JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

dprk country in hindi डी. पी. आर. के. उत्तर कोरिया देश की जानकारी north korea information in hindi

north korea information in hindi dprk country in hindi डी. पी. आर. के. उत्तर कोरिया देश की जानकारी दीजिये नियम और विदेश निति क्या है ? full form कौनसे देश को कहते है ?

डी. पी. आर. के. (उत्तर कोरिया) के विदेश सम्बन्ध
डी. पी. आर. के. की विदेश नीति तथा सम्बन्ध भी कोरिया युद्ध से प्रभावित हुए । बाद में अंतर्राष्ट्रीय साम्यवाद में बढते हुए विवाद, चीन अमरीका के आर.ओ.के. के कूटनीतिक सम्बन्धों की स्थापना, समाजवादी खेमें के विघटन ने डी.पी.आर.के. के विदेशी सम्बन्धों को प्रभावित किया ।

डी.पी.आर.के. तथा चीन के सम्बन्ध
चीन कोरिया सम्बन्ध बहुत पुराना है । कोरियाई समाज, सभ्यता तथा संस्कृति पर चीन का स्पष्ट प्रभाव है। बौद्ध धर्म जो इस प्रायद्वीप का प्रधान धर्म है, चीन से ही यहां आया। मध्य युग में कोरियाई असैनिक सेवा चीनी व्यवस्था का अनुकरण थी। कोरिया ने 13वीं सदी में छपाई की तकनीक भी चीन से आयात की। दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध बढ़ते रहे हैं। जब कोरिया जापानी शासन से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था, चीन ने उन राष्ट्रवादी कोरीयाईयों को शरण दी जिन्हें देश छोड़ने के लिए बाध्य किया गया था। कोरियाई राष्ट्रवादियों ने चीनी लोगों के क्रांतिकारी संघर्ष में भी हिस्सा लिया । उन लोगों ने छापामार युद्ध का अनुभव हासिल किया। कोरिया युद्ध के समय चीनी तथा कोरियाई लोगों के ऐतिहासिक बन्धन की जांच हुई तथा यह बंधन और मजबूत हुआ । 1950-53 तक चले कोरिया युद्ध में जब अमरीका के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र की सेना ने डी.पी.आर.के. के पक्ष में हस्तक्षेप किया तब चीन ने करीब एक लाख अनुभवी सैनिकों को भेजा जिसने आक्रमणकारियों को निष्कासित कर सम्पूर्ण उत्तरी कोरिया को आजाद करा लिया ।

चीनी लोगों के खून बहने से जिस दोस्ताना सम्बन्ध की स्थापना हुई वह निर्बाध रूप से बना हुआ है । 1970 के दशक में जब चीन अमरीका सम्बन्धों में सुधार हुए तो इस बात की प्रबल संभावना थी कि डी.पी.आर.के. के तथा चीन सम्बन्ध खराब होंगे। परन्तु समय बीतने पर ऐसा लगा कि ऐसी अटकलें बेबुनियाद थीं । चीनी नेता हुआ गुओ फेंग तथा डेंग सियाओ पींग ने 1978 मे डी.पी.आर.के. की यात्रा की तथा उत्तर कोरिया के विकास के लिए हर संभव सहायता देने का वचन दिया । 1982 में डेंग सियाओ पींग तथा झाओ जियांग (तत्कालीन प्रधानमंत्री) ने उत्तरी कोरिया की यात्रा की । 1987 तथा 1989 में उत्तरी कोरिया के सबसे बड़े नेता कीन जतल सुंग ने चीन की यात्रा की । यात्राओं के इस विनिमय से सम्बन्ध और मजबूत हुए । चीन डी.पी.आर.के. का एक प्रमुख साझेदार रहा है । दोनों देशों के बीच अब तक का व्यापार वस्तु विनिमय के सिद्धांत पर हुआ है । 1991 में धीरे-धीरे वस्तु विनिमय से नकद अदायगी व्यवस्था पर आधारित व्यापार की ओर बढ़ने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए । अभी भी व्यापार का एक बहुत बड़ा प्रतिशत वस्तु विनिमय के आधार पर होता है ।

