double circulation in hindi , दोहरा परिसंचरण किसे कहते हैं व्याख्या कीजिए हृदय स्पंदन (Heart beat)

जानिये double circulation in hindi , दोहरा परिसंचरण किसे कहते हैं व्याख्या कीजिए हृदय स्पंदन (Heart beat) ?

दोहरा परिसंचरण (Double circulation)

इसे सर्वप्रथम विलियम हार्वे (William Harvey) न प्रस्तुत किया। स्तनधारियों के हृदय में निलय का पूर्ण विभाजन हो जाने के कारण दायें तथा बायें भाग (आलिन्द – निलय) पृथक्-पृथक् रक्त मांगों का कार्य करते हैं। दाँया भाग सम्पूर्ण शरीर से अशुद्ध रक्त प्राप्त करके पल्मोनरी धमनियों द्वारा शुद्धिकरण हेतु फेफड़ों में भिजवाता है तथा बाँया भाग फेफड़ों से शुद्ध रक्त प्राप्त कर उसे पर शरीर में पम्प करता है अर्थात् हृदय का दाँया भाग पल्मोनरी हृदय (systemic heart) की भाँति कार्य करता है। इस प्रकार स्तनियों के हृदय में रुधिर दाँयें आलिन्द में आता है दूसरी बार यही रुधिर शुद्धिकरण के पश्चात् बाँयें आलिन्द में प्रवेश करता है। इसी को दोहरा परिसंचरण कहते हैं। हृदय में रुधिर के परिसंचरण को इस प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है।

हृदय स्पंदन (Heart beat)

हृदय में नियमित स्पंदन का गुण होता है। हृदय का यह गुण भ्रूणीय अवस्था में भी पाया जाता है जबकि तंत्रिका उत्तक का इससे कोई सम्बन्ध भी नहीं होता है। इसे प्रकार हम कह सकते हैं कि हृदय में संकुचन का प्रारम्भ मायोजैनिक (myogenic ) प्रकार होता है। मनुष्य का हृदय का सामान्यतया । मिनिट में 42 बार, 1 दिन में 10,000 बार तथा । साल में लगभग 40,000,000 स्पंदन करता है। किसी स्वस्थ मनुष्य का हृदय 70 वर्ष की आयु तक 2.80,00,00.000 बार धड़क लेता है तथा कम से कम 1.55,000.00 लीटर रुधिर पम्प कर लेता है। उपरोक्त आँकड़ों से यदि हृदय के द्वारा किये गये कार्य को आँका जाये तो यह 10,160 कि.ग्रा. वजन को 16 कि.मी. ऊँचाई को उठाने को बराबर होता है। इससे पता चलता है कि एक छोटा अंग होने के बावजुद भी यह काफी भारी कार्य करने में सक्षम होता है।

प्रत्येक हृदय स्पंदन या धड़कन में एक प्रकुंचन या सिस्टोल (systole ) तथा एक शिथिलन या डायस्टोल होता (diastole) है। हृदय की धड़कन की दर अलग-अलग प्राणियों में अलग-अलग होती है। यही नहीं, एक ही प्राणी में विभिन्न परिस्थितियों में हृदय धड़कन की दर भिन्न होती है। प्रायः यह देखा जाता है कि छोटे जन्तुओं की हृदय धड़कन की बड़े जन्तुओ की अपेक्षा अधिक होती है। हाथी में 20-25, ऊँट में 25-30 घोड़े में 32-37 तथा छछूंदर में 800 प्रति मिनिट हृदय ध ड़कन देखी गई है। एक ही जन्तु में हृदय की धड़कने की दर आयु (age) शरीर की स्थिति (body posture) एव अन्य कई कारकों पर निर्भर करती है।

जन्म के समय मानव के हृदय धड़कन की दर 130 प्रति मिनिट एव वर्ष की आयु में लगभग 100 प्रति मिनिट 10 वर्ष की आयु में लगभग 95 प्रति मिनिट तथा वयस्कों में यही लगभग 72 प्रति मिनिट होती है। शरीर की स्थिति से भी हृदय धड़कन की दर में अन्तर आ जाता है! सोते समय हृदय की धड़कन की दर 60 से 70 प्रति मिनट; जागते समय 65 से 75 प्रति मिनिट विश्राम की स्थिति में 50 से 60 प्रति मिनिट व्यायाम ( exercise) के समय 85 से 100 प्रति मिनिट होती है।

हृदय की धड़कन का नियंत्रण (Control of heart beat rate)

