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Categories: Physics

संधारित्र में संचित ऊर्जा energy stored in a capacitor in hindi

energy stored in a capacitor in hindi संधारित्र में संचित ऊर्जा  : हमने अध्याय के प्रारम्भ में जब संधारित्र के बारे में बात की थी तो पढ़ा था की संधारित्र एक ऐसी युक्ति है जिसमे ऊर्जा संचित रहती है अर्थात यह एक ऐसा यंत्र है जिसमे ऊर्जा संरक्षित रखी जाती है और जरुरत पड़ने पर इसका उपयोग किया जाता है।

अब हम बात करते है की संधारित्र में संचित ऊर्जा का मान कितना होता है , यह किन किन बातों पर निर्भर करती है इत्यादि।
“संधारित्र को आवेशित करने में किया गया कार्य इसमें ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है इसे संधारित्र की संचित ऊर्जा कहते है “
सामान्तया आवेशन का यह कार्य बैटरी द्वारा किया जाता है , बैट्री यह कार्य अपनी रासायनिक ऊर्जा का उपयोग करके करती है और संधारित्र इस कार्य (आवेशन ) से प्राप्त ऊर्जा को संचित कर लेता है।
जिस प्रकार स्थिर आवेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य इसमें स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है उसी प्रकार संधारित्र में एक प्लेट से दूसरी प्लेट तक आवेश को ले जाने में एक कार्य करना पड़ता है यह कार्य संधारित्र में ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
मान लीजिये q’ आवेश पहले से ही एक प्लेट से दूसरी प्लेट पर गति कर चुके है अर्थात स्थानांतरित हो चुके है , q’ आवेश स्थानांतरण के कारण विभव में अंतर V’ हुआ है (माना ) ,
अतः सूत्र से विभवांतर परिभाषा से
V’ = q’/C
अब यदि हम dq आवेश एक प्लेट से दूसरी प्लेट पर स्थानांतरित करना चाहते है तो इसमें किया गया कार्य होगा
dW = V’dq
इस dq आवेश को स्थानांतरित करने में जो dW कार्य करना पड़ रहा है , यह कार्य ही संधारित्र में इसकी ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
यदि हम सम्पूर्ण आवेश को एक प्लेट से दूसरी प्लेट पर स्थानान्तरित करना चाहते है तो हमें समाकलन का उपयोग करना पड़ेगा
अतः सम्पूर्ण आवेश Q को प्लेट पर स्थानान्तरित करने के किया गया कुल कार्य
W = 0Q V’ dq
इसमें V’ का मान रखकर हल करने पर
यह किया गया कार्य ही संधारित्र में इसकी ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।

W = U (कार्य = स्थितिज ऊर्जा )
चूँकि Q = CV

हम यह भी जानते है की Q/C = V
अतः मान रखने पर

हमने यहाँ संधारित्र की ऊर्जा के सूत्र को विभिन्न रूप में देख चुके है

हम आपको बता दे की यह स्थितिज ऊर्जा संधारित्र के विद्युत क्षेत्र में विधमान रहती है और चूँकि संधारित्र में उत्पन्न विद्युत क्षेत्र प्लेट के क्षेत्रफल (A) पर निर्भर करता है (E = q/ε0A) , इसलिए किसी संधारित्र में संचित ऊर्जा भी प्लेट के क्षेत्रफल पर निर्भर करती है की उसमे अधिकतम कितनी ऊर्जा संचित हो सकती है।

उपयोग

संधारित्र में संचित ऊर्जा के उपयोग की बात करे तो अपने पंखे में लगा कंडेंसर देखा होगा यह संधारित्र ही है जो पंखे का बटन दबाते ही पंखे को चालू अर्थात घूर्णन के लिए ऊर्जा प्रदान करता है यह ऊर्जा प्रारम्भ में दी जाती है यदि यह पंखे को न मिले तो वह गति नहीं करेगा , कभी कभी ऐसा होता है की कंडेसर ख़राब होने पर पंखा नहीं खुमता है इसका कारण यही है की उसको घूर्णन गति प्रारम्भ करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा मिल नहीं रही तो संधारित्र (कंडेंसर ) द्वारा दी जाती है।

 

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