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रंजक (dye’s in hindi) , रंजक व वर्णक (dyes and pigment) , वर्ण मूलक , वर्ण वर्धक , रंजको के लक्षण (characteristics of dyes)
रंजक (dye’s) : वे कार्बनिक पदार्थ जिनका उपयोग खाद्य पदार्थ , लकड़ी , धातु व कपड़ो को रंग प्रदान करने के लिए प्रयुक्त किये जाते है तथा जो प्रकाश , अम्ल , क्षार या साबुन के प्रति स्थायी होते है , रंजक कहलाते है।
प्रकृति में नील को नीले रंग के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
प्रकृति में एलिजरिन को लाल रंग के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
रंजक व वर्णक (dyes and pigment)
रंजक | वर्णक |
1. ये जल में विलेय होते है। | ये जल में अविलेय होते है। |
2. यह विलायको में विलेय होते है। | यह विलायको में अविलेय होते है। |
3. यह प्रकाश से फीके पड़ जाते है। | इन पर प्रकाश का प्रभाव नहीं होता है। |
4. यह उत्पादन के प्रति निम्न प्रतिरोधक होते है। | यह उत्पाद के प्रति उच्च प्रतिरोधक होते है। |
5. यह कम स्थायी होते है। | यह स्थायी होते है। |
6. यह संख्या में अधिक है। | यह संख्या में कम है। |
7. यह कार्बनिक यौगिक है। | यह अकार्बनिक यौगिक है तथा भारी जहरीली धातु के बने होते है। |
8. यह ज्वलनशील है। | यह अज्वलनशील है। |
रंजको के लक्षण (characteristics of dyes)
सन 1876 में O.N. witt द्वारा रंजको के निम्न लक्षण दिए –
(a) वर्ण मूलक की उपस्थिति
(b) वर्ण वर्धक की उपस्थिति
(a) वर्ण मूलक : chromophore का शाब्दिक अर्थ निम्न है –
chromophore – chroma तथा phore
chroma = रंग
phore = धारण करना
परिभाषा : वे क्रियात्मक समूह जो किसी कार्बनिक यौगिक में उपस्थित होने पर उसे रंग प्रदान करते है , वर्ण मूलक कहलाते है।
(b) वर्ण वर्धक : auxo chromo दो शब्दों से मिलकर बना है।
auxo + chromo
वे समूह जो किसी कार्बनिक यौगिक में उपस्थित होने पर उसके रंग को बढ़ा देते है , वर्ण वर्धक कहलाते है।
रंजको का वर्गीकरण (classification of die’s)
इन्हें निम्न भागो में बाँटा गया है –
(1) संरचना के आधार पर
(2) उपयोग के आधार पर
(1) संरचना के आधार पर : यह निम्न प्रकार के होते है –
(i) नाइट्रो और नाइट्रोसो रंजक : यह फिनोल के बने व्युत्पन्न होते है।
इनमे वर्ण मूलक -NO2 व -NO होता है।
इनमे वर्णवर्धक -OH होता है।
उदाहरण : पिक्रिक अम्ल , martius yellow , deep green
(ii) एजो रंजक : यह एजो यौगिको के बने व्युत्पन्न होते है।
इनमे वर्णमूलक एजो समूह होते है।
इनमे वर्ण वर्धक -NH2 , -NR2 होता है।
उदाहरण : एनिलिन yellow , मिथाइल ऑरेंज , सूडान-I
(iii) डाई फेनिल मेथेन रंजक : यह मीथेन के बने व्युत्पन्न होते है।
इनमे वर्ण मूलक क्वीनोइड होता है।
इनमे वर्ण वर्धक -NH2 , -NR2 होते है।
उदाहरण : ऑरामीन-O
(iv) ट्राई फेनिल मेथेन रंजक : इनमे वर्ण वर्धक -NH2 , -NR2 होते है।
उदाहरण : मैलाकाइट ग्रीन , क्रिस्टल बैंगनी
(v) इंडिगो रंजक : इनमे इंडीगोइड वलय पायी जाती है।
इसमें वर्ण मूलक एल्किल व CO होता है।
इसमें वर्ण वर्धक -NH2 , -NHR , -NR2 होते है।
उदाहरण : नील
(vi) थैनिल व जेंथिन रंजक : इनमे जेन्थीन वलय पाई जाती है।
इनमे वर्णमूलक -CO होता है।
इनमे वर्णवर्धक -OH होता है।
ये फिनोल की संघनन अभिक्रिया के बने उत्पाद होते है।
उदाहरण : फिनाल्फ़थेलिन , फलुओरोसीन
(vii) एन्थ्रासीन व एन्थ्रा क्विनोन रंजक : इनमे एन्थ्राक्विनोन वलय पायी जाती है।
इनमे वर्ण मूलक क्विनोइड होता है।
इनमे वर्ण वर्धक -OH होता है।
उदाहरण : एलिजरिन।
(viii) विषम चक्रीय रंजक : इसमें विषम चक्रीय वलय पायी जाती है।
उदाहरण : एक्रोफलेरिन
(2) उपयोग के आधार पर
इन्हें निम्न भागो में बाँटा गया है –
(i) सीधे रंजक : इन्हें गर्म जल में मिलाकर रेशो को रंगने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
इनके द्वारा सिल्क , वूल , नाइलोन , पोलिस्टर , रेयोन , कॉटन आदि रेशो को रंगने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
उदाहरण : मार्टियास पिला , कांगोलाल
(ii) अम्लीय रंजक : इन्हें अम्लीय रंजको के नाम से भी जाना जाता है।
इन्हें अम्लीय माध्यम में प्रयुक्त किया जाता है , यह सल्फोनिक अम्लो के बने लवण होते है।
इनके द्वारा सिल्क , वूल , नाइलिन रेशो को रंगा जाता है।
उदाहरण : नारंगी-I
(iii) क्षारीय रंजक : इन्हें क्षारीय रंजको के नाम से भी जाना जाता है।
इन्हें क्षारीय माध्यम में प्रयुक्त किया जाता है , इनके द्वारा रयोन व पॉलीस्टर रेशो को रंगा जाता है।
उदाहरण : एनिलिन पिला।
(iv) प्रकिर्णित रंजक : इन रंजको को निलम्बन विलयन बनाकर रेशो पर प्रयुक्त किया जाता है।
इनके द्वारा नायलॉन व पॉलिएस्टर रेशो का रंगा जाता है।
उदाहरण : एन्थ्रा क्युनोन रंजक
(v) रेशा क्रियाशील रंजक : यह रंजक रेशो के एमिनो व हाइड्रोक्सी समूह के साथ रासायनिक बंध द्वारा जुड़कर रेशो को रंगते है।
इनमे रासायनिक बंध बनते है।
यह अनुत्क्रमणीय रंजक होते है।
यह स्थायी रंजक होते है।
यह गहरे रंगों के रूप में जाने जाते है।
उदाहरण : प्रोसनलाल
(vi) अन्तर्निहित रंजक : इन रंजको को रेशो पर ही संश्लेषित किया जाता है।
इन रंजको को बर्फ रंजक के नाम से भी जाना जाता है।
उदाहरण : पैरालाल रंजक , एनिलिन काला
(vii) बैट रंजक / कुण्ड रंजक : यह सबसे प्राचीनतम रंजक है।
यह जल में आसानी से विलेय होता है।
यह अपचयत अवस्था में जल में विलेय होता है परन्तु रंगहीन होता है।
यह ऑक्सीजन अवस्था में जल में अविलेय होता है तथा रंगहीन होता है।
उदाहरण : इंडिगो की जल में विलेय व अविलेय संरचना
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