JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

वन विनाश के कारण क्या है | वन विनाश किसे कहते हैं | प्रमुख परिणाम लिखिए | deforestation meaning in hindi

deforestation meaning in hindi , deforestation generally decreases why ? वन विनाश के कारण क्या है | वन विनाश किसे कहते हैं | प्रमुख परिणाम लिखिए |

नवीकरणीय अर्थात पुनर्विकास योग्य संसाधन (renewable resources) : इस समूह के अन्तर्गत सभी जैविक घटक शामिल है , जिनका व्यापक उपयोग किया जाता है। इन संसाधनों को उचित वातावरण प्रदान करके उपयोग उपरान्त फिर से पुनर्विकसित किया जा सकता है। इस संसाधनों के संरक्षणपूर्ण उपयोग से अनेकों लाभ उठाये जाते है। विभिन्न पुनर्विकास योग्य संसाधन निम्नलिखित प्रकार है –

वन (Forests)

वनों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। अनेकों आर्थिक समस्याओं का समाधान इन्ही से होता है। ईंधन , कोयला , औषधियुक्त तेल और जड़ी बूटी , लाख , गोंद , रबड़ , चन्दन , इमारती सामान तथा अनेकों लाभदायक पशु पक्षी तथा कीट आदि वनों से प्राप्त होते है।

भारत में वनस्पति वितरण : हमारे देश का अधिकांश भाग ऊष्ण कटिबन्ध में स्थित है। लेकिन इसका कुछ भाग समुद्री तट से अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण शीत कटिबन्ध में गिने जाते है। इन दोनों भागो के मध्य में शीतोष्ण कटिबन्ध के भाग माने जाते है। भारत के कुछ भागो में वर्षा औसत से भी अधिक और अन्य भाग अक्सर सूखे रहते है। हमारे देश में भूमि और जलवायु की असमानता के कारण यहाँ पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती है। 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रो में अर्द्ध मरुस्थलीय वनस्पति मिलती है। 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले प्रदेशो में कंटीली झाड़ियों और छोटे वृक्षों वाले वन पाए जाते है। इन प्रदेशो में खेजड़ी , बबूल आदि अधिक पैदा होते है। जिस प्रदेश में 1000 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है , वहां पर सदैव हरे रहने वाले चौड़ी पत्तियों के वन पाए जाते है। 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा वाले प्रदेशो में मानसूनी वन पाए जाते है। ये वन अधिक और खुले होते है जिनमे प्रमुख रूप से रोजवुड , पाइन , सागवान आदि वृक्ष अधिक मात्रा में पाए जाते है।

भारत में लगभग 72 लाख हैक्टेयर भूमि पर कोणधारी वन और 670 लाख हैक्टेयर भूमि पर चौड़ी पत्ती वाले वन फैले है अर्थात कुल वन प्रदेशो का लगभग 7% शीतोष्ण वन (3% कोणधारी और 4% चौड़ी पत्ती के वन) और 93% उष्णकटिबंधीय वनों के अंतर्गत 80% मानसूनी वन , 17% सदाबहार वन और 1% अन्य वन है।

भारत में लगभग 750 लाख हैक्टेयर भूमि पर वन है। हमारे देश में सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्रफल में 22.8 प्रतिशत भाग में वन फैले हुए है। विभिन्न राज्यों में वनों का सम्पूर्ण क्षेत्रफल भिन्न भिन्न है।

सम्पूर्ण देश के वनों का केवल 80% भाग ही काम में आने लायक लकड़ियाँ प्रदान करता है। दुनियाँ के अन्य देशो की तुलना में हमारे देश में वनों का क्षेत्र कम है। भारत की जनसंख्या में बढ़ते हुए भार और इंधन की माँग के कारण नदी तटों और अन्य अनुपजाऊ प्रदेशो में भी उन क्षेत्रों का होना अतिआवश्यक माना गया है।

हमारे संविधान में वनों के संरक्षण के लिए उन्हें तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है –

