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घर्षण सूचकांक किसे कहते हैं ? Dissection Index in hindi how to calculate formula Slaucitajs

Dissection Index in hindi how to calculate formula Slaucitajs घर्षण सूचकांक किसे कहते हैं ? 

घर्षण सूचकांक (Dissection Index) – सर्वप्रथम 1936 ई० में Slaucitajs महोदय ने घर्षण-सूचकांक बेसिन के प्रक्षेपित क्षेत्रफल एवं वास्तविक क्षेत्रफल के सम्बन्धों के आधार पर तैयार किया था, जिसको निम्न फार्मूला से व्यक्त किया जा सकता है –
DI = RA-PA/RA × 100
RA = वास्तविक क्षेत्रफल (Real Area)
PA = प्रक्षेपित क्षेत्रफल (Projected Area)
डी स्मेट महोदय ने इसको संशोधित करके इस प्रकार रखा –
घर्षण सूचकांक – RA -(PA × Average Slope )/ Volume
डॉवनीर (1959) ने निम्न प्रकार से घर्षण सूचकांक ज्ञात किया है –
घर्षण सूचकांक = DI = Ù/AR
जबकि, Ù = सापेक्ष उच्चावच (Relative Relief)
AR  = निरक्षेप उच्चावच (Absolute Relief)
अब इसका अध्ययन प्रवाह बेसिन की इकाइयों (1 किलोमीटर × 1 किलोमीटर या 2 किलोमीटर × 2 किलोमीटर) में बाँट कर घर्षण सूचकांक डॉवनीर के आधार पर निकाल जाता है तथा इससे प्राप्त मान का वर्गीकरण किया जाता है।

N. B. .
AR  = Mean Absolute Relief
Ù = Mean Relative Relie
fS = Mean Slope Angle
D = Mean Dissection Index
DD = Mean äainage Density
F = Mean Strearm Frequency
T = Mean äainage Texture
5. जलमार्ग-ढाल – नदी के जलमार्ग ढाल के अध्ययन-हेतु सर्वप्रथम नदी के जलमार्ग ढाल में एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी तक लम्बवत् ऊँचाई में कितने किलोमीटर अथवा मीटर प्रतिकिलोमीटर की क्षैतिज गिरावट आती है, का निरीक्षण करते हैं। प्रत्येक श्रेणी का ढाल कई बार में (Sa, Sb, SC, Sd….) ज्ञात करके इसके बाद ढाल का अनुपात ज्ञात किया जाता है।
ढाल-अनुपात = Rs = Su/Su-1
ढाल अनुपात सदैव 1 से कम आता है। घाटी के पाश्र्वर्ती ढाल ज्ञात करने के लिए जलविभाजक से लेकर जलमार्ग तक कई खण्डों में दाल ज्ञात करके उसका औसत ले लिया जाता है। किसी प्रवाह-बेसिन
I. Prasad, Gayatri, 1984 : A Geomorphological study of Chhindwara Platcau, Unpublished D.k~ Phil, thesis, Allahabad University, Allahabad.
का पार्श्व-ढाल ज्ञात करने के लिए 50-60 स्थानों का औसत निकालना चाहिए। तभी शुद्धता का बोध हो सकता है। सारणी में उन्ड्री नदी जो ऐम्ब नदी की सहायक नदी है, का जलमार्ग ढाल दिया गया है।
इसके अलावा प्रतिशत उच्चतादर्शी वक्र, परिच्छेदिका, सापेक्ष उच्चावच आदि का अध्ययन किया जाता है।
अपरदन-चक्र की अवस्थाओं के आकारमितिक निर्धारक
स्थलरूपों के विकास में अवस्थाओं की संकल्पना की विवेचना सर्वप्रथम डेविस महोदय ने किया था, परन्तु इनकी संकल्पना गुणात्मक थी। अब अवस्थाओं का निर्धारण मात्रात्मक हो गया है। आज मात्रात्मक प्रयाग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, परन्तु इसके द्वारा कभी-कभी भ्रांतियाँ भी उत्पन्न हो जाती हैं। इस समय इन भ्रांतियों को दूर करने के लिये क्षेत्र-पर्यवेक्षण आवश्यक हो जाता है। चक्रिलता सूचकांक (Circularity Index), वक्रता सूचकांक (Sinuosity Index), औसत-ढाल (Average Slope), सापेक्षिक विचन (Relative relief) , उच्चतादर्शी समाकल (Hypsometric integrals) आदि के द्वारा तरुणावस्या, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था का गणितीय निर्धारण करते हैं। इन अवस्थाओं के निर्धारण के लिये हम बेलन सन (टोन्स नदी की सहायक) तथा छिन्दवाड़ा पठार का उदाहरण प्रस्तुत करेंगे।
(i) चक्रिलता सूचकांक (Circulartiy Index) – प्रारम्भिक अवस्था में, नदी अपना निम्नवर्ती अपरदन करती है। इस अवस्था में नदी अ आकार की घाटी का निर्माण करती है, जिस कारण जलविभाजकों का नाश नहीं हो पाता है। घाटी के पावर्ती ढाल, खड़े ढाल वाले होते हैं। अपरदन की क्रिया निरन्तर पलता रहती है, अवस्थाओं के परिवर्तन के साथ-साथ अपरदन के स्वभाव में भी परिवर्तन हो जाता है,
1. प्रसाद, गायत्री 1984, ए जिओयॉर्कोलॉजिकल स्टडी ऑफ छिन्दवाड़ा प्लेटो।

