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पारिस्थितिकी (ecology in hindi) , संरचना , पोषण के आधार पर

भारत की पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण

पारिस्थितिकी

● पारिस्थितिकी (ecology) – पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत समस्त जीवों तथा भौतिक पर्यावरण के साथ अंतर्सम्बन्धों एवं विभिन्न जीवों के साथ पारस्परिक अंतर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

● सर्वप्रथम अर्नेस्ट हैकेल ने 1869 ई. में इकोलॉजी शब्द का प्रयोग किया। Ecology शब्द ग्रीक भाषा से बना है जिसका हिन्दी अर्थ पारिस्थितिकी होता है।

● ब्रिटिश वनस्पति विज्ञानी ए.जी. टान्सले ने सर्वप्रथम “ईकोसिस्टम” (ecosystem) शब्द का प्रयोग 1835 ई. में किया।

● ए. जी. टान्सले को पारिस्थितिकी तंत्र का जनक कहा जाता है।

● भारत के पारिस्थितिकी तंत्र का जनक प्रोफेसर रामदेव मिश्रा को कहा जाता है।

● जीवों के प्रवास क्षेत्र का अध्ययन ही पारिस्थितिकी कहलाता है।

● जीव विज्ञान व भौतिक भूगोल की समावेशी शाखा पारिस्थितिकी कहलाती है।

पारिस्थितिकी तंत्र की शाखाएँ :-

(i) स्वपारिस्थितिकी

(ii) समपारिस्थितिकी

(i) स्वपारिस्थितिकी- जब किसी एक जीव जाति के पारितंत्र का अध्ययन किया जाता है उसे स्वपारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है।

(ii) समपारिस्थितिकी– जब किसी एक जीव समुदाय या संपूर्ण पारितंत्र का अध्ययन किया जाता है उसे सपारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है।

पारिस्थितिकी से संबंधित महत्त्वपूर्ण अवधारणाएँ :-

 आर. एल. लिंडमैन के अनुसार पारिस्थितिकी वह तंत्र है जो किसी भी परिमाण वाले समय इकाई में भौतिक एवं रासायनिक जैव प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित होता है।

 पर्यावरण की क्रियात्मक इकाई पारिस्थितिकी तंत्र कहलाती है।

● Eco system छोटा तथा बड़ा हो सकता है, जैसे – पानी की एक बूँद या गृह का अध्ययन करना।

 फासबर्ट के अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र एक क्रियाशील एवं परस्पर क्रियाशील तंत्र है जिसका संगठन एक या एक से अधिक जीवों तथा उनके प्रभावी पर्यावरण से निर्मित होता है।

● ओडम के अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र ऐसे जीवों तथा पर्यावरण की आधारभूत क्रियात्मक इकाई होता है, जो दूसरे पारिस्थितिकी तंत्र अपने अवयवों के मध्य निरन्तर अन्त:क्रिया करता रहता है।

● पीटर हेगेट के अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र ऐसी पारिस्थितिकी व्यवस्था है, जिसमें पादप तथा जीव-जन्तु अपने पर्यावरण से पोषण शृंखला द्वारा हमेशा आपस में जुड़े रहते हैं।

● स्ट्राहलर के अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र ऐसे घटकों का समूह है, जिसमें जीवों के समूह एक साथ परस्पर क्रियाशील रहते हैं इस क्रियाशीलता में पदार्थों तथा ऊर्जा का निवेश होता रहता है जिससे जैविक संरचना का निर्माण होता है।

● सी.सी.पार्क के अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र एक निश्चित क्षेत्र के अंतर्गत सभी प्राकृतिक जीवों तथा तत्त्वों का संकुल योग होता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य :-

● पारिस्थितिकी तंत्र का मूल कारण जैविक समुदाय के बीच खाद्य जाल ऊर्जा प्रवाह से है।

● पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक तथा मानव निर्मित हो सकता है।

● पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा गत्यात्मक है न कि स्थैतिक।

● पारिस्थितिकी तंत्र एक खुला तंत्र है जिसमें प्राकृतिक कारणों से तथा मानवीय हस्तक्षेपों के कारण परिवर्तन होते रहते हैं।

