हिंदी माध्यम नोट्स
धर्म चक्र प्रवर्तन क्या है , धर्म चक्र प्रवर्तन से क्या समझते हैं किसे कहते है dharmachakra pravartana in hindi
dharmachakra pravartana in hindi meaning धर्म चक्र प्रवर्तन क्या है , धर्म चक्र प्रवर्तन से क्या समझते हैं किसे कहते है ?
धर्म-चक्र-प्रवर्तन मुद्रा : इसमें बुद्ध के दोनों हाथ सीने तक उठे हुए और एक हथेली सामने की ओर, एक हथेली अन्दर की ओर, दोनों हाथों की तर्जनी तथा अंगूठे की स्थिति इस प्रकार मानो धागा पकड़े हों या हाथ से चक्र पकड़े हों और दूसरे से उसकी परिधि घुमा रहे हों। यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में प्रथम उपदेश द्वारा बौद्ध धर्म का चक्र आरम्भ करने की प्रतीक मुद्रा है। इसीलिए यह धर्म-चक्र-प्रवर्तन मुद्रा कहलाती है।
विविध
भारतीय मूर्तिशिल्प कला के प्रतिमा शास्त्रीय लक्षण
भारतीय प्रतिमा शिल्प की आधारशिला ‘पूजा परम्परा‘ और ‘ध्यान‘ हैं। मूर्तियों की पहली आवश्यकता धार्मिक पूजा-पाठ के लिए उत्पन्न हुई। इसका प्राचीनतम प्राकृतिक तत्वों की पूजा था, यथा-सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, आकाश आदि। इनक अतिरिक्त पशु, वृक्ष, पक्षी, नदी, पर्वत आदि की पूजा भी आदिम युग से ही प्रचलित रही है। शिव प्रतिमाओं में अनेक अनुग्रह-संहार सौम्य व वीभत्स रूप प्राप्त होते हैं।
बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने प्रारम्भिक अवस्था में बुद्ध का आभास प्रतीकों द्वारा कराया। इसीलिए प्राचीन बौद्धकालीन कला (हीनयान सम्प्रदाय) में प्रतीकों को ही स्थान दिया गया। बुद्ध का यह सांकेतिक प्रदर्शन सांची, भरहुत, बोधगया एक अमरावती में देखने को मिलता है। गौतम बुद्ध ने स्वयं कहा था कि पूजा तीन रूपों ‘शारीरिक‘, ‘पारभौतिक‘ और उद्येशिका‘ में की जा सकती है और उसे पूजा का वही फल प्राप्त होगा जो व्यक्तिगत पूजा से प्राप्त होता है। यही कारण था कि बुद्ध के स्थान पर उनके प्रतीक चिह्नों की पूजा की जाने लगी।
निम्न प्रतीक चिह्न पारभौतिक‘ प्रदर्शन करते हैं-
सिंहासन: बुद्ध का सिंहासन बोधिवृक्ष के नीचे दिखाया जाता है। सिंहासन पर फूलें के ढेर से बुद्ध की उपस्थिति का भान हो जाता है।
बुद्धपद: सिंहासन पर बुद्ध के चरण चिह्न प्रदर्शित किये जाते हैं। साँची स्थापत्य में बुद्ध की कपिलवस्तु यात्रा को उनके चरण-चिह्नों द्वारा प्रकट किया गया है।
कुछ विद्वान इसीलिए यह मानते हैं कि बुद्ध की प्रतिमा का प्रदर्शन का स्रोत यूनान है और गांधार कला में बुद्ध का प्रदर्शन अपोलो के नमूने पर किया, परन्तु उसी की समकालीन मथुरा की कुषाणकालीन बुद्ध प्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो अपनी शैली, भाव एवं रूप में पूर्णतः भारतीय हैं। कुमार स्वामी का मत है कि मथुरा और गांधार में बुद्ध प्रतिमाएं साथ-साथ बनी। कालान्तर में गुप्तकाल और उत्तरगुप्तकालीन बुद्ध प्रतिमाएं आध्यात्मिक ज्ञान की चरम अवस्था को प्रगट करती हैं। बुद्ध प्रतिमाओं का प्रदर्शन तीन अवस्थाओं में किया गया है- खड़ी, बैठी और लेटी हुई। बैठी हुई बुद्ध प्रतिमाएं पांच मुद्राओं में अंकित हैं- ध्यान मुद्रा, अभयमुद्रा, वरदमुद्रा, भूमिस्पर्श मुद्रा एवं धर्मचक्र प्रवर्तन या व्याख्यान मुद्रा।
