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Efficiency of Heat Engine in hindi ऊष्मा इंजन की दक्षता का सूत्र क्या है फार्मूला लिखिए
ऊष्मा इंजन की दक्षता का सूत्र क्या है फार्मूला लिखिए Efficiency of Heat Engine in hindi ?
ऊष्मा इंजन की दक्षता (Efficiency of Heat Engine ) किसी ऊष्मा इंजन में अवशोषित ऊष्मा का वह भाग (Fraction) जो कि तुल्य मात्रा के कार्य में रूपान्तरित होता है, इंजन की दक्षता (1) कहलाता है। गणितीय रूप में कहा जाता है कि इंजन की दक्षता किये गये कार्य एवं उच्च ताप के ऊष्मा भण्डार से अवशोषित ऊष्मा का अनुपात है। यदि इंजन की दक्षता हो तो ”
समीकरण (14) से स्पष्ट है कि किसी इंजन की दक्षता केवल स्त्रोत तथा सिंक के तापों पर निर्भर करती है जिनके बीच इंजन कार्य करता है, कार्यकारी पदार्थ पर नहीं।
जैसा कि पहले बताया गया है। T2 – T1/ T2 < 1 अतः इंजन की दक्षता भी हमेशा 1 अर्थात् 100% से कम होती है। तंत्र द्वारा अवशोषित शुद्ध ऊष्मा का मान q है जो कि q2-q1 के बराबर है। ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के आधार पर-
w = q2-q1
अतः समीकरण ( 14 ) निम्न रूप में व्यक्त की जाती है-
उपरोक्त समीकरण प्राप्त करने में यह माना गया है कि सम्पूर्ण चक्र में प्रत्येक पद उत्क्रमणीय अवस्था में किया गया है, ताकि अधिकतम कार्य प्राप्त किया जा सकें। परन्तु वास्तविकता यह है कि प्रायोगिक रूप से उत्क्रमणीय अवस्था प्राप्त नहीं की जा सकती। अतः ईन्जन की वास्तविक दक्षता (16) द्वारा दर्शाई गई दक्षता से भी कम होती है। इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि ऊष्मा इंजन की दक्षता कभी भी इकाई नहीं हो सकती। समीकरण ( 16 ) से यह निष्कर्ष भी निकलता है कि-
उत्क्रमणीय चक्र के अभिलक्षण (Charateristics of a Reversible Cycle)
उपरोक्त वर्णित कान चक्र की एक विशेषता यह है कि यह एक उत्क्रमणीय चक्र है। उत्क्रमणीय चक्रीय प्रक्रम में चक्र के पूर्ण होने पर अर्थात् इंजन के एक बार अग्र दिशा में तथा एक बार विपरित दिशा में कार्य करने पर पारिपार्श्विक अपनी मूल अवस्था में वापस आ जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि तंत्र में उपस्थित पदार्थ ऊष्मा भंडार आदि अपनी मूलअवस्था में वापस आ जाते हैं। चक्र के विपरीत दिशा में चलने अथवा इंजन के विपरीत दिशा में कार्य करने पर शुद्ध कार्य एवं ऊष्मा के परिणाम में कोई अन्तर नहीं आता परन्तु उनके चिन्ह विपरीत हो जाते हैं। यही उत्क्रमणीय चक्र के अभिलक्षण कहलाते हैं।
संक्षेप में उपरोक्त प्रेक्षणों को निम्न प्रकार लिखा जा सकता है।
शाश्वत गति मशीन ( Perpetual Motion Machine )
मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा के संरक्षण का नियम है। अर्थात् कोई तंत्र जितना कार्य करता है, उसके तुल्य ऊर्जा व्यय करनी होती है। यदि हम ऐसी मशीन बनाना चाहें जो ऊष्पा अथवा किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा व्यय किये बिना ही सतत रूप से कार्य करती रहे तो इस प्रकार की मशीन प्रथम प्रकार की शाश्वत गति मशीन कहलाती है जिसे बनाना संभव नहीं है।
