हिंदी माध्यम नोट्स
देवठान एकादशी का मेला कब लगता है ? देवठान मेले का आयोजन कहाँ होता है devthan ekadashi fair in hindi
devthan ekadashi fair in hindi देवठान एकादशी का मेला कब लगता है ? देवठान मेले का आयोजन कहाँ होता है ?
मेले
भारतीय मेले भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक वाणिज्यिक और कभी-कभी धार्मिक जीवन से भी जुड़े होते हैं। भारत के लगभग सभी त्यौहारों में छोटे-बड़े मेले भी लगते हैं। दशहरा, गणेशोत्सव, ईद, मकर संक्रांति और यहां तक कि मुहर्रम में भी मेले लगते हैं। कुछ प्रमुख मेले निम्नलिखित प्रकार से हैं
देवठान एकादशी का मेला : देवठान एकादशी का मेला उत्तर प्रदेश स्थित मथुरा जिले में कार्तिक माह की एकादशी को आयोजित किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल से ही श्रद्धालु यमुना में स्नान करते हैं तथा फिर तीनों वन मथुरा, वृंदावन तथा गरूण गोविंद की परिक्रमा करते हैं।
कुंभ मेला : यह आम परम्परागत भारतीय मेलों से भिन्न है। यह मूलतः एक धार्मिक सम्मेलन है जो 12 वर्ष में एक बार (महाकुंभ) चार तीर्थ स्ािानों (इलाहाबाद, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार) में बारी-बारी से आयोजित होता है। ‘अर्द्धकुंभ’ 6 साल में एक बार आता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब ‘देवों’ और ‘असुरों’ ने मिलकर समुद्र मंथन किया था जो समुद्र से बहुत ही अमूल्य वस्तुएं बाहर निकली थी। इसमें से एक अमृत कलश भी था। इस ‘अमृत’ की छिना-झपटी में कुछ अमृत 12 स्थानों के साथ-साथ पाताल में भी गिरा। इन स्थानों में हरिद्वार, उज्जैन, इलाहाबाद और नासिक शामिल हैं और प्रत्येक 12 वर्ष पर इन स्थानों पर बड़े मेलों का आयोजन होता है।
पुष्कर मेला : इस मेला का आयोजन राजस्थान स्थित अजमेर के समीप पुष्कर नामक स्थान पर किया जाता है। भक्त गण पुष्कर झील के आसपास एकत्रित होते हैं और इसमें पुण्य स्नान करते हैं। पुष्कर भारत का एकमात्र तीर्थस्थल है जहां अभी भी ब्रह्मा की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा यज्ञ के लिए उचित स्थान की खोज कर रहे थे उस समय उनके हाथ से एक कमल का फूल गिर पड़ा। यह पवित्र स्थल पुष्कर के नाम से जागा जाता है। इस अवसर पर यहां हर वर्ष मेला लगता है। यहां कार्तिक माह की पूर्णमासी के दिन दूर-दूर से लोग आकर पुष्कर सरोवर में स्नान करते हैं तथा वहां स्थित मंदिरों के दर्शन कर पुण्य कमाते हैं। इस अवसर पर यहां एक विशाल पशु मेले का भी आयोजन किया जाता है।
गऊ चारण का मेलाः यह मेला ब्रजक्षेत्र के प्रसिद्ध मेलों में से एक है जो मथुरा में कार्तिक माह की अष्टमी को आयोजित किया जाता है। इस दिन गायों की पूजा की जाती है तथा द्वारिकाधीश के श्रीकृष्ण, बलराम व गायों की सवारी निकाली जाती है। इस मेले को गोपा अष्टमी के मेले के नाम से भी जागा जाता है।
माघ घोघरा का मेला : मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के भैरोंथान नामक स्थान पर प्रतिवर्ष शिवरात्रि के अवसर पर माघ घोघरा का मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला अनेक वर्षों से लगता आ रहा है। यह मेला 15 दिन तक चलता है। इस मेले का आरंभ कब हुआ इसकी जागकारी उपलब्ध नहीं है। यहां एक प्राकृतिक गुफा और पानी की एक प्राकृतिक झील है। कहते हैं यहां भगवान शिव प्रकट हुए थे।
पीर बुधान का मेला : यह मेला मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में सांवरा गांव में एक मुस्लिम संत पीर बुधान की मजार पर आयोजित होता है। इस मेले का आयोजन प्रतिवर्ष अगस्त-सितंबर में किया जाता है। कहा जाता है कि 250 वर्ष पुराना यह मेला परंपराग्त ढंग से प्रतिवर्ष आयोजित होता है।
