हिंदी माध्यम नोट्स
बॉलीवुड किसे कहते हैं , हॉलीवुड और बॉलीवुड में क्या अंतर है Difference between Hollywood and Bollywood in Hindi
Difference between Hollywood and Bollywood in Hindi बॉलीवुड किसे कहते हैं , हॉलीवुड और बॉलीवुड में क्या अंतर है ?
बाॅलीवुड
बाॅलीवुड एक अनौपचारिक शब्द है जिसका प्रयोग लोकप्रिय रूप से मुम्बई में स्थित हिंदी भाषा फिल्म उद्योग के लिए किया जाता है। यह शब्द वास्तविक तौर पर भारतीय फिल्म जगत के केवल एक हिस्से को प्रकट करता है, जिसमें अन्य फिल्म निर्माण केंद्र भी शामिल हैं जो प्रादेशिक भाषाओं में फिल्म बनाते हैं। ‘बाॅलीवुड’ केवल हिंदी सिनेमा के लिए प्रयोग होता है। बाॅलीवुड भारत में सर्वाधिक संख्या में फिल्में बनाता है और यह संसार में फिल्म-निर्माण के सर्वाधिक बड़े केंद्रों में से एक है।
‘बाॅलीवुड’ शब्द संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) में फिल्म निर्माण के केंद्र ‘हाॅलीवुड’ की नकल से उत्पन्न हुआ है। इसी तर्ज पर अन्य शब्दों की भी उत्पत्ति हुईः लाॅलीवुड (लाहौर फिल्म उद्योग), काॅलीवुड (तमिल फिल्म उद्योग), आॅलीवुड (ओडिशा फिल्म उद्योग) और इसी प्रकार अन्य भी।
पश्चिम पर बाॅलीवुड का प्रभाव
बाॅलीवुड ने हमेशा पश्चिमी विश्व में फिल्मों को प्रभावित किया है, और विशेष रूप से अमेरिकी संगीतमयी फिल्मों की श्रेणी के पुनरुद्धार में वाद्ययंत्रीय भूमिका निभाई है। इन वर्षों में यह एक सच साबित हुआ है। बेज लुअरमैन ने व्यक्तव्य दिया कि उनकी संगीतमय फिल्म माॅऊलिन रोग (2001) प्रत्यक्ष तौर पर बाॅलीवुड के संगीत से प्रेरित थी। फिल्म ने प्राचीन संस्कृत नाटक मृच्छकटिकम (द लिटिल क्ले कार्ट) को अपनाया और चाइना गेट किला के गीत से बाॅलीवुड-शैली को शामिल किया। पश्चिमी संगीत वग्र ने एक नया जीवन प्राप्त किया, और शिकागो, द प्राड्यूसर, रेंट, ड्रीमगल्र्स, हेयरस्पे्र, स्वीने टाॅड, अक्रास द यूनीवर्स, द फेंटम आॅफ द ओपेरा, एनचेंटेड एंड मामा मियां जैसी फिल्में निर्मित की गई।
ए.आर. रहमान ने पश्चिम में अपने संगीतमय योगदान द्वारा अपनी जगह बना ली है। उन्होंने एंड्रयू लाॅयड वेबर की बाॅम्बे ड्रीम्स के लिए संगीत लिखा, और लंदन के वेस्टएंड में हम आपके हैं कौन के संगीतमय संस्करण में भूमिका निभायी उन्होंने लगान (2001) को संगीतबद्ध किया, जिसे सर्वोत्तम विदेशी भाषा फिल्म के लिएएकेडमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। दो अन्य बाॅलीवुड फिल्में देवदास (2002) और रंग दे बसंती (2006) को सर्वोत्तम विदेशी भाषा फिल्म के लिए बाफ्टा अवाॅर्ड हेतु नामांकित की गई। डेनी बाॅएले की स्लम डाॅग मिलेनियर (2008), जिसने चार गोल्डन ग्लोब और आठ ऐकेडमी अवार्ड जीते, सीधे तौर पर बाॅलीवुड फिल्मों से प्रेरित रही।
बाॅलीवुड फिल्मी संगीत का प्रभाव लोकप्रिय संगीत में कहीं पर भी देखा जा सकता है। हारुओमी होन्सो और राइयुचि सकामोटो, जो यलो मैजिक आॅर्केस्ट्रा से सम्बद्ध थे, ने 1978 में, इलैक्ट्राॅनिक म्युजिक और बाॅलीवुड म्यूजिक के बीच प्रयोगात्मक मिलान पर आधारित एक इलेक्ट्राॅनिक एलबम कोचीन मून निकाली।