एक ही जन्तु में हृदय-धड़कन की दर के कम (decrease) या अधिक (increase) होने अनेक कारक जिम्मीर होते हैं। सामान्य से हृदय की धड़कन कम होने को ब्रेडीकार्डिया (bradycardia) तथा अधिक होने को टेकीकार्डिया (tachycardia) कहा जाता है। हृदय की धड़कन को नियंत्रित करने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित है-

( 1 ) तंत्रिका नियंत्रिण (Nervous control)

हृदय गति का मुख्य तंत्रिकीय नियंत्रक केन्द्र, मेडूला ऑबलोंगेटा (medulla oblongate) होता है। इसमें हृदय का एक हृदयी केन्द्र (cardic centre) पाया जाता है। क्रियान्तमक रूप से इस केन्द्र के दो भाग होते हैं जो हृदयी त्वरक (cradio accelerator) एवं हृदयी – निरोधक (cardiac inhibitor) कहलाते हैं। हृदयी त्वरक भाग अनुकम्पी या सिम्पैथैटिक तंत्रिक (sympathetic nerve) द्वारा तथा हृदयी निरोधक भाग वेगस तंत्रिका ( vagus nerve) द्वारा अपने आवेगों को शिरा आलिन्द घुण्डी या पेसमेकर (S.A. node or pacemaker) को भेजते है । हृदयी त्वरक भाग के आवेग हृदय स्पंदन गति (heart beat rate) को तीव्र करते हैं जबकि हृदयी त्वरक भाग के आवेग इसे मन्द करते हैं। हृदय स्पन्दन के ये केन्द्र स्वयं उन आवेगों से भी प्रभावित होते है तो मस्तिष्क के उच्चतर केन्द्रों Vaay (higher centres) से या शरीर के अन्य भागों से प्रेषित होते हैं। इस प्रकार भूख ( appetite ), डर (fear) या अन्य मानसिक वृत्तियाँ हृदय स्पंदन पर गहरा प्रभाव डालती है।

(2) रासायनिक एवं हारमोनल नियंत्रण (Chemical and hormonal control) कुछ रासायनिक पदार्थ एवं हॉरमोन भी हृदय दर को प्रभावित करते हैं। कुछ पदार्थ जैसे एड्रेनेलिन (adrenaline) स्पेिथिन ((sympathin ) तथा बॉयरोक्सिन (thyroxine) आदि हृदय स्पंदन की दर को बढ़ाने हैं एड्रेनलिन को एपिनेफ्रीन (epinephrine) भी कहते हैं जो एड्रीनल ग्रंथि के मेड्यूला भाग से स्त्रातिव होता है। हृदयी त्वरक तंत्रिका के उत्प्रेरिक होने से सिम्पेथिन का प्रावण होता है। एड्रेनलिन एवं सिम्पेथिन सीधे पेसमेकर को प्रभावित कर हृदय की दर थॉयरोक्सिन कोशिकाओं में ऑक्सीकरण या उपापचय की वृद्धि करता है जिससे उचित समंजन के लिये हृदय में तेजी से प्रकुचन होता है। इस प्रकार यह हृदय पर अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करता हृदयी निरोधक तंत्रिका के उत्तेजन पर एसिटिलकोलीन (acetylcholine) नामक पदार्थ निकलता जो हृदय स्पंदन की दर को मंद करता है।

इनके अतिरिक्त रुधिर में ऑक्सीजन एवं कार्य डाई ऑक्साइड की सान्द्रता भी हृदय स्पंदन की दर को प्रभावित करती है। रुधिर में ऑक्सीजन का दबाव कम होने में हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। जबकि CO, का दबाव बढ़ने से हृदय की धड़कन मंदन हो जाती है। इसी प्रकार रुधिर की अम्लता (acidity) स्पंदन दर को तेज करती है और क्षारीयता (alkalinty ) इसे कम करती है। हृदय-दर को प्रभावित करने वाले अन्य पदार्थों में अंसुलिन, पीयूष काय के कुछ हार्मोन एवं लिंग- हार्मोन (sex hormones) भी सम्मिलित हैं।

(3) भौतिक नियंत्रण (Physical control)

सामान्यतः शरीर की सभी क्रियाऐं ऊष्मा (heat) से तीव्र होती है तथा कम माप (low temperature) पर मन्द होती है। शारीरिक ताप के बढ़ने पर हृदय स्पंदन की दर बढ़ जाती है। बुखार से पीड़ित व्यक्ति की हृदय- दर इसी कारण अधिक होती है। शरीर के ताप में 1°C वृद्धि होने पर लगभग 10 हृदय-स्पंदन बढ़ जाती है। सीने पर हृदय एवं आप-पास के भाग पर किसी ठण्डे पदार्थ के उपयोग से हृदय स्पंदन दर कम होती है।

