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यूनोमिया तथा डिस्नोमिया क्या है किसे कहते है परिभाषा बताइए अंतर eunomia and dysnomia in hindi
difference between eunomia and dysnomia in hindi sociology यूनोमिया तथा डिस्नोमिया क्या है किसे कहते है परिभाषा बताइए अंतर यूलोमिया ?
‘यूनोमिया‘ तथा ‘डिस्नोमिया‘
रोग विज्ञान (pathology) में आंगिक दुष्प्रकार्य की समस्या का अध्ययन किया जाता है। इसे दूसरे शब्दों में रोग कहा जाता है। जब शरीर का कोई अंग अपेक्षित ढंग से काम नहीं कर पाता तो रोग जन्म लेता है और इस पर ध्यान न दिया जाए तो मृत्यु हो सकती है। शारीरिक संरचना में ऐसे पूर्णतः सही-सही मापदंड निर्धारित किए जा सकते हैं जो रोग की पहचान करने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान 98.40 फार्नहाइट से ऊपर चला जाए तो यह कहा जा सकता है कि उसे ज्वर है। यदि किसी व्यक्ति के पेट में निश्चित मात्रा से अधिक अम्ल हो गया है तो कहा जाएगा कि उसे अल्सर का रोग हो सकता है। कहने का अर्थ है कि कुछ मानदंडों अथवा नियमों के आधार पर रोग का निदान किया जा सकता है। रैडक्लिफ-ब्राउन का कहना है कि स्वास्थ्य और रोग के इस सिद्धांत को समाज पर लागू करने का प्रयास यूनानियों ने ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी में किया था। उन्होंने यूनोमिया (सुव्यवस्था/सामाजिक स्वास्थ्य) और डिस्नोमिया (अव्यवस्था/सामाजिक अस्वास्थ्य) के बीच अंतर किया था। उन्नीसवीं शताब्दी में दर्खाइम ने प्रतिमानहीनता (anomie) की अवधारणा की सहायता से सामाजिक रोग विज्ञान (ेवबपंस चंजीवसवहल) को समझने की चेष्टा की। रैडक्लिफ-ब्राउन ने भी ‘यूनोमिया‘ तथा ‘डिस्नोमिया‘ शब्दों को अपनाया है। उसका कहना है कि समाज प्राणियों की भांति रोग अथवा मृत्यु को प्राप्त नहीं होते। वह स्वीकार करता है कि किसी भी समाज के ‘स्वास्थ्य‘ का पता लगाने के लिए कोई निश्चित वस्तुपरक मापदंड अपना पाना संभव नहीं है, क्योंकि मानव समाज का विज्ञान अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है।
रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, किसी भी समाज में यूनोमिया का अर्थ है उसके अंगों का सामंजस्य से काम करना यानी व्यवस्था की प्रकार्यात्मक एकता (functional unity) अथवा आंतरिक अनुकूलता (inner consistency) दूसरी ओर, डिस्नोमिया प्रकार्यात्मक विलगता अथवा आंतरिक प्रतिरोध की स्थिति है। डिस्नोमिया का शिकार होने वाले समाज का अंत नहीं होता। ऐसा समाज यूनोमिया अथवा सामाजिक स्वास्थ्य की नई स्थिति की ओर बढ़ने के लिए संघर्ष करता है। हो सकता है, इस प्रक्रिया में उसका संरचनात्मक स्वरूप बदल जाए।
रैडक्लिफ-ब्राउन की राय में ये अवधारणाएं सामाजिक नुशास्त्रियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। नृशास्त्रियों को अपने अध्ययन के दौरान ऐसी जनजातियों की जानकारी मिलती है, जिनकी सामाजिक संरचना बाहरी दुनिया, खासकर पश्चिमी सत्ता, के प्रभाव से विच्छिन्न हो चुकी है।
आइए, अब हम यह जानने का प्रयास करें कि समाज, विशेषकर आदिम समाज, के अध्ययन में प्रकार्यात्मक पद्धति के इस्तेमाल के बारे में रैडक्लिफ-ब्राउन का क्या कहना है। लेकिन, पहले सोचिए और करिए 1 को तो पूरा कर लें जिससे यूनोमिया तथा डिस्नोमिया के विचार आपको स्पष्ट हो जाएं।
सोचिए और करिए 1
भारतीय समाज यूनोमिया स्थिति में है अथवा डिस्नोमिया स्थिति में? अपने विचार 500 शब्दों में निबंध के रूप में लिखिए। यदि संभव हो तो अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों के साथ अपने विचारों की तुलना कीजिए।
ऐतिहासिक पद्धति तथा प्रकार्यात्मक पद्धति
रैडक्लिफ-ब्राउन ने सांस्कृतिक विषयों की व्याख्या के लिए दो पद्धतियों की चर्चा की है। ये हैंः ऐतिहासिक पद्धति और प्रकार्यात्मक पद्धति । ऐतिहासिक पद्धति में किसी संस्कृति के ऐतिहासिक विकास पर ध्यान दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह पता लगाया जाता है कि वह संस्कृति अपने वर्तमान रूप में कैसे आई?