ए.आर. रहमान द्वारा तैयार फिल्मी संगीत सिंगापुर के कलाकार कैली पून, उज्बेकिस्तान के इरोडा दिलरोज, फेंच ला कोशन, एक रैप ग्रुप, अमेरिकी कलाकार सीयारा, और जर्मन बैंड लोवेनहर्ज के लिए हमेशा प्रेरणास्प्रद रहा है। विशिष्ट बाॅलीवुड गीतों ने पश्चिम को भी प्रभावित किया है। बाॅलीवुड फिल्म डिस्को डांसर (1982) के गीत ‘आईएम, डिस्को डांसर’ ने डेवो की हिट फिल्म ‘डिस्को डांसर’ (1988) को बेहद प्रभावित किया। लता मंगशकर की ‘ज्योति’ (1981) फिल्म के गाने ‘थोड़ा रेशम लगता है’ ने डीजे क्विक और डा. ड्रे द्वारा निर्मित और ट्रघथ हर्ट द्वारा गा, ‘एडिक्विट’ गीत (2002) को प्रेरित किया। ग्रैमी अवार्ड जीतने वाले गीत ‘द ब्लैक आई पीज’ (2005) और ‘डांट फंक विद माई हार्ट’ वाॅलीवुड के 1970 के दशक के दो गीतों ‘ये मेरा दिल यार का दीवाना’ (1978) डाॅन फिल्म से और ‘ए नुझावन है सब’ अपराध फिल्म (1972) से प्रभावित एवं प्रेरित हुए।
हिंदी फिल्मों में संगीत
अंग्रेजों के आगमन, पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव ने राजाओं नबाबों की सामंती व्यवस्था को तो नष्ट किया ही साथ में उनके आश्रय में पलने वाले कलाकार भांड, कब्बाल, नक्काल, गायक, नर्तक-भी बेसहारा हो गए। इन सबको एक बार फिर से आश्रय हिंदी फिल्मों ने ही दिया। सुर-संगीत के तिलिस्म ने हिंदी फिल्मों की परिभाषा ही बदल दी। इसने हमारी अपनी संस्कृति में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिया। 40 के दशक में एक फिल्म बनी थी ‘एक थी लड़की’ जिसका गीत ‘लाई लम्पा, लाई लम्पा, लारा लम्पा’ आज भी होठों पर आ जाता है जिससे गीत-संगीत की शक्ति स्पष्ट हो जाती है।
जागे कब से यह लोकोक्ति हम सुनते आ रहे हैं होनहार बिरवान के होत चिकने पात। यह उक्ति हिंदी फिल्मों के शैशव काल पर पूरी तरह से चरितार्थ होती है। 1931 में पहली बोलती फिल्म आलम आरा रिलीज हुई और हिंदी का पहला गाना संगीतबद्ध हुआ दे-दे खुदा के नाम पर प्यारे ताकत हो गर देने की। बजीर मुहम्मद खान द्वारा स्वरबद्ध इस गीत के संगीत निर्देशक थे फिरोज शाह मिस्त्री और बी. ईरानी। 1932 की फिल्म इंद्रसभा में 69 गाने थे। अधिकतर संगीतकार शास्त्रीय या नाटक की पृष्ठभूमि से थे और गीतों को गाने का अंदाज खास हिंदुस्तानी शैली में था। 1932-33 के वर्ष हिंदी गीतों के लिएएक और अर्थ में भी महत्वपूर्ण थे। इस समय एक सितारा आया जिसने अपने गीत खुद गाए और उसके गीतों को जबरदस्त मकबूलियत मिली। यह थे कुंदन लाल सहगल हिंदी फिल्मों के प्रथम लीजेंड। मुकेश और किशोर कुमार ने अपने गीतों का आरंभ सहगली शैली में ही किया। बालम आन बसो मोरे मन में, कहूं क्या आस निरास भई (देवदास 1935) और इक बंगला बने न्यारा (प्रेसीडेंट 1937) और बाबुल मोरा (स्ट्रीट सिंगर 1938) समय की सभी हदों को पार कर हमारे अवचेतन का एक भाग बन गए हैं। इस समय के कुछ महत्वपूर्ण गायक और संगीतकार थे कानन देवी, के.सी.डे. और सचिन देव बर्मन। अनिल विश्वास, पंकज मलिक, तिमिर बारन और केदार शर्मा ने अपनी संगीत यात्रा का आरंभ इसी समय किया।
