JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: sociology

आर्थिक व्यवस्था क्या है | आर्थिक व्यवस्था की परिभाषा किसे कहते है अर्थ मतलब Economic Order in hindi

Economic Order in hindi definition and meaning आर्थिक व्यवस्था क्या है | आर्थिक व्यवस्था की परिभाषा किसे कहते है के बारे में अर्थ मतलब ?

परिभाषा :

आर्थिक व्यवस्था (Economic Order) ः वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग में शामिल गतिशील, समन्वित संस्थाओं का समूह।

धर्म और सामाजिक बदलाव (Religion and Social Change)
आइए हम यह मान कर चलते हैं कि आर्थिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था और सांस्कृतिक व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था के तीन पहलू हैं। इस अनुभाग में हम आपको विशिष्ट रूप से यह जानकारी देंगे कि धर्म किस तरह आर्थिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था और सांस्कृतिक व्यवस्था को बदल या स्थिरता प्रदान कर सकता है। जैसा कि आप जानते हैं, आर्थिक व्यवस्था का संबंध प्रमुख रूप से सामानों के उत्पादन, वितरण और उपभोग के संदर्भ में व्यक्तियों और संस्थाओं के विन्यास से है। राजनीतिक व्यवस्था का संबंध सत्ता और प्राधिकार के प्रयोग से है। सांस्कृतिक व्यवस्था में व्यापक रूप से प्रतीक और उनके अर्थ आते हैं। प्रारंभ में, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि धार्मिक विचार किस प्रकार आर्थिक व्यवस्था को मोड़ सकते हैं और फलस्वरूप उसे बदल या स्थिरता प्रदान कर सकते हैं।

धर्म और आर्थिक व्यवस्था (Religion and the Economic Order)
अब तक आप इकाई 10 को अच्छी तरह समझ चुके होंगे। इस अनुभाग में आप उस इकाई में किए गए अनेक तर्कों की अपेक्षा कर सकते हैं। हम मैक्स वेबर (1864-1920) से आत्मसात होकर यह दिखा सकते हैं कि धार्मिक विचार आर्थिक व्यवस्था को बदल सकते हैं। दूसरी ओर, कार्ल मार्क्स (1864-1883) का सावधानीपूर्वक अध्ययन करके हम यह तर्क रख सकते हैं कि धर्म शोषण, तंगहाल आर्थिक व्यवस्था को स्थिरता प्रदान कर सकता है। अतः यह कहा जा सकता है कि समाज में धर्म जो इसका महत्वपूर्ण उपभाग भी है इसकी भूमिका समाज में मेलमिलाप लाने और इसे एकजुट करने का सामर्थ्य रखती है लेकिन कट्टरपंथियों की तरह द्वंद उत्पन्न करने में यह महत्वपूर्ण कारक भी बन सकती है।

सारांश
इस इकाई में, हमने धर्म और सामाजिक व्यवस्था के संबंध की व्याख्या की । धर्म सामाजिक व्यवस्था को बदल या स्थिरता प्रदान कर सकता है। यह धर्म के मानसिक और आध्यात्मिक कार्यों के कारण संभव है। हम अपने आसपास की दुनिया को समझने के लिए जिन अवधारणाओं का प्रयोग करते हैं उनमें अनेक धर्म की ही देन हैं। स्थिरता और बदलाव के अतिरिक्त, निरंतरता भी एक अन्य संभावना है। निरंतरता में नई स्थितियों के साथ पुराने सिद्धांतों का सामंजस्य निहित है। अनुभाग 14.2.3 में हमने धर्म और सामाजिक व्यवस्था के बीच अन्योन्यक्रिया के परिणामों को प्रभावित करने वाले कारकों की चर्चा की।

अनुभाग 14.3 में हमने यह बताया कि मातृ धर्म से विरोध के कारण बनने वाला मत सामाजिक व्यवस्था को बदल सकता हैं। इस अर्थ में, मत का जन्म धर्म और सामाजिक व्यवस्था के बीच अन्योन्यक्रिया के परिणामस्वरूप होता है। मत प्रमुख रूप से मातृ धर्म के सिद्धांतों और संस्कारों के विरोध का प्रतीक होता है, और इसलिए उसमें बदलाव का आग्रह होता है। बारहवीं शताब्दी में हिंदुत्व के अंदर मतांदोलन के रूप में उभरने वाले वीर शैव आंदोलन ने ब्राह्मणवादी हिंदू व्यवस्था को चुनौती दी और समतावादी सामाजिक व्यवस्था की हिमायत की।

