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पारिस्थितिकी क्या है Ecology in hindi के जीव संगठन के चार स्तर पारिस्थितिकी की परिभाषा किसे कहते है

Ecology in hindi पारिस्थितिकी क्या है के जीव संगठन के चार स्तर पारिस्थितिकी की परिभाषा किसे कहते है ?

पारिस्थितिकी (Ecology) :  जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवन तथा भौतिक पर्यावरण के बीच होने वाली पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है |

पारिस्थितिकी
पारिस्थितिकी का अर्थ है पृथ्वी नामक ग्रह के समस्त जातीय एवं स्थलीय अवयवों की पारस्परिक निर्भरता के आधार पर सहजीविता जिसमें सभी अवयव एक दूसरे का उपयोग करते हैं और समग्न संचय की पुनः पूर्ति भी करते रहते हैं। अतः मिट्टी, पानी, पौधे, जीव-जंतु, खनिज, वायुमंडल, ऊर्जा तथा मनुष्य आदि समस्त अवयव एक दूसरे का उपयोग करते हुए पारस्परिक संतुलन बनाए रखते हैं। पृथ्वी पर ये सब अलग-अलग क्रमचयों एवं संचयों में वितरित हैं। ऐसी प्रत्येक इकाई को उसके निदान सूचक एवं विभेदक लक्षणों के आधार पर, एक पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है।

पर्यावरण
मानव जाति अपने आप को (पारिस्थितिक तंत्र के) अन्य अवयवों से पृथक मानती है तथा उन्हें अपने संसाधन भर मान कर संतोष का अनुभव करती है। अतः मिजवाखपाऊजंमा (SWAMPEAH) मानव समाज का पर्यावरण कहलाता है।

पारिस्थितिकी जीव संगठन के चार स्तरों से संबंधित है |

  • जीव :  पर्यावरण का प्रत्येक जीवित घटक जीव कहलाता है |
  • समष्टि : एक ही प्रजाति के सजीव समूह को समष्टि कहते हैं |
  • समुदाय :  एक से अधिक प्रजातियां के प्राणियों एवं पौधों के समूह को समुदाय कहते हैं उदाहरण –  पादप समुदाय ,  जंतु समुदाय एवं सूक्ष्मजीव समुदाय |
  • जीवोम : जीवोम क्षेत्रीय समुदाय होते हैं जिसमें लगभग समान जलवायु विय  परिस्थितियां होती हैं इनमें विशिष्ट प्रकार के पादप व जंतु ही निवास करते हैं |  उदाहरण – टुंड्रा ,  मरुस्थल ,  तथा वर्षा वन आदि मुख्य जीवोम  है |

प्रमुख अजैव कारक :

  • ताप :   ताप जीवो के आधार उपापचय कार्यकीय प्रकार्यों तथा शरीर एंजाइमों की बल गति को प्रभावित करता है ताप सहनशीलता के आधार पर प्राणी दो प्रकार के होते हैं
  • प्रथुतातापी : वे प्राणी जो अत्यधिक ताप को सहन कर सकते हैं प्रथुतातापी  कहलाते हैं |
  • तनुतापी  : वीडियो कम ताप में रहते हैं तनुतापी  कहलाते हैं |
  1. जल :  जलीय जीवों के लिए जल की गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है इसके आधार पर प्राणी दो प्रकार के होते हैं |
  • प्रथुलवणी : वह प्राणी जो अत्यधिक लवणीय [ खारे]  जल में पाए जाते हैं प्रथुलवणी कहलाते हैं
  • तनु लवणी : वह प्राणी जो कम लवणता वाले जल में पाए जाते हैं|
  1. प्रकाश :  प्रकाश  प्राणी की वृद्धि जनन वह वर्णकता को प्रभावित करता है प्रकाश की एक सापेक्षिक अवधि [ द्विप्तिकाल] मैं पौधों में पुष्पन प्रेरित होता है |

प्रश्न 1 :  क्या कारण है कि लाल शैवाल अधिकतर समुद्र की गहराई में पाए जाते हैं ?

उत्तर :  लाल शैवाल अधिकतर समुद्र की गहराई में पाए जाते हैं क्योंकि इनका मुख्य  वर्णक आर-फाइकोऐरीथ्रिन (r-phycoerythrin) नीले हरे भाग वाली दृश्य प्रकाश की स्पेक्ट्रम का उपयोग प्रकाश संश्लेषण में करता है ,  नीले हरे स्पेक्ट्रम का भाग कम तरंगधैर्य के कारण पानी में गहराई तक पहुंच पाता है लाल शैवाल वहां भी जीवित रह सकते हैं जहां और कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता है |

  1. मृदा :  मृदा का पीएच(Ph) ,  खनिज लवण ,  स्थल की आकृति आदि किसी क्षेत्र की वृद्धि का निर्धारण करते हैं |

परिभाषाएँ

संसाधन
मानव जाति के लिए, अपने आप के अतिरिक्त, जल, मिट्टी और भूमि, पौधे जंतु, रोगाणु, खनिज तथा वायुमंडल समावेश रूप से एक संसाधन-आधार तैयार करते हैं। गुण एवं परिभाषा, दोनों की दृष्टि से इनके वितरण तथा उत्पादकता में विविधता होती है।

पारिस्थितिक तंत्र
पृथ्वी पर उपर्युक्त संसाधन 40 से अधिक पारिस्थितिक तंत्रों में वितरित हैं। प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में उपर्युक्त संसाधनों के विभिन्न प्रकार पाए जाते हैं और विकास की यथावधि में उसके विशिष्ट लक्षण बन जाते हैं। ऐसे पारिस्थितिक तंत्रों में वन, मरुस्थल, तराई क्षेत्र, समुद्र, द्वीप, नदियाँ, चरागाह, भूमध्यरेखीय, उष्ण कटिबंधीय, उपोष्ण कटिबंधीय शीतोष्ण कटिबंधीय तथा अन्य भौगोलिक क्षेत्रों की हरित भूमियों आदि को गिनाया जा सकता है जो भिन्न भिन्न अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं से घिरे होते हैं।

विकास
मनुष्य अपने ज्ञान, अनुभव एवं विज्ञान और तकनीकी की प्रायोगिक दक्षता के आधार पर इन विविध पारिस्थितिक तंत्रों में विद्यमान संसाधनों का, अपने उपयोग के लिए निरंतर दोहन करता रहता है। इस प्रकार का उपयोग राजनीतिक सत्ता, प्रशासनिक तंत्र के माध्यम से लोगों के सामाजिक – आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर कराती है। परिणामस्वरूप संसाधनों एवं विकास के उत्पादों के वितरण से इन सभी प्रक्रियाओं के ऐसे मूल उपादान का निर्माण होता है जिसमें समानता एवं न्याय सुनिश्चित हों। अतः उद्योग, व्यापार, वाणिज्य एवं व्यापार एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते हैं। इन प्रक्रियाओं से अनेक परिणाम सामने आए हैं।

परिणाम
यद्यपि विकास जन्म परिवर्तन सभी संबद्ध पक्षों के हितों के लिये होते हैं किन्तु देश और काल के अंतर से उन के परिणाम (क) पृथ्वी के अन्य अवयवों अर्थात् पारिस्थितिक तंत्रों तथा पारिस्थितिकी, (ख) अन्य पारिस्थितिक तंत्रों के अन्य लोगों, (ग) किसी पारिस्थितिक तंत्र के अपने ही लोगों तथा (घ) स्वयं पारिस्थितिक तंत्रों के लिये हानिकारक होने लगते हैं।

क) पहला परिणाम विद्यमान परिदृश्यों में परिवर्तन के रूप में प्राप्त होता हैं जिसके अंतर्गत संसाधनों का अवक्षय, तंत्रों का निम्नीकरण एवं पारिस्थितिक असंतुलन आदि शामिल हैं जिनमें संसाधनों का स्वामित्व या विकास हस्तान्तरित होते रहते हैं और अन्याय और असंतोष तथा आन्दोलन आदि का बीजारोपण होता है।
ख) दूसरा परिणाम आर्थिक होता है। इसके अंतर्गत आन्तरिक उत्पादन एवं वितरण में पुनरभिविन्यास, विदेशिक व्यापार में कमी, आतंरिक एवं बाहरी ऋण एवं निवेश, ऋण-भार तथा असहाय लोगों पर पड़ने वाली आर्थिक भार आदि शामिल हैं।
ग) तीसरा परिणाम सामाजिक होता है। असमानताएँ, आशाएँ और निराशाएँ, विभाजन, संघर्ष, घृणाओं और हिंसा इसमें शामिल होते हैं। परंपरागत संसाधनों एवं प्रचलनों के साथ-साथ परंपरागत मूल्यों का भी लोप हो जाता है और विश्व, समृद्ध राष्ट्रों एवं गरीब राष्ट्रों, अमीर लोगों एवं दीनहीनों जैसे वर्गों के बीच विद्यमान उभय प्रतिरोधियों के कारण तीन स्तरों में विभक्त हो जाता है। आशाएँ और निराशाएँ शक्ति एवं संपन्न लोगों की सनक के आधार पर बारी-बारी से उदित होती रहती हैं। भलमनसाहत तथा अन्य मानवीय मूल्य निरंतर विलुप्त होते रहते हैं और बहुसंख्यक लोगों के जीवन बेकार हो जाते हैं। पाण्डेकर की गरीबी रेखा का निहितार्थ यही है।
घ) चैथे प्रकार के परिणाम पर्यावरण एवं पारिस्थिक प्रक्रियाओं में पश्चगमन के रूप में होते हैं जिनके शमन की बात तो दूर रही, उन्हें समझना भी मुश्किल होता है। एक बार से घटित हो जाएँ तो इनका पलटना कठिन होता है। अम्लीय वर्षा या ओजोन परत का अवक्षय इसके उदाहरण हैं।

अनुक्रियाएँ
परिणामस्वरूप पारिस्थितिक सुरक्षा को चुनौती देने वाली आपत्तियों के विरुद्ध लोगों की प्रतिक्रियाएँ व्यक्त होती हैं भूग्रह के अनेक भागों में ऐसा पहले होता रहा है और आज भी हो रहा है। ऐसी कुछ अनुक्रियाओं को आगे रेखांकित किया जा रहा है।

ये अनुक्रियाएँ ही चिंता, परामर्श और सावधानी की प्रथम अभिव्यक्तियाँ थीं। अपने विशिष्ट लक्षणों एवं परिमाण की दृष्टि से इन्हीं का क्रमशः स्थानीय, क्षेत्रीय एवं विश्वस्तरीय विरोधों एवं प्रतिरोधों के रूप में विकास हुआ। इन प्रतिसेनों ने न केवल कानूनी रूप एवं सामाजिक आन्दोलन का स्वरूप ही धारण किया वरन् उन्होंने परिवर्तन के लिए सामान्यतः स्वीकृत राजनीतिक तंत्र की सीमाओं का अतिक्रमण भी किया। ये मनुष्य के द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा हेतु चलाए गए सामाजिक आन्दोलन या सामाजिक सहमति हेतु पर्यावरण आन्दोलन हैं।

बोध प्रश्न 1
नोटः क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) पारिस्थितिकी, पर्यावरण तथा पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं?
2) विकास के परिणाम क्या हुए हैं?

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