परिसंचरण सम्बन्धित रोग , विद्युत हृदय लेख , ECG के उपयोग , द्विपरिसंचरण diseases of circulatory system

(diseases of circulatory system in hindi) परिसंचरण सम्बन्धित रोग :

  1. संधिवातीय रोग : इसे संधिवातिय ज्वर भी कहते है , इस रोग के दौरान ह्रदय कपाट शतिग्रस्त हो जाते है , जिससे ह्रदय में रुधिर का आवागमन अनियमित हो जाता है | इस रोग का उपचार शल्यक्रिया द्वारा कपाटों का प्रतिस्थापन कर किया जा सकता है |
  2. लयबद्धता : यह रोग आवेग संचरण में दोष के कारण होता है , इस रोग के दौरान ह्रदय कोष्ठों का स्पंदन क्रमबद्ध नहीं होता है , इस रोग का उपचार कृत्रिम गति निर्धारक लगाकर किया जा सकता है |
  3. ह्रदय आघात : यह रोग कोरोनरी धमनी में रुधिर का थक्का बन जाने के कारण मोटापा , धूम्रपान , उच्च रुधिर दाब व कम व्यायाम करने के कारण होता है |इस रोग के दौरान ह्रदय व सीने में कष्टकारी दर्द उत्पन्न होते है , इस रोग के उपचार हेतु , धुम्रपान , मोटापे से बचना चाहिए तथा नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए , साथ ही डॉक्टर की सलाह से उचित उपचार लेना चाहिए |
  4. धमनी काठिन्य : यह रोग धमनियों में कोलेस्ट्रोल के जमा हो जाने के कारण होता है , इस रोग के दौरान धमनियों में रुकावट से कोशिकाओ व उत्तकों में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं होती और वे मृत हो जाती जिससे ह्रदय घात भी हो सकता है |
  5. उच्च रक्त चाप : यदि मनुष्य में प्रकुंचन क्षमता व अनुशीतलन क्षमता क्रमशः 140 Hg व 90Hg से अधिक हो जाता है तो इसे उच्च रक्तचाप कहते है , उच्च रक्तचाप से ह्रदय , मस्तिष्क व वृक्क पर विपरीत प्रभाव पड़ता है |
  6. बेरिकोश शिराएँ : यह रोग लगातार खड़े रहकर कार्य करने वाले व्यक्तियों में होता है , इस रोग के दौरान रोगी की टांगो की शिराएं खिंच जाती है तथा टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है , इस का उपचार शल्य-क्रिया द्वारा किया जा सकता है |
  7. रक्ताल्पता या एनिमिया : यह विकार हिमोग्लोबिन की कमी के कारण तथा लौह विटामिन , विटामिन B12 व फोलिक अम्ल की कमी के कारण होता है , इस रोग के कारण रोगी में कमजोरी आ जाती है | उपचार हेतु हरी पत्तेदार सब्जियों का उपयोग करना चाहिए |
  8. ल्यूकेमिया : यह रोग रक्त कैंसर है जिसमे श्वेताणुओं का अनियंत्रित उत्पादन होने लगता है जिससे असामान्य श्वेताणुओं की संख्या बढ़ जाती है |
  9. हिमोफिलियाँ : यह एक आनुवांशिक रोग है , इस रोग के दौरान रोगी के रक्त में एंटोहिमोफिलिक कारक की कमी हो जाती है जिससे रुधिर का थक्का नहीं बन पाता तथा रूधिर लगातार स्त्रवित होता है |

विद्युत हृदय लेख (electrocardiograph)

यह चिकित्सा विज्ञान की एक महत्वपूर्ण तकनीक है जिसके द्वारा ह्रदय की कार्यशील अवस्था में तंत्रिकाओं तथा पेशियों द्वारा उत्पन्न विद्युतीय संकेतो का अध्ययन कर उनको रिकॉर्ड किया जाता है , इस कार्य में प्रयुक्त उपकरण को इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम (ECG) कहते है | इस तकनीक में संचलन जैल का प्रयोग करते हुए उपकरण के तीन इलेक्ट्रोड क्रमशः रोगी के वक्ष , कलाई व पैरो पर लगाये जाते है , इनसे प्राप्त विद्युत संकेतो को उपकरण में लगी उपयुक्त प्रणाली द्वारा अभिवृद्धित कर संवेदी चार्ट रिकॉर्ड पर ECG में ह्रदय के विभिन्न कक्षकों के संकुचन तथा शितिलन के समय होने वाली विद्युतीय गतिविधियों के संकेत एक निश्चित पैटर्न की तरंगो के रूप में प्राप्त होता है , इन तरंगो को PQRS व T तरंगे कहते है | प्रत्येक वर्ण ह्रदय पेशियों में गठित एक विशिष्ट अवस्था का घोतक है |

P = SAN में आवेग की उत्पत्ति

P से Q तक = आलिन्दो का संकुचन

Q से R तक = AVN में आवेग संचरण

R से S तक = हिन्ज बण्डल में आवेग संचरण

S से T तक = निलय के संकुचन को व्यक्त करता है |

T = निलय के शिथिलन के प्रारम्भ को दर्शाता है |

ECG के उपयोग : इसके द्वारा ह्रदय की असामान्यता के बारे में जानकारी प्राप्त करते है , ECG से ह्रदय धमनी सम्बन्धित रोग कोरोजरी थ्रोम्बोसिस , ह्र्दयावरणी शूल , ह्रदयपेशी रुग्णता (कार्डीमायोपेथी) , मध्यह्रदयपेशी शुल (मायोकार्डइटिस) आदि के निदान में सहायक होती है |

द्विपरिसंचरण (double circulation)

रक्त परिसंचरण में रक्त ह्रदय से दो बार गुजरता है तथा फिर अंगो में पहुँचता है , इस प्रकार के परिसंचरण को द्विसंचरण या दोहरा परिसंचरण कहते है | ह्रदय में शुद्ध व अशुद्ध रुधिर पूर्णत:प्रथक रहता है , ह्रदय के दाई ओर अशुद्ध रुधिर तथा बायीं ओर शुद्ध रुधिर रहता है , शुद्ध व अशुद्ध रूधिर को ले जाने व लाने के लिए शरीर में वाहिकाओ के दो परिपथ होते है |

  1. दैहिक परिपथ : यह ह्रदय से शरीर व शरीर से ह्रदय के मध्य होता है , महाधमनी एवं उसकी शाखाएँ बाएँ निलय से शुद्ध रुधिर को शरीर में पहुंचाती है तथा महाशिरा व शिराएँ दाएँ आलिन्द में अशुद्ध रुधिर को शरीर से ह्रदय में लाती है |
  2. फुफ्फुसीय परिपथ : यह ह्रदय से फेफडो व फेफड़ो से ह्रदय के मध्य होता है , फुफ्फुसीय धमनियाँ दाएँ निलय से अशुद्ध रुधिर को फेफडो में पहुंचाती है तथा फुफ्फुसीय शिराएं शुद्ध रुधिर को फेफडो से ह्रदय के बाएँ आलिन्द में लाती है |