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पाइला का पाचन तंत्र क्या है वर्णन कीजिए , digestive system of pila in hindi

जाने पाइला का पाचन तंत्र क्या है वर्णन कीजिए , digestive system of pila in hindi ?

पाचन तन्त्र (Digestive System)

पाइला के पाचन तन्त्र को निम्नलिखित भागों में विभेदित किया जा सकता है

  1. आहारनाल ( Alimentary canal)
  2. पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)
  3. आहार नाल (Alimantary canal) : यह एक कुण्डलित नलिकाकार संरचना होती है, मुख से गुदा द्वार तक फैली रहती है। आहारनाल को तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है

(i) अग्र – आंत्र (Foregut )

(ii) मध्य – आंत्र (Midgut)

(iii) पश्च- आंत्र (Hindgut)

  1. अग्र आंत्र (Foregut) : यह आहार नाल का सबसे अग्र भाग होता है और यह मुख गुहा तथा ग्रसिका से मिलकर बना होता है।

(a) मुखगुहा (Buccal cavity ) : यह वह प्रकोष्ठ है जिसमें मुख खुलता है। यह भीतर से क्यूटिकल द्वारा आस्तरित होती है तथा एक मोटी भित्ति वाली पेशीय संरचना से घिरी रहती है जिसे मुखपुंज (buccal mass) कहते हैं। मुखपुंज (buccal mass) एक नखाकार (pear shaped) संरचना होती है। इसका पेशीय विन्यास अत्यन्त जटिल होता है। इसमें पेशियों के अनेक समुच्चय (set) पाये जाते हैं। इनमें से अपांकुचक पेशियाँ (protractor muscles) अधिक विकसित होती है। इनमें, एक मध्य पृष्ठीय (median dorsal) पृष्ठ सतह की तरफ तीन जोड़ी अग्र पृष्ठ – पाश्र्वय (anterior dorso-lateral) तथा दो जोड़ी पश्च पृष्ठ- पाश्र्वय (posterior dorsol laterals) पेशियाँ पायी जाती है। अधर सतह की तरफ तीन अग्रपेशियाँ तथा एक जोड़ी पार्श्व आधारी (latero ventral) पेशियाँ पायी जाती हैं। ये पेशियाँ मुख पुंज के बहि:सरण तथा अवनमन में सहायक होती है तथा मुख पुंज के विभिन्न भागों को गतिशील बनाती हैं।

मुखगुहा दो भागों में विभेदित की जा सकती है। अगला भाग नलिकाकार होता है एवं प्रघाण (vestibule) कहलाता है तथा दूसरा पश्च भाग होता है। प्रघाण के पश्च भाग में एक जोड़ी जबड़े (iaws) पाये जाते हैं। प्रत्येक जबड़े का भीतरी किनारा काटने वाला लूनाग्र या रुन्द्रित (truncated) एवं क्रकची (serrated) होता है, जिस पर दो या तीन बड़े-बड़े दांत व अनेक छोटे-छोटे दांत समान प्रवर्ध पाये जाते हैं। प्रघाण की भित्ति में उपस्थित पेशीय रेशे मुख अवरोधनी का निर्माण करते हैं। यह अवरोधनी भोजन ग्रहण करते समय जबड़ों को चलाने व मुखद्वार को खोलने में सहायक होती है। मुखगुहा के पश्च भाग में मुख गुहा के फर्श पर एक पेशीयुक्त उभार पाया जाता है जिसे जिव्हा पुंज (tongue mass) या दन्ताभपट्ट (odontophore) कहते हैं। जिव्हा पुंज उपास्थियों के दो समुच्चयों द्वारा आलम्बित (supported) रहती है। इनमें से एक समुच्चय ‘S’ के आकार की उपास्थियों का होता है जो पाीय उपास्थियाँ कहलाती है तथा दूसरी त्रिभुजाकार उपास्थियों का समुच्चय होता है तथा ऊर्ध्व-उपास्थियाँ कहलाती है। इसका अग्रसिरा गोलाकार प्रवर्धनुमा संरचना में उभरा होता है जिसे अधो रेडुली अंग (sub radular organ) कहते हैं। इसके ठीक पीछे एक संकरी गुहा पायी जाती है जिसे अधोजिव्हा गुहा (sub lingual cavity) कहते हैं। के काम आता है। दन्ताभ पट्ट (odontophore) मुख गुहा की पूरी लम्बाई में फैली हुई एक भूरे रंग की काइटिनी, रिबन समान संरचना पायी जाती है, जिसे रेतनांग (radula) कहते हैं। इसके अग्र पर एक जोड़ी पंख समान पल्ले पाये जाते हैं जो दन्ताभपट्ट के शिखर पर अनुदैर्घ्य रूप से फैले रहते हैं। इसका पिछला सिरा एक पट्टी समान होता है तथा रेडुला कोष ( radular sac ) में पाया जाता है। रेडुला कोष मुखपुंज के नीचे स्थित होता है। रेडुला कोष की उपकला रेडुला का स्रावण करती है। रेडुला के निचले भाग में एक कोमल व प्रत्यास्थ झिल्ली पायी जाती है, जिसे अधो रेडुला झिल्ली (sub radular membrane) कहते हैं। रेडुला की ऊपरी सतह पर अनेक अनुप्रस्थ पंक्तियों में विन्यासित दांत पाये जाते हैं। प्रत्येक पंक्ति में दांतों की संख्या सात होती है। इनमें से एक केन्द्रीय या रैकेडियन (central or rachidian), एक-एक पार्श्वीय (lateral) तथा दो – दो सीमान्तीय (marginal) दांत होते हैं। इस तरह प्रत्येक पंक्ति में ये 2, 1, 1, 1, 2 का दन्त सूत्र प्रदर्शित करती करते है। रेडुला भोजन को रेतने का कार्य करता है तथा इसके लिए इसे दन्ताभ पट्ट पर आगे-पीछे चलाया जाता है। इस प्रकार की गति को श्रृंखला – आरी गति (chain saw movement) कहते हैं। यह क्रिया अपाकुंचक तथा आकुंचक (protractor and retractor) पेशियों द्वारा नियन्त्रित की जाती है। निरन्तर प्रयोग के कारण रेडुला के अग्र भाग में टूट-फूट होती रहती है परन्तु पिछले भाग में निरन्तर वृद्धि होते रहने के कारण अग्र सिरे की क्षति पूर्ति होती रहती है।

(b) ग्रसिका (Oesophagus ) : यह एक लम्बी संकरी नलिका होती है। यह मुख पुंज के पृष्ठतल से निकलकर आन्तरांग पुंज में प्रवेश कर आमाशय में खुल जाती है।

(ii) मध्य-आंत्र (Midgut ) : आहारनाल का यह भाग आमाशय तथा आंत्र से मिलकर बना होता है।

(a) आमाशय (Stomach) : यह आन्तरांग पुंज में बांयी तरफ हृदयावरण (pericardium) के नीचे स्थित होता है। यह चारों तरफ से पाचक ग्रन्थि द्वारा घिरा रहता है। इसकी आन्तरिक गुहा ‘U’ के आकार की होती है। इसे दो भागों में विभेदित किया जा सकता है, एक चौड़ा पश्च भाग जिसमें ग्रसिका खुलती है जठरागमी प्रकोष्ठ (cardiac chamber) कहलाता है, और दूसरा संकरा अग्रभाग जिससे आंत्र निकलती है जठर- निर्गमी प्रकोष्ठ ( pyloric chamber) कहलाता है । आमाशय की भीतरी भित्ति में अनेक वलन (folds) पाये जाते हैं। जठरागामी आमाशय में वलन निम्न स्तर के होते हैं जबकि जठर-निर्गमी आमाशय में वलन स्पष्ट एवं अनुप्रस्थ होते हैं। जठर-निर्गम आमाशय की भित्ति से अन्धनाल (caecum) निकली रहती है। आमाशय के दोनों प्रकोष्ठों के संगम स्थल पर पाचक ग्रन्थि की वाहिका खुलती है।

(b) आंत्र (Intestine) : जठर-निर्गम आमाशयी प्रकोष्ठ से एक लम्बी कुण्डलित नलिका निकलती है जिसे आंत्र कहते हैं। जनन ग्रन्थि एवं पाचक ग्रन्थि के बीच इसके 21⁄2 या 3 कुण्डलन पाये जाते हैं। पीछे की तरफ यह आन्तरांग पुंज में जाकर मलाशय में खुल जाती है।

(iii) पश्च आंत्र (Hind gut) : मलाशय (rectum) ही पश्च आंत्र का भाग बनाती है। यह एक मोटी भित्ति वाली नलिका होती है, जो प्रावार गुहा में बांयी तरफ क्लोम एवं जनन वाहिनी के बीच पायी जाती है। दाहिनी नकल पालि के समीप यह गुदाद्वार द्वारा बाहर खुलती है।

  1. पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)

पाइला की आहारनाल से सम्बन्धित निम्नलिखित पाचक ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं

  • लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands)
  • ग्रसिका कोष्ठ (Oesophageal pouch)
  • मुख ग्रन्थियाँ (Buccal glands)

(iv) यकृताग्नाशय (Hepatopancreas)

(i) लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands) : ये एक जोड़ी होती है तथा मुख पुंज (buccal mass) में दोनों तरफ स्थित होती है। ये सफेद रंग की शाखित संरचनाएँ होती है। प्रत्येक ग्रन्थि से एक वाहिका निकल कर मुख गुहा के पृष्ठ में खुल जाती है। इन ग्रन्थियों द्वारा नावित लार में म्यूसिन तथा कार्बोहाइड्रेज एन्जाइम पाया जाता है।

(ii) ग्रसिका कोष्ठ (Oesophageal pouches) : ग्रसिका के पार्श्व में एक जोड़ी क्रीम रंग की थैले नुमा ग्रन्थियाँ पायी जाती है जिन्हें ग्रसिका कोष्ठ (oesophageal pouch) कहते हैं। ये लार ग्रन्थियों के नीचे स्थित होती है। ये एक संकरी वाहिका द्वारा मुख गुहा एवं ग्रसिका के संगम पर खुलती है. तथा संभवत: पाचक रसों का प्रावण करती है।

(iii) मुख ग्रन्थियाँ (Buccal glands): ये एक जोड़ी ग्रन्थिल क्षेत्र होते हैं जो मुख गहा ग्रसिका के संगम से पूर्व मुख गुहा की छत पर उपस्थित होते हैं। इनका वास्तविक कार्य अज्ञात परन्तु यह माना जाता है कि सम्भवतया ये सहायक पाचक ग्रन्थियाँ होती है।

(iv) यकृताग्नाशय (Hepatopancreas) : आन्तरांग पुंज की कुण्डलनों का अधिकांश , एक तिकोने, कोमल, ग्रन्थिल भाग से ढका रहता है, इसे यकृताग्नाशय (hepatopancreas) को हैं। यह भूरे रंग की ग्रन्थि होती है यह ग्रन्थि भी कुण्डलित होती है। यह ग्रन्थि दो पालियों की बनी होती है। छोटी पालि आमाशय के सम्पर्क में रहती है तथा बड़ी पालि सर्पिल शिखर तक फैली रहती है। प्रत्येक पालि से एक-एक वाहिका निकलती है, जो आमाशय में खुलने से पूर्व परस्पर जुड़ का एक सह वाहिनी (common duct) बनी है। यह एक ठोस ग्रन्थि होती है जो कई कृपिकाओं (alveoli) की बनी होती है। कूपिकाएँ संयोजी ऊत्तक में फंसी रहती है। कूपिकाओं से निकलने वाली शाखाएँ परस्पर मिलकर छोटी-छोटी वाहिनियाँ बनाती हैं तथा ये वाहिनियाँ मिलकर बड़ी वाहिका में खुलती है। कूपिकाएँ उपकला द्वारा आस्तरित होती है जिसमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती है- (a) नावी कोशिकाएँ (Secretory cells) : ये सेल्यूलोज को पचाने वाले एन्जाइम्स का नावण करती है। (b) पुनः अवशोषी कोशिकाएँ (Reabsorptive cells) : ये कोशिकाएँ प्रोटीन्स का अन्त:कोशिकीय (intracellular) पाचन करती है। (c) चूना कोशिकाएँ (Lime cells) : ये कोशिकाएँ केल्शियम फॉस्फेट का संचय करती है।

भोजन (Food) : पाइला गूदेदार जलीय वनस्पतियों को भोजन के रूप में ग्रहण करता है। यह वैलिस्नेरिया (Vallisnaria) तथा पिस्टिया (Pistia) जैसे पौधों को खाता है।

भोजन का अन्तःग्रहण (Engestion of food) : पाइला, शृंखला-आरी (chain saw) गतियों द्वारा भोजन मुखगुहा में ग्रहण करता है। मुखगुहा की भित्ति में उपस्थित अवरोधनी एवं अपाकंचक पेशियों की सहायता से जबड़ों द्वारा भोजन (जलीय वनस्पति की पत्तियों) को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। ये टुकड़ों फिर रेडुला के दांतों द्वारा पकड़ कर पीछे मुख गुहा में भेज दिये जाते हैं।

पाचन (Digestion): जब भोजन मुखगुहा में होता है तो लार-ग्रन्थियाँ अपना नावण मुखगुहा में छोड़ देती है जिससे लार भोजन के साथ मिल जाती है। लार में कार्बोहाइड्रेज एन्जाइम पाया जाता है जो स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित कर देता है। आमाशय में भोजन के पाचन के लिए यकृताग्नाशय ग्रन्थि द्वारा स्रावित एन्जाइम्स, सहवाहिनी द्वारा मुक्त किये जाते हैं। यकृताग्नाशय ग्रन्थि द्वारा प्रावित रस में वे सभी प्रमुख एन्जाइम्स पाये जाते हैं जो उच्च श्रेणी के प्राणियों के अग्नाशयी रस में पाये जाते हैं। इस तरह आमाशय में बहि:कोशिकीय पाचन होता है। पाचक ग्रन्थि में अन्त:कोशिकीय पाचन होता है। पचे हुए भोजन का अवशोषण मुख्य रूप से पाचक ग्रन्थि तथा आंत्र द्वारा होता है। बिना पचा भाजन मलाशय में एकत्र किया जाता है, जिसे समय-समय पर गुदाद्वार द्वारा क्लोम कोष्ठ में छोड़ दिया जाता है। क्लोम कोष्ठ से यह बाहर जाने वाली जल धारा के साथ शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

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