हिंदी माध्यम नोट्स
Categories: physics
प्रत्यास्थता क्या है , परिभाषा , उदाहरण , कारण , पूर्ण प्रत्यास्थ वस्तु (elasticity in hindi)
(elasticity in hindi) प्रत्यास्थता क्या है , परिभाषा , उदाहरण , कारण , पूर्ण प्रत्यास्थ वस्तु : हमने पढ़ा कि जब किसी वस्तु पर बाह्य बल आरोपित किया जाता है तो इस बाह्य बल के कारण वस्तु के आकार व आकृति में परिवर्तन आ जाता है और इसे बल को विरुपक बल कहते है , अब प्रश्न आता है कि यदि इस विरुपक बल को हटा लिया जाए तो क्या होगा ?
जब विरुपक बल को हटा लिया जाता है वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में लौट आती है , ऐसा क्यों होता है ?
हमने विरुपक बल के अध्ययन में स्प्रिंग का उदाहरण लिया था , हमने एक स्प्रिंग पर पिंड को बाँध कर उस पर बाह्य बल आरोपित किया था तो इस बाह्य बल अर्थात विरुपक बल के कारण स्प्रिंग के आकार अर्थात लम्बाई में परिवर्तन हो गया था , यदि हम इस स्प्रिंग पर बंधे पिंड को हटा ले और बाह्य बल को हटा दे तो हम देखते है कि स्प्रिंग अपनी पूर्व अवस्था में अर्थात पहले वाली लम्बाई को ग्रहण कर लेता है , ऐसा क्यों हुआ ?
ऐसा वस्तु के प्रत्यास्थता गुण के कारण हुआ।
प्रत्यास्थता की परिभाषा : वस्तु का वह गुण जिसके कारण वस्तु विरुपक बल लगाने से उत्पन्न परिवर्तन का विरोध करती है और जब विरुपक बल को हटा लिया जाता है तो वस्तु अपनी मूल अवस्था में लौट आती है , वस्तु के इस गुण को ही प्रत्यास्थता कहते है। जिन वस्तुओं में प्रत्यास्थता का गुण पाया जाता है उन्हें प्रत्यास्थ वस्तु कहते है।
कुछ वस्तुओं में यह गुण अधिक होता है तथा कुछ में कम होता है , लेकिन एक निश्चित सीमा तक विरुपक बल हटाने पर ही वस्तुएं अपनी पूर्व अवस्था में आ पाती है , यदि विरुपक बल का मान इस निश्चित विरुपक बल से बहुत ज्यादा अधिक हो तो वस्तु अपनी पूर्व में अवस्था में नही आती है और यह प्रत्येक वस्तु के लिए लागू होता है। जिस निश्चित अधिकतम विरुपक बल को हटाने के बाद वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में आ जाती है उसे प्रत्यास्थ सीमा कहते है , यदि विरुपक बल का मान इससे अधिक हो तो वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में लौटकर नही आ पाती है।
प्रत्यास्थ सीमा का मान वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है जैसे किसी तार को केवल इसकी लम्बाई से 1% अधिक ही बढाया जा सकता है तथा किसी रबर के तार को लगभग इसकी लम्बाई के 1000% तक बढाया जा सकता है।
जब विरुपक बल को हटा लिया जाता है वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में लौट आती है , ऐसा क्यों होता है ?
हमने विरुपक बल के अध्ययन में स्प्रिंग का उदाहरण लिया था , हमने एक स्प्रिंग पर पिंड को बाँध कर उस पर बाह्य बल आरोपित किया था तो इस बाह्य बल अर्थात विरुपक बल के कारण स्प्रिंग के आकार अर्थात लम्बाई में परिवर्तन हो गया था , यदि हम इस स्प्रिंग पर बंधे पिंड को हटा ले और बाह्य बल को हटा दे तो हम देखते है कि स्प्रिंग अपनी पूर्व अवस्था में अर्थात पहले वाली लम्बाई को ग्रहण कर लेता है , ऐसा क्यों हुआ ?