डी.पी.आर.के. तथा रूस (भूतपूर्व सोवियत संघ) के सम्बन्ध
1945 के अगस्त के आरंभ में जापानी प्रतिरोध को दबाने के बाद सोवियत संघ की सेना ने कोरिया में प्रवेश किया। इसने संघर्षरत राष्ट्रवादियों को कोरिया की स्वतंत्र सरकार बनाने में समर्थन दिया। राष्ट्रवादियों ने 1947 में कोरिया के जनवादी गणतंत्र की स्थापना की। सोवियत संघ ने इस सरकार को मान्यता दे दी तथा रूसी सैनिकों की वापसी का वचन दिया। 1948 में रूसी सैनिकों को कोरिया से बुला लिया गया। कोरियाई प्रायद्वीप से लौटते समय सोवियत संघ ने कोरिया की सेना खड़ी करने में मदद की तथा अपने शस्त्र छोड़ दिये। कोरियाई युद्ध में सोवियत संघ ने डी.पी.आर.के. की मदद की। कोरियाई युद्ध के बाद सोवियत संघ ने युद्ध से क्षतिग्रस्त डी.पी.आर.के. के पुनर्निर्माण के लिये भारी सहायता दी । 1961 में दोनों देशों ने शांति मित्रता तथा सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किये।

अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी आंदोलन में विभाजन तथा चीन और सोवियत संघ के बीच बढ़ते हुए विवाद से सोवियत संघ तथा डी.पी.आर.के. सम्बन्ध में कुछ धब्बे विकसित हुए। ये धब्बे तुरंत हटा दिये गये तथा 1977 में दोनों देशों ने आर्थिक तथा तकनीकी सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर किये। समझौते की शर्तों के अनुसार सोवियत संघ ने डी.पी.आर.के. को बृहत पैमाने पर सहायता दी। 1979 में अफगान मुद्दे पर कुछ गलतफहमी पुनः पैदा हुई। उत्तर कोरिया तथा चीन ने अफगान गृह युद्ध में सोवियत संघ के शामिल होने को समर्थन नहीं दिया। सोवियत संघ ने डी.पी.आर.के. को पैट्रोलियम देना बन्द कर दिया। 1984 में सोवियत संघ के एक स्तरीय प्रतिनिधिमंडल की डी.पी.आर.के. की यात्रा से सम्बन्ध पुनः सुधरे। इस प्रतिनिधि मंडल ने किम-डल-सुंग के जन्मदिन समारोह में भी भाग लिया । मई 1984 में किम-डल-सुंग ने सोवियत संघ तथा अन्य पूर्व यूरोपीय देशों की यात्रा की। सोवियत संघ ने आर्थिक तथा सैन्य सहायता देना पुनः आरंभ किया तथा व्यापार सम्बन्धों को विस्तृत करने पर सहमत हुआ । 1985 में सोवियत संघ ने डी.पी.आर.के. की प्रतिरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए विमान भेजे। सहयोग के बढ़ते हुए क्षेत्र के साथ ही दोनों के बीच उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों का आना जाना जारी रहा ।

1986 मे डी.पी.आर.के. ने सोवियत संघ को अपना नाम्पो बन्दरगाह इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। अक्टूबर 1986 में किम-इल-सुग सोवियत संघ की राजकीय यात्रा पर गये । तथापि सोवियत संघ के विघटन के पश्चात सम्बन्धों में भारी परिर्वतन हुए । 1990 के वर्षों में दक्षिण कोरिया ने रूस तथा पूर्वी यूरोप के अन्य देशों के साथ अपने सम्बन्धों में सुधार किया । रूस ने वस्तु विनिमय पर आधारित व्यापार को खत्म कर तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार दर पर परिवर्तनीय मुद्रा में व्यापार को चुना । रूस ने 1961 में की गई शांति, मित्रता तथा सहयोग की संधि को भी 1993 में समाप्त कर दिया । इन सब बातों ने पूर्ववर्ती सोवियत संघ के उत्तराधिकारी राज्यों जिसमें रूस भी शामिल है, के साथ डी.पी.आर.के. के सम्बन्ध में तनाव उत्पन्न कर दिया । अब रूस अप्रत्यक्ष रूप से परमाणु अप्रसार संधि पर अमरीकी विचार का समर्थन करता है !