बुद्ध की खड़ी प्रतिमाओं में: दाहिना हाथ अभय या वरद मुद्रा में व बायां हाथ कमर पर रखा रहता है या सीधा नीचे लटका रहता है।
बुद्ध की हथेली और पैरों पर कुछ शुभ चिह्न अंकित रहते हैं। अन्य विशेषताओं में बुद्ध के सिर पर उर्ण दर्शाया गया है।
कान बड़े व लम्बे हैं। बोधिसत्वों को राजकीय वेशभूषा से अलंकत दिखाया गया है और वे अपने हाथों में कमल, वज्र, पदम, अमृतघट आदि लिये रहते हैं।
धर्म, तंत्र और नृत्यकला के प्रभाव के कारण भारतीय मूर्तिकला के कुछ विशेष नियम विकसित हुए हैं।
खड़ी मूर्तियां
इस स्थिति को ‘स्थान‘ कहा जाता है। इसकी निम्न स्थितियां होती हैं-
भद्रासन: पैरों को खोलकर सीधे खड़े होना।
समभंग: बिल्कुल सीधे खड़े होना जिसमें शरीर में कोई भी भंग न हो। हाथ व पैर सीधे व शरीर के दोनों भाग एक समान हो। इसे वज्रासन, दण्डासन अथवा खड़गासन भी कहा जाता है।
अभंग: शरीर की स्थिति समभंग की भांति ही, परन्तु एक घुटना आगे की ओर मुड़ा हुआ।
त्रिभंग: शरीर में तीन अंग हों। यथा – सिर एक ओर, वक्ष से कटि तक का भाग अन्य दिशा में, कमर से नीचे का भाग पुनः दूसरी दिशा में। जैसे-कृष्ण को त्रिभंगी मुद्रा में बांसुरी वादन करते दिखाया जाता है।
अतिभंग: शरीर में कई अंग दिखाये जाते हैं, जैसे – शिव-ताण्डव में।
शाल-भंजिका: इस मुद्रा में त्रिभंगी मुद्रा में खड़ी स्त्री एक हाथ से शाल वृक्ष की शाखा पकड़े दिखाई जाती है। यह मुद्रा बुद्ध जन्म की प्रतीक भी मानी गई है। बुद्ध के जन्म के समय माया देवी शाल वृक्ष की शाखा पकड़े थी जिसके कारण इसे शाल-भंजिका मुद्रा कहा जाता है।
बैठी मूर्तियाँ
इसे ‘आसन‘ भी कहा जाता है। इसकी मुख्य निम्न स्थितियां हैं-
पद्मासन: पालथी लगाये हुए, दोनों पैरों के तलवे ऊपर की ओर दिखाई दें तथा एक समान सीध में हों।
अर्धपद्मासन: पालथी लगाये हुए व एक पैर का तलवा ऊपर की ओर उल्टा दिखाया जाये।
ललितासन: इसमें एक पैर पालथी की स्थिति में हो जबकि दूसरे पैर का घुटना मुड़ा हुआ ऊपर आसन पर रखा हो तथा बायीं हथेली पर शरीर का बोझ हो।
महाराज लीलासन: कुर्सी पर एक पैर लटकाये हुए व एक पैर ऊपर, शरीर कुछ लेटी हुई स्थिति में बायी कुहनी पर स्थित हो।
मैत्रेयासन: कुर्सी या ऊँचाई पर बैठे दोनों पैर एक समान नीचे लटके हुए।
विश्राभासन: कुर्सी पर बैठकर एक पैर लटकाना, दूसरा पैर हाथ से पकड़ना।
लेटी हुई स्थिति को ‘शयन‘ कहते है। शयन की स्थिति में प्रायः शेषशायी विष्णु, बुद्ध का परिनिर्वाण, यशोदा और कृष्ण, कौशल्या और राम तथा त्रिशला और महावीर आदि का चित्रण मिलता है।
मद्रायें दो प्रकार की होती हैं- अरूप तथा सरूप। अरूप मुद्राओं से किसी भाव “अथवा क्रिया की व्यंजना की जाती है। इनमें हस्त मुद्रायें प्रमुख हैं। सरूप मुद्राओं में आयुध आदि लिए हुए दिखाया जाता है।
मूर्ति अथवा चित्र की भाषा मूक होती है। परन्तु हस्तमुद्राओं, शरीर की भंगिमा, वेशभूषा तथा वातावरण के माध्यम से भावों की व्यंजना की जाती है। सबसे अधिक महत्व हस्त-मुद्राओं का होता है। कुछ विशेष हस्त-मुद्रायें निम्न प्रकार से है-