अर्थात् प्रौढ़ावस्था में पार्श्ववर्ती अपरदन सक्रिय हो जाता है तथा जलविभाजक पीछे हटने लगता है। प्रवाह-बेसिन के क्षेत्रफल में विस्तार होने लगता है। बृद्धावस्था में निम्नवती अपरदन स्थगित हो जाता है तथा पार्श्ववर्ती अपरदन अधिक सक्रिय रहता है। जलविभाजक इस अवस्था में लगभग समाप्त हो जाता है। ऐसी दशा में प्रवाह-बेसिन का क्षेत्रफल काफी विस्तृत हो जाता है। अवस्थाओं का निर्धारण चक्रिलता सूचकांक के आधार किया जाता है। Su = Hu/Lu
चक्रिलता सूचकांक अवस्था
(%)
<30 तरुणावस्था
30.60 प्रौढ़ावस्था
> 60 बृद्धावस्था

बेलन-बेसिन का चक्रिकता सूचकांक 35 प्रतिशत है। इस आधार पर यह बेसिन प्रौढ़ावस्था में होती है, परन्तु गलत है, क्योंकि बेलन-बेसिन अपने विकास की अन्तिम अवस्था में है। यहाँ पर भू-वैज्ञानिक संरचना महत्वपूर्ण नियंत्रक कारक के रूप में है। इस बेसिन के दोनों तरफ पर्वत श्रेणियाँ हैं जो इसके विकास में बाधक हैं।
छिन्दवाड़ा पठार की 19 बेसिन का चक्रिकता सूचकांक निकाला गया है, जिनमें तरुणावस्था (< 30%) में जाम (ii) (27%), कोलार (17%) में आती हैं, परन्तु सम्पूर्ण पठार घर्षित, अपनी विकास की वृद्धावस्था में है। यदि इनकी भू-गर्भिक संरचना का विश्लेषण किया जाय तो स्पष्ट होता है कि ये तंग पहाड़ियों के मध्य से प्रवाहित हुई हैं, जिस कारण ये अपना विकास नहीं कर पाई हैं। प्रौढ़ावस्था (30.60%), के अन्तर्गत खुरपरा (55%), खारकी (49%), पोरिया (49%), गंगा (57%), जाम (i) (33%), खेकड़ा (53%), सैंपना (55%), चन्दभग (57%), सोवना (54%), कार (47%), खेरी (47%) तथा नाग (34%), है। यदि इनका भूगर्भिक विश्लेषण किया जाय तो स्पष्ट होता है कि इन नदियों का उद्गम स्थल पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिस कारण पूर्णरूपेण विकास नहीं हो पाया है। शेष नदियाँ खरखरिया, उन्ड्री, धोबिया घाट, होरिया तथा मदार का चक्रिकता सूचकांक >60% है, अतः ये सभी अपनी विकास की अन्तिम अवस्था में हैं।
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि चक्रिकता सूचकांक पूर्णरूपेण अवस्थाओं के निर्धारण में समर्थ नहीं है।
(ii) वक्रता सूचकांक (Sinuosity index) – नदी तरुणावस्था में तंग घाटी का निर्माण करती है। इस समय नदियों का मार्ग लगभग सीधा होता है। प्रौढ़ावस्था में नदी अपने घाटी का विस्तार कर है। कहीं-कहीं पर बाढ़ के मैदान का निर्माण हो जाता है, जिस कारण मार्ग वक्राकार हो जाता है। वृद्वावस्था में विसर्पित घाटी का निर्माण करती है। इस आधार पर अवस्थाओं का निर्धारण किया जाता है-
वक्रता सूचकांक अवस्था
<1.0 तरुणावस्था
1.0-1.5 प्रौढ़ावस्था
> 1.5 बृद्धावस्था

छिन्दवाड़ा पठार की 19 प्रवाह-बेसिन में खरखरिया. उन्ड्री. होरिया, गंगा, जाम (i) सैपना, कार तथा कोलार का वक्रता सूचकांक >1.5 है, तथा धोबिया घाट, खारकी. पोरिया, खेकड़ा, मदार जाम (ii) खार्की तथा नाग का वक्रता सूचकांक 1.30-1.50 के मध्य है। अर्थात् प्रौढ़ावस्था के द्योतक है।
(iii) घर्षण सूचकांक (Dissection Index) – इसके आधार पर घर्षण का स्वभाव एवं अपरदन की सक्रियता का आंकलन किया जाता है। प्रारम्भ में, अर्थात् तरुणावस्था में घर्षण सूचकांक अधिक होता है का अवस्थाओं के बढ़ने पर घर्षण सूचकांक घटता जाता है। निम्नलिखित आधार पर इसका आँकलन किया जाता है –
घर्षण सूचकांक अवस्था
<0.1 बृद्धावस्था
(<10%)
0.1-0.3 प्रौढ़ावस्था
(10%-30%)
>0.30 तरुणावस्था
(>30%)

