JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: indian

dogger bank incident 1904 in hindi डोगर बैंक की घटना क्या है , इतिहास बताइए

जाने dogger bank incident 1904 in hindi डोगर बैंक की घटना क्या है , इतिहास बताइए ?

प्रश्न: डोगर बैंक की घटना
उत्तर: रूस-जापान युद्ध (1904-05) के समय उत्तरी सागर में डोगर बैंक (dogger bank) नामक स्थान पर रूस की सेना ने जापानी जहाज
समझकर इंग्लैण्ड के जहाजों पर आक्रमण किया। इंग्लैण्ड ने इसका कड़ा विरोध किया। इंग्लैण्ड ने रूस के विरुद्ध सेना भेजी। परन्तु फ्रांस के विदेशी मंत्री डेलकासे ने 1907 में दोनों के मध्य मैत्री पूर्ण समझौता करवा दिया। इसे डोगर बैंक की घटना कहते है। इसके अनुसार –
(i) फारस की खाड़ी में इंग्लैण्ड व रूस के बीच मतभेद समाप्त कर दिया गया।
(ii) इसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि उत्तरी फारस में रूस का अधिकार रहेगा। दक्षिणी फारस में इंग्लैण्ड का प्रभाव रहेगा।
(iii) रूस व इंग्लैण्ड-तिब्बत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
(iv) रूस ने अफगानिस्तान में विस्तारवादी नीति का त्याग किया।

