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डेल्टा किसे कहते हैं हिंदी में , परिभाषा क्या होती है भूगोल डेल्टा के प्रकार delta in geography in hindi
delta in geography in hindi types डेल्टा किसे कहते हैं हिंदी में , परिभाषा क्या होती है भूगोल डेल्टा के प्रकार ?
नदी का निक्षेपण कार्य एवं निर्मित स्थलाकृतियाँ
(Depositional work of the Rivers and related landforms)
नदी अपने साथ अपरदित पदार्थों को तब तक बहाकर ले जाती है जब तक प्रवाह क्षमता में कमी नहीं आती। नदी प्रवाह में अवरोध, जल की कमी, ढाल में कमी या अवसादों की अत्यधिक मात्रा होने पर नदी मार्ग में अपना भार निक्षेपित कर देती है। इस प्रकार निक्षेपित अवसादों से अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
(1) जलोढ शंक (Alluvial fans) :- जब नदियाँ पर्वत प्रदेशों को छोड़कर मैदानों में प्रवेश करती हैं तो उसकी गति में अचानक परिवर्तन आ जाता है। गति कम हो जाने से परिवहन क्षमता घट जाती है। अतः पर्वतीय क्षेत्र से आया बड़ी मात्रा में अवसाद पर्वतों के नीचे टीले के रूपा में एकत्र हो जाता है। इन्हें जलोढ़ शंक कहते हैं। जब ऐसे कई टीले मिल जाते हैं तो इन्हें जलोढ़ पंख कहा जाता है। उत्तरप्रदेश के भावर तथा हिमालय क्षेत्र में ऐसे जलोढ़ पंख देखे जा सकते हैं।
(2) बालुका पुलिन (Alluvial Sand banks) :- नदियों की घाटी के मध्य बाढ़ के दिलों में विभिन्न प्रकार के अवसार जमा हो जाते हैं और बालू के अवरोधी पुलिन बन जाते हैं।
(3) तट बाँध ( Levees) :- नदी की मध्यवर्ती घाटी या मैदानों में निक्षेपण अधिक होता है। बाढ़ के समय नदी के प्रवाह की दिशा में ज्यों-ज्यों परिवर्तन होता है किनारों पर बजरी, मिट्टी, कंकड़- पत्थर जमा होते जाते है। इस प्रकार के कगार को तट बाँध कहते है। मिसिसिपी, लहगों नदियों के लटों पर इस प्रकार बांध देखे जा सकते है। इनके टूटने पर नदी का पानी मैदानों में फैल जाता है। धन जन की हानि होती है।
(4) बाढ़ का मैदान (Flood plain) – यह नदी की सबसे महत्वपूर्ण जमाव की क्रिया है। नदी में वर्षा ऋत जल व अवसाद की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है व नदी का जल अपनी घाटी छोडकर दर तक फैल जाता है। नदी द्वारा मैदान में प्रतिवर्ष भारी मात्रा में महीन अवसादों का जमाव आस-पास के मैदान में किया जाता है। इस क्षेत्र को बाढ़ का मैदान कहा जाता है। नदी के दोनों ओर बनने वाला बाढ़ का मैदान बहुत उपजाऊ होता है जैसे गंगा का मैदान मिसिसिपी का मैदान।
(5) विसर्प (Meanders) एवं गोखुराकार झील (Ox bow lake) मैदानी भागों में नदी का वेग कम हो जाता है तब नदी अपने साथ लाये अवसादों को छोड़ने लगती है तथा इनसे अवरोध पैदा होने पर मार्ग बदल लेती है। इस प्रक्रिया में नदी घमावदार हो जाती है जिन्हें विसर्प कहते हैं। इन मोड़ों के बाहरी घुमाव पर निरन्तर कटाव होता है और आन्तरिक घुमाव पर अवसादों का निक्षेप होता जाता है जब विसर्प का माड़ अत्यधिक बढ़ जाता है व निक्षेप वाले किनारे मिलने लगते हैं तो नदी घमावदार मार्ग छोड़कर सीधा माग ले लेती है। विसर्प गोलाकार झील की तरह रह जाता है इसे गोखराकार झील (Ox bow lake) कहा जाता है। ऐसे विसर्प व ऑक्सबो लेक मिसिसिपी नदी की घाटी में देखे जा सकते हैं।
(6) डल्टा (Delta) – नदी अपनी अन्तिम अवस्था में अथवा समुद्र में मिलने से पूर्व अपने साथ लाये समस्त अवसाद तट पर निक्षेपित कर देती है। इस बिन्दु पर नदी की परिवहन क्षमता लगभग समाप्त हो जाती है, ढाल लगभग नहीं होता है व अवसाद अत्यधिक मात्रा में पाये जाते हैं। अतः नदी का जल अनेक शाखाओं में बटकर बहने लगता है व इनके बीच त्रिभुज आकृति में अवसादा का निक्षेप पाया जाता है। इस डेल्टा कहते हैं व नदी की शाखाओं को वितरिक (distributary) कहा जाता है। डेल्टा का विस्तार समुद्र की ओर होता जाता है। जैसे-जैसे नदी अवसादों का निक्षेप करती जाती है, परन्तु प्रत्येक नदी डेल्टा नहीं बनाती। इसके लिये कुछ आवश्यक दशायें होना आवश्यक हैः-