● पारिस्थितिकी तंत्र एक क्रियाशील इकाई है।

● सबसे स्थाई पारिस्थितिकी तंत्र समुद्र है।

पारितंत्र के विभिन्न स्तर:-

● जीव/ व्यष्टि

● जनसंख्या समष्टि

● पारिस्थितिकी समुदाय

● पारिस्थितिकी तंत्र

● जीवोम

● जैव मण्डल

जीव/ व्यष्टि :-

● पारितंत्र की यह सबसे छोटी इकाई है।

● पर्यावरण की इकाई जीव कहलाती है।

● जीव एक कोशिका से लेकर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है।

● जीवों का एक जीवन चक्र होता है।

● प्रजाति के प्रकार :-

1. Key stone species

जीवों का वह समूह जिसकी तंत्र में संख्या कम हो लेकिन तंत्र पर प्रभाव सर्वाधिक होता है; जैसे – शेर, बाघ।

2. एनेडेमिक प्रजाति

जीवों का वह समूह जो निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करता है, उसे एनेडेमिक प्रजाति कहा जाता है; जैसे – ऑस्ट्रेलिया का कंगारू, न्यूजीलैण्ड में कीवी।

3. अम्ब्रेला प्रजाति

जीवों का वह समूह जिसको बचाने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किए जाते हैं, उसे अम्ब्रेला प्रजाति कहा जाता है। जैसे- गोडावण, बाघ, शेर

4. सूचक प्रजाति (Indicator)

जीवों का वह समूह जो पर्यावरण की स्थिति को प्रदर्शित करता है। जैसे – ई-कोलाई – जल प्रदूषण की सूचक, लाइकेन – वायु प्रदूषण का सूचक इत्यादि

समुदाय :-

● किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र की विभिन्न प्रजातियों के जीवों की कुल संख्या समुदाय कहलाती है।

A. सकारात्मक संबंध :-

1. सहजीवी संबंध :-

● इस प्रकार के संबंध जिससे दोनों जीवों को लाभ होता है।

● जैसे–

(i) लाइकेन – शैवाल + कवक

(ii) माइकोराइजा – उच्च पादप (साइकस पादप) + कवक

(iii) राइजोबियम जीवाणु तथा लेग्यूमिनेसी पादप में (दालों वाले पौधे) N2 78% होती है।

N = N (strong covalent land)

2. सहभोजिता :-

● जिसमें एक जीव को लाभ तथा दूसरे जीव को न लाभ न हानि होती है।

● उदाहरण:- अधिपादप (आरोही पादप) जैसे- बैल (चरती हुई गाय के पास मक्खियों का भिनभिनाना)

B. नकारात्मक संबंध :-

● परजीवी :- जीवों के मध्य ऐसा संबंध जिसमें एक जीव को लाभ हो तथा दूसरे जीव को हानि हो। परजीवी हमेशा छोटा होता है तथा वह लाभ में रहता है। पोषक बड़ा होता है तथा वह हानि में रहता है।

● बाह्य परजीविता :- इसमें परजीवी पोषक के शरीर के ऊपर होता है, जैसे – मानव + मच्छर, मानव + जूँ, अमरबेल + अन्य पादप

● आंतरिक परजीविता :- इसमें परजीवी पोषक के शरीर के अंदर होता है, जैसे – मानव + रोगाणु, मानव + मलेरिया

● नीड परजीविता :- ऐसे परजीविता, जिसमें कोई पक्षी दूसरों के घोसलों में अंडा देता है, जैसे – कोयल, कौओं के घोंसले में अंडा देती है।

● प्रतिस्पर्द्धा/संबंध:- एक जीव को लाभ तथा दूसरे जीव को हानि होती है।

● अमेन्सलिज्म :- एक को हानि, दूसरे को न लाभ न हानि होती है, जैसे – बबूल के पौधे के पास दूसरा पौधा विकास नहीं कर पाता है।

जनसंख्या समष्टि :

● पारितंत्र की समान प्रजातियों का अध्ययन किया जाता है।

● समष्टि में वृद्धि/ जनसंख्या वृद्धि, समष्टि घनत्व/ जनसंख्या घनत्व तथा समष्टि वितरण/ जनसंख्या वितरण को जनसंख्या समष्टि में शामिल किया जाता है।

जनसंख्या वृद्धि :-

● निश्चित कालखण्ड में होने वाली जीवों की संख्या में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि कहलाती है।

● जनसंख्या वृद्धि तीन बातों पर निर्भर करती है –

(a) जन्मदर

(b) मृत्युदर

(c) प्रवास

● जनसंख्या वृद्धि सकारात्मक, नकारात्मक, उदासीन हो सकती है।

पारिस्थितिकी समुदाय :-

● प्रजातियों के अलग-अलग वातावरण का अध्ययन किया जाता है। प्रजाति जीवों के वर्गीकरण की मूलभूत इकाई है।

 पारिस्थितिकी समुदाय दो प्रकार के होते हैं-

(a) मामूली समुदाय (छोटा) – इस समुदाय का आकार छोटा सुव्यवस्थित और एक दूसरे पर निर्भर होता है।

