when dholpur agreement in hindi धौलपुर समझौता कब हुआ इतिहास ?
प्रश्न : धौलपुर समझौता क्या है ?
उत्तर : पेशवा बालाजी बाजीराव तथा सवाई जयसिंह की भेंट धौलपुर में हुई। 18 मई 1741 ईस्वी तक पेशवा धौलपुर में ही रहा तथा जयसिंह से समझौते की बातचीत की। अंत में दोनों के मध्य एक समझौता हो गया , जिसकी मुख्य शर्तें निम्नलिखित प्रकार थी –
- पेशवा को मालवा की सूबेदारी दे दी जाएगी लेकिन पेशवा को यह वायदा करना होगा कि मराठा मुगल क्षेत्रों में उपद्रव नहीं करेंगे।
- पेशवा , 500 सैनिक बादशाह की सेवा में रखेगा तथा आवश्यकता पड़ने पर पेशवा 4000 सवार एवं बादशाह की सहायतार्थ भेजेगा जिसका खर्च मुग़ल सरकार देगी।
- पेशवा को चम्बल के पूर्व और दक्षिण के जमींदारों से नजराना और पेशकश लेने का अधिकार होगा।
- पेशवा बादशाह को एक पत्र लिखेगा जिसमें बादशाह के प्रति वफ़ादारी तथा मुग़ल सेवा स्वीकार करने का उल्लेख होगा।
- सिन्धिया और होल्कर भी यह लिखकर देंगे कि यदि पेशवा , बादशाह के प्रति वफादारी से विमुख हो जाता है तो वे पेशवा का साथ छोड़ देंगे।
- भविष्य में मराठे , बादशाह से धन की कोई नयी माँग नहीं करेंगे।
सवाई जयसिंह की सलाह से बादशाह ने 4 जुलाई 1741 ईस्वी को उक्त समझौते के आधार पर फरमान जारी कर दिया जिससे बादशाह की मान प्रतिष्ठा भी बनी रही तथा शाही समपर्ण भी छिपा रहा।
प्रश्न : सवाई प्रतापसिंह ब्रजनिधि की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ बताइये ?
उत्तर : महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु होने पर उनके छोटे भाई प्रताप सिंह ने 1778 ईस्वी में जयपुर का शासन संभाला। इनके काल में अंग्रेज सेनापति जोर्ज थॉमस ने जयपुर पर आक्रमण किया। मराठा सेनापति महादजी सिंधिया को भी जयपुर राज्य की सेना ने जोधपुर नरेश महाराणा विजयसिंह के सहयोग से जुलाई 1787 में तुंगा के युद्ध में परास्त किया।
साहित्य के क्षेत्र में योगदान : प्रताप सिंह जीवन भर युद्धों में उलझे रहे फिर भी उनके काल में कला और साहित्य में अत्यधिक उन्नति हुई। वे विद्वानों और संगीतज्ञों के आश्रयदाता होने के साथ साथ स्वयं भी ” ब्रजनिधि ” नाम से काव्य रचना करते थे। इनकी रचनाओं में प्रीतिलता , स्नेह संग्राम , फागरंग , प्रेम प्रकाश , मुरली विहार , रंग चौपड़ , प्रीति पच्चीसी , प्रेमपन्थ , ब्रज श्रृंगार , दुःख हरण वेली , रमक झमक बत्तीसी , श्री ब्रजनिधि मुक्तावली और ब्रजनिधि पद संग्रह प्रसिद्ध है। इनकी कविता ढूंढाड़ी और ब्रज भाषाओँ में है।
संगीत के क्षेत्र में योगदान : उन्होंने जयपुर में ब्रहर्षि ब्रजपाल भट्ट के नेतृत्व में एक संगीत सम्मलेन करवाकर राधागोविन्द संगीत सार ग्रन्थ की रचना करवाई। उसके समय में विभिन्न 22 क्षेत्रों के गुणीजनों की एक संगोष्ठी थी जिसे ‘बाईसी’ कहा जाता था। इनके दरबारी राधाकृष्ण ने राज रत्नाकर और पुण्डरीक विटुल ने नर्तन निर्णय , राग चन्द्रसेन , ब्रज कलानिधि नामक संगीत ग्रन्थ लिखे।
स्थापत्य कला के क्षेत्र में योगदान : उन्होंने 1799 में जयपुर में हवामहल का निर्माण करवाया जो पाँच मंजिला है। इसका वास्तुकार श्री लालचंद था। इसकी विशेषता यह है कि यह बिना नींव के ही समतल जमीन पर बना हुआ है। महाराजा प्रतापसिंह कृष्ण के पक्के भक्त थे और हवामहल भगवान कृष्ण को ही समर्पित है इसलिए इसकी बाहरी आकृति भगवान कृष्ण के मुकुट जैसी है। हवामहल में छोटी बड़ी कुल 953 खिड़कियाँ है और मुख्य खिडकियों की संख्या 365 है। पिरामिड आकार के इस पाँच मंजिले महल में अलंकरण की अनूठी झलक दिखाई देती है। हवामहल का प्रथम तल में शरद मंदिर और प्रताप मंदिर (श्रीकृष्ण) है। दूसरी मंजिल पर रतन मंदिर , तीसरी मंजील पर विचित्र मंदिर , चौथी मंजिल पर प्रकाश मंदिर तथा पाँचवी मंजिल हवा मंदिर के नाम से जानी जाती है। हवामहल बनवाने का उद्देश्य बनवाने का उद्देश्य था कि महारानियाँ उन खिडकियों के पीछे बैठ कर गणगौर , तीज , जन्माष्टमी आदि की सवारियाँ और बाजार की हलचल देख सके और बाहरी लोग उनको ना देख सके। प्रतापसिंह ने जलमहल को पूर्णता प्रदान की ताकि गर्मी के दिनों में रात्रि काल में वहाँ शाही आयोजन हो सके।