1. व्यक्तिगत वन (प्राइवेट फारेस्ट) : ये वन व्यक्तिगत लोगो के अधिकार में है और लगभग 2.7% वन इस प्रकार के पाए जाते है।

2. सामुदायिक वन (कम्युनिटी फारेस्ट) : ये सामान्यतया स्थानीय नगर पालिकाओं और जिला परिषदों के अधीन होते है।

3. शासकीय वन (गवर्नमेंट फोरेस्ट) : ये पूर्णतया सरकार के नियंत्रण में है और भारत में लगभग 95% शासकीय वन पाए जाते है।

लेकिन विगत पांच से छ: दशकों में वनों का अविवेकपूर्ण दोहन किया गया है। एक सरकारी अनुमान के अनुसार वर्ष 1951 से 1972 के मध्य 34 लाख हैक्टेयर वन भूमि का नाश हुआ है अर्थात लगभग डेढ़ लाख हैक्टेयर वन प्रतिवर्ष समाप्त हो रहे है। परिणामस्वरूप उपरोक्त आर्थिक साधनों के अभाव में अतिरिक्त वर्षा जल से उपजाऊ भूमि का कटाव , भू स्खलन , बाढ़ आदि अनेकों प्राकृतिक विपदाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। वनों के अभाव में जल , वायु तथा वर्षा का प्राकृतिक चक्र भी अनियमित होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

भारत देश में वन विनाश की दर का अंदाज इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मात्र 8 वर्षो (1972 से 1980 के मध्य) के अन्दर 91,70,000 हैक्टेयर वनों का सफाया किया गया है। भारत में वन विनाश की बढती दर का प्रमुख कारण है मनुष्य और पशुओं का वनों पर निरंतर बढ़ता दबाव। ज्ञातव्य है कि भारत का भौगोलिक क्षेत्र विश्व की सकल जनसंख्या का 15% और विश्व के समस्त पशुओं की संख्या का 13 प्रतिशत भाग पाया जाता है।

भारत में वन विनाश के कारण (causes of deforestation in india)

स्थानीय , प्रादेशिक और विश्वस्तरों पर वन विनाश के निम्न कारण बताये जा सकते है – वनभूमि का कृषिभूमि में परिवर्तन , झूम कृषि , वनों का चारागाहों में रूपांतरण , वनों की अत्यधिक चराई , वनों में आग लगना , लकड़ियों की कटाई , बहुउद्देशीय योजनायें , जैविक कारक आदि।

अब इन बिन्दुओं को विस्तार से अध्ययन करते है –

1. वनभूमि का कृषि में परिवर्तन :

  • मुख्य रूप से विकासशील देशो में मानव जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि के कारण यह आवश्यक हो गया है कि वनों के विस्तृत क्षेत्रों को साफ़ करके उस पर कृषि की जाए ताकि बढती जनसंख्या का पेट भर सके। इस प्रवृत्ति के कारण सवाना घास प्रदेश का व्यापक स्तर पर विनाश हुआ है क्योंकि सवाना वनस्पतियों को साफ़ करके विस्तृत क्षेत्रों को कृषि क्षेत्रो में बदला गया है।
  • शीतोष्ण कटिबन्धी घास के क्षेत्रों (जैसे – सोवियत रूस के स्टेपी , उत्तरी अमेरिका के प्रेयरी , दक्षिणी अमेरिका के पम्पाज , दक्षिणी अफ्रीका के वेल्ड और न्यूज़ीलैंड के डाउन्स ) की घासों और वृक्षों को साफ़ करके उन्हें वृहद् कृषि प्रदेशो में बदलने का कार्य बहुत पहले ही पूर्ण हो चूका है।
  • मरूसागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों के वनों को बड़े पैमाने पर साफ़ करके उन्हें उद्यान कृषि भूमि में बदला गया है। इसी तरह दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशिया के मानसूनी क्षेत्रों में तेजी से बढती मानव जनसंख्या की भूख मिटाने के लिए कृषि भूमि में विस्तार करने के लिए वन क्षेत्रों का बड़े पैमाने पर विनाश किया गया है।

2. वनाग्नि (वनों में आग लगना) :