डी.पी.आर.के. तथा जापान के सम्बन्ध
जापान तथा डी.पी.आर.के. के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध नहीं रहे हैं परन्तु व्यापार तथा आर्थिक सम्बन्ध चलते रहे हैं । तथापि ये निवधि नहीं रहे हैं । कभी-कभी चिड़चिड़ाहट आ जाती थी । 1982 में रंगून में एक बम विस्फोट की घटना घटी। इस विस्फोट में यात्रा पर आये दक्षिण कोरिया के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य मारे गये। डी.पी.आर.के. पर बम विस्फोट करने का संदेह किया गया। इस घटना के बाद जापान ने कुछ प्रतिबंध लगाये जिन्हें तुरंत हटा लिया गया। 1987 में पुनः डी.पी.आर.के. पर दक्षिण कोरिया के विमान को गिराने तथा नष्ट करने का दोष लगाया गया। डी.पी.आर.के. को एक आंतकवादी राष्ट्र होने के लिए दोषी ठहराया गया। जापान ने पुनः प्रतिबंध लगाये। तथापि 1990 में सम्बन्धों में स्पष्ट सुधार हुए। जापानी उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए उत्तर कोरिया का दौरा किया। इस प्रतिनिधिमंडल ने कोरिया में जापान के शासन के समय औपनिवेशिक आक्रमण तथा शोषण के लिए जापान सरकार की तरफ से माफी मांगी। यह हरजाना देने पर भी सहमत हुआ। दोनों देशों के बीच व्यापार में वृद्धि हुई तथा 1992 में यह 530 करोड़ अमरीकी डालर तक पहुंच गया। जापानी पूंजी निवेशक उत्तरी कोरिया में पूंजी लगाने के लिए आगे बढ़े। परंतु हाल में जापान के उत्तरी कोरिया के दावे के अनुसार हरजाना देने से इन्कार करने के सम्बन्ध में पुनः कुछ बाधायें उत्पन्न हुई हैं। इसका एक कारण डी.पी.आर.के. के द्वारा जमा विदेशी ऋण का भुगतान नहीं किया जाना भी है। जापानी पूंजी निवेशकों ने तब तक पूंजी निवेश करने से इन्कार किया है जब तक पूर्ण कूटनीतिक सम्बन्ध की स्थापना नही हो जाती तथा विदेशी ऋण की समस्या का समाधान नहीं हो जाता। परमाणु अप्रसार संधि के मामले ने डी.पी.आर.के. तथा जापान के सम्बन्धों को और भी तनावग्रस्त किया है ।

डी.पी.आर.के. तथा अमरीका में सम्बन्ध
चीन-अमरीका सम्बन्धों के सामान्य होने के बाद डी.पी.आर.के. तथा अमरीका सम्बन्ध भी सधरने लगे। 1974 में डी.पी.आर.के. ने अमरीका के समक्ष 1953 के युद्ध विराम की जगह शांति संधि का प्रस्ताव रखा। इसने दक्षिण कोरिया से विदेशी सेना की वापसी के लिए भी निवेदन किया। डी.पी.आर.के. के प्रस्ताव के उत्तर में अमरीका के राज्य सचिव हेनरी किसींजर ने कई चरणों में कोरियाई समस्या के समाधान की सलाह दी। डी.पी.आर.के. ने शांति संधि के अपने प्रस्ताव को दुहराया। साथ ही साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने के कदम भी उठाए। तथापि सम्बन्धों में बहुत सुधार नहीं आया। 1977 में एक अस्वभाविक घटना घटी। एक निहत्थे अमरीकी हेलीकाप्टर को डी.पी.आर.के. के द्वारा विसोयिकृत क्षेत्र में मार गिराया गया। इस घटना ने दोनों देशों को पूर्ण लड़ाई के कगार पर धकेल दिया। परंतु अमरीकी नेता कार्टर तथा डी.पी.आर.के. के नेता किम-इल-सुंग के तात्कालिक हस्तक्षेप से स्थिति संभाल ली गई। उत्तरी कोरिया ने मृतक तथा घायल चालक मंडल को दक्षिण कोरिया में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों को सौंप दिया । यद्यपि शांति की पुनर्स्थापना हुई पर तनाव बना रहा। 1982 मे रंगून की घटना तथा 1987 में हवाई जहाज वाली घटना को लेकर पुनः संकट आया। अमरीका ने डी.पी.आर.के. को उन देशों की सूची में डाल दिया जो आंतकवाद का समर्थन करते थे। उस समय चल रहे कूटनीतिक सम्पर्क पर भी सीमा लगा दी गई। हाल में परमाणु अप्रसार संधि के मुद्दे पर सम्बन्ध और खराब हुए हैं।