(b) प्रमुख समुदाय (बड़ा) – इस समुदाय का आकार सुव्यवस्थित व स्वतंत्र होता है।

 पारिस्थिति समूह जीवों का एकत्रण करता है जबकि पारिस्थितिकी समुदाय में जीव एक-दूसरे से आपसी अंत:क्रिया करते हैं।

● समुदाय की प्रकृति प्रचुरता, प्रभाविता एवं स्तरीकरण पर निर्भर करती है। समुदाय में प्रजातियों में निर्भरता तथा अंत:क्रिया आवास, प्रजनन, भोजन, ऊर्जा, सुरक्षा तथा जल पर निर्भर करती है।

● किसी समुदाय में उपस्थित जीवों के मध्य/ विभिन्न प्रजातियों के मध्य सहजीव, असहभोजिता, प्रतिस्पर्द्धा तथा उदासीन संबंध होते हैं।

● सहजीवी संबंध तीन प्रकार का होता है- परजीविता, सहोपकारिता, सहभोजिता

पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार :-

(i) ऊर्जा स्रोत के आधार पर

(ii) आवास के आधार पर

(iii) उपयोग के आधार पर

(iv) विकास के आधार पर

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पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना :-

 पारिस्थितिकी तंत्र परस्पर पर दो घटकों के रूप में क्रिया करते हैं-

(1) जैविक घटक

(2) अजैविक घटक

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(1) जैविक घटक :

● वह पारिस्थितिकी तंत्र जिसमें समस्त जीवित जीव उपस्थित होते हैं जैविक घटक कहलाते हैं।

● जैविक घटक में सभी जीव भिन्न-भिन्न पारस्परिक अंत:क्रियाओं द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।

● यह जीव एक-दूसरे से क्रियात्मक इकाई के रूप में जुड़े होते हैं। अत: किसी पारिस्थितिकी तंत्र में से एक प्रकार के जीव को अलग किया जाता है तो पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है।

● जैविक घटक को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया हैं-

(A) पोषण के आधार पर-

● पोषण के आधार पर जैविक घटकों को दो भागों में विभाजित किया गया है-

(i) स्वपोषी घटक-

● इन्हें प्राथमिक उत्पाद भी कहा जाता है। यह अपना भोजन मृदा से जड़ों द्वारा स्वयं बनाते हैं और सूर्य से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हैं।

 ये शाकाहारी जीवों को भोज्य पदार्थ प्रदान करते हैं।

जैसे- हरे पौधे, नील हरित शैवाल, प्रकाश संश्लेषी जीव इत्यादि शामिल होते हैं।

(ii) परपोषी घटक

● ये घटक स्वपोषी घटकों पर निर्भर रहते हैं।

● अपना भोजन स्वपोषी घटकों से प्राप्त करते हैं इसलिए इन्हें उपभोक्ता भी कहा जाता है।

● आहार शृंखला का निर्माण घास→बकरी →मानव

● परपोषी घटक को आहार ग्रहण करने के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया हैं-

(a) मृतजीवी – ये पौधों और जन्तुओं से प्राप्त कार्बनिक यौगिकों को ग्रहण कर जीवित रहते हैं।

(b) परजीवी – ये घटक अपने भोजन और जीवन-निर्वाह के लिए अन्य जीवित जीवों पर निर्भर रहते हैं।

(c) प्राणी समभोजी – ये घटक अपने मुख द्वारा भोजन ग्रहण करते हैं। जैसे- मानव और बड़े जीव

(B) कार्यशीलता के आधार पर-

 कार्यशीलता के आधार पर जैविक घटकों को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

(i) उत्पादक-

● वे जैविक घटक जो अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया और मृदा के जड़ों से स्वयं भोजन बनाते हैं।

● इन्हें प्राथमिक उपभोक्ता भी कहा जाता है। जैसे- पेड़-पौधे, जलीय जीव इत्यादि।

 ये सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

(ii) उपभोक्ता-

● वे जैविक घटक जो अपना भोजन उत्पादकों द्वारा प्राप्त करते है अर्थात् ये स्वपोषी पादपों पर निर्मित परपोषी जीव होते हैं।

 उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं-

(a) प्राथमिक उपभोक्ता 

 ये अपना भोजन पौधों की पत्तियों तथा अन्य उत्पादों से प्राप्त करते हैं। इन्हें प्राथमिक उपभोक्ता भी कहा जाता है। ये मांसाहारी होते हैं।

जैसे – हरे पेड़-पौधे – ये प्रकाश संश्लेषण के द्वारा अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं।