(1) नदी में अवसाद अधिक मात्रा में होना चाहिये।
(2) डेल्टा निर्माण के लिये उचित स्थान होना चाहिये। अर्थात् चैड़ा निमग्न तट होना चाहिये
(3) समुद्र का जल शान्त होना चाहिये। तेज लहरें व हवायें अवसादों को समुद्र में बहा ले जाती है जिससे डेल्टा का निर्माण नहीं होता है।
(4) मुहाने पर नदी का वेग बहुत मन्द होना चाहिये तथा धरातल समतल होना चाहिये तभी नदी का पानी कई शाखाओं में बँट जाता है।
(5) नदी के मुहाने पर ज्वार तरंग भी निर्बल होनी चाहिये।
(6) तट स्थिर होना चाहिये। भूगर्भिक हलचलों के कारण उत्थान या अवतलन नहीं होना चाहिये।
उपरोक्त परिस्थितियाँ होने पर सागर तट पर जहाँ नदी समुद्र से मिलती है अवसादों के निक्षेप डेल्टा का निर्माण होता है। नदी द्वारा सागर या झील में पदार्थों के निक्षेपण द्वारा बने उस स्थलरूपा को लेकर कहा जाता है जो नदी वितरिकाओं से कई त्रिभुजाकर आकृतियों में बँट जाता है।
डेल्टा के प्रकार (Classification of Deltas) : आकृति के आधार पर डेल्टा के मुख्य प्रकार निम्न हैं –
(1) चापाकार डेल्टा (Arcuate Delta) – ऐसे डेल्टा का आगे का भाग चाप के समान होता है व नदी कई वितरिकाओं में बँट जाती है। गंगा, ब्रह्मपत्र, ह्यगो. इरावदी आदि नदियों का डेल्टा इसी प्रकार का है। इसे प्रगतिशील डेल्टा भी कहा जाता है। नदियों द्वारा लाये अवसादों के निक्षेप से यह धीरे-धीरे समुद्र की तरफ फैलता जाता है।
(2) पंजाकार डेल्टा (Bird Foot Delta) – जहाँ समुद्र तट उथला पाया जाता है वहाँ नदी अपना जल दूर तक बहा कर ले जाती है व नदी की मुख्य धारा के सहारे अवसादों का निक्षेप बहुत दूर तक हो जाता है। नदी वितरिकाओं के द्वारा अपेक्षाकृत कम जमाव देखने को मिलता है व ये पंजे के आकार का स्थल मार्ग तैयार करती है। ऐसे डेल्टा को पंजाकार डेल्टा कहते है। मिसिसिपी नदी द्वारा इस प्रकार के डेल्टा का निर्माण किया गया है।
(3) ज्वारनद मुखी डेल्टा (Esturne Delta) – कभी-कभी नदी घाटी सागरीय तलों के निमज्जन क्रिया के परिणामस्वरूपा धंस जाती हैं। ऐसी स्थिति में नदी पहले धंसी हुई घाटी में भराव करती है फिर उस पर शाखाओं में विभक्त होती है। ऐसे में अवसादों का चापाकार निक्षेप नहीं होता है। नदी समुद्र में एक प्रमुख धारा के रूप में गिर जाती है। इसे ज्वारनद मुखी डेल्टा कहा जाता है। नर्मदा, ताप्ती, हडसन, मेकेंजी का डेल्टा इसी प्रकार का है। प्रायः सागर तट के पठारी व पहाडी क्षेत्रों से निकलने वाली नदियाँ एस्चुरी का निर्माण करती हैं। .
(4) भानाकार डेल्टा (Truncated delta)- कभी-कभी सागरीय लहरें व धारायें नदी द्वारा निक्षेपिक पदार्थों को काट-छाँट कर बहा ले जाती हैं व डेल्टा का स्वरूपा बिगाड़ देती हैं। इस प्रकार बने डेल्टा को भग्नाकार डेल्टा (Trun cated delta) कहा जाता है।
(5) अग्रवर्धी डेल्टा (Caspate Delta)- जिन स्थानों पर तट पर लहरों का प्रभाव अधिक होता है वहाँ निक्षेपित पदार्थ तट पर दूर-दूर तक फैला दिया जाता है। डेल्टा के किनारे के अवसाद तट के सहारे फैला दिए जाते हैं व मध्य का भाग नोंकदार होकर आगे निकला हुआ दिखाई पड़ता है। इसे अग्रवर्धी डेल्टा कहा जाता है। टाइगर नदी का डेल्टा इसी प्रकार का है।
(6) पालियक्त डेल्टा (Lobate Delta)- कभी-कभी नदी की मुख्य धारा के स्थान पर वितरिका नदी द्वारा अवसादों का निक्षेप अधिक होता है। ऐसे में मुख्य धारा के डेल्टा का विकास रुक जाता है। वितरिका का डेल्टा अधिक बड़ा विकसित होता है इसे पालियुक्त डेल्टा कहा जाता है।
(7) पेनीप्लेन (Peniplain) – नदी द्वारा सबसे अंत में समतल मैदान की रचना होती है जो अन्तिम अवस्था का द्योतक होती है। समस्त असमानतायें नष्ट हो जाती हैं। मैदान का ढाल अत्यंत मंद होता है। कहीं-कहीं कुछ कठोर चट्टानें खड़ी दिखाई पड़ती हैं जिन्हें मोनॉडनॉकस कहा जाता है। नदी घाटी उथली व लगभग समतल रह जाती है। यह अपरदन चक्र के समाप्ति का प्रतीक होता है, परन्तु शीघ्र ही पुनर्युवन आ जाने से नदी पुनः अपना कार्य शुरू कर देती है।
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