यह पद्धति उन्हीं समाजों के अध्ययन के लिए काम आ सकती है, जिनके ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध है। आदिम समाजों के मामले में, जिनके बारे में कोई प्रमाण मौजूद नहीं है, यह पद्धति अनुपयुक्त सिद्ध होती है। ऐसी स्थिति में अनुमानों तथा अटकलों पर आधारित इतिहास सामने आ सकता है। इस तरह का प्रयास विशेष उपयोगी नहीं है।
रैडक्लिफ-ब्राउन का कहना है कि व्याख्या की प्रकार्यात्मक पद्धति इस धारणा पर आधारित है कि संस्कृति एक समन्वित प्रणाली (integrated system) है। संस्कृति के प्रत्येक तत्व का समाज के जीवन में अपना विशिष्ट प्रकार्य होता है। इस पद्धति में यह माना जाता है कि ऐसे कुछ सामान्य नियम हैं, जो सभी मानव समाजों में प्रचलित हैं और इन नियमों की खोज तथा परख तार्किक और वैज्ञानिक पद्धतियों से की जाती है।
ध्यान देने की बात यह है कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने इन दोनों पद्धतियों को समाजशास्त्रीय अध्ययन में एक-दूसरे का पूरक माना है। उसने ऐतिहासिक पद्धति को अस्वीकार नहीं किया परंतु आदिम समाजों के अध्ययन में उसकी अपूर्णता की ओर संकेत किया है।
हमने अभी देखा कि किस तरह रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक प्रकार्य का समाज के जीवन तथा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सामाजिक संरचना के अंगों द्वारा किए गए योगदान के रूप में सैद्धांतीकरण किया है। हमने ‘प्रकार्यात्मक एकता‘, यूनोमिया, डिस्नोमिया और सामाजिक नृशास्त्रीय अध्ययन में प्रकार्यात्मक पद्धति के इस्तेमाल का अध्ययन किया है। आइए, अब हम यह देखें कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने समाज विशेष में स्वयं जाकर अध्ययन करने के लिए प्रकार्य के सिद्धांत का किस प्रकार इस्तेमाल किया है। इस संदर्भ में हमने रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा किए गए शोधकार्य से आपके लिए कुछ उदाहरण चुने हैं। अण्डमान द्वीप समूह के लोगों में आनुष्ठानिक विलाप की प्रथा, टोटमवाद का अध्ययन, आदिम समाजों में नातेदारी तथा मामा और भांजे के संबंधों के उदाहरण अगले भाग में प्रस्तुत किए जा रहे हैं। उदाहरणों के बारे में पढ़ने से पूर्व बोध प्रश्न 2 पूरा कर लें ताकि अभी तक मिली जानकारी को दुहराया जा सकें।
बोध प्रश्न 2
प) निम्नलिखित प्रश्नों का तीन वाक्यों में उत्तर दीजिए।
क) रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, समाज की प्रकार्यात्मक एकता से क्या अभिप्राय है?