 नील हरित शैवाल (साइनो बैक्टीरिया), शैवाल, सुनहरा शैवाल आदि।

 सल्फर बैक्टीरिया, आयरन बैक्टीरिया उत्पादक तो है पर वह प्रकाश संश्लेषण नहीं करते हैं।

 अमरबेल/कस्कूटा – उत्पादक की श्रेणी में नहीं आता है और प्रकाश संश्लेषण भी नहीं करता है।

जैसे- खरगोश, हरिण, बकरी, गाय, ऊँट, कीड़े, जलीय-जीव इत्यादि।

(b) द्वितीयक उपभोक्ता – ये अपना भोजन अन्य शाकाहारी जन्तुओं को मारकर प्राप्त करते हैं। इन्हें द्वितीयक उपभोक्ता कहते हैं। जैसे- यूटेकुलिरिस तथा नैफ्थींज घटपर्णी पादप है, जो द्वितीयक उपभोक्ता में आते हैं, जो नाइट्रोजन आपूर्ति के लिए सूक्ष्म जीवों को अपने अंदर ले लेते हैं। शेर, मेंढक, बिल्ली इत्यादि।

(c) तृतीयक उपभोक्ता – ये अपना भोजन शाकाहारी व मांसाहारी दोनों से प्राप्त करते हैं। इन्हें तृतीयक उपभोक्ता कहते हैं।

उदाहरण:- उच्च मांसाहारी, सर्वाहारी जैसे – शेर, बाघ, तेंदुआ, बाज, मानव आदि।

(iii) अपघटक-

● ये अपना भोजन मृत पादपों एवं जन्तुओं के जैविक पदार्थों को सडा़-गला कर प्राप्त करते हैं तथा जैविक तत्त्वों को पुन: व्यवस्थित करते हैं। इसमें मुख्यत: सूक्ष्म जीवाणु तथा कवक शामिल होते हैं।

● अपघटक को अपमार्जक या मृतोपजीवी भी कहा जाता हैं।

● इस प्रकार के जीव अपना भोजन मृत जीवों से प्राप्त करते हैं।

● ये अपना भोजन जटिल कार्बनिक पदार्थों से ग्रहण करते हैं।

● ये जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में तोड़ते हैं।

● ये खनिजों के पुनर्चक्रण में सहायता करते हैं, इसलिए इन्हें पारिस्थितिकी तंत्र के मित्र कहा जाता है, जैसे– जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, हेल्मन्थीज, बबूल, नीम, पीपल

(2) अजैविक घटक :-

 अजैविक घटक तीन प्रकार के होते हैं-

(i) जलवायविक तत्त्व सूर्य का प्रकाश, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, जलवाष्प इत्यादि।

(ii) कार्बनिक पदार्थ इन्हें निर्माणक पदार्थ कहा जाता है। जैसे-प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, तरल पदार्थ इत्यादि।

(iii) अकार्बनिक पदार्थ ये पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य पदार्थों को चक्रण प्रदान करते हैं और जीवों को शक्ति प्रदान करते हैं। जैसे- कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, खनिज लवण व मृदा इत्यादि।

पारिस्थितिकीय उत्पादकता :-

● किसी क्षेत्र में स्वपोषित प्राथमिक उत्पादक ( हरे पेड़-पौधे) द्वारा प्रति इकाई सतह में प्रति इकाई समय में सकल संचित ऊर्जा की मात्रा को पारिस्थितिकीय उत्पादकता कहते हैं।

● प्राथमिक उत्पादकता का मापन दो रूपों में किया जाता है –

1. सकल प्राथमिक उत्पादन

2. शुद्ध प्राथमिक उत्पादन

● प्राथमिक उत्पादक (हरे पेड़-पौधे) द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा को सकल प्राथमिक उत्पादन कहते हैं। पोषण स्तर तक में श्वसन द्वारा खर्च के बाद संचित सकल ऊर्जा को शुद्ध प्राथमिक उत्पादन कहते हैं। उत्पादकता को ग्राम/मीटर2 में मापा जाता है।

इकोटोन :-

● वह स्थान जहाँ पर दो पारितंत्र एक-दूसरे को अति-व्यापित करते हैं उस स्थान को इकोटोन कहा जाता है।

● इकोटोन में जैव विविधता ज्यादा रहती है।

● इकोटोन वाले क्षेत्र में जैव विविधता सर्वाधिक होती हैं, जिसे कोर प्रभाव कहा जाता है।

Niche (निके) :-

● किसी जीव का आवास तथा उसकी क्रियात्मक भूमिका मिलकर निके बनाते हैं।

● यह सार्वत्रिक होता है।

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