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चालित सरल आवर्ती दोलक क्या है , Driven Simple Harmonic Oscillator in hindi सूत्र परिभाषा

चालित सरल आवर्ती दोलक (Driven Simple Harmonic Oscillator) : जब किसी अवमन्दित दोलक पर बाह्य आवर्ती बल F= F0sin ωt लगाया जाता है तो दोलक प्रारम्भ में अपनी स्वाभाविक आवृत्ति ω0 , से दोलन करता है परन्तु कुछ समय पश्चात् ω0 आवृत्ति के दोलन समाप्त हो जाते हैं और तत्पश्चात दोलक अवमन्दक बलों (damping forces) के विरूद्ध किये जाने वाले कार्य के कारण होने वाली ऊर्जा की हानि की पूर्ति बाह्य परिवर्ती बल से करता है और प्रणोदित आवृत्ति (driven frequency) ω से दोलन करने लगता है। प्रणोदित या चालित दोलक का आयाम तथा ऊर्जा दोनों समय के सापेक्ष नियत रहते हैं। इस प्रकार के दोलक को चालित या प्रणोदित दोलक (driven or forced oscillator) कहते हैं। प्रणोदित दोलक पर तीन प्रकार के बल लगते हैं –

  • प्रत्यानयन बल FR = -k x

जहाँ k बल नियतांक है और x विस्थापन है |

  • अवमन्दन बल , Fd = – λ(dx/dt)

जहाँ λ अवमन्दन नियतांक और dx/dt दोलक का वेग है |

  • बाह्य प्रत्यावर्ती बल Fe = F0Sin ωt

जहाँ ω बाह्य बल की आवृति है |

अत: दोलक पर कार्यशील परिणामी बल

F = FR + FD + Fe

न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से m द्रव्यमान के दोलक के गति का समीकरण लिखा जा सकता है –

m d2x/dt2 = -kx – λ dx/dt + F0sinwt

अथवा

d2x/dt2 + λ/m dx/dt + kx/m = F0/m sinwt

माना λ/m = 2r , k/m = w02 और F0/m = f0

d2x/dt2 + 2r dx/dt + w02x = f0 sinwt

(2) समीकरण (2) प्रणोदित दोलक का अवकल समीकरण है। प्रारम्भ में दोलक को विस्थापित करने पर वह न्यून-अवमन्दित दोलक की भांति गति करता है जिस पर बाह्य प्रत्यावर्ती बल आरोपित है। ये दोलन इस प्रकार मांडुलित दोलन होते हैं तथा दोलक के क्षणिक (transient) व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं। कुछ समय पश्चात् क्षीणक व्यवहार अवमन्दित हो जाता है और दोलक की स्थायी अवस्था (steady state) प्राप्त हो जाती है। अतः उपरोक्त समीकरण (2) के दो हल होते हैं, क्षणिक व स्थाई तथा पूर्ण हल इनके अध्यारोपण से प्राप्त होता है । क्षणिक अवस्था (transient state) के व्यवहार की व्याख्या पिछले अध्याय के खण्ड (1.6) में कर चुके हैं। अब हम स्थाई हल प्राप्त करते हैं। स्थाई अवस्था (steady state) में प्रणोदित दोलक बाह्य बल की आवृत्ति से ही दोलन करता है। अतः इस अवस्था में माना समीकरण (2) का हल है –

x = x0 Sin (wt – ϕ)

dx/dt = w x0 cos(wt – ϕ)

और d2x/dt2 = -w2x0 sin(wt – ϕ)

उपरोक्त मान समीकरण 2 में रखने पर

= f0sin (wt – ϕ) cos ϕ + f0 cos(wt – ϕ) sin ϕ

उपरोक्त समीकरण समय t के सब मानों के लिए यथार्थ है अर्थात जब cos(wt – ϕ) = 0 हो अथवा sin(wt – ϕ) हो , अन्य रूप में sin(wt- ϕ) और cos(wt- ϕ) के गुणांकों की तुलना करने पर ,

(-w2 + w02)x0 = f0 cos ϕ

और

2rwx0 = f0sin ϕ

समीकरण 5 में समीकरण 4 का भाग देने पर

tan ϕ = 2rw/(w02 –w2)

समीकरण 5 और समीकरण 4 का वर्ग करके जोड़ने पर

X0 = f0/[(w02 –w2)2 + 4r2w2]1/2

समीकरण 6 और समीकरण 7 को समीकरण 3 में रखने पर प्रणोदित दोलक के स्थायी अवस्था में विस्थापन का समीकरण प्राप्त होता है –

X = f0/[(w02 –w2)2 + 4r2w2]1/2   sin{wt – tan-1 2rw/(w02 –w2)}

उपरोक्त समीकरण से यह स्पष्ट है कि स्थायी अवस्था में प्रणोदित दोलक अपनी स्वभाविक आवृत्ति w0 से दोलन नहीं करता है जबकि चालित बल की आवृत्ति w से दोलन करता है और दोलक का आयाम समय के सापेक्ष स्थिर रहता है | इसके अतिरिक्त हम देखते है कि दोलक का विस्थापन आरोपित बल से ϕ कला कोण से पीछे रहता है |

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