JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: indian

धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख परिणामों की विवेचना कीजिए effects of religious reformation in hindi protestant

effects of religious reformation in hindi protestant धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख परिणामों की विवेचना कीजिए ?

प्रश्न: धर्म सुधार आंदोलन के परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: धर्म सुधार आंदोलन के निम्नलिखित परिणाम निकले –
1. ईसाई एकता का अंत: धर्मसुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप ईसाई एकता का अंत हो गया तथा कैथोलिक एवं प्रोटेस्टेंट वर्ग बन गये। उत्तरी यूरोप प्रोटेस्टेन्ट धर्म का अनुयायी बन गया जबकि दक्षिणी यूरोप कैथोलिक चर्च का समर्थक बना रहा। सरधारवादी भी लूथरवाद, काल्विनवाद, ऐग्लिकनवाद आदि शाखाओं में बिखरते चले गये।
2. प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन: कैथोलिक मतावलंबियों ने भी प्रोटेस्टेंट के विरुद्ध जो सुधार आंदोलन छेड़ा वह प्रतिवादी सुधार आंदोलन कहलाया।
3. धर्म युद्धों का प्रारंभ: धर्म सुधार आंदोलन से यूरोप में धर्मयुद्धों का दौर चल पड़ा और असहिष्णुता का विकासहुआ जिसमें लाखों लोगों की हत्याएं की गई। मेरी ट्यूडर का काल इसका प्रतीक है।
4. धर्म सुधार आंदोलन के फलस्वरूप राजाओं की शक्ति प्रबल हुई और पोप की शक्तियों का हास हुआ।
5. व्यापार वाणिज्य को प्रोत्साहन: परम्परागत कैथोलिक धर्म सूद लेने व देने पर सख्ती लगाता था जबकि भौगोलिक खोजों के कारण व्यापारिक क्रांति हुई। जिसमें धन की आवश्यकता थी। प्रोटेस्टेंट ने इस मत को मान्यता प्रदान की। जिससे व्यापार वाणिजय को प्रोत्साहन मिला।
6. व्यक्ति की महत्ता की स्थापना: धर्म सुधार से व्यक्ति के पारलौकिक जीवन के बजाय इहलौकिक जीवन पर ध्यान दिया जाने लगा तथा व्यक्ति धर्म के बंधन से मुक्त होकर अपने आर्थिक क्रियाकलापों की ओर ध्यान देने लगा।
7. सामंतवाद का पतन: पोप वास्तविक रूप में सांमतों का मुखिया था। जब पोपवाद धाराशायी हो गया तो सांमतवाद का पतन अवश्यंभावी हो गया।
8. राष्ट्रीय भाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा मिला।
9. धार्मिक सहिष्णुता का विकास – एलिजाबेथ-प् की नीति (एडिक्ट ऑफ नेन्टिस्ट का उदाहरण)
10. धार्मिक विषयों पर मतभेदों की उत्पत्ति: धर्म-सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप जिन अनेक सम्प्रदायों का उदय हुआ, उनमें सैद्धांतिक एकता का अभाव था और धर्म के गूढ तत्वों को लेकर उनमें आंतरिक मतभेद उत्पन्न हो गए। कोई चर्च की स्वतंत्रता का समर्थक था तो कोई चर्च पर राज्य के नियंत्रण का पक्षपाती था। प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय में और भी अधिक मतभेद उत्पन्न हो गए थे। इसका एक कारण तो यह था कि प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय ने बाईबिल को ही एकमात्र सत्य का प्रतीक मान लिया था और अपने अनुयायियों को इस बात की शिक्षा दी थी कि वे किसी भी ढंग से बाईबिल के सिद्धांतों का पालन करें। सम्प्रदाय के संगठन को लेकर भी मतभेद बढ़ा। कुछ समय बाद मैथोडिज्म, बैपटिज्म और कोंग्रिगेशनलिज्म आदि विभिन्न मत-मतान्तरों के प्रचलन से यह मतभेद और भी अधिक बढ़ गया।
11. शिक्षा के क्षेत्र में विकास।
12. धार्मिक साहित्य का विकास – विभिन्न विद्वानों द्वारा पुस्तकें लिखी गई।