ऐसा वस्तु के प्रत्यास्थता गुण के कारण हुआ।
प्रत्यास्थता की परिभाषा : वस्तु का वह गुण जिसके कारण वस्तु विरुपक बल लगाने से उत्पन्न परिवर्तन का विरोध करती है और जब विरुपक बल को हटा लिया जाता है तो वस्तु अपनी मूल अवस्था में लौट आती है , वस्तु के इस गुण को ही प्रत्यास्थता कहते है। जिन वस्तुओं में प्रत्यास्थता का गुण पाया जाता है उन्हें प्रत्यास्थ वस्तु कहते है।
कुछ वस्तुओं में यह गुण अधिक होता है तथा कुछ में कम होता है , लेकिन एक निश्चित सीमा तक विरुपक बल हटाने पर ही वस्तुएं अपनी पूर्व अवस्था में आ पाती है , यदि विरुपक बल का मान इस निश्चित विरुपक बल से बहुत ज्यादा अधिक हो तो वस्तु अपनी पूर्व में अवस्था में नही आती है और यह प्रत्येक वस्तु के लिए लागू होता है। जिस निश्चित अधिकतम विरुपक बल को हटाने के बाद वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में आ जाती है उसे प्रत्यास्थ सीमा कहते है , यदि विरुपक बल का मान इससे अधिक हो तो वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में लौटकर नही आ पाती है।
प्रत्यास्थ सीमा का मान वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है जैसे किसी तार को केवल इसकी लम्बाई से 1% अधिक ही बढाया जा सकता है तथा किसी रबर के तार को लगभग इसकी लम्बाई के 1000% तक बढाया जा सकता है।
प्रत्यास्थता का कारण (cause of elasticity)
किसी भी ठोस के अणु आपस में इस प्रकार से जुड़े रहते है जैसे वे आपस में एक स्प्रिंग से जुड़े हो , ठोस के अणुओं का ऐसा व्यवहार अंतरा आणविक बल के कारण होता है। जब किसी ठोस पर विरुपक बल (बाह्य बल) लगाया जाता है तो ठोस के अणुओं के मध्य की दूरी परिवर्तित हो जाती है और चूँकि हमने बताया की ठोस के अणु आपस में ऐसे व्यवहार करते है जैसे वे स्प्रिंग से जुड़े हो इसलिए विरुपक बल लगने से जब इनके अणुओं के मध्य की दूरी परिवर्तित हो जाती है तो इनके मध्य प्रत्यानयन बल कार्य करता है।
और जब वस्तु पर आरोपित विरुपक बल हटा लिया जाता है तो इस प्रत्यानयन बल के कारण वस्तु के कण अपनी पूर्व स्थिति ग्रहण कर लेते है जिससे वस्तु का आकार व आकृति भी इसकी पूर्व स्थिति में आ जाता है , वस्तु का यह गुण प्रत्यास्थता गुण कहलाता है जो विरुपक बल हटा लेने पर उन्हें इनकी पूर्व स्थिति में लाने का प्रयास करता है।
पूर्ण प्रत्यास्थ वस्तु (perfectly elastic body)
जब किसी वस्तु पर आरोपित बाह्य बल (विरुपक बल) को हटा लिया जाए और यदि पूर्ण रूप से अपनी मूल अवस्था में आ जाती है तो ऐसे वस्तुओं को पूर्ण प्रत्यास्थ वस्तुएं कहते है।
हालांकि की कोई भी वस्तु पूर्ण प्रत्यास्थ वस्तु नही होती है क्यूंकि विरुपक बल हटा लेने पर किसी भी वस्तु के अणु अपनी मूल स्थिति ग्रहण नहीं कर पाते है उनमे कुछ न कुछ हल्का सा परिवर्तन अवश्य रह जाता है अत: किसी भी वस्तु को पूर्ण प्रत्यास्थ वस्तु नही कहा जाता है। लेकिन कुछ वस्तुएँ होती है जो अपनी मूल स्थिति में लगभग लौट आती है उन वस्तुओं को पूर्ण प्रत्यास्थ की श्रेणी में रखा जा सकता है जैसे क्वार्टज़ फाइबर , फोसफर ब्रोंज आदि।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
4 weeks ago
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
4 weeks ago
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
4 weeks ago
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
4 weeks ago
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
1 month ago
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…
1 month ago