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द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्तःक्रिया क्या है , द्विध्रुव द्विध्रुव अन्योन्यक्रिया किसे कहते हैं dipole dipole interaction in hindi
dipole dipole interaction in hindi द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्तःक्रिया क्या है , द्विध्रुव द्विध्रुव अन्योन्यक्रिया किसे कहते हैं ?
अन्तराण्विक बल (INTERMOLECULAR FORCE)
उदासीन अणओं के मध्य जो आकर्षण बल होता है उसे अन्तराण्विक बल कहते हैं। वाण्डर वाल्स ने गैसों के लिए दाब संशोधन इस आधार पर ही किया था कि अणुओं के मध्य परस्पर आकर्षण बल रहता है. इसीलिए अन्तराण्विक बल को वाण्डर वाल्स बल भी कहते हैं। इस बल को संसंजन या सम्बद्ध बल (cohesive force) भी कहते हैं।
वाण्डर वाल्स बलों के पक्ष में प्रमाण (Evidences in favour of Vander Waals forces) : जैसा कि हमने ऊपर बताया कि अणुओं के मध्य आकर्षण के मद्देनजर ही वाण्डर वाल्स ने दाब संशोधन किया था। वस्तुतः आदर्श गैस समाकरण PV =nRT केवल कम दाब व अधिक ताप पर ही लाग भी गैस उच्च दाब व कम ताप (जब अणुओं के मध्य की दूरी कम हो) पर आदर्श व्यवहार नहीं दर्शाती। इसका कारण यह है कि एसा स्थिति में न तो अणुओं का आयतन नगण्य है और न भाकर्षण बल नगण्य है। इसी कारण वाण्डर वाल्स ने दाब व आयतन में संशोधन करके वाण्डर वाल्स समीकरण या वास्तविक गैस समीकरण दी।
(P + an2/V2) (V – nb) = nrt
(2) जल टॉम्सन प्रभाव अर्थात छोटे छिद्र में से किसी गैस को विसरित करने से ताप कम ( हो जाता है, क्योंकि गैस अणुओं की ऊर्जा उनके अन्तराण्विक आकर्षण बल को तोड़ने में खर्च हो. है, जिससे उनका ताप कम हो जाता है और गैसों का शीतलन हो जाता है। जूल टॉम्सन प्रभाव से ही का द्रवण किया जाता है।
(3) उत्कृष्ट गैसें जिनका स्थायी अष्टक विन्यास होता है वे भी विशेष परिस्थितियों में द्रवित हो । हैं। यह तभी सम्भव हो सकता है यदि गैस के अणुओं के मध्य किसी-न-किसी प्रकार का आकर्षण बल। उपर्युक्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि पदार्थ के अणुओं के मध्य अन्तराण्विक आकर्षण बल रहता है। अन्तराण्विक बलों की उत्पत्ति (Origin of Intermolecular Forces)—पदार्थों में अन्तराण्विक बो की उत्पत्ति किस प्रकार से होती है, इसका विवरण निम्न प्रकार है :
(i) द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्तक्रिया (Dipole-Dipole interaction) : ध्रुवीय अणुओं के उदासीन होने के बावजूद भी उन अणुओं में स्थायी द्विध्रुव रहता है और इस प्रकार के अणुओं में मुख्य रूप से वैद्युत वाण्डा वाल्स बल पाए जाते हैं। अणुओं की इस प्रकार की पारस्परिक क्रिया को द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्तक्रिया कहते है। उदाहरणार्थ, SO2 NH3 HE, HCI, आदि गैसों में स्थायी द्विध्रुव रहते हैं और इन गैसों के अणुओं में स्थायी