संगीत में देश के विभिन्न भागों की आंचलिकता का प्रभाव भी आया। सी. रामचंद्र और वसंत देसाई के संगीतबद्ध गीतों में महाराष्ट्र और गोवा का प्रभाव था वहीं आना मेरी जाग संडे के संडे (सी. रामचंद्र) जैसे पश्चिमी अंदाज के गाने भी बेहद प्रसिद्ध रहे थे। 1944 में आयी रतन ने नौशाद को प्रसिद्ध संगीतकारों की श्रेणी में ला खड़ा किया। जोहरा बाई अम्बाले वाली का गाया गीत ‘अखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जागा’ आज भी उसी शिद्दत से सुना जाता है। उमा देवी (प्रसिद्ध हास्य कलाकार टुनटुन) का अफसाना लिख रही हूं (दर्द) और अनमोल घड़ी (1946) का नूरजहां का गीत आवाज दे कहां है अपने समय का ऐसा भाग है जो अमर हो गया और जिसे आज भी सुना जाता है। गाए जा गीत मिलन के (मेला, 1948, मुकेश), सुहानी रात ढल चुकी ( दुलारी, 1949, मोहम्मद रफी), तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी (दिल्लगी, 1949) जैसे गीतों ने नौशाद को शिखर पर पहुंचा दिया।
हिंदी फिल्मों में संगीत का स्वर्णिम दौर
1949 से 1969 तक के समय को फिल्म संगीत का स्वर्णिम समय माना जा सकता है। मजरूह, प्रेम धवन, राजा मेंहदी अली खान, इंदीवर, साहिर लुधयानवी, शैलेंद्र और हसरत जयपुरी जैसे गीतकारों ने गीतों को कलात्मक ऊंचाइयां दीं। गायकों में मुकेश, किशोर, रफी के साथ-साथ मन्ना डे, तलअत महमूद और हेमंत कुमार थे और सबसे बड़ी बात लता मंगेशकर का होना। इस आवाज का सम्मोहन आज भी सभी के सिर चढ़कर बोल रहा है। इस दौर में शंकर-जयकिशन जैसे संगीतकारों की जोड़ी की तर्ज पर अन्य जोड़ियां भी आईं लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी.आनंदजी, नदीम-श्रवण इन सब पर और स्वतंत्र संगीतकार जैसे अनु मलिक और हिमेश रेशमिया पर शंकर-जयकिशन का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
शंकर-जयकिशन के साथ दूसरे जबरदस्त संगीतकार उभरे-सचिन देव बर्मन। बर्मन दा चालीस के दशक से ही फिल्मों में थे लेकिन उनकी शैली की छाप इसी समय पड़ी। राजकपूर के साथ के दूसरे सुपर स्टार थे देवानंद। खोया-खोया चांद (काला बाजार), हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए (काला पानी), मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया और अल्लाह तेरो नाम (हम दोनों), गाइड, ज्वेलथीफ, तेरे मेरे सपने जैसी कितनी ही फिल्मों के यादगार गीत आज हमारी थाती हैं। बर्मन दा और बिमल राय की फिल्मों का संगीत भी अलग पहचान बनाता है।
नौशाद चालीस के दशक से ही सक्रिय थे बल्कि प्रसिद्धि में अव्वल नंबर पर टिके थे। अब उन्होंने शकील बदांयूनी के गीतों और मोहम्मद रफी की आवाज के जादू से एक नया संसार बना लिया। इन तीन मुस्लिम कलाकारों ने हिंदी फिल्मों को एक से बढ़कर एक भजन दिए हैं। आज भी ‘मन तरपत हरि दर्शन को आज’ या ‘ओ दुनिया के रखवाले’ जैसे भजन अनहद भाव लोक में ले जाते हैं। हिंदी फिल्मों के इतिहास में मील का पत्थर तीन फिल्में मुगल-ए-आजम, मदर इ.िडया और गंगा-जमुना का अमर संगीत नौशाद की ही देन है।
लेकिन यह युग सुर साम्राज्ञी लता का ही था। हर तरह के गीत उन्होंने गाए। रहस्मय कहीं दीप जले कहीं दिल, आ जा रे परदेसी, या मोहे भूल गए सांवरिया और फिर मोरा रंग लई लेए या दरबार की चकाचैंध में उदासी बेकस पे करम कीजिए और आशा को अहसास दिलाता कैबरे आ जागे जा लता पर इतना कुछ लिखा-पढ़ा जागे पर भी लता की आवाज को पकड़ पाना सामथ्र्य से बाहर लगता है। लता एक ऐसी गायिका हैं जिन्होंने पुरुष प्रधान फिल्मी दुनिया में न सिर्फ हिम्मत से अपनी जगह बनाई अपितु गायक-गायिकाओं, गीतकारों और संगीतकारों के महत्व को भी स्थापित किया।
