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Electron Gas in hindi इलेक्ट्रॉन गैस क्या है सूत्र लिखिए इलेक्ट्रॉन गैस की परिभाषा किसे कहते है समझाइये
जानेंगे Electron Gas in hindi इलेक्ट्रॉन गैस क्या है सूत्र लिखिए की परिभाषा किसे कहते है समझाइये ?
इलेक्ट्रॉन गैस (Electron Gas)
फर्मी-डिरैक सांख्यिकी का पालन करने वाले सबसे महत्वपूर्ण निकाय धातुओं में उपस्थित इलेक्ट्रॉन होते हैं। धातुओं में निम्नतर बैंड इलेक्ट्रॉनों से भरे होते हैं परन्तु इनके ऊपर का बैंड जिसे चालन बैंड कहते हैं, आशिक रूप से ही भरा होता है। चालन बैंड में ऊर्जा स्तर परस्पर इतने निकट होते हैं कि ऊर्जा स्पेक्ट्रम सतत माना जा सकता है। इसके अतिरिक्त चालन बैंड में स्थित इलेक्ट्रॉन लगभग मुक्त माने जा सकते हैं। अत: gi को g (ε) dε से व ni को dn से प्रतिस्थापित करने पर ऊर्जा ∈ व ∈ + d∈ में मध्य इलेक्ट्रॉनों की संख्या
मुक्त इलेक्ट्रॉनों के लिए ऊर्जा स्थिति पर निर्भर नहीं करती है, वह केवल संवेग पर आश्रित है । अत: प्रावस्था समष्टि में कोष्ठिका का आयतन V(dpx, dpy, dpz ) होगा। गोलीय सममिति से dpx dpy dpz = 4πp^2 dp (त्रिज्या p व मोटाई dp के गोलीय कोश का आयतन ) । तद्नुसार संवेग P व p + dp के मध्य ऊर्जा ∈ व ∈ + de के मध्य अवस्थाओं की संख्या
प्रति एकांक आयतन प्रति एकांक ऊर्जा परास इलेक्ट्रॉनों की संख्या
इस प्रकार मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या घनत्व N/V ज्ञात होने पर फर्मी ऊर्जा εF का मान ज्ञात किया जा सकता है।
विभिन्न सांख्यिकीय व उनके संवितरण फलन (Different Statistics and their Partition Functions)
यदि ni कणों द्वारा अध्यासित iवीं क्वान्टम अवस्था की ऊर्जा εi है तो निकाय की कुल ऊर्जा E व कुल कणों की संख्या n होगी –
निकाय के लिए कैनोनीकल संवितरण फलन (canonical partition function) होगा (कैलोनिकल समुच्चय में समान ताप T, आयतन V व एकसमान निकाय संख्या N की स्वतंत्र निकायों का समूह होता है। इस समुच्चय में सदस्य निकाय परस्पर ऊर्जा का विनिमय कर सकते हैं)
यहाँ β = 1/kT व [ni] = ( n1 , n2 , n3 …….)
जो कि समीकरण (1) के अन्तर्गत अनुमत (allowed) 1; का समुच्चय (set) व्यक्त करता है। योग फलन ऐसे सभी समुच्चयों के लिए है। यदि समान ताप T, आयतन V व रासायनिक विभव की (assemblies) का समूह हो तो इस समूह को वृहत् कैनोनिकल समुच्चय (grand canonical ensemble) कहते हैं। इस समुच्चय में सदस्य निकाय ऊर्जा तथा कणों को विनिमय कर सकते हैं। वृहत संवितरण फलन (the grand partition function) की परिभाषा के अनुसार,
वृहत कैनोनिकल समुच्चय ( grand canonical ensemble) की स्थिति में नियत n का प्रतिबन्ध (Zn; = n) लागू नहीं होता है। स्पष्ट है कि अब n के अप्रतिबन्धित मान ( unrestricted values) हो सकते हैं। अत: ni के लिए योगफल स्वतन्त्रपूर्वक कर सकते हैं ताकि
सरलता के लिए यहाँ सभी ऊर्जा स्तरों को अनपभ्रष्ट (non-degenerate) माना गया है अर्थात् gi = 1समीकरण (4) में योगफल के लिए सांख्यिकी की प्रकृति महत्त्वपूर्ण है। अतः बोस-आइन्सटाइन व फर्मों-डिरैक सांख्यिकी के लिए पृथक-पृथक योगफल निकालने होंगे।
(a) बोस-आइन्सटाइन वृहत संवितरण फलन
बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी, बोसॉनों या उन कणों के लिए जिनकी चक्रण संख्या शून्य अथवा अन्य पूर्णांक होती हैं, प्रयुक्त होती हैं। इन निकायों के तरंग फलन सममित होते हैं और किसी भी ऊर्जा स्तर में कणों की संख्या की कोई सीमा नहीं होती है। अत: ni का शून्य से अनन्त तक कोई भी मान संभव हो सकता है, जिससे –
समीकरण (5) बोस-आइन्सटाइन वृहत् संवितरण फलन व्यक्त करता है। यह वितरण फलन कई खण्डों का नफल है, जिसमें प्रत्येक खण्ड भिन्न अवस्था के लिये है । उपर्युक्त संवितरण फलन के उपयोग से अधिष्ठान संख्या Occupation number)
जो बोस-आइन्सटाइन वितरण है।
(b) फर्मी – डिरैक वृहत संवितरण फलन
फर्मीऑन (अर्ध विषम पूर्णांकी चक्रण के कण ) पाउली अपवर्जन नियम का पालन करते हैं, इनके लिए तरंग-फलन प्रति सममित (anti symmetric) होता है व किसी भी अवस्था में कणों की संख्या केवल शून्य अथवा एक हो सकती है।