छिन्दवाड़ा पठार की घर्षण सूची 0.0.1 के मध्य 72.70% क्षेत्रफल में है। 0.1 से 0.3 के मध्य 23.10% क्षेत्रफल में है तथा >0.3 में 1.2% क्षेत्रफल में पायी जाती है। अर्थात् 72.70% क्षेत्रफल पर निम्न सूचकांक है जो कि बृद्धावस्था का द्योतक है तथा 26.10% क्षेत्रफल पर निम्न घर्षण सूचकांक है जो कि बृद्धावस्था का द्योतक है तथा 26.10% क्षेत्रफल पर मध्यम घर्षण सूचकांक एवं 1.2% क्षेत्रफल पर उच्च घर्षण सूचकांक है। अतः छिन्दवाड़ा पठार पूर्णरूपेण बृद्धावस्था का द्योतक है जो कि सत्यता के काफी निकट है।
बेलन बेसिन के 80.3% भाग पर निम्न घर्षण सचकांक तथा 6% भाग पर उच्च घर्षण सचकांक पाया जाता है। अतः स्पष्ट है कि बेलन बेसिन अपने विकास की अन्तिम अवस्था में है।
(iv) औसत ढाल (Average slope) – अपरदन-चक्र की तरुणावस्था में लम्बवत् अपरदन के कारण तीन ढाल का निर्माण होता है, लेकिन अवस्थाओं के बढ़ते ही जल विभाजकों का विनाश होता जाता है जिस कारण ढाल का कोण कम होता जाता है। इस आधार पर निम्न ढंग से अवस्था का निर्धारण करते है-
चक्रिलता सूचकांक अवस्था
(Oo)
0.5 जीर्णावस्था
5.10 प्रौढ़ावस्था
10.20 अन्तिम तरूणवस्था
20.30 मध्य तरूणवस्था
> 30 प्रारम्भिक तरूणवस्था
छिन्दवाड़ा पठार का औसत ढाल 0.5 के बीच 76.20% क्षेत्रफल पर, 5.10 के बीच 14.45% क्षेत्रफल तथा झ10 में 9.45% क्षेत्रफल पर विस्तृत है। अर्थात् छिन्दवाड़ा पठार अपने विकास की अन्तिम अवस्था में है। बेलन बेसिन में 76.8% क्षेत्रफल पर निम्न ढाल (8.5) विद्यमान है, अतः अपने विकास की अन्तिम अवस्था में है।
(अ) सापेक्षिक उद्यावच (Relative Reliel)- अपरदन-चक्र की प्रारम्भिक अवस्था में उच्च सापेक्षिक उच्चावचन का निर्माण होता है, ज्यों-ज्यों अवस्थायें बढ़ती जाती हैं, सापेक्षिक उच्चावचन घटता जाता है। इसको निम्न ढंग से स्पष्ट किया जाता है –
सपेक्षिक उच्चावच (मीटर) अवस्था
0.60 बृद्धावस्था
60.120 प्रौढ़ावस्था
> 120 तरुणावस्था
छिन्दवाड़ा पठार का सापेक्षिक उच्चावचन 0.60मीटर के बीच 77.65% क्षेत्रफल में विद्यमान है। 60.120 मीटर के बीच 19.15% क्षेत्रफल पर तथा 3.20 प्रतिशत प्रतिशत क्षेत्रफल पर >120 मीटर सापेक्ष उच्चावचन पाया जाता है। अतः यह विकास की अन्तिम अवस्था में है। बेलन-बेसिन 68.6% भाग पर निम्न सापेक्षिक उच्चावचन विद्यमान है। अर्थात् यह अवस्थाओं के निर्धारण में उपयुक्त है।
(vi) उच्चतादर्शी समाकल (Hypsometric integrals) – इसके द्वारा किसी क्षेत्र के बिना अपरदित भाग का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। तरुणावस्था में अधिक तथा अवस्थाओं के विकास के साथ-साथ घटता जाता है। इसको निम्न ढंग से निकाला जाता है-
उच्चतादर्शी समाकल अवस्था
>60% तरुणावस्था
60-30% प्रौढ़ावस्था
< 30% बृद्धावस्था

छिन्दवाड़ा पठार का उच्चतादर्शी समाकल 19.7% तथा बेलन बेसिन का उच्चतादर्शी समाकलन 24.10% है। ये दोनों अपनी विकास की अन्तिम अवस्था में हैं।
उपर्युक्त आकारमितिक विश्लेषण के आधार पर स्पष्ट होता है कि अधिकांश आँकड़े अवस्थाओं का बोध कराने में समर्थ हैं।

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