ख) रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, श्डिस्नोमियाश् के प्रति समाज की प्रतिक्रिया क्या होती है?
पप) निम्नलिखित कथन सही हैं अथवा गलत, उपयुक्त कोष्ठक पर निशान लगाइए।
क) ऐतिहासिक पद्धति आदिम समाजों के अध्ययन के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। सही/गलत
ख) प्रकार्यात्मक पद्धति में संस्कृति का अध्ययन अनुमान तथा अटकलों के आधार पर किया जाता है। सही/गलत
ग) रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, ऐतिहासिक तथा प्रकार्यात्मक दोनों पद्धतियाँ एक-दूसरे की पूर्णतः विरोधी हैं। सहीध्गलत
बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) क) ‘समाज की प्रकार्यात्मक एकता‘ से रैडक्लिफ-ब्राउन का अभिप्राय उस स्थिति से है, जिसमें समाज के सभी अंग समरस होकर काम करते हैं जिससे तनाव और टकराव की संभावना कम हो जाती है।
ख) ‘डिस्नोमिया‘ की स्थिति वाला समाज तिरोहित नहीं होता। बल्कि वह फिर से सामाजिक स्वास्थ्य अथवा यूनोमिया की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करता है। हो सकता है कि इस प्रक्रिया में वह अपना स्वरूप ही बदल लें।
पप) क) गलत
ख) गलत
ग) गलत
प्रकार्य की अवधारणा – रैडक्लिफ-ब्राउन
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
‘प्रकार्य‘ की अवधारणा
संरचना और प्रकार्य
प्रकार्यात्मक एकता
‘‘यूनोमिया‘‘ और “डिस्नोमिया‘‘
ऐतिहासिक पद्धति तथा प्रकार्यात्मक पद्धति
रैडक्लिफ-ब्राउन की संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक व्याख्या के कुछ उदाहरण
अण्डमान द्वीप समूह में आनुष्ठानिक विलाप
टोटमवाद का अध्ययन
आदिम समाजों में नातेदारी
आदिम समाजों में मामा की भूमिका
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने के बाद आपके लिए संभव होगा ।
ऽ रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा प्रतिपादित ‘प्रकार्य‘ की अवधारणा की व्याख्या करना
ऽ रैडक्लिफ-ब्राउन के अध्ययन से उदाहरण लेकर यह स्पष्ट करना कि उसने ‘प्रकार्य‘ की अवधारणा का किस प्रकार उपयोग किया।
प्रस्तावना
पिछली इकाई में आपने रैडक्लिफ-ब्राउन की ‘संरचना‘ की अवधारणा की जानकारी प्राप्त की। इस इकाई में हमने उसी से जुड़ी एक और अवधारणा – ‘प्रकार्य‘ की अवधारणा का अध्ययन किया है। ये दोनों ‘प्रकार्य‘ और ‘संरचना‘ की अवधारणाएं वास्तव में एक-दूसरे से अभिन्न हैं। ‘संरचना‘ को प्रकार्य के संदर्भ में ही समझा जा सकता है और प्रकार्य को ‘संरचना‘ के दायरे में ही सार्थकता मिल पाती है। ये दोनों अवधारणाएं मिलकर समाजशास्त्रीय अध्ययन के ‘संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक‘ स्वरूप का निर्माण करती हैं। इकाई 22 और 23 में आपने पढ़ा कि मलिनॉस्की ने समाज के अध्ययन के लिए प्रकार्य की अवधारणा का उपयोग किया। इस इकाई में आपको बताया गया है कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने इस अवधारणा को और आगे बढ़ाया। प्रकार्य को सामाजिक संरचना के साथ जोड़कर रैडक्लिफ-ब्राउन ने वह सैद्धांतिक विकास