JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

समतावादी क्या होता है | समाजशास्त्र में समतावादी सिद्धांत किसे कहते है परिभाषा अर्थ egalitarianism in hindi

egalitarianism in hindi meaning definition theory in socilogy समतावादी क्या होता है | समाजशास्त्र में समतावादी सिद्धांत किसे कहते है परिभाषा अर्थ मतलब बताइए ?

समतावादी: यह सिद्धांत कहता है कि हर व्यक्ति, हर समूह को समाज में समान दर्जा और समान अवसर मिलना चाहिए।
क्षरण: यह एक वर्ग या गुट का छोटे समूहों में विघटन है।

शब्दावली
पूंजीवाद: इस व्यवस्था में समाज उत्पादन साधनों के स्वामियों और श्रमिकों में बंटा रहता है। इस व्यवस्था के फलस्वरूप उत्पादन साधनों के स्वामी मजदूरों का शोषण करते हैं।
द्वंद्व: दो या अधिक विरोधी गुटों का परस्पर विरोधी दृष्टिकोण और कार्य।
प्रकार्य: समष्टि के समेकन या एकीकरण में उसके किसी भी घटक के द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका। जैसेः समाज के एकीकरण में अर्थव्यवस्था जो भूमिका निभाती है।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
कोजर, एल., 1956, फंक्शन ऑफ सोशल कनफ्लिक्ट, लंदन, रुटलेज ऐंड केगन पॉल
डारहेंडॉर्फ, राल्फ, 1959, क्लास ऐंड क्लास कनफ्लिक्ट इन इंडस्ट्रियल सोसायटी, लंदन, रुटलेज ऐंड केगन पॉल

सामाजिक वर्गों पर कोजर और डाहरेंडॉर्फ की व्याख्या

इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
एल. कोजर और राल्फ डाहरेंडॉर्फ
एल. कोजर
द्वंद्व का प्रकार्य
द्वंद्व और तिरस्कार
वर्ग द्वंद्व
राल्फ डाहरेंडॉर्फ
पूंजीवाद और औद्योगिक समाज
पूंजी संग्रह का वियोजन
श्रमशक्ति का वियोजन
सामाजिक गतिशीलता और समतावादी सिद्धांत
वर्ग संघर्ष का डाहरेंडॉर्फ सिद्धांत
समेकन और बाध्यता के सिद्धांत की बुनियादी मान्यताएं
डाहरेंडॉर्फ का सिद्धांत
सामाजिक वर्ग और डाहरेंडॉफ का नजरिया
सामाजिक ढांचे के लिए द्वंद्व के परिणाम
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ लेने के बाद आपः
ऽ द्वंद्व के प्रकार्यों के बारे में जान जाएंगे,
ऽ डाहरेंडॉर्फ का पूंजीवादी सिद्धांत क्या है, यह समझ जाएंगे,
ऽ मार्क्स और डाहरेंडॉर्फ ने पूंजीवाद को किस नजरिए से देखा, दोनों के नजरिए में अंतर को जान पाएंगे, और
ऽ कोजर और डाहरेंडॉर्फ के सिद्धांतों की आपस में तुलना कर सकेंगे।

 प्रस्तावना
समाजशास्त्रीय चिंतन पर प्रकार्यवाद और द्वंद्वात्मक सिद्धांत जैसे दो विरोधी सैद्धांतिक दृष्टिकोण हावी रहे हैं। अपने कार्यक्षेत्र और अपनी पृष्ठभूमि/वैचारिक मान्यताओं में इन दोनों सिद्धांतों को परस्पर अनन्य माना गया है। प्रकार्यवाद को एक रूढ़िवादी और यथास्थितिवादी सिद्धांत के रूप में लिया जाता है जबकि द्वंद्वात्मक सिद्धांत को एक को एक आमूल परिवर्तनवादी और प्रगतिशील सिद्धांत के रूप में देखा जाता है। इन दोनों में कौन सबसे उपयुक्त है इस पर बहस हमें दोनों में एक सहमति बिंदु की ओर ले जाती है। कोजर और डाहरेंडॉर्फ के कार्य से हमें यही पता चलता है। खासकर जब दोनों सामाजिक स्तरीकरण का विश्लेषण करते हैं। दोनों मार्क्स को ही मुख्य आधार मानकर चलते हैं। मगर वहीं दोनों उनसे अलग हटकर चलते हैं। यहां हम यह बता दें कि कोजर ने अपने अध्ययन का विषय सामूहिक द्वंद्व को बनाया था जिसमें वर्ग द्वंद्व एक असंगति है, वहीं डाहरेंडॉर्फ के अध्ययन का केन्द्र वर्ग और वर्ग द्वंद्व हैं।

 सारांश
मार्क्स के महान सिद्धांत की विशेषता उसकी विश्वव्यापी दर्शन और क्रांतिकारी ऊर्जा थी जिसने सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की प्रबल भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया। इसने मानव इतिहास की धारा ही बदल डाली। मगर कुछ वर्षों से उनकी कृतियों का निष्पक्ष अध्ययन किया जा रहा है।

असमतावादी, अमानवीय पूंजीवादी व्यवस्था को एक क्रांतिकारी, सुसंगठित श्रमिक वर्ग द्वारा उखाड़ फेंककर सामाजिक परिवर्तन लाने का जो दर्शन मार्क्स ने दुनिया को दिया था वह ज्यादा कामयाब नहीं रहा है। मगर उन्होंने वर्ग और वर्ग संघर्ष की जो धारणाएं अपने दर्शन में प्रयोग की समाज शास्त्र पर उन्होंने बड़ा गहरा प्रभाव डाला। अनेक विद्धानों ने इन्हें पूर्ण रूप से अपना लिया तो कुछ ने इनमें कुछ परिवर्तन-संशोधन किया।

कोजर और डाहरेंडॉर्फ इसी श्रेणी के विद्वान हैं, जिन्होंने वर्ग की महत्ता को स्वीकार तो किया लेकिन इसके स्वरूप को लेकर उनका मत मार्क्स से भिन्न था। पूरा समाज सिर्फ दो विरोधी और विद्वेषी वर्गों में बंटा नहीं हो सकता। समाज में ‘समूह‘ होते हैं जिनके हित अन्य समूहों के हितों से टकराते हैं। यह द्वंद्व सिर्फ समाज में प्राप्त स्थान या पद को लेकर ही नहीं चलता। बल्कि यदि परस्पर क्रियात्मक और परस्पर प्रभावी होता है। यह द्वंद्व सिर्फ सामाजिक संरचना से ही संबंधित नहीं है बल्कि यह प्रक्रियात्मक भी होता है। इसका एक मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है जो हमें हितों, चेतना और भावनात्मक कीमत के रूप में दिखाई देता है। अंततः इसके सामाजिक संरचना संबंधी परिणाम होते हैं, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं। इनसे सामाजिक ढांचे में स्थिरता आ सकती है या ये उसे तरह-तरह से बदल सकते हैं। यह कई परिवर्तियों पर निर्भर करता है, जो क्रिया में अनुभवमूलक हो सकते हैं।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

20 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

20 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now