द्विध्रुव आघूर्ण होने के कारण इनके अणुओं के मध्य परस्पर प्रबल आकर्षण बल रहता है। अणुओं के मध्य का आकर्षण बल इन अणुओं के द्विध्रव आघूर्ण (dipole moments) पर निर्भर करता है। जिसका जितना अधिक द्विध्रुव आघूर्ण होगा उसमें उतनी ही अधिक द्विध्व-द्विध्रुव अन्तक्रिया होगी और इस प्रकार की अन्तर्किया। के कारण इनके अणुओं में तीव्र आकर्षण बल होता है, और ऐसी गैसों को आसानी से द्रवित किया जा सकता है और सामान्य ताप पर द्रव अवस्था में रहने पर इनके क्वथनांकों के मान उच्च होते हैं। उदाहरणार्थ जल के ध्रुवीय अणुओं में प्रबल H-बन्ध के कारण अन्तराण्विक आकर्षण बल उच्च होता है और इसका क्वथनांक 100°C हो जाता है, जबकि ऐसीटोन का उच्च अणुभार होते हुए भी क्वथनांक का मान कम मात्र 56°C होता है, क्योंकि इनके अणुओं में ध्रुवता की कमी के कारण अन्तराण्विक आकर्षण बल दुर्बल होता
स्थायी द्विध्रुव आघूर्ण” u1 व u2 वाले दो अणुओं के मध्य अन्तक्रिया की औसत ऊर्जा के को निम्न सूत्र के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है :
अन्तक्रिया ऊर्जा (Interaction energy),
ɸ (r) = – (u1u2/4 π0)2(1/r6) (1/KT) …………….(1)
जहां r दोनों के मध्य की दूरी, k बोल्ट्जमैन स्थिरांक व 4TTED पारगम्यता व्यंजक (Permeability factor) है।
(ii) द्विध्रुव-प्रेरित द्विध्रुव अन्तक्रिया (Dipole-induced dipole interaction) एक द्विध्रुव अणु के प्रेरित द्विध्रुवीय अणु सम्पर्क में यदि कोई उदासीन अणु आए तो वह भी प्रेरित होकर ध्रुवीय बन जाएगा, बिल्कुल उसी भांति जिस प्रकार एक लोहे का टुकड़ा चुम्बक के। सम्पर्क में रहकर प्रेरण (induction) से चुम्बकीय गुण ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार एक ध्रुवीय अणु व एक प्रेरित द्विध्रुवीय अणु के मध्य अन्तक्रिया से अणुओं के मध्य आकर्षण बल अथवा वाण्डर वाल्स बल उत्पन्न हो जाएगा। इस वाण्डर वाल्स बल का परिमाण (magnitude) दो बातों पर निर्भर द्विध्रुवीय अणु करता है—(1) ध्रुवीय अणु का द्विध्रुवीय आघूर्ण कितना है और (ii) उदासान अणु में ध्रुवित होने की शक्ति (Polarisability) कितनी है। दोनों अणुआ समय की औसत अन्तक्रिया ऊर्जा को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है :
अन्तक्रिया ऊर्जा ɸ (r) = – (u1a2 /4 π0)2 r6 …………………(2)
जहां u1 प्रथम अणु का स्थायी द्विध्रुव आघूर्ण है, a2 द्वितीय अण की ध्रुवणता है, दोनों अणुओं के किया जा सकता है। पता व्यजक है। मध्य की दूरी आर 4πε0 पारगम्यता व्यंजक है। यह O2 H2 जैसे पूर्णतः अध्रुवीय अणुओं पर लागू नहीं किया जा सकता है
(iii) प्रेरित द्विध्रुव-प्रेरित द्विध्रुव अन्तक्रिया (Induced प्रकीर्णन बल (Dispersive force) अथवा लण्डन बल (L द्रव अवस्था तक्रिया (Induced dipole-induced dipole interaction)-इसे ३) अथवा लण्डन बल (London force) भी कहते हैं। हम जानते हैं कि जन जस उदासीन अणुओं में भी वाण्डर वाल्स बल पाया जा आर्गन जसा एक परमाण्वीय अण यक्त गैसों में भी वाण्डर वाल्स पाया वाल्स बल पाया जाता है यह इस बात से सिद्ध होता है कि उच्च दाब द्रवित किया जा सकता है। इस बल के कारण को कई वर्षों तक नही समझा गया