भारतीय संस्कृति में शिक्षा परम्परा

अभी तक आपने संस्कृति के विभिन्न पहलुओं जैसे कला, स्थापत्य, धर्म एवं दर्शन इत्यादि के बारे में पढ़ा होगा। हमारी संस्कृति का एक दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है, शिक्षा। लेकिन शिक्षा क्या है? आप कह सकते हैं कि इसका तात्पर्य पुस्तकों से या स्कूल में कुछ सीखना है। यह आंशिक सत्य है। शिक्षा एक अधिगम अनुभव है। अधिगम किसी के जीवन का एक निरंतर पहलू होता है। हालांकि, कुछ अन्य अधिगम अनुभव रैंडम या अकस्मात् प्रकृति के हो सकते हैं, जबकि एक शैक्षिक अनुभव प्रायः पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होता है जिसका उद्देश्य व्यक्ति में कुछ खास पूर्व-निर्धारित व्यावहारिक परिवर्तनों को प्रभावित करना होता है। लेकिन आपको कभी इस बात पर आश्चर्य हुआ है कि शिक्षा किस प्रकार संस्कृति से जुड़ी है? संस्कृति पूर्व की पीढ़ियों के संगृहीत अनुभवों एवं उपलब्धियों का योग है जिसे बाद की पीढ़ियां समाज के सदस्य होने के नाते विरासत के रूप में प्राप्त करती हैं। अनुभवों एवं उपलब्धियों की इस एकत्रित मात्रा के हस्तांतरण की संरचनाबद्ध प्रक्रिया को शिक्षा कहा जा सकता है। इसलिए, शिक्षा न केवल सांस्कृतिक आस्थाओं एवं विचारों को हस्तांतरित करने का एक माध्यम है, अपितु यह सांस्कृतिक आस्थाओं से आकार भी लेता है क्योंकि यह संस्कृति का एक उत्पाद है। इस प्रकार, शिक्षा पद्धति में परिवर्तन संस्कृति में परिवर्तन के साथ-साथ होता है। इस अध्याय में हम शिक्षा पद्धति के उद्गम एवं उद्भव को जागेंगे जो भारत में बेहद प्राचीन समय से मौजूद हैं क्योंकि समाज अपने सदस्यों को शिक्षित करना अपना पहला दायित्व समझता है।
प्राचीन काल में शिक्षा
प्राचीन भारत में शिक्षा की प्रकृति को समझने के क्रम में, हमें एक ओर उस समय के लोगों की वास्तविक प्रकृति पर विचार करना होगा, तो दूसरी ओर उनके पर्यावरण को समझना होगा जिसमें उनकी आनुवंशिक क्षमताओं का सक्रिय विकास हुआ।
प्राचीन भारत में रहने वाले लोग एक नहीं अपितु कई जातियों के थे। समय-समय पर विभिन्न जगहों से लोग भारत आए और भारतीय समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ गए। मानवशास्त्रीय परीक्षण प्राचीन भारत में चार मुख्य जातियों द्रविड़, आर्य, सीथियन और मंगोल की पड़ताल करता है। चार मुख्य जाति प्रकारों को एक-दूसरे से अलग नहीं पाया गया अपितु उन सभी का बड़े पैमाने पर आपस में संलयन हुआ। लेकिन आर्यों ने देश के भाग्य के नियंत्रण में सबसे बड़ा योगदान दिया। इसका मतलब यह नहीं कि अनार्यों ने भारतीय जीवन मूल्यों में कोई योगदान नहीं किया। उनसे सम्पर्क ने हिंदू सभ्यता को विभिन्न रूपों से समृद्ध किया।
द्रविड़ धर्ममीमांसक नहीं थे लेकिन वे कल्पनाशीलता, संगीत एवं निर्माण कला में माहिर थे। उन्होंने ललित कलाओं में उत्कृष्टता हासिल की। आर्यों के विशुद्ध आत्म ज्ञान/आध्यात्मिक ज्ञान ने द्रविड़ के भावात्मक प्रकृति और सौंदर्य सृजन की शक्ति के साथ मिलकर एक अद्भुत यौगिक का निर्माण किया जो न तो आर्य थी और न ही अनार्य लेकिन हिंदू थी। इस प्रकार, प्राचीन भारतीय शिक्षा के आध्यात्मिक एवं नैतिक आदर्श आवश्यक रूप से आर्यों के मस्तिष्क की उपज थे, जबकि इसके व्यावसायिक एवं सौंदर्यबोध पहलू मुख्य रूप से द्रविड़ों के भौतिक एवं भावनात्मक प्रकृति से प्रेरित थे।
भारत में इंडो-आर्यों के प्रवेश के पश्चात्, उनकी भौतिक चाहत ने उन्हें अपने शत्रुओं के खिलाफ लंबे समय तक जीवंत बना, रखा। इसी प्रकार यूरोप की लंबी ठंडी शीतकाल, बंजर भूमि और छोटे देशों के बीच हितों को लेकर मतभेद ने आर्यों में ‘स्व-रक्षण की मूल इच्छा’ को विकसित किया, और उन्हें तुलनात्मक रूप से अधिक सक्रिय, आक्रामक एवं उद्यमी बना, रखा। भारत की अजीबोगरीब भौगोलिक दशाओं ने अपने लोगों को अधिक स्वामित्व, आत्मलीन एवं दार्शनिक बनाया।
दो देशों की पृथक् भौगोलिक दशाओं ने न केवल उनकी प्रकृति को प्रभावित किया अपितु उनके संस्थानों, विज्ञानों, कलाओं एवं साहित्य को भी प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त ऊंचे पर्वतों एवं समुद्रों, जिन्होंने देश को बाहरी विश्व से अलग-थलग कर दिया, ने न केवल भारतीय सभ्यता का मौलिक एवं अद्वितीय तौर पर लालन-पालन किया अपितु हिंदू संस्थानों को, शैक्षिक एवं अन्य तौर पर, व्यापक रूप से गहन एवं सूक्ष्म बनाया जिससे वह बाद के आक्रांताओं के परिवर्तनशील प्रभाव का सामना कर सका।
सामाजिक पर्यावरण का परीक्षण करके हम पाते हैं कि जातीय व्यवस्था हिंदू समाज की एक अत्यधिक पृथक् विशेषता है। यह आम तौर पर जागा जाता है कि ऋग्वैदिक काल में जाति व्यवस्था भली-भांति विकसित नहीं हुई थी, शायद, यह पूरी तरह से विद्यमान थी। समय के साथ-साथ बढ़ती आवश्यकताओं एवं समाज की जटिलता के साथ विभिन्नता एक आवश्यकता बन गई। इसी कारण, प्लेटो जैसे इंडो-आर्य ने श्रम विभाजन के सिद्धांत का बौद्धिकतापूर्वक अनुप्रयोग किया और धीरे-धीरे उनके व्यवसाय एवं आंतरिक गुणों के अनुसार वे चार जातियों में विभाजित हो गए। इस प्रकार आधुनिक विश्व के साथ तदाम्य रखते हुए, प्राचीन भारत में किसी व्यक्ति की वैयक्तिकता के विकास का पर्याप्त क्षेत्र था।
वास्तव में, मात्र जाति व्यवस्था के द्वारा आत्मज्ञान हुआ जिसने सामाजिक सेवा के साथ प्रासंगिकता कायम की। वस्तुतः प्राचीन समय में विशेष प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति एवं उपयुक्तता को खोजा जागे का विशेष ध्यान रखा जाता था।
धार्मिक माहौल का प्राचीन भारतीय शिक्षा पर अत्यधिक शक्तिशाली प्रभाव पड़ा। इंडो-आर्य जब सिंधु घाटी में बसे तो वह तात्कालिक प्राकृतिक बलों से प्रभावित हुए। उन्होंने प्रकृति में सुंदर एवं प्रभावशाली चीजों को चुन लिया और उन्हें अपने क्षेत्र को नियंत्रित करने वाली शक्तियों के तौर पर देखा और अपने कल्याण के लिए इनकी स्तुति की। हिंदू शुरुआती समय से ही मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति ऋणी के तौर पर जन्म लेता है, जैसाकि उसका पहला दायित्व संतों के प्रति है जो उसके धर्म एवं संस्कृति के संस्थापक थे( दूसरे ईश्वर के प्रति, और तीसरे अपने माता-पिता के प्रति ऋणी है। पहला ऋण वह वेदों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करके चुकाता है; दूसरा ऋण वह गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करके विभिन्न प्रकार के त्याग करके चुकाता है; और तीसरा ऋण वह लोगों की सेवा करके तथा बच्चों का पिता बनकर चुकाता है। इसलिए, प्रारंभिक हिंदू शिक्षा को एक जीवन पर्यन्त प्रक्रिया मानते हैं और जीवन को चार चरणों में विभाजित करते हैं जिसमें प्रत्येक चरण के अपने विशेष कर्तव्य हैं।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

13 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

13 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now