कार्नो के उत्क्रमणीय इंजन के आधार पर केल्विन द्वारा ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम की परिभाषा दी गई है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि “एक ऐसी मशीन बनाना असंभव है जो कि एक ही स्त्रोत से ऊष्मा अवशोषित करके सतत रूप से कार्य करे” इस प्रकार की मशीन द्वितीय प्रकार की शाश्वत गति मशीन कहलाती है। अतः द्वितीय प्रकार की शाश्वत मशीन बनाना भी असंभव है।
इसे सिद्ध करने के लिये मान लीजिये कि इस प्रकार की मशीन संभव है। इसका अर्थ है कि एक ऐसी मशीन बनाई जा सकती है जो उच्च ताप (T2) के स्रोत से q2 ऊष्मा अवशोषित करके, निम्न ताप (T) के सिंक को कुछ भी ऊष्मा स्थानान्तरित किये बिना सम्पूर्ण ऊष्मा कार्य में रूपान्तरित कर देती है। इस मशीन द्वारा उत्पन्न कार्य का उपयोग एक रेफ्रिजरेटर को चलाने में किया जा सकता है। चित्र (2.2) में कार्नो इंजन स्त्रोत q2 से ऊष्मा अवशोषित करके उसे कार्य में परिवर्तित करता है। यह कार्य w रेफ्रिजरेटर
पर किया जाता है। रेफ्रिजरेटर सिंक से q1 ऊष्मा अवशोषित करता है, उस पर w कार्य किया है तथा वह (q1 + q2) ऊष्मा स्रोत को स्थानान्तरित करता है। परिणाम स्वरूप कार्नो इंजन व रेफ्रिजरेटर का युग्म निम्न ताप से सिंक के . ऊष्मा अवशोषित करके उच्च ताप के स्रोत को दे रहा है जो कि ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम के विरूद्ध है। अतः द्वितीय प्रकार की शाश्वत मशीन बनाना असम्भव है।
कार्नो प्रमेय (Carnot’s Theorem)
कान प्रमेय के अनुसार, “स्रोत तथा सिंक के समान तापों (दो नियत तापो) के मध्य कार्य वाले उत्क्रमणीय इंजनों की दक्षता समान होती है, कार्यकारी द्रव्य चाहे कोई भी लिया जाये।
उक्त प्रमेय को सिद्ध करने के लिये माना कि दो उत्क्रमणीय इंजन A तथा B हैं जो कि स्त्रोत व सिंक के समान ताप T1 के
मध्य कार्य करते हैं। दोनों इंजनों को इस प्रकार व्यवस्थित किया Source गया है कि एक सामान्य कार्नो चक्र के आधार पर A अग्र दिशा में तथा B विपरीत दिशा में कार्य करें। यह व्यवस्था चित्र 2.3 में प्रदर्शित की गई है। माना कि इंजन A की दक्षता nA इंजन B की दक्षता MB से अधिक है। अर्थात् nA > nB
इंजन A स्रोत (T1) से q2 ऊष्मा अवशोषित करता है। ऊष्मा के एक अंश को कार्य (w) में परिवर्तित करके – ( q2 – w) ऊष्मा सिंक (T1) को विसर्जित कर देता है।
इंजन, B पर चूंकि विपरीत दिशा में कार्य करता है, अतः यह एक रेफ्रिजरेटर के समान कार्य करता है। इस प्रकार इंजन B सिंक से ( q2 – w) ऊर्जा अवशोषित करता है, उस पर -w’ कार्य किया गया है, तथा – q2 ऊष्मा स्रोत को विसर्जित की जाती है। चूंकि इंजन A अधिक दक्ष माना है, अतः ww’ होगा अर्थात इंजन B अवशोषित ऊष्मा के कम भाग में परिवर्तित करेगा |
अतः
q2 – W’ > q2 – w
इसका अर्थ यह है कि इंजन A जितनी ऊष्मा सिंक में विसर्जित करता है, उससे अधिक ऊष्मा इंजन B सिंक से अवशोषित करता है।
इस प्रकार दोनों इंजनों का युग्म कुल मिला कर (w-w’) ऊष्मा सिंक से अवशोषित करके सम्पूर्ण ऊष्मा को कार्य में परिवर्तित कर देता है। यह बात ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम के विरूद्ध है। यदि ऐसा संभव होता तो हम समुद्र अथवा वायुमण्डल से ऊष्मा अवशोषित करके लगातार कार्य में परिवर्तित कर सकते थे। अतः पूर्व में माना गया na> nB सही नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि nA = nB अर्थात् समान तापों के मध्य कार्य करने वाले उत्क्रमणीय इंजनों की दक्षता समान होती है।
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