अतः ni का मान केवल शून्य या एक हो सकता है, जिससे –
समीकरण (6) फर्मों-डिरैक वृहत् संवितरण फलन को दर्शाती है। यह भी बोस-आइन्सटाइन वृहत संवितरण फलन की तरह कई खण्डों का गुणनफल है, जिसमें प्रत्येक खण्ड, भिन्न अवस्था के लिए होता है। फर्मों-डिरैक संवितरण फलन से
जो फर्मी – डिरैक वितरण है।
इलेक्ट्रॉन गैस के लिए फर्मी – डिरैक वितरण की तुलना से स्पष्ट है कि रासायनिक विभव μ फर्मी ऊर्जा εp तुल्य होता है।
सम्पर्क विभव (Contact Potential)
धातुओं में फर्मी ऊर्जा के विद्यमान होने की व्याख्या करने के लिए प्रायः दो धातुओं के सम्पर्क विभवान्तर को उपयोग में लाया जाता है। माना दो धातु A व B लिये गये हैं जिनके बीच कोई वैद्युतीय संयोजन नहीं है, (चित्र 7.10-1)। किसी भी बाह्य वैद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में, किसी एक इलेक्ट्रॉन की जो धातु से बाहर होगा, स्थितिज ऊर्जा
शून्य होती है, और इन धातुओं के फर्मी स्तर स्थितिज ऊर्जा के शून्य स्तर से eΦA व eΦB नीचे होंगे। eΦA व eΦB परम शून्य पर धातुओं A व B के क्रमश: कार्य फलन होंगे। माना ΦB का मान ΦA से अधिक है। इस स्थिति में जब धातु एक दूसरे के सम्पर्क में नहीं है, धातु A का फर्मी ऊर्जा स्तर, धातु B के फर्मी ऊर्जा स्तर से ऊंचा है। जब धातुओं
वैद्युत सम्पर्क स्थापित कर दिया जाता है तो संपर्क स्थल पर एक विभव रोधिका बन जाती है। यदि इस विभव प्राचीर की मोटाई अत्यल्प अंतरापरमाणुक दूरी की कोटि की है तो सुरंगन प्रभाव (tunnel effect) के द्वारा, चित्र (7.10-1b), धातु A के अधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन धातु B की ओर प्रवाहित होते हैं। इस प्रकार B के मूल फर्मी ऊर्जा स्तर के ऊपर के स्तर भरने लगते हैं तथा A के चालन बैण्ड के ऊपरी ऊर्जा स्तर खाली होने लगते हैं। यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि A व B धातुओं में चालन बैण्ड के ऊपरी अध्यासित ( occupied) ऊर्जा स्तर बराबर नहीं हो जाते। अतः धातु A जिसका कार्य फलन लघु होता है, इलेक्ट्रॉन हानि से धनात्मक आवेशित हो जाता है तथा धातु B इलेक्ट्रॉन प्राप्त कर ऋणात्मक आवेशित हो जाता है। परिणामस्वरूप दोनों धातुओं के मध्य एक विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है जो कि आवश्यक रूप से ΦB व ΦA के अंतर के बराबर होगा। यदि इस विभवान्तर को V से प्रदर्शित करें तो-
V = ΦB – ΦA …(1)
V को सम्पर्क विभवान्तर (contact potential difference) कहते हैं। यह स्पष्ट है कि V का मान धातुओं के कार्य फलनों (work functions) पर निर्भर होता है व स्थितिज ऊर्जा कूपों (potential energy wells) की गहराई पर निर्भर नहीं होता है। साम्यावस्था प्राप्त होने के पश्चात् यदि एक इलेक्ट्रॉन को धातु A से धातु B की ओर, विस्थापित किया जाय तो उसकी स्थितिज ऊर्जा चित्र (7.10-1b) में प्रदर्शित पूर्ण रेखा के अनुसार परिवर्तित होगी। इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा स्तरों के समुच्चयों (sets) के बीच संतुलन में फर्मी – स्तर (Fermi-level) के योगदान व महत्त्व का अध्ययन करने के लिए अब हम सम्पर्क विभव की ऊष्मागतिक विवेचना करेंगे। माना E1 व E2 ऊर्जा स्तरों के दो समुच्चय नियत ताप व दाब पर साम्यावस्था में है। अतः संयुक्त निकाय के लिए गिब्स ऊष्मागतिक विभव ( Gibbs thermodynamic potential) न्यूनतम होना चाहिए अर्थात् जब एक इलेक्ट्रॉन निकाय 1 से निकाय 2 में स्थानान्तरित किया जाता है तो परिणामी गिब्स ऊर्जा परिवर्तन dG = dG1 + dG2 शून्य होना चाहिये। ऊष्मागतिकी के अनुसार
जहाँ μ1 और μ2 निकायों के लिए क्रमश: रासायनिक विभव हैं जो इलेक्ट्रॉन निकायों के लिए फर्मी ऊर्जाओं के तुल्य हैं। अत: इलेक्ट्रॉन ऊर्जा स्तरों के समुच्चयों के साम्यावस्था में होने के लिए, फर्मी स्तरों का समान होना अनिवार्य है। इस निष्कर्ष से विशेषकर P व N अर्धचालकों के मध्य सम्पर्क से उत्पन्न विभवरोधिका की व्याख्या संभव होती है।
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