अनुभाग 14.4 में यह सिद्ध किया गया कि धर्म आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था को बदल या स्थिरता प्रदान कर सकता है। 16वीं और 17वीं शताब्दी की प्रोटेस्टैंट नीति ने आधुनिक विवेकशील औद्योगिक पूंजीवाद को गति दी। धर्म एक दिग्भ्रमित विरोध है जो समाज में व्याप्त दुखों और शोषण पर परदा डाल कर सामाजिक व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करता है। शोषण पर परदा डाल कर, धर्म, शोषितों और शोषितों के बीच संघर्ष को रोकता है। यह तर्क कार्ल मार्क्स का है। धर्म सत्ता के ढांचे को बदल सकता या सत्ता के प्रयोग के मौजूदा तरीके को औचित्य प्रदान कर सकता है। जहाँ तक सांस्कृतिक व्यवस्था का संबंध है, धार्मिक प्रतीक सामाजिक बदलाव के अनुसार अपना अर्थ बदल सकते हैं। जब समय, स्थान अच्छे, बुरे, और व्यक्ति के प्रति लोगों की समझ पर हमला होता है तो धर्म उसका विरोध कर सकता है।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
रॉबर्टसन, रोलैंड 1970: ‘दि सोशियोलॉजिकल इंटरप्रेटेशन ऑफ रिलिजन‘ ऑक्सफोर्डः बेसिल ब्लैकवेल।
सिंगर, मिल्टन 1957: ‘रिलिजन, सोसाइटी एंड दि इंडविजयुल, न्यूयार्क‘: मैकमिलन ।

बोध प्रश्न 1
प) धर्म और सामाजिक व्यवस्था के आपसी संबंध की प्रकृति के विषय में लगभग पाँच। पंक्तियों में चर्चा कीजिए।
पप) सोदाहरण स्पष्ट कीजिए कि मत सामाजिक व्यवस्था को बदल सकता है। लगभग पाँच पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पपप) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिएः
क) धर्म सामाजिक व्यवस्था को बदल या स्थिर कर सकता हैय इसमें ……………….की भी संभावना है।
ख) ………………………………………………………………………………………………………………………………….और………………………………………..की व्याख्या के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने का धर्म का एक विशेष तरीका है।
ग) मत अनिवार्यतया….आंदोलन होता है।
घ) समय-समय पर होने वाले अनेक सामाजिक कारकों की बदौलत, शास्त्रों/पवित्र ग्रंथों की विवेचना सकती है।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) धर्म सामाजिक व्याख्या को बदल या स्थिरता प्रदान कर सकता है। यह इसलिए है क्योंकि धर्म जन्म, मृत्यु, रजोधर्म, जलवायु-वर्षा जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है और संसार को समझने के लिए मनुष्य को अवधारणाएं और श्रेणियां भी देता हैं । धर्म दुख, शोषण और दमन को औचित्य प्रदान कर सकता है या इसका इस्तेमाल मनुष्यों को उनके विरूद्ध लामबंद करने के लिए किया जा सकता है।

पप) वीरशैव आंदोलन एक अच्छा उदाहरण है। इसके सहारे हम यह दर्शा सकते हैं कि धर्म सामाजिक व्यवस्था को बदल सकता है। इस 12वीं शताब्दी के आंदोलन का जन्म ब्राह्मणवादी हिंदू सामाजिक व्यवस्था के विरोध में हुआ। इस आंदोलन ने समता का प्रचार किया, छूआछूत के विरूद्ध संघर्ष किया और काम के प्रति एक सकारात्मक अभिवृत्ति बनाई।

पप) क) निरंतरता
ख) तंगहाल/तंगहाली और असमानताएं
ग) विरोध
घ) बदलाव

 

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

7 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now