1930 में फ्रिट्ज लण्डन (Fritz London) ने इन बलों को समझाने के लिए सन्तोषजनक स्पष्टीकरण दिया, इसीलिए उनके नाम पर ही इस बल को लण्डन बल कहते है उन्होंने उदासीन अणुओं के मध्य आकर्षण बल को समझाने के लिए क्वाण्टम यान्त्रिकी (quantum mechanics) का सहारा लिया। उन्होंने इन बलों की निम्न प्रकार से व्याख्या की :
क्वाण्टम यान्त्रिकी के अनुसार इलेक्ट्रॉन सदैव गतिमान’ भक अनुसार इलेक्ट्रॉन सदैव गतिमान रहते हैं। किसी पूर्णरूप से सममित अणु या परमाणु में औसत द्विध्रुव आघूर्ण हमेशा शन्य मानते हैं। उदाहरण के लिए, निष्क्रिय गैस के अणुओं के लिए हम यह मानते हैं कि वे पूर्णरूप से द्विध्रुव आघूर्ण से रहित है। किन्तु ऐसे अणुओं में भी किसी क्षण, इलेक्ट्रॉन द्वारा कोई विशेष स्थान ग्रहण करने के कारण तन्त्र में आवेश का क्षणिक असन्तुलन आ जाता है, जिससे मात्र उस क्षण के लिए वह एक द्विध्रुव के रूप में प्रेरित हो जाता है और यह प्रेरित द्विधूव (induced dipole) उसा क्षण किसी समीप वाले अणू या परमाण को भी एक द्विध्रुव के रूप म प्रेरित कर देता है। फलस्वरूप दोनों में एक आकर्षण बल स्थापित हो जाता है जिसे लण्डन बल या प्रकीर्णन बल (London force or Dispersion force) कहत है। इसे प्रकीर्णन बल कहने का कारण यह है कि प्रकाश का प्रकीर्णन (dispersion of light) भा इस प्रकार के द्विध्रुवों से सम्बन्धित है। इन बलों का परिमाण (magnitude) कम होता है। इस अन्तक्रिया की ऊर्जा का लगभग परिमाण निम्न सूत्र द्वारा किया जा सकता है : ɸ (r) = – {2 3E1E2/2(E1 + E2)} {a1a2/(4 π ε0)2r6 ………….(3)
जहाँ E1 व E2 दोनों अणुओं की आयनन ऊर्जा है और शेष सब का वही महत्व है जो उपर्युक्त दोनों बलों में है, अर्थात् व a1 व a2 दोनों अणुओं की ध्रुवणता, r दोनों के मध्य की दूरी और4 π ε0) पारगम्यता व्यंजक।
(iv) आयन-द्विध्रुव बल (Ion-dipole forces)—ये आयनों एवं ध्रुवीय अणुओं के मध्य पाये जाने वाले बल हैं। U = – eu/r2 अथवा URr2 …(4)
जहां e = आयन पर आवेश, u = द्विध्रुव आघूर्ण
और r = द्विध्रुवों के मध्य की दूरी।
जल तथा धुवीय विलायकों में आयनिक यौगिकों की विलेयता इन्हीं बलों के कारण होती है। उदाहरणार्थ, जल NaCl की विलेयता निम्न प्रकार के आकर्षण के कारण आकर्षण बल होती है: (v) आयन-प्रेरित द्विध्रुव बल (lon-induced dipole forces) ये बल आयनों और उनके द्वारा प्रेरित द्विधुवों के मध्य के आकर्षण बल होते हैं।
U = – ½ ae2/r4 अथवा U = r-4 ………………….. (5)
जहां a = अणुओं की ध्रुवणता।
(vi) अतिव्यापन प्रतिकर्षण बल (Overlap repulsion forces)-जब दो अणु एक-दूसरे के जी निकट आकर अतिव्यापन करने लगते हैं तो दोनों के इलेक्ट्रान व नाभिक परस्पर एक-दूसरे को प्रतिकार करने लगते हैं। U = k/rn जहां n = 9-12 अर्थात् U=r-9 से r-12 …(6)