किया, जिसमें मलिनॉस्की को सफलता नहीं मिली थी। इस इकाई के दो भाग हैं। पहले भाग में रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा प्रतिपादित ‘प्रकार्य‘ की अवधारणा के विभिन्न पहलुओं पर व्यवस्थित ढंग से प्रकाश डाला जाएगा। दूसरे भाग में हमने रैडक्लिफ-ब्राउन की कृतियों में दिए गए कुछ उदाहरणों पर विशेष ध्यान दिया है जो प्रकार्य की अवधारणा तथा श्संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकश् विधि से सामाजिक विश्लेषण को स्पष्ट करते हैं।
सारांश
इस इकाई में ए.आर. रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा प्रतिपादित ‘प्रकार्य‘ की अवधारणा का विवेचन किया गया। ‘संरचना‘ और ‘प्रकार्य‘ के बीच संबंध, ‘समाज की प्रकार्यात्मक एकता‘ का रैडक्लिफ-ब्राउन का विचार तथा ‘यूनोमिया‘ एवं ‘डिस्नोमिया‘ की युगल अवधारणाएँ भी स्पष्ट की गई। आदिम समाज के संदर्भ में विश्लेषण की ‘‘ऐतिहासिक‘‘ तथा ‘प्रकार्यात्मक‘ पद्धतियों की तुलना भी की गई। प्रकार्य तथा प्रकार्यात्मक पद्धति को उदाहरणों के माध्यम से और अधिक स्पष्ट किया गया। आपने देखा कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने किस प्रकार अण्डमान द्वीपसमूह वासियों में ‘औपचारिक विलाप‘ की प्रथा की व्याख्या की। उसने टोटमवाद की अभिव्यक्ति के रूप में संरचनात्मक संबंधों का किस तरह विश्लेषण किया। रैडक्लिफ-ब्राउन की विशेष रुचि नातेदारी की व्यवस्था के अध्ययन में थी जिसमें उसने प्रकार्यात्मक पद्धति का विशेष रूप से उपयोग किया। इकाई के अंतिम दो अनुभागों में आदिम समाजों में नातेदारी, विशेष रूप से मामा-भांजे के संबंधों का विश्लेषण किया गया है। इन उदाहरणों से रैडक्लिफ-ब्राउन की संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक पद्धति का सार स्पष्ट हो जाता है।
शब्दावली
यूनोमिया समाज की स्वस्थ तथा अच्छी स्थिति
भावनाओं का विस्तार मामा और भाँजें के घनिष्ठ संबंधों की रैडक्लिफ-ब्राउन की व्याख्या के संदर्भ में इसका अर्थ यह है कि जो भावनाएं माँ के लिए होती हैं, उन्हीं का उसके भाई के लिए भी विस्तरण कर दिया जाता है
डिस्नोमिया समाज की अस्वस्थ और खराब स्थिति
हवाई प्रणाली नातेदारी शब्दावली में भेदों के आधार पर नुशास्त्रियों द्वारा विश्व की नातेदारी प्रणालियों को पहचाना जाता है। नातेदारी प्रणालियों के छः प्रकारों में एक हवाली प्रणाली है। इसे ‘पीढ़ी व्यवस्था‘ वाली नातेदारी ही कहा जाता है। इस व्यवस्था में, समान पीढ़ी के सारे व्यक्ति एक समूह में कर दिये जाते हैं जिनमें लिंग के आधार पर अवश्य भेद किया जाता है। उदाहरणतः अपने से ऊपर वाली पीढ़ी में पिता, पिता के भाई, माँ के भाई आदि के लिए एक ही शब्द का प्रयोग होता है। इसी तरह, माँ, माँ की बहन, पिता की बहन के लिए समान शब्द का प्रयोग होता है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
रैडक्लिफ-ब्राउन, ए.आर., 1971. स्ट्रक्चर एण्ड फंक्शन इन प्रीमिटिव सोसाइटीज कोहन एण्ड वेस्ट लिमिटेडः लंदन
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