13. लोक साहित्य का विकास: धर्म-सुधार आंदोलन का एक परिणाम लोक भाषा और लोक साहित्य के विकास के रूप में देखने को मिलता है। धर्म-सुधारकों ने सामान्य जनता को धर्म के गूढ रहस्यों तथा अपने विचारों को समझाने के लिए लोकभाषा को अपने भाषणों का माध्यम बनाया और इसी में अपने विचार संबंधी साहित्य का प्रकाशन करवाया। लूथर ने जर्मन भाषा में बाईबिल का अनुवाद किया था।
14. धर्म-निरपेक्षता का विकास: निरंकुशवाद के साथ ही साथ श्धर्म-निरपेक्षताश् की प्रवृत्ति का भी विकास हुआ अर्थात् उन बहुत-सी गतिविधियों, जिन्हें पहले चर्च देखा करता था, अब उनकी देखभाल का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों को हस्तांतरित कर दिया गया।
15. नैतिकता और शिष्टता: सुधारवादी आंदोलन से नैतिकता और शिष्टता जैसे गुणों का पुनः महत्व बढ़ा और अब इस पर विशेष जोर दिया जाने लगा। क्योंकि प्रत्येक पक्ष दूसरे पर अनैतिकता तथा भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाकर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने में लगा हुआ था। इन आरोपों का सामना करने के लिए कैथलिकों और प्रोटेस्टैन्टों दोनों ने ही उच्च नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने तथा उन पर अमल करने का जोरदार प्रयत्न किया।
असहिष्णुता की भावना का विकास: धर्म सुधार आंदोलन के कारण धार्मिक सहिष्णुता का लोप हो गया। इसके कारण 30 वर्ष तक यूरोप में संघर्ष चलता रहा। 1555 ई. में ऑक्सबर्ग की संधि से इस संघर्ष की समाप्ति हुई। धर्म को लेकर पहला युद्ध हॉलैण्ड में हुआ। 1560 ई. से लेकर 1585 ई. की अवधि में आठ धार्मिक युद्धों ने फ्रांस को तहस-नहस कर डाला। 1572 ई. में अगस्त महीने की रात को पेरिस के एक गिरजाघर के घंटे घनघनाने शुरू कर दिये। इस संकेत के बाद (सेंट बार्थोलोम्यू दिवस की पूर्व संध्या को) कैथोलिकों ने प्रोटेस्टेंटों का कत्लेआम शुरू कर दिया। प्रोटेस्टेंटों का यह वहशियाना कत्लेआम ‘संत बार्थोलोम्यू दिवस हत्याकांड‘ के नाम से विख्यात हुआ। 1560 ई से 1630 ई. तक का काल डाकिनी आखेट (Witch Hunting) इतिहास का एक बुरा समय था। जादूगरनियों टाकिनियों को खोजकर जीवित जला देने की इस प्रथा ने पागलपन का रूप धारण कर लिया था। शत्रुतापूर्ण घृणा दीय वर्षीय यद्ध के काल (1618-1648 ई.) में चरम सीमा पर पहुंच गयी। धार्मिक असहिष्णुता ने एक लम्बे समय के लिए यूरोप की शांति को भंग किये रखा। इसके परिणामस्वरूप यूरोप धार्मिक प्रश्नों से निकल कर राजनीतिक और आर्थिक प्रश्नों में फंस गया।
प्रश्न: धर्म सुधार आंदोलन के कारणों की विवेचना कीजिए।

1. संगठित पश्चिमी क्रिसेंडम (ईसा का राज्य) का अंदरूनी सैद्धान्तिक फूट धर्म सुधार का सबसे प्रधान मौलिक कारण था।
2. दूसरा प्रमख कारण चर्च में व्याप्त बुराईयाँ थी जो 15वीं-16वीं शताब्दी में पैदा हो गयी थी।
3. आर्थिक कारण ने धर्मसुधार में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
4. राष्ट्रीय राज्यों का उत्कर्ष जो चर्च के स्वरूप से मेल नहीं खाता था।
5. चर्च शोषित किसानों का असंतोष विद्रोह के रूप में सामने आया।
6. पुनर्जागरण का प्रभाव धर्म सुधार के कारणों के रूप में सामने आया।
7. शिक्षा के प्रसार (छापेखाने का आविष्कार) से ज्ञान का प्रसार हुआ, रूढ़िवादी धार्मिक मान्यताएं टूटन लगा।
8. पोपवाद – पोप पद का स्वरूप विकृत होना। उसका दरबार भ्रष्ट होना। राजनीतिक क्षेत्र में हस्तक्षप करना।
9. धर्माधिकारियों का विलासी जीवन, अशिक्षित होना, अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करना एवं नियुक्ति याग्यता के आधार पर न होना।
10. धर्म यात्राओं का आरंभ जिससे धार्मिक सम्मेलन होने लगे और परम्परागत धर्म पर वाद-विवाद उत्पन्न होने लगा।