यदि आकर्षण बल तक निर्भर करता हो तो उसे दीर्घ क्षेत्रीय (long range) आकर्षण बल का जाता है और यदि आकर्षण बल ।’ तक निर्भर करता हो तो उसे लघु क्षेत्र (short range) आकर्षण का कहते हैं।
उपर्युक्त विवेचग से स्पष्ट है कि अधिकांश आकर्षण बल लघु क्षेत्र के हैं और । पर आधारित हैं अतः कुल ऊर्जा अन्तराण्विक ऊर्जा, जिसमें प्रतिकर्षण आदि भी शामिल हो, निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त की जा सकती है : U = Ar-6 + Br-n ………….(7)
यहां A व B स्थिरांक हैं जिनके मान अवस्था की समीकरण से ज्ञात किये जा सकते हैं और घातांक n का मान 9 से 12 के मध्य का होता है। चित्र 4.5 में n = 12 के लिए कुछ गैसों के लिए स्थितिज ऊर्जा एवं अन्तराण्विक दूरियों के मध्य के ग्राफ को दर्शाया गया है। स्थिरांक A एवं B को जिन अवस्था समीकरणों से परिकलित किया जाता है उनके स्वरूप निम्न प्रकार के होते हैं :
P = – (A/V)T ….(8)
तथा B(T) = ½ [V – B(T)] …………….(9)
जहाँ B(T) अभिविन्यास पूर्णाक (configuration intergral) है |
इनके अतिरिक्त जिन अणुओं में प्रबल ऋण विद्युता तत्व के साथ हाइड्रोजन परमाणु जुड़ा हुआ हो हाइड्रोजन बन्धन द्वारा भी अन्तरआण्विक आकर्षण बल होता है हाइड्रोजन बन्धनके बारे में विस्तृत चर्चा अकाबनिक रसायन के अध्याय (5) में की गयी है।
इन अन्तराण्विक आकर्षण बलों के आधार पर द्रव के विभिन्न गुणों की व्याख्या की जा सकती है
- वाष्पदाब (Vapour pressure)-जिन यौगिको के अणुओ होंगे, उनको वाष्पीकृत होने में उतनी ही अधिक ऊर्जा की आवश फलतः उनके वाष्पदाब के मान कम होंगे। उदाहरणार्थ. 20°C ताप पर जल का वाष्पदाब 5 mm Hg ही होता है, जबकि इसी ताप पर CCL4 का वाष्प दाब 91.0 mm hg होता है
- क्वथनांक (Boiling point) क्वथन में भी द्रव के अण गैसीय अवस्था में बदलते हैं अतः इनका बल जितना अधिक होगा उतना ही उन्हें गैसीय अवस्था में बदलने कालए ऊजा का ” उनका क्वथनांक उतना ही उच्च होगा। अतः जल का क्वथनांक 100°C हाता ह जबकि ऐसीटोन का क्वथनांक 56°C ही होता है।
- श्यानता (Viscosity) अन्तराण्विक आकर्षण बल के बढ़ने से द्रवों की श्यानता के मान भी बढ़ते हैं, क्योंकि आकर्षण बल अणुओं को स्वतन्त्रता से बहने नह बल अणुओं को स्वतन्त्रता से बहने नहीं देंगे। अतः 20°C पर एथेनॉल की श्यानता 00 है जबकि इसी ताप पर ऐसीटोन की श्यानता 3.31 मिली पॉइस ही है।
- (4) पृष्ठ तनाव (Surface tension) द्रवों में पृष्ठ तनाव भी अणुओं के मध्य क आकर्षण १९ अत: जिन द्रवों में अन्तराण्विक आकर्षण बल उच्च होंगे उनके पृष्ठ तनाव के मान भी उच्च ही होंगे। उदाहरणार्थ, 20C पर एथेनॉल का पृष्ठ तनाव 227X10-2 Nm-1 ताप पर CCL4 का पृष्ठ तनाव मात्र 2.680×10-2 Nm-1 होता है।
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