रक्त दाब (Blood pressure)

जब रक्त, रुधिर वाहिनियों में बहता है तो यह इनकी दीवारों पर एक बल (force) लगाता है। इस सब को रुधिर के द्वारा वाहिनियों की दीवारों पर लगाया जाता है, रक्त दाब (blood pressure) कहते हैं। रक्त दाब को सर्वप्रथम एक अंग्रेज वैज्ञानिक स्टेफन हाल्स (Stephen flities) नं 1733 में मापा था। उन्होंने केरोटिड धमनी के रक्त दाब को घोड़ी (mare) में मापा था जो 28.85 से. मी. था। उस समय पारे वाला रक्त दाब मापन यंत्र नहीं खोजा गया था। मनुष्य की धमनियों का रक्त सर्वप्रथम 1856 में वेवर ( Vaivre) ने लुडविंग के मरकरी मेनोमीटर (Ludwig’s mercury manometer) मापा था। आजकल रक्त दाब को स्फिगमोमेनोमीटर (Sphygymomanomester) यंत्र द्वारा जाता है जिसकी खोज स्कीपीओन रीवा रोक्की ( Scipion Riva Rocci) ने 1896 में की थी (चित्र 3.18)। इस तंत्र की द्वारा रक्त दाब मापने यह पता चलता है कि धमनी में रक्त दाब का मान हवा से दाब के बराबर होता है। रक्त दाब का मापन रुधिर द्वारा पारे से भरी नली को ऊँचाई तक निश्चित किसी बैठे हुए एक रोगी के दाहिनी भुजा (right arm) की धमनी को पिचकाने (collapse) में तिना बाह्य दाब (external pressure) आवश्यक होता है, उसे देखकर रक्त बाद निकाला जाता है। इसके लिये भुजा के चारों ओर एक वायुरोधी (air tight) रबड़ कफ (rubbercuft) बांधा जाता है तथा हवा द्वारा फुला कर भुजा पर दबाव डाला जाता है।

रबड़ कफ को भुजा पर बाहु धमनी (brachial artery) के चारों ओर बाँधा जाता है। हवा का दबाव तब तक डाला जाता है जब तक यह धमनी में उपस्थित रक्त दाब से अधिक होता है ये दूसरे शब्दों में यह धमनी को पिचकाना है। इस समय स्टेथोस्कोप ( stethoscope) द्वारा बाहु धमनी पर कोई भी स्पंदन (pulse) नहीं सुनाई देती है। धीरे-धीरे हैण्ड पम्प के पास उपस्थित घुण्डी की घुमाकर हवा को बाहर निकाला जाता है। जिससे हवा का दबाव तब तक गिरता है जब तक वह धमनी में उपस्थित रक्त दाब के बराबर नहीं हो जाता है। इस समय स्टेथोस्कोप द्वारा एक विशेष प्रकार की ध्वनि सुनाई देती है जो फ्रेंचन या सिस्टोलिक दाब को प्रदर्शितर करती है। यह दाब निलयों के संकुचन के समय रुधिर द्वारा धमनी की दीवार पर उत्पन्न दबाव के बराबर होता है। इसके पश्चात् यह ध्वनि लगातार बढ़कर पुनः कम हो जाती है तथा अन्त में पूरी तरह सुनाई देना बन्द हो जाती है। ध्वनि का सुनाई देना बन्द होने से पूर्ण का पाठ्यांक (readings) अनुशिथिलन के समय उत्पन्न डायस्टोलिक दाब (diastolic pressure) प्रदर्शित करता है । यह निलयों के अनुशिथिलन की स्थिि होती है। सिस्टोलिक दाँये-बाँये निलय के द्वारा उत्पन्न बल को दर्शाता है। जबकि डायस्टोलिक दाब रुधिर वाहिनियों की प्रतिरोधकता की दर्शाता है। चिकित्सा की दृष्टि से डायस्टोलिक दाब सिस्टोलिक दाब सिस्टोलिक दाब की अपेक्ष अधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि रुधिर वाहिनियों की धमनियों में प्रकुचन (systole ) के समय उत्पन्न धमनीय रुधिर दाब 120 mm Hg तथा शिथिलन (diastole ) के समय 80mm Hg होता है। इस रक्त दाब को 120/80 लिखकर प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ पर यह ध्यान रखना होगा कि रक्त दाब प्रत्येक स्पंदन पर ताल-बद्ध (rhythmic) परिवर्तन दर्शाया जाता है। सिस्टोलिक एवं डायस्टोलिक दाब के मध्य के अन्तर को स्पंदन दाब कहा (pulse pressure) जाता है। इसका मान लगभग 40mm Hg (12-80) होता है। पल्मोनरी पथ (pulmonary circuit) में रक्त दाब काफी कम होता है। यह प्रकुचन के समय 27-30mm Hg तथा शिथिलन के समय 10-15mm Hg होता है। परिसंचरण तंत्र में रक्त दाब महाधमनी (aorta ) से शिराओं (veins) तक धीरे-धीरे कम होता है अर्थात जैसे-जैसे रक्त हृदय दूर जाता है रक्त दाब कम होता रहता है क्योंकि सभी कोशिकाओं (capillaries) का कुल क्रास सेक्शन का क्षेत्रफल हृदय से निकलने वाली धमनियों के क्रास सेक्शन क्षेत्रफल से अधिक होता है। विभिन्न वाहिनियों में उपस्थित सिस्टोलिक रक्त दाब को तालिका 15 में दर्शाया गया है। केशिकाओं में गुजरने के पश्चात् रक्त दाब अवशिष्ट दाब (residual pressure) अत्यन्त कम होता है फिर भी यह शिरीय (venous pressrue) रक्त को हृदय में वापिस पहुंचाने में सहायता करता है।