यह युग निःसंदेह लता मंगेशकर का था। लेकिन स्वर्णिम युग इंद्रधनुषी होता है इसलिए लता, आशा, गीता दत्त और रफी, मुकेश, किशोर के अलावा ऐसी अनेक जादुई आवाजें थीं जिन्होंने इस युग के कैनवास को पूरा किया। तलअत महमूद के कंपकंपाते स्वर,शमशाद बेगम की आंच पर पकी आवाज, सुरैय्या के मधुर स्वर ऐसी ही आवाजें हैं।
फिल्म संगीत के क्षेत्र में 1970 और 1980 का दशक भी बेहद महत्वपूर्ण रहा। इस दौर में आर.डी. बर्मन एक ऐसे संगीतकार रहे जिनका बल्ला मजबूती से जमा रहा और उन्होंने अपने बेटे समेत सभी संगीतकारों को अपनी मृत्यु तक सशक्त चुनौती दी।
लेकिन बीते जमाने और शंकर-जयकिशन की परम्परा को आगे बढ़ाकर आर.डी. वर्मन के इस युग में भी अपने ढंग से झंडा गाढ़ने वाली एक संगीतकार जोड़ी थी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। बिंदिया चमकेगी,झूठ बोले कौवा काटे, ओम शांति ओम, खिंजा के फूल पे आती कभी बहार नहीं, सत्यम् शिवम् सुंदरम जैसे गाने न जागे कितनी जुबां पर चढ़े हैं। कल्याणजी.आनंदजी की जोड़ी ने भी पूरे जोश के साथ अपने संगीत-निर्देशन में अनेक यादगार गीत दिए। रोशन के पुत्र राजेश रोशन इस समय के अन्य उल्लेखनीय संगीतकार रहे। उनकी जूली के गाने देश की धड़कन बन गए और माई हार्ट इज बीटिंग हिंदी फिल्मों का पहला अंग्रेजी पाॅप गाना बना।
1990 और 2000 के दशक ने गीत संगीत को एक नई ताजगी दी और सिद्ध कर दिया कि हिंदी संगीत धारा अवरुद्ध हो तो हो मगर सूखी कभी नहीं है। ये फिल्में थीं महेश भट्ट की आशिकी आमिर खान की पहली फिल्म कयामत से कयामत तक और सलमान खान की पहली फिल्म मैंने प्यार किया। इनका गीत संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ और इन्होंने ऐसी फिल्मों के लिए माग्र खोला। राजश्री प्रोडक्शन की हम आपके हैं कौन बहुत वर्षों के बाद गानों पर आधारित फिल्म थी और इस फिल्म का हर गाना लोकप्रियता के शिखर को छू गया। दिल वाले दुलहनियां ले जाएंगे और, हम दिल दे चुके सनम ऐसी ही फिल्में थीं।
आनंद-मिलिंद, नदीम-श्रवण, जतिन ललित और अनु मलिक इस दौर के संगीतकारों में कुछ प्रमुख नाम हैं। उदित नारायणएएस.पी. बालासुब्रम-यम हरिहरन, कविता कृष्णमूर्ति प्रसिद्ध गायक रहे। आर.डी. बर्मन की आखिरी फिल्म 1942-ए लव स्टोरी ने फिर सिद्ध कर दिया कि आर.डी. बर्मन की जगह अनोखी थी और उसे कोई नहीं भर सकता। प्यार हुआ चुपके से और कुछ न कहो जैसे गाने पूरी शिद्दत के साथ आर.डी. बर्मन के संगीत का अहसास करा गए। पर कुल मिलाकर यह समय सस्ते गीत-संगीत और पाश्चात्य तर्जों की नकल का था। ऐसे समय पर ताजी हवा के झोंके की तरह दक्षिण पवन के रूप में ए.आर. रहमान ने पूरे देश को झकझोर दिया।
अपनी पहली ही फिल्म रोजा के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित रहमान ने अपने आगमन के साथ एक नए युग का सूत्रपात किया। दिल है छोटा सा, रोजा जागे मन, रुक्मिणी हर दिल की जुबान बन गए। इसके बाद ही दूसरी सुपरहिट बाम्बे के गाने कहना है क्याए हम्मा-हम्मा और भी प्रसिद्ध है। रहमान को तुरंत हिंदी फिल्में मिलीं और रंगीला जैसी फिल्मों ने हिंदी फिल्म संगीत को बदलकर रख दिया। शंकर अहसान लाॅय, विशाल शेखर, आदेश श्रीवास्तव, विशाल भारद्वाज, एमण्एमण् करीमण् सुखबिंदर सिंह. प्रीतम आदि अन्य संगीतकार हैं।