  • प्राकृतिक कारणों से अथवा मानव जनित कारणों से वनों में आग लगने से वनों का तीव्र गति से और लघुतम समय में विनाश होता है। वनाग्नि के प्राकृतिक स्रोतों में वायुमंडलीय बिजली सर्वाधिक प्रमुख है। मनुष्य भी जाने और अनजाने रूप में वनों में आग लगाता है।
  • मनुष्य कई उद्देश्यों से वनों को जलाता है -कृषि भूमि में विस्तार के लिए , झुमिंग कृषि के तहत कृषि कार्य के लिए , घास की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए आदि। वनों से आग लगने का कारण वनस्पतियों के विनाश के अलावा भूमि कड़ी हो जाती है , परिणामस्वरूप वर्षा के जल का जमीन में अन्त:संचरण बहुत कम होता है और धरातलीय वाही जल में अधिक वृद्धि हो जाती है , जिस कारण मृदा अपरदन में तेजी आ जाती है। वनों में आये दिन आग लगने से जमीन पर पत्तियों के ढेर नष्ट हो जाते है , जिस कारण ह्यूमस और पोषक तत्वों में भारी कमी हो जाती है। कभी कभी तो ये पूर्णतया नष्ट हो जाते है।
  • वनों में आग के कारण मिट्टियों , पौधों की जड़ो और पत्तियों के ढेरों में रहने वाले सूक्ष्म जीव मर जाते है। स्पष्ट है कि वनों में आग लगने अथवा लगाने से न केवल प्राकृतिक वनस्पतियों का विनाश होता है और पौधों का पुनर्जनन अवरुद्ध हो जाता है वरन जीविय समुदाय को भी भारी क्षति होती है जिस कारण पारिस्थितिकीय असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।

3. अतिचारण : ऊष्ण और उपोष्ण कटिबंधी और अर्द्ध शुष्क प्रदेशों के सामान्य घनत्व वाले वनों में पशुओं को चराने से वनों क्षय हुआ है और हो भी रहा है। ज्ञातव्य है कि इन क्षेत्रों के विकासशील और अविकसित देशो में दुधारू पशु विरल और खुले वनों में भूमि पर उगने वाली झाड़ियों , घासों और शाकीय पौधों को चट कर जाते है , साथ ही साथ ये अपनी खुरों से भूमि को इतना रौंद देते है कि उगते पौधों का प्रफुटन नहीं हो पाता है। अधिकांश देशों में भेड़ों के बड़े बड़े झुंडो ने तो घासों का पूर्णतया सफाया कर डाला है।

4. वनों का चारागाहों में परिवर्तन : विश्व के रूमसागरीय जलवायु वाले क्षेत्रों और शीतोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों खासकर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका में डेयरी फार्मिंग में विस्तार और विकास के लिए वनों को व्यापक स्तर पर पशुओं के लिए चारागाहों में बदला गया है।

5. स्थानान्तरी अथवा झुमिंग कृषि : झुमिंग कृषि दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशिया की पहाड़ी क्षेत्रों में वनों के क्षय और विनाश का एक प्रमुख कारण है। कृषि की इस प्रथा के अंतर्गत पहाड़ी ढालों पर वनों को जलाकर भूमि को साफ़ किया जाता है। जब उस भूमि की उत्पादकता घट जाती है तो उसे छोड़ दिया जाता है। भारत के विभिन्न प्रान्तों में झुमिंग कृषि द्वारा वन क्षेत्र के क्षय का विवरण निम्नलिखित सारणी में दिया गया है –

6. घरेलू और व्यापारिक उद्देश्यों के लिए : लकड़ी की प्राप्ति के लिए पेड़ों की कटाई वनों के विनाश का वास्तविक कारण है। तेजी से बढती जनसंख्या , औद्योगिक और नगरीकरण में तीव्र गति से वृद्धि के कारण लकड़ियों की मांग में दिनोदिन वृद्धि होती जा रही है। परिणामस्वरूप वृक्षों की कटाई में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। भूमध्यरेखीय सदाबहