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राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय दल में अंतर | राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बीच अंतर क्या है difference between national party and regional party in hindi

difference between national party and regional party in hindi  राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय दल में अंतर | राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बीच अंतर क्या है ?

राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों का अर्थ
भारत में बहुदलीय प्रणाली है। यहाँ राष्ट्रीय व क्षेत्रीय, दोनों ही दल हैं। चुनाव आयोग किसी दल को एक राष्ट्रीय दल की मान्यता प्रदान करता है, यदि वह दो शर्तों से कोई एक पूरी करता है: (1) वह विधान सभा चुनावों में 3.33ः मत अथवा सीटें सुनिश्चित करता है, और (2) वह चार राज्यों के लोकसभा चुनाव में 4ः मत अथवा सीटें सुनिश्चित करता है। राष्ट्रीय दलों को अखिल भारतीय दल भी कहा जा सकता है। उनके कार्यक्रमों, नीतियों, विचारधाराओं और रणनीतियों में राष्ट्रीय मुद्दों पर जोर रहता है। संगठनात्मक ढाँचों को कायम रखने और चुनाव लड़ने के लिहाज से वे देश के अधिकांश भागों में अपना अस्तित्व रखते हैं। एक क्षेत्रीय दल उस भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित होता है जिसमें एक राज्य अथवा कुछेक राज्य हो सकते हैं। वे एक क्षेत्र विशेष की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने और उसका संरक्षण करने हेतु सामने आते हैं। वे किसी क्षेत्र की उपेक्षा के विषय पर भी सामने आ सकते हैं जो उसके आर्थिक पिछड़ेपन का कारण बनता है। क्षेत्रीय दल बहुधा संकीर्ण स्थानीय हितों को प्राथमिकता देते क्षेत्रवाद को प्रेरित करते दिखाई देते हैं। कुछ लोग उन्हें एक सशक्त राष्ट्र की धारणा पर खतरे के रूप में देखते हैं लेकिन साथ ही ऐसे लोग भी हैं जो उनके प्रति इस प्रकार का कोई नकारात्मक उपागम नहीं रखते। उनका मानना है, सशक्त क्षेत्रीय दल यह सुनिश्चित करते हैं कि क्षेत्र जिसका वे प्रतिनिधि करते हैं, केन्द्र सरकार द्वारा निष्पक्ष व्यवहृत हों। वर्ष 1989 केन्द्र में बहुदलीय प्रणाली के चरण का अग्रदूत था। इसका मतलब था- राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की एक निश्चित भूमिका ।

बोध प्रश्न 1
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें ।
1) कांग्रेस (इं.) का सामाजिक आधार क्या रहा है?
2) भा.ज.पा. के साथ जय प्रकाश नारायण का नाम किस प्रकार जुडा है?
3) 1964 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के विभाजन की पृष्ठभूमि का वर्णन करें।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) कांग्रेस (इं.) के सामाजिक आधार में मुख्यतः आते हैं – ग्रामीण व शहरी गरीब, अनुसूचित जातियाँ, ऊँची जातियाँ तथा मुसलमान ।
2) भा.ज.पा. अध्यक्ष, अटल बिहारी वाजपेयी ने बम्बई में हुए भा.ज.पा. के प्रथम अधिवेशन में भा.ज.पा. के उदय को भारत के एक गौरवमय अतीत वाले जय प्रकाश नारायण के स्वप्न से जोड़ा था।
3) भा.क.पा. के भीतर दो राजनीतिक धाराएँ थीं – एक, जो स्वाधीनता को एक वास्तविक रूप् में देखती थी, पी.सी. जोशी द्वारा समर्थित थी और कांग्रेस को समर्थन देना चाहती थीय दूसरी, जो मानती थी कि स्वाधीनता वास्तविक नहीं है. बी.टी. रणदीवे तथा गौतम अधिकारी द्वारा समर्थित थी और कांग्रेस का विरोध करना चाहती थी। सोवियत संघ और चीन की उनकी भिन्न-भिन्न समझ ने 1964 में भा.क.पा. में दरार की पृष्ठभूमि प्रदान की।

राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दल
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों का अर्थ
राष्ट्रीय दल
कांग्रेस (इं.)
भारतीय जनता पार्टी
कम्यूनिस्ट पार्टियाँ
बहुजन समाज पार्टी
क्षेत्रीय दल
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
शिरोमणि अकाली दल
नैशनल कांफ्रेंस
तेलुगु देशम् पार्टी
असम गण परिषद्
झारखण्ड पार्टी
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई में आप भारत में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बारे में पढ़ेंगे। इसको पढ़ने के बाद आप इन बातों में सक्षम होंगे:
ऽ क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के मायने जानना,
ऽ उनकी विचारधाराएँ, सामाजिक आधार और संगठनात्मक संरचनाओं को जानना, और
ऽ हमारे देश की राजनीति व समाज में उनका महत्त्व समझना।