11. छोटे पादरियों में व्याप्त असंतोष – इन्होंने जनसामान्य को उच्च धर्माधिकारियों के विरुद्ध भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न: ‘‘धर्म सुधार आंदोलन के उदय में धार्मिक मुद्दे एवं धर्मसुधारक ही केन्द्र बिन्दु थे‘‘ व्याख्या कीजिए।
उत्तर: चर्च की सांसरिकता व भ्रष्टाचार: पोप धनी, भ्रष्ट, सांसारिक व राजनीतिज्ञ बन गया था।
धर्माधिकारियों का अशिक्षित होना: मध्य युग में अधिकांश पादरी सामंत थे जिन्हें शिक्षा का ज्ञान नहीं था।
धर्माधिकारियों का कर्त्तव्यविमुख होना: सभी धर्माधिकारी अधिकांशतः इटली के नियुक्त होते थे अतः ये अपने नियुक्ति क्षेत्र में अपनी सेवाएं ना देकर ये इटली में ही रहना पसंद करते थे। नियुक्ति के स्थान पर इनके प्रतिनिधि धार्मिक सेवाएं देते थे। बदले में कर भी प्रतिनिधि ही लेते थे अतः उनमें से कुछ अपने लिए भी रखते थे तथा वे धार्मिक शिक्षा नहीं देते थे।
चर्च की नियुक्तियाँ योग्यता के आधार पर ना होना: चर्च में नियुक्तियाँ पैसा लेकर की जाती थी। साइयनी (Sinony) प्रथा के तहत पैसा लेकर नियुक्तियां किया जाना सामान्य प्रथा बन गई थी। साइमन मैगस (Simon Magus) ने आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त करने हेतु पीटर को धन का ऑफर किया।
रोम के वैभव का विरोध: रोम यूरोप की कीमत पर धनी बना जिसका सभी विरोध करने लगे थे।
चर्च की आंतरिक दर्बलता: 15वीं शताब्दी में पोप अरबन टप् पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उसने पोप के पद को त्याग दिया व फ्रांस चला गया। जहां उसे पोप के रूप में मान्यता मिली। अरबन के स्थान पर पोप क्लेमेंट टप्प् को नियुक्त किया गया, जिसे इटली में मान्यता मिली। इस प्रकार एक ही समय में दो पोप हो गये।
धर्मसुधारकों का प्रभाव
मार्टिन लथर से पर्व धर्म संधारक अल्विग (Aluvig) ने 12वीं शताब्दी में दक्षिण फ्रांस में चर्च में सुधारों की मांग की। उसने चर्च की सांसारिकता का विरोध किया। चर्च ने उसे धर्म द्रोही घोषित किया। वॉल्डेन्स (Voldence) ने भी 10वीं शताब्दी में दक्षिण फ्रांस में चर्च में सुधारों की मांग की। उसने चर्च पर बाईबिल की सर्वोच्चता पर बल दिया। चर्च ने उसे जिंदा जला देने के आदेश दिये।
जॉन वाइक्लिफ 14वीं शताब्दी का धर्म सुधारक था जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था। उसने ईसाईयों के लिए बाईबिल का समर्थन किया तथा ईसाई धर्म में तीर्थ यात्रा जैसी परम्पराओं का विरोध किया। वाईक्लिफ की पर पश्चात् जला देने के आदेश दिये गये। वाइक्लिफ के अनुयायी लोलार्ड्स (Lollards) कहलाये।
जॉन हास बोहीमिया का रहने वाला था। प्राग विश्व विद्यालय में प्रोफेसर था। वाइक्लिफ का अनुयायी था। परम्परागत चर्च और पोप का विरोध करने के कारण चर्च ने इसे जला देने का आदेश दिया।
सेवेनारोला एक इटालियन धर्म सुधारक था उसने पोप एलेक्जेन्डर टप् की कटु आलोचना की। पोप की 7 अवैध संताने थी। चर्च ने उसे जिंदा जला देने के आदेश दिये।
डरेस्मस (Erasmus) हॉलैण्ड का राटरडैम का निवासी था। इसने ‘द प्रेज ऑफ फॉली‘ नामक पस्तक लिपी मानववाद का राजकुमार (प्रिंस ऑफ ह्यूमेनिस्ट) कहा जाता है।
प्रश्न: “धर्म सुधार आंदोलन राज्य व चर्च के बीच संघर्ष था साथ ही आर्थिक कारणों ने भी इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।‘‘ व्याख्या कीजिए।
उत्तर: राजनैतिक कारण
(a) चर्च का राज्य में हस्तक्षेप
(i) पोप सर्वोच्च राजनैतिक अधिकारी था।
(ii) सर्वोच्च राजनैतिक शक्तियां पोप में निहित थी।
(iii) ईसाई राज्यों में राजा की नियुक्ति पोप द्वारा की जाती थी।
(iv) राज्य की आय का एक हिस्सा चर्च को दिया जाता था।
