति मिले, जो इसी ‘सामूहिक इच्छा‘ के निर्देशों के अनुसार काम करे और समाज द्वारा उत्पन्न मूल्यों को संपूर्ण समाज के हित में नियोजित करे। समष्टिवादियों की दृष्टि में यह संगठन राज्य ही हो सकता है। उनका आदर्श लोकतांत्रिक राज्य का है, जिसमें सत्ता पूरे समुदाय के प्रतिनिधियों के हाथों में रहेगी और उनकी सहायता के लिए विशेषज्ञ प्रशासक नियुक्त किए जाएंगे। ऐसी व्यवस्था मजदूरों को पूंजीपतियों की मनमानी से मुक्त करा सकेगी।

संशोधनवाद (Revisionism)
संशोधनवाद का संबंध जर्मनी के ही एक दूसरे विचारक एडवर्ड बर्नस्टीन से हैं। बर्नस्टीन ने 1896 से 1898 के दौरान एक लेखमाला प्रकाशित की जिसमें उसका प्रमुख विचार था कि बदली हुई परिस्थितियों में मार्क्सवाद में कुछ संशोधन किए जाने चाहिएँ। लासाल ने मार्क्सवाद का विरोध नहीं किया था पर बर्नस्टीन ने बहुत से तर्क देकर साबित किया कि वर्तमान परिस्थितियों में मार्क्सवाद के कई विचार अप्रासंगिक हो गए हैं। उसने अपने विचार को ‘विकासवादी समाजवाद‘ (Evolutionary Socialism) कहा और इसी शीर्षक से उसकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई, पर मार्क्सवादियों ने उसकी आलोचना करते हुए उसे संशोधनवादी, कहा और आगे चलकर यही नाम ज्यादा प्रसिद्ध हो गया।
बर्नस्टीन ने मार्क्सवाद की आलोचना तथा विकासात्मक समाजवाद के समर्थन में निम्नलिखित प्रमुख तर्क दिए-
(i) मार्क्स ने अपने से पहले के समाजवादियों को स्वप्नदर्शी, बताया और अपने विचार को वैज्ञानिक समाजवाद कहा जबकि सच यह है कि मार्क्स भी कुछ मामलों में स्वप्नदर्शी ही है। वह जिस तरह की आकस्मिक और वैश्विक क्रांति की कल्पना करता है, वह यथार्थवादी न होकर काल्पनिक अवधारणा ही है। निकट भविष्य में सर्वहारा क्राति की कोई संभावना नहीं दिखाई पड़ती।

(ii) मार्क्स का दावा था कि पूंजीवाद जैसे-जैसे प्रबल होगा, वैसे-वैसे समाज का ध्रूवीकरण दो विरोधी वर्गों में होता जाएगा।
सच यह है कि समाज में वर्ग विभेद बढ़ रहा है। ध्रूवीकरण नहीं। मध्यवर्ग, जिस पर मार्क्स ने ध्यान नहीं दिया था, बढ़ते-बढ़ते समाज का सबसे बड़ा वर्ग बनने की ओर अग्रसर है।
(iii) मार्क्स का दावा था कि प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ पूंजीपतियों की संख्या कम होती जाएंगी, मजदूरों का शोषण बढ़ता जाएगा और वर्ग संघर्ष में तीव्रता आती जाएगी। सच यह है कि मजदूरों की स्थितियाँ सूधरती जा रही है। पंजीपतियों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है और वर्ग संघर्ष, भी पहले की तुलना में कम ही हुआ है, ज्यादा नहीं।
(iv) मार्क्स का ‘अधिशेष मूल्य का सिद्धांत‘ भी अव्यावहारिक है। कोई भी समाज मूल्य में होने वाली संपूर्ण वृद्धि मजदूर को नहीं सौंप सकता।
(v) मजदूर वर्ग की तानाशाही को भी उचित नहीं माना जा सकता। कोई भी बहुसंख्यक वर्ग अगर अल्पसंख्यक वर्ग का दमन करता है तो यह अपने आप में गलत है। राज्य का उचित स्वरूप लोकतांत्रिक ही हो सकता है क्योंकि उसमें समाज के सभी वयस्क नागरिक निर्णयों में हिस्सेदार बनते हैं।
(vi) मार्क्स का यह विचार कि मजदूरों का कोई देश नहीं होता, अब निरर्थक हो गया है। जिस समय मजदूरों को राजनीतिक और वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं थे, उस समय यह बात अर्थपूर्ण थी क्योंकि किसी भी राज्य में मजदूरों का शोषण ही होता था और उन्हें नागरिकों वाले अधिकार नहीं मिलते थे। अब मजदूरों को मताधिकार तथा अन्य सभी महत्त्वपूर्ण अधिकार मिल चुके हैं। इसलिए. आज के समय में राष्ट्र के प्रति मजदूरों की भी वही जिम्मेदारी बनती है, जो कि पूंजीपतियों की।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

21 hours ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

3 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

5 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

5 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

5 days ago

FOURIER SERIES OF SAWTOOTH WAVE in hindi आरादंती तरंग की फूरिये श्रेणी क्या है चित्र सहित

आरादंती तरंग की फूरिये श्रेणी क्या है चित्र सहित FOURIER SERIES OF SAWTOOTH WAVE in…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now