ध्यान मदा: पदमासन लगाये, दोनों हाथ गोद में रखे, हथेलियां ऊपर की ओर व ध्यानमग्न अवस्था।
अभय मुद्रा: पदमासन लगाये, बायाँ हाथ गोद में और दाहिना हाथ हथेली सामने की ओर किये हुए सीने के समान्तर उठा हुआ।
भूमिस्पर्श मुद्रा: पद्मासन लगाये, बायां हाथ उसी प्रकार गोद में हथेली ऊपर की ओर व दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली भूमि की ओर संकेत करती हुई।
वरद मुद्रा: खड़ी अथवा बैठी मूर्ति का दाहिना हाथ कुछ आगे रहता है, हथेली खुली रहती है तथा अंगुलियां सटी हुई नीचे की ओर आधी-मुड़ी हुई रहती हैं। इसके माध्यम से वरदान देने की क्रिया दर्शायी जाती है।
व्याख्यान तथा वितर्क मुद्रा: दाहिने हाथ की तीन अंगुलियां (मिध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठा) ऊपर की ओर सीधी रहती हैं तथा तर्जनी और अंगूठे को मिला देने पर वृत्त जैसा आकार बनता है जो पूर्णता का प्रतीक है।
ज्ञान मुद्रा.: (वज्र, मुद्रा, बोधश्री मुद्रा) इसमें बायें हाथ की शेष अंगुलियां तथा अंगूठा बन्द दिखाये जाते हैं तथा तर्जनी सीधी-खड़ी रहती है जिसे दाहिने हाथ की मुट्ठी से बन्द कर लेते हैं। यह ज्ञान की सर्वोच्चता की प्रतीक है। इससे वज्र की आकृति बन जाती है। अतः इसे वज्र मुद्रा भी कहा जाता है।
अंजलि मुद्रा: इसमें दोनों हाक्ष जुड़े रहते हैं मानो प्रार्थना कर रहे हों। पुष्प पट रू इस मुद्रा में दोनों हाथ इस प्रकार मिले रहते हैं मानो हाथों में पुष्प आदि लेकर देवता को समर्पित करने वाले हों अथवा देवता से याचना कर रहे हों।
बुद्ध पात्र मुद्रा: इसमें बायें हाथ की हथेली को इस प्रकार दिखाते हैं मानों उस पर कोई पात्र रखा हो। इसके ऊपर दाहिनी हथेली ऐसी स्थिति में रखते हैं माना उस पात्र को ढंक रहे हों। इसके द्वारा यह व्यक्त किया जाता है कि जो सत्य को नहीं जान पाता वह नियम के बंधन में बन्द हो जाता है।
गोपन मुद्रा: इसमें बायें हाथ की मुट्ठी बनाकर सीधे हाथ से ढंकी दिखाते हैं (जैसे दीपक को बुझने से रोकना) यह किसी रहस्य को छिपाने का भाव व्यक्त करती है।
वृषभासन मुद्रा: इसमें खड़े हुए शिव का एक हाथ कुहनी से आगे की ओर मुड़ा हुआ इस प्रकार दिखाते हैं मानो वह वृषभ (नन्दी) की पीठ पर रखा हो। खड़े हुए शिव के शरीर में भी इस प्रकार की भंगिमा दिखाई जाती है मानो वे वृषभ का थोड़ा-सा सहारा लिए खड़े हैं।
आसन-वस्तु
जिस वस्तु या वाहन पर किसी आकृति को बैठा या खड़ा दिखाते हैं उसे ही ‘आसन-वस्तु‘ कहते हैं। भारतीय मूर्तियां चैकी, सिंहासन, चटाई, गज, मृग अथवा व्याघ्र चर्म, कमल, शिला, पद्पमत्र, सुमेरु, पशु (हाथी, सिंह, अश्व, वृषभ, महिष, मृग, मेढ़ा, शूकर, गधा व शार्दूल आदि), पक्षी (मयूर, हंस, उलूक, गरुड़ आदि), जलचर (मकर, मीन, कच्छप आदि) पर बैठी हुई अथवा खड़ी हुई अंकित की जाती है।
आयुध
आयधों के माध्यम से प्रतिमाओं के गुण अथवा शक्ति प्रदर्शित की जाती है। किसी दैवी प्रतिमा के अनेक गण प्रकट करन की दृष्टि से हाथों की संख्या भी बढ़ायी गई है। इन हाथों में जो वस्तुएं दिखाते हैं वे किसी शक्ति, क्रिया या गुण का प्रतीक होती हैं।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…