गुजरते वक्त के साथ युगों का आरंभ एवं अवसान होता है। हिंदी फिल्मों की बयासी वर्षों की इस यात्रा में इसी तरह हर दशक में कोई न कोई परिवर्तन हुआ है।
हिंदी फिल्मों में नृत्य
भारतीय सिनेमा में नृत्य शैलियां भारी मात्रा में भारतीय शास्त्रीय परम्पराए लोक कला परम्परा और पश्चिमी नृत्य परम्परा से ली गई है। लेकिन फिल्मी नृत्य ने इनका उपयोग इनके मूल एवं विशुद्ध रूप में नहीं किया। नृत्य एकल रूप से अभिनेत्री या सुंदरी द्वारा हो सकता है। त्यौहार या उत्सव या बड़े आयोजन पर नृत्य सामूहिक रूप में हो सकता है। नृत्य को फिल्म के विषय के तहत् बुना जाता है (लोक एवं पश्चिमी नृत्य परम्पराओं का समिश्रण)। अक्सर हीरो और हिरोइन द्वारा एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति हेतु नृत्य किया जाता है।
हिंदी फिल्मों में, खुशी, दुःख या संताप, विलाप के भावों की अभिव्यक्ति के लिए नृत्य का इस्तेमाल किया जाता रहा है। ध्यान मात्र इस बात पर नहीं होता कि नृत्य शैली को प्रस्तुत करना है अपितु दर्शकों को खींच लाने के उद्देश्य से लोगों को छू लेने वाला बनाना होता है। गौरतलब है कि 1950 और 1960 के दशक की फिल्मों में अभिनेत्रियों द्वारा कि, गए नृत्य को खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया गया जिसने अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया। उच्चकोटि की अभिनेत्रियों जैसे वैजयंतीमाला वहीदा रहमान आशा पारेख और हेमा मालिनी अपने क्षेत्र में कुशल नर्तकियां थीं और उन्होंने फिल्मों में इसे बखूबी प्रस्तुत किया।
1970 और 1980 के दशकों में शास्त्रीय संगीत पर आधारित नृत्यों ने अपनी दर्शक आकर्षण खूबी को खो दिया। फिल्में दरबारी शैली नृत्य या लोक नृत्य के साथ पश्चिमी नृत्य शैलियों के खूबसूरत मिश्रण वाली होने लगीं। अभिनेता या अभिनेत्री अक्सर सपोर्टिंग नर्तकों के समूह के साथ नृत्य प्रस्तुति देने लगे।
1990 और 2000 के दशकों में नृत्य अधिकाधिक पश्चिमी शैली के हो गए। इसने फिल्मी नृत्यों में अधिकाधिक फूहड़ता का समावेश किया। एक नया तत्व आया जिसे ‘आइटम डांस’ या ‘आइटम नंबर’ कहा गया। इन आइटम नंबर ने दर्शकों को खुली अश्लीलता एवं फूहड़ता के कारण अपनी ओर खींचा। ऐसे नृत्यों में ऊंची आवाज और हाव-भाव कैंची सांग और सौंदर्यपरकता की कमी वाले विशेषताओं वाले होते हैं। अक्सर शारीरिक रूप से सुंदर एवं आकर्षक महिला (आइटम गर्ल) जिसका मुख्य फिल्म में कोई किरदार नहीं होता है, इस प्रकार के नृत्य को प्रस्तुत करती है। पूर्व में इस प्रकार के नृत्य को दरबारी नर्तक (तवायुद्ध द्वारा अमीर लोगों को खुश करने के लिए किया जाता था या कैबरे शो होता था। मीना टी. एवं जयश्री टी. हेलेन बिंदु पद्मा खन्ना अपने कैबरे नृत्य के लिए प्रसिद्ध थीं। आधुनिक फिल्मों में आइटम नम्बर को डिस्कोथिक सीक्वेंस सेलिब्रेशन या स्टेज शो के रूप में डाला जाता है।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…