 डी.पी.आर.के. तथा अन्य देश
उत्तरी कोरिया ने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए ठोस कदम उठाये। इसने गुट निरपेक्ष आंदोलन में भाग लेने के लिए आवेदन किया। 1976 में आंदोलन के मंत्रिमंडल. स्तर की बैठक ने इसके आवेदन को मंजूर कर लिया। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के साथ अपने सम्बन्ध को मजबूत करने के लिए किम-इल-सुंग ने मौरीटानिया बलगारिया तथा यूगोस्लावियां आदि देशों की यात्रा की। 1976 में यह पाया गया कि कुछ उत्तर कोरियाई कूटनीतिज्ञों ने अपने कूटनीतिक विशेषाधिकारों का दुरुपयोग कर नशीले पदार्थों का व्यापार कर रहे थे। इन घटनाओं ने स्केन्डनेवियाइ देशों से इसके सम्बन्धों को खराब कर दिया। डेनमार्क, स्वीडन, नार्वे तथा रूस (तत्कालिन सोवियत संघ) से बहुत से कूटनीतिज्ञों को निष्कासित कर दिया गया। ईराक ईरान युद्ध में उत्तरी कोरिया ने ईरान का पक्ष लिया। इसके परिणामस्वरूप ईराक सीरीया तथा लीबीया ने उत्तरी कोरिया से अपने कूटनीतिक सम्बन्ध तोड़ लिये। रूस के साथ भी सम्बन्ध कमजोर हो गये। क्योंकि उत्तर कोरिया ने रूस की अफगान नीति का समर्थन नहीं किया। 1982 में उत्तर कोरिया को बहुत बड़ा कूटनीतिक झटका लगा। अक्टूबर 9 को दक्षिण कोरिया का एक प्रतिनिधिमंडल जो बर्मा की यात्रा पर था रंगून में एक बम विस्फोट में मारा गया। बम विस्फोट की जिम्मेदारी उत्तर कोरिया पर लादी गई । इसके तुरंत बाद बहुत से दक्षिण पूर्व एशिया के देशों ने जिसमें बर्मा भी शामिल था, उत्तर कोरिया से कूटनीतिक सम्बन्ध तोड़ लिये। पाकिस्तान ने प्रस्तावित कूटनीतिक सम्बन्ध निलंबित कर दिया। बेल्जियम ने व्यापार समझौता करने से इन्कार कर दिया। जुलाई में उत्तर कोरिया के नेतृत्व की संरचना में महत्वपूर्ण परिर्वतन हुआ। उत्तर कोरिया ने अपने देश को विदेशी पूंजी निवेश का स्वागत किया। यह कदम आर्थिक संकट पर काबू पाने के लिए लिया गया हो सकता है । 1970 के दशक में डी.पी.आर.के. ने बहुत से देशों के साथ नये व्यापार तथा आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर किया। ये समझौते उत्तर कोरिया के औद्योगिक आधार को विकसित करने के उद्देश्य से किये गये।

हाल में डी.पी.आर.के. की दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी छवि रंगून वाली घटना से बहुत धूमिल हो गई थी। 1982 में तोडे कूटनीतिक सम्बन्ध को थाईलैंड ने पुनः स्थापित कर लिया है। थाईलैंड इन्डोनेशिया, मलेशिया आदि देशों के साथ व्यापार समझौता किया गया है।
बोध प्रश्न 3
टिप्पणी: 1) प्रत्येक प्रश्न के नीचे दिये हुए स्थान को अपने उत्तर के लिए उपयोग करें ।
2) इकाई के अन्त में दिये गये उत्तरों से अपने उत्तर की जांच करें ।
1) डी.पी.आर.के. के साथ चीन के सम्बन्धों का वर्णन करें ।
2) डी.पी.आर.के. के रूस के साथ सम्बन्ध पर. एक टिप्पणी लिखें ।
3) अमरीका, जापान तथा अन्य देशों के साथ डी.पी.आर.के. के सम्बन्ध में तनाव उत्पन्न करने वाली कौन सी समस्यायें है ?

बोध प्रश्न 3 उत्तर
1) 1) ऐतिहासिक विरासत
2) कोरिया युद्ध में डी.पी.आर.के. के पक्ष में चीन का हस्तक्षेप।
3) भूगौलिक सामिप्य
4) सैद्धान्तिक साम्य
2) 1) चीन-रूस विवाद से डी. पी. आर. के. तथा सोवियत संघ सम्बन्ध में समस्यायें उत्पन्न हुई।
2) सोवियत संघ ने उत्तर कोरिया को आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सहायता की।
3) भूतपूर्व सोवियत संघ के विघटन के कारण वर्तमान में सम्बन्ध उतने मित्रवत नहीं है
3) 1) उत्तर कोरिया के राजनयिकों का चावल व्यापार से सम्बद्ध अपकीर्ति में उलझना।
2) अमरीकी सैनिक हैलिकाप्टर को गिराकर नष्ट करना
3) रंगून की घटना
4) 1987 के हवाई जहाज का मामला।
5) ऋण चुकाने में उत्तर कोरिया की असमर्थता।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

2 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

6 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

6 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

6 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now