 प्रस्तावना
राजनीतिक दल भारतीय लोकतंत्र की प्रकार्यात्मकता में एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। लोकतांत्रिक प्रणालियाँ राजनीतिक दलों की अनुपस्थिति में कार्य नहीं कर सकती हैं। वे राज्य व प्रजा के बीच सेतु का काम करती हैं। राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं और राजनीतिक सत्ता हासिल करने को लक्ष्य बनाते हैं। वे एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में जनता व सरकार के बीच भी सेतु के रूप में कार्य करते हैं। यदि कोई राजनीतिक दल सरकार बनाने में विफल रहता है, वह विपक्ष में बैठता है। विपक्षी दल की भूमिका है-लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करने के लिए सत्तारूढ़ दल की कमजोरियों को उजागर करना।

20.5 सारांश
आपने इस इकाई में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के चार सेटों और छह क्षेत्रीय दलों के बारे में पढा। ये राष्ट्रीय दल हैं: कांग्रेस (इं.), भारतीय जनता पार्टी, कम्यूनिस्ट पार्टियाँ और बहुजन समाज पार्टी। इस इकाई में उल्लिखित क्षेत्रीय दल हैं: द्र.मु.क. और अन्ना-द्र.मु.क., शिरोमणि अकाली दल, नैशनल कांफ्रेन्स, डी.टी.पी., अ.ग.प. और झारखण्ड पार्टी। समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति वचनबद्ध, कांग्रेस (इं.) के पास एक सामाजिक आधार है जिसमें ऊँची जातियाँ, अल्पसंख्यक और अनुसूचित जातियाँ शामिल हैं। हाल में इसके सामाजिक आधार में एक बदलाव आया है। भारतीय जन संघ की एक उत्तराधिकारी, वैचारिक रूप से भा.ज.पा. पाँच सिद्धांतों के प्रति वचनबद्ध है- राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रीय अखण्डता. लोकतंत्र, सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता, गाँधीवादी समाजवाद और मूल्याधारित राजनीति। कम्यूनिस्ट दल मार्क्सवाद और लेनिनवाद के क्रांतिकारी सिद्धांतों पर आधारित एक समाजवादी समाज की स्थापना में विश्वास करते हैं। यह तभी संभव होगा जब कामगार वर्ग राजनीतिक सत्ता हासिल कर ले। कम्यूनिस्ट दलों के सामाजिक आधारों में मुख्यतः शामिल हैं – कामगार वर्ग, मध्यवर्ग और गरीब किसान व कृषि-श्रमिक । ब.स. पा. दलितों, अन्य पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों को शामिल कर समाज के बहुसंख्यक वर्ग अर्थात बहुजन समाज को समर्थ बनाने में विश्वास रखती है।

क्षेत्रीय, सांस्कृतिक तथा विकासात्मक कारक क्षेत्रीय दलों के कार्यक्रमों तथा लामबन्दी रणनीतियों में अधिक निर्णयकारी भूमिकाएं निभाते हैं।

20.6 कुछ उपयोगी पुस्तकें
कोठारी, रजनी, पॉलिटिक्स एण्ड पीपल, नई दिल्ली, अजन्ता पब्लिकेशन्स, 1989।
बनर्जी, के., रीजिनल पॅलिटिकल पार्टीज इन इण्डिया, नई दिल्ली. बी.आर. पब्लिकेशन्स, 1984।
नारंग, ए.एस., इण्डियन.. गवर्नमैण्ट एण्ड पॉलिटिक्स, नई दिल्ली, गीताञ्जलि पब्लिशिंग हाउस, 2000।
हार्टमैन, एच., पॅलिटिकल पार्टीज इन इण्डिया, मेरठ, मीनाक्षी प्रकाशन, 1982 ।

बोध प्रश्न 2
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) वे मुख्य माँगें क्या हैं जो शिरोमणि अकाली दल समय-समय पर उठाता रहा है?
2) आंध्रप्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी के उदय हेतु क्या कारण थे?
3) अ.ग.प. की स्थापना के क्या कारण थे?

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 2
1) ये हैं: पंजाब को पूर्ण क्षेत्रीय स्वायत्तता, धनी किसानों के हितों की रक्षा और प्रोत्साहन, नदी जल बँटवारे में उदारता से वितरण तथा अमृतसर की एक पवित्र शहर के रूप में घोषणा। इनमें से कुछ माँगें – खासकर पंजाब को और अधिक स्वायत्तता, 1973 के आनन्दपुर साहब के घोषणा-पत्र में शामिल थीं। इस घोषणा में मांग की गई थी कि केन्द्रीय सरकार की शक्ति केवल रक्षा, विदेश मामले, संचार तथा मुद्रा पर होनी चाहिएय शेष शक्तियां राज्यों को दे दी जानी चाहिएँ।
2) केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा अलोकप्रिय मुख्यमंत्री थोपे जाने, बृहद स्तर पर भ्रष्टाचार तथा एन.टी. रामाराव के चमत्कारी नेतृत्व के कारण कांग्रेस के साथ लोगों को सामान्य मनोमालिन्य ।
3) पूर्वी-पाकिस्तान से मुस्लिम-बंगालियों, नेपालियों व बिहारियों का बृहद-स्तरीय प्रवसन, मारवाड़ियों का आर्थिक प्रभुत्व, प्रवासियों द्वारा धंसा दिए जाने का भय, केन्द्र सरकार और कांग्रेस से उनका मोहभंग।

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