रक्त दाब प्राणी की आयु के अनुसार बदलता रहता है । सिस्टोलिक रक्त दाब की 100 में प्राणी की आयु को जोड़कर आंका जा सकता है। इस प्रकार 20 वर्ष की आयु पर सामान्य सिस्टोलिक दाब 120 mm Hg तथा 30 वर्ष की आयु पर 130mm Hg होता है । यद्यपि दाब में इस प्रकार की बढ़ोतरी अधिक आयु पर नहीं देखी जाती है तथा सामान्य सिस्टोलिक दाब 145 से 150mm Hg से अधिक नहीं होता है। वयस्क स्त्री में समान उम्र के पुरुष की अपेक्षा रक्त दाब लगभग 10 से 20 mm Hg कम होता है । निद्रा की स्थिति में रक्त दाब लगभग 20-30mm Hg कम हो जाता है। रक्त दाब की निम्नलिखित दो असामान्य ( abnormal) स्थितियाँ देखी जाती है –

(i) उच्च रक्त दाब (High blood pressue)

सामान्य सिस्टोलिक दाब को नियमित रखना अच्छे स्वास्थ के लिये अति आवश्यक होता है। 150mm Hg से_अधिक रक्त दाब होने पर हाइपरटेंशन (hypertension) या अधिक रक्तदा (High blood pressure) कहा जाता है व्यायाम ( exercise) की स्थिति में ही रक्त दाब 150 या इससे अधिक हो सकता है। परन्तु यह अंशकालीन होता है। उच्च दाब की स्थिति में हमेशा ही अधिक रक्त दाब रहता है हाइपरटेंशन के दाब प्रमुख कारण होते हैं-

  • धमनियों की आन्तरिक सतह पर कोलेस्टिरॉल ( chloesterol) एवं कैल्शियम (Ca4+ ) का संग्रहण, इसे धमनीकाठिन्य ( arteriosclerosis) कहते हैं।

(b) रुधिर में अधिक सोडियम क्लोराइड (NaCl) की मात्रा। इसके अतिरिक्त अन्य कारक जैसे नेफ्ररॉइटिस (वृक्क विकार), मोरापा (objesity), धूम्रपान ( smoking) भौतिक मानसिक दबाव (physical and metal stress) एवं अनुवंशिकी (heredity) कारक भी उच्च दाब की स्थिति अर्थात् हाइपरटेंशन उत्पन्न करते हैं।

(ii) कम रक्त दाब (Low blood pressure)

वयस्क मनुष्य में सिस्टोलिक रक्त दाब का मान सामान्य से कम होना हाइपोटेंशन (hypotension) या निम्न रक्त दाब (low blood pressure) कहलाता है। सिस्टोलिक 100mm Hg से कम होने पर रुधिर के संचरण की गति में कमी आती है तथा 80mm Hg से भी कम होने पर मृत्यु हो सकती है। निम्न रक्त दाब रुधिर में लवण स सोडियम क्लोराइड (NaCl) की कम उपस्थिति के कारण भी होता है जिससे परासरण दाब ( osmotic pressure) का मान कम हो जाता है जो रक्त दाब को भी कम करता है। यह थॉयराइड की अल्प सक्रियता (hypothyrodism) एवं एडीसन नामक रोग (Addision’s disease) के समय भी देखा जाता है। निम्न दाब का नियमन पर्याप्त विश्राम एवं उचित व्यायाम के द्वारा किया जा सकता है।