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प्रत्यास्थता शैथिल्य (elastic hysteresis in hindi) , शैथिल्य लूप (HYSTERESIS LOOP in hindi)
(elastic hysteresis in hindi) प्रत्यास्थता शैथिल्य : जब किसी वस्तु पर विरुपक बल आरोपित किया जाता है तो इस बल के कारण उत्पन्न विकृति व प्रतिबल में परिवर्तन एक साथ नहीं होता है बल्कि उत्पन्न विकृति प्रतिबल के पश्चगामी होती है। विकृति का प्रतिबल से पश्चगमन को ही प्रत्यास्थता शैथिल्य कहते है।
कुछ प्रत्यास्थ वस्तुओं को जब खिंचा जाता है तो वे एक पथ का अनुसरण करती है तथा जब इन्हें छोड़ा जाता है तो ये अपनी मूल अवस्था में आने के लिए अलग पथ का अनुसरण करते है , प्रत्यास्थ वस्तु के इस व्यवहार को प्रत्यास्थता शैथिल्य कहते है।
वस्तु को अपनी मूल अवस्था में आने के लिए किया गया कार्य , उसको विकृत करने के लिए किये गए कार्य से कम होता है।
चूँकि वस्तु में उत्पन्न विकृति , उस पर आरोपित प्रतिबल के पश्चगामी होती है इसलिए समान प्रतिबल से किसी तार को जब भारित किया जाता है और उसके बाद अभारित (भार हटाना) किया जाता है तो दोनों स्थितियों में उत्पन्न विकृति का मान अलग अलग होता है।
कुछ प्रत्यास्थ वस्तुओं को जब खिंचा जाता है तो वे एक पथ का अनुसरण करती है तथा जब इन्हें छोड़ा जाता है तो ये अपनी मूल अवस्था में आने के लिए अलग पथ का अनुसरण करते है , प्रत्यास्थ वस्तु के इस व्यवहार को प्रत्यास्थता शैथिल्य कहते है।
वस्तु को अपनी मूल अवस्था में आने के लिए किया गया कार्य , उसको विकृत करने के लिए किये गए कार्य से कम होता है।
चूँकि वस्तु में उत्पन्न विकृति , उस पर आरोपित प्रतिबल के पश्चगामी होती है इसलिए समान प्रतिबल से किसी तार को जब भारित किया जाता है और उसके बाद अभारित (भार हटाना) किया जाता है तो दोनों स्थितियों में उत्पन्न विकृति का मान अलग अलग होता है।
शैथिल्य लूप (hysteresis loop)
जब किसी वस्तु या तार को भारित करके तथा बाद में अभारित करके , प्रतिबल व उत्पन्न विकृति के मध्य ग्राफ खिंचा जाए तो यह एक बंद लूप के रूप में प्राप्त होता है , इस बन्द लूप को ही शैथिल्य लूप कहा जाता है।
जब किसी तार को भारित या अभारित किया जाता तो इसका तात्पर्य है की तार पर कार्य किया जा रहा है , यह ग्राफ या वक्र (लूप) भी भारित या अभारित अवस्था में तार पर किये गए तार को व्यक्त करता है।
माना हमारे पास दो रबर है और इनका पदार्थ भिन्न भिन्न है , जब इन दोनों रबर को समान भार से भारित व अभारित किया जाता है तो दोनों रबरों के लिए शैथिल्य लूप निम्न प्रकार प्राप्त होता है , हमने एक रबर को A नाम दिया है तथा दुसरे रबर को B नाम दिया है। दोनों के लिए भारित व अभारित अवस्था में प्रतिबल व विकृति के मध्य शैथिल्य लूप निम्न प्रकार प्राप्त होता है।
जब शैथिल्य लूप का क्षेत्रफल का मान कम हो तो इसका तात्पर्य है कि किया गया कार्य का मान भी कम है , चूँकि दुसरे लूप का क्षेत्रफल का मान कम है इसका मतलब यह है कि इस रबर द्वारा किया गया कार्य कम है जिसके कारण इस रबर का प्रयोग गाडी के टायर बनाने के लिए किया जायेगा ताकि यह जल्दी से गर्म न हो।
पहले लूप का क्षेत्रफल अधिक है अत: किये गए कार्य का मान भी अधिक होगा चूँकि यह ज्यादा कार्य करता है इसलिए इसकी ऊर्जा अधिक खर्च होगी , यदि इसको मशीन में कम्पन्न सोखने के लिए लगा दिया जाए तो यह अधिक ऊर्जा को सोख लेगा क्यूंकि यह खर्च बहुत अधिक ऊर्जा करता है तो स्वभाविक है कि यह ऊर्जा का सोखन भी अधिक करेगा।
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