(v) राज्य में कानून व नियम बनाने का अधिकार पोप के पक्ष में था।
(vi) ईसाई राज्य में कानून को अवैध करने का अधिकार पोप के पास था।
(vii) पोप राजा को धर्म से बरिष्कृत करने का अधिकार रखता था जिसे एक्सकम्यूनिकेशन कहा जाता था।
(viii) राज्य के चर्च में धर्माधिकारियों की नियुक्तियां पोप द्वारा की जाती थी।
(ix) राज्य का कानून पोप व धर्माधिकारियों पर लागू नहीं होता था।
(x) उत्तराधिकार, विवाद, तलाक, संपत्ति आदि विवादों का निर्णय चर्च के न्यायालय में किया जाता था।
(xi) पोप के निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।
इस प्रकार पोप पद के द्वारा राज्य को सीमित व शक्तिहीन कर दिया था। अतः राज्य पोप से छुटकारा पाना चाहता था। राज्य सिर्फ यह चाहता था कि पोप सिर्फ और सिर्फ धार्मिक कार्य करे। इसी बात को लेकर राज्य का चर्च से संघर्ष हुआ।
(x) राष्ट्रीय राज्यों का उदय: राष्ट्रीय राज्य का अर्थ है – एक राज्य, एक राजा, एक कानून, एक मुद्दा। उस पर किसी अन्य सत्ता या राज्य की प्रभुता ना हो। जबकि चर्च की मान्यता थी कि राज्य चर्च के अधीन एक ईकाई है। अतः राज्य और चर्च के मध्य संघर्ष स्वभाविक था।
(b) धार्मिक न्यायालय: इस समय यूरोप में दो प्रकार के न्यायालय थे एक राज्य का न्यायालय व दूसरा धार्मिक न्यायालय। राज्य के न्यायालय के खिलाफ लोग धार्मिक न्यायालय में जा सकते थे। धार्मिक न्यायालय यह आदेश दे सकता था कि लोग अपने राजा के खिलाफ विद्रोह करे। जबकि राज्य चाहता था कि लोग राज्य के न्यायालयों का ही आदेश मानें न कि धार्मिक न्यायालयों का।
धर्म सुधार आंदोलन के आर्थिक कारण
(i) आर्थिक शोषण: प्रत्येक ईसाई परिवार को प्रतिवर्ष चर्च में ईसाई संस्कारों को सम्पन्न करवाने के लिए चर्च को 1 डॉलर देना होता था जिसे पीटर्स पेन्स (Peter’s Pens) कहा जाता था। ये संस्कार निम्न होते थे आज भी है – बैप्टिज्म जन्म लेने के बाद बच्चे को ईसाई धर्म में लेना (2) Combination-मेल-जोल बढ़ाना, (3) यूकैरिस्ट (Eucharist)- जब बच्चे को ब्रैड और शराब दिया जाता था। (4) पश्चाताप (Perance) (5) एक्ट्रीन अंक्शन (Eutrene Unction) अंतिम समय की तैयारी करना, (6) प्रीस्टटूड (Pricestood) संत बनने का संस्कार तथा (7) विवाद (Matrinory) उत्तराधिकार, विवाह, तलाक, सम्पत्ति इत्यादि के विवाद चर्च के न्यायालय में निपटाये जाते थे। इसके लिए चर्च अपनी फीस वसूलता था। इसके अतिरिक्त ईसाई परिवारों को समय-समय पर भेंट, आदि चर्च को देनी होती था।
चर्च को एक ड्यूकट (Ducat) श्सोने की मुद्राश् देने पर ब्वनतपे के साथ विवाह संभव हो सकता था जबकि ऐसा विवाह ईसाई धर्म में वर्जित था। यदि कोई व्यक्ति धर्म के सिद्धांतों की अवहेलना करता है या करना चाहता है तो वह डिसपेन्सेशन (Dispensation) प्राप्त कर सकता है। इसे सेल ऑफ डिसपेन्सेशन कहा जाता था। इन चर्च के इन सभी करों से जनता नाराज थी। ।
(ii) व्यापारियों में असंतोष: व्यापारी द्वारा ऋण लेना धार्मिक रूप से वर्जित था। लेकिन व्यापार बढ़ाने हेतु यह जरूरी था। क्योंकि इस समय व्यापारिक क्रांति हो गई थी। अतः व्यापारियों को उधार धन चाहिए था जो केवल सूद पर ही मिला सकता था। लेकिन चर्च सूद की सख्त मनाही करता था साथ ही अधिक धन संचय को नर्क का द्वार मानता पा। चर्च ने कहा कि श्सई की नोक में होकर एक ऊंट का प्रवेश संभव है, लेकिन धनी आदमी का प्रवेश संभव नहीं। जबकि वातावरण इसके प्रतिकूल था। अतः व्यापारियों ने चर्च के विरुद्ध अपने शासकों को अधिक से अधिक धन दिया तथा वे चर्च की सत्ता को समाप्त करने पर उतारू हो गए।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now