यमद्वितीया का मेला : यमद्वितीया का मेला उत्तर प्रदेश स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थली मथुरा में आयोजित किया जाता है। यह मेला कार्तिक माह में दीपावली की द्वितीया को लगता है। इस दिन यहां दूर-दूर से लोग आते हैं और भाई-बहन एक-दूसरे का हाथ पकड़कर यमुना में स्नान करते हैं तथा यम की पूजा करते हैं। यमद्वितीया का प्रचलित नाम ‘भैयादूज’ भी है।
ग्वालियर का मेला : ग्वालियर मध्य प्रदेश में स्थित है। यहां प्रतिवर्ष दिसम्बर-जनवरी माह में एक व्यापारिक मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में भारत की प्रतिष्ठित कम्पनियां उत्पादित वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाती हैं। इस मेले में पशुओं का भी क्रय-विक्रय किया जाता है। दिन-प्रतिदिन व्यापारिक दृष्टिकोण से इस मेले का महत्व बढ़ता जा रहा है।
जलबिहारी का मेला : जलबिहारी का मेला मध्य प्रदेश स्थित छतरपुर जिले में प्रतिवर्ष अक्टूबर माह में आयोजित किया जाता है। यह मेला दस दिन तक चलता है, जिसमें अनेक आकर्षक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
रण उत्सवः गुजरात के कच्छ जिले में सांस्कृतिक महोत्सव ‘रण उत्सव’ का प्रारंभ 17 दिसंबर, 2013 को हुआ। इस महोत्सव के दौरान सफेद नमक के पहाड़, मंत्रमुग्ध कर देने वाला सूर्योदय और सूर्यास्त तथा गुजराती संस्कृति के विविध रंग प्रदर्शित होते हैं। रण उत्सव दुनिया के सामने कच्छ जिले की प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को पेश करता है। इस उत्सव में प्रत्येक उम्र के लोग भाग लेते हैं। यहां पहली बार आने वाले लोग भी होते हैं और ऐसे लोग भी हैं, जो साल दर साल नमक के मौसमी पहाड़ों को देखने के लिएएकत्रित होते हैं। मेले में सूर्योदय से सूर्यास्त और चंद्रोदय तक पूरी आभा के साथ नमक के चमकीले रेगिस्तान को देखने का तथा अत्यंत सुसज्जित आलीशान तंबुओं में रहने का मौका मिलता है।
मुसलमानों के त्यौहार
मुसलमानों के त्यौहार एवं धार्मिक दिन निश्चित तिथि को नहीं पड़ते किंतु हर वर्ष लगभग 11 दिन पहले आते हैं। ईद-उल-फितर खुशी का त्यौहार है। यह रमजाग के महीने के आखिर में आता है। रमजाग के दौरान मुसलमान रोजा रखते हैं। सुबह निश्चित समय कुछ खाकर दिन भर उपवास रखते हैं और शाम को निश्चित समय पर रोजा खोलते हैं। रमजाग का महीना बड़ा ही पाक (पवित्र) माना जाता है। इस दौरान हर बुराई से दूर रहा जाता है। यहां तक कि झूठ भी नहीं बोला जाता। शिया इस महीने के इक्कीसवें और बाइसवें दिन पैगम्बर के दामाद के इंतकाल का मातम मनाते हैं। रमजाग महीने के आखिरी दस दिन लैलुत-उल-कादर कहलाते हैं। ऐसा विश्वास है, इसी अवधि में, पैगम्बर मुहम्मद को कुरान उद्घाटित किया गया था। ईद-उल-फितर को हर मुसलमान गरीबों को दान देता है, साफ कपड़े पहनता है और अन्य मुसलमान भाइयों के साथ नमाज अदा करता है।
ईद-उल-जुहा (ईद-उल-अजहा या बकरीद भी कहते हैं) भी खुशी का एक अन्य मौका है। अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को आदेश दिया था कि वे अपने सबसे अजीज की कुर्बानी दें। इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी मीना में (मक्का के पास) देने का फैसला किया। वे अपने बेटे की गर्दन पर तलवार चलाने ही वाले थे कि उन्हें उद्घाटित हुआ कि यह अल्लाह में उनके यकीन और वफादारी का इम्तहान था। अब वे अपने साहबजादे की बजाय किसी भेड़ की कुर्बानी दे सकते थे। नमाज और दावतें इस मौके की खास बातें हैं। पहले मुस्लिम माह के दसवें दिन ‘मुहर्रम’ पड़ता है। यह इस्लाम के इतिहास में एक त्रासदी का प्रतीक है। यह मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। इस दौरान ताजिये निकाले जाते हैं। मातमी जुलूस निकाला जाता है। कई मुसलमान तलवार से अपने बदन पर घाव तक कर लेते हैं।
