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ऊर्जा विनिमय तथा युग्मन का प्रभाव (Energy Exchange and Effect of Coupling in hindi)
ऊर्जा विनिमय तथा युग्मन का प्रभाव Energy Exchange and Effect of Coupling)
चित्र (15) में प्रदर्शित युग्मित निकाय के दोलक P1 को कुछ विस्थापन देकर छोड़ दिया जाय तो p1 का कम्पन आयाम समय के साथ कम होता है और P2 जो प्रारम्भ में स्थिर था, दोलन प्रारम्भ कर देता है तथा उसका आयाम समय के साथ बढ़ता है। कुछ समय पश्चात P1 क्षण भर के लिये स्थिर अवस्था में आ जाता है और P2 का दोलन आयाम अधिकतम (P1 के प्रारम्भिक आयाम के बराबर) हो जाता है प्रकार प्रारम्भिक अवस्था के विपरीत अवस्था प्राप्त हो जाती है। समय में और वृद्धि होने पर P2 का आयाम कम होने लगता है तथा P1 का आयाम बढ़ने लगता है जब तक कि प्रारम्भिक अवस्था पुन: प्राप्त नहीं हो जाती। यदि ऊर्जा की हानि न हो तो यह क्रम निरन्तर जारी रहता है। इस प्रकार से P1 से P2 तथा P2 से P1 में ऊर्जा का विनिमय होता है। ऊर्जा विनिमय का एक चक्र एक विस्पन्द (beats कहलाता है। यदि P1 व P2 के द्रव्यमान समान हैं तो उपरोक्त विवेचन के अनुसार ऊर्जा विनिमय पूर्ण है अर्थात् यदि P1 की कुल ऊर्जा P2 में स्थानान्तरित हो जाती है व वापस P2 की ऊर्जा P1 में चली जाती है। यदि उनके द्रव्यमान भिन्न हैं तो ऊर्जा विनिमय पूर्ण नहीं होता है अर्थात् P1 का आयाम कभी पूर्णतः शून्य नहीं हो पाता है।
समीकरण (12) व (13) के अनुसार
x1 = 2a cos 1/2, (ω2 – ω1) t cos 1/2, (ω2 + ω1) t
= Am cos ωmt cos ωt
X2 = 2a sin,1/2 (ω2 – ω1) t sin, 1/2 (ω2 + ω1)t
=Am sin ωmt sin ωt
जहाँ ωm = 1/2 (ω2 – ω1), ω = 1/2 (ω1 + ω2) तथा Am = 2a
मान लीजिये दोलक P1 की प्रारम्भिक ऊर्जा (t = 0 पर) E थी। यदि युग्मन दुर्बल है अर्थात् k का मान अत्यल्प है तो कुल दी गई यह ऊर्जा अन्य स्थानों पर P1 व P2 दोलकों में विभाजित होगी
E = E1 + E2 = 1/2 mω2 Am2
E1 = 1/2 m ω2 (Am2, cos2 ωmt
= 1/2 m ω2AM2 cos2 ωmt
= 1/2 E (1 + cos 2 ωmt)
= 1/2 E [1 + cos (ω2 – ωt) t ]
इसी प्रकार E2 = 1/2 E [1 – cos (ω2 – ωt) t]
अतः t = 0 पर E1 = E व E2 = 0 में वृद्धि होने पर E1 घटता है व E2 बढ़ता है, जब तक E1 न्यूनतम मान शन्य तक नहीं पहुँच जाता व E2, अधिकतम मान E प्राप्त कर लेता है। इसके पश्चात E2 का घटना E1 का बढना प्रारम्भ हो जाता है, जब तक कि प्रारम्भिक अवस्था पुनः प्राप्त नहीं हो जाती। इस प्रकार ऊर्जा विनिमय चक्र का आवर्त्त काल
T = 2π /( ω2 – ω1)
जो कि इस प्रक्रम का विस्पन्द काल होगा।
विस्पन्द आवृत्ति = ω2 – ω1/2π
ऊर्जा विनिमय के चक्र का आवर्तकाल तथा विस्पन्द आवृत्ति ω2 व ω1 के अन्तर पर निर्भर होता है। (ω2 – ω1 ) का मान दोलकों के मध्य युग्मन पर आश्रित है।
दुर्बल युग्मन (k के अल्प मान) के लिए
ω2 – ω1 = (ω0 2 + 2 ωc 2 )1/2 – ω0
= ω0 [(1 + 2k /2m ω02 )1/2 – 1]
= ω0 [(1 + 2k/2m ω02 + ………………)-1]
= k/mω0
अतः ऊर्जा विनिमय आवर्तकाल 1/k
युग्मन प्रबल होने पर कुल ऊर्जा E, दोलकों के साथ-साथ युग्मन तंत्र में भी विभाजित होगी। k के अधिक मानों के लिये सामान्य विधाओं की आवृत्तियों में अन्तर अधिक होगा जिससे ऊर्जा विनिमय की आवृत्ति अधिक होगी।
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