इनके अतिरिक्त कई स्थानों पर ‘उर्स’ का आयोजन होता है। सूफी संतों की कब्र पर उर्स का मेला लगता है। अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर उर्स का मेला लगता है, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों बड़ी श्रद्धा से आते हैं।
ईर्ससाइयों के त्यौहैहार
ईसाइयों के भी अपने पर्व-त्यौहार है। इनमें ‘ईस्टर’, ‘क्रिसमस’ इत्यादि प्रमुख हैं। ईस्टर एक समारोही उत्सव है। यह ईसा मसीह के क्रूस पर लटका, जागे के बाद उनके जीवित होने का उत्सव है। उत्तरी गोलार्ध में वसंत ऋतु के पहले दिन के बाद पहली अमावस्या के पश्चात् पहले रविवार को अधिकांशतः यह मनाया जाता है। इस प्रकार यह 22 मार्च से 25 अप्रैल के बीच पड़ने वाले किसी भी रविवार को हो सकता है। ईस्टर में समाप्त होने वाले पवित्र सप्ताह से जुड़े दिन हंै ‘पाम संडे’, इसे यीशु के जेरूसलम में प्रवेश का दिन मानते हैं, ‘माॅन्डी थर्सडे’, जो ईसा का आखिरी भोजन का दिन है, इस दिन उन्हें गिरफ्तार कर कैद में रखा जागा है, ‘गुड फ्राइडे’, यह क्रूस पर ईसा के मरने का दिन है यह शोक का दिन है, ‘होली सैटरडे’, यह पूरी रात जगने से जुड़ा है और ‘ईस्टर संडे’, को ईसा के पुगर्जीवन का दिन मानते हैं। ईसाइयों का मानना है कि वे भी मृत्यु के बाद नया जीवन पा सकते हैं। ईस्टर उत्सव इसी विश्वास का समारोह है।
‘क्रिसमस’ ईसाइयों के लिए अत्यंत खुशी का दिन है। यह ईसा मसीह का जन्मोत्सव है। 25 दिसंबर को यह उत्सव मनाया जाता है, यद्यपि किसी को भी ईसा के जन्म की सही तिथि ज्ञात नहीं है। इस अवसर पर ईसाई लोग अपने घर को सजाते हैं, उपहार देते हैं। ‘क्रिसमस’ के मौके पर ग्रीटिंग कार्ड वगैरह भेजना ईसाइयों तक ही सीमित नहीं रह गया है।
सिखों के त्यौहार
सिक्ख अपने गुरुओं का जन्मोत्सव ‘गुरुपर्व’ मनाते हैं। गुरु नानक का गुरुपर्व कार्तिक पूर्णिमा को पड़ता है और इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गुरु गोविन्द सिंह का गुरुपर्व भी उतनी ही श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है।
बौद्ध एवं जैन त्यौहार
बौद्ध वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध जयंती मनाते हैं। यह बुद्ध के जन्म के साथ-साथ उनके ज्ञान प्राप्त करने का भी परिचायक है। लद्दाख के हेमस बौद्ध विहार में गोम्पा के संरक्षक इष्टदेव गुरु पर्सिंम्भव के जन्म का वार्षिक उत्सव मनाया जाता है।
जैनियों के चैबीसवें और अंतिम तीर्थंकर महावीर का जन्म दिन महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है।
पारसियों के त्यौहार
पारसियों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार ‘नवरोज’ है यानी नया दिन। यह वासन्तिक विषुव यानी 20 मार्च को मनाया जाता है। यह शाश्वत नवरोज का उल्लास भरा उत्सव है, जब अहुर मजदा का साम्राज्य पृथ्वी पर आएगा। पारसियों का एक सम्पद्राय ‘फासलिस’ नवराजे को नववर्ष के रूप मंे मनाते हंै अगस्त-सितबंर में पारसी, अपना नव वर्ष ‘पतेती’ मनाते हैं। इसके एक सप्ताह पश्चात् वे जरथुष्ट्र का जन्म ‘खोरदद साल’ मनाते हैं। इन उत्सवों पर दिए जागे वाले प्रीतिभोज ‘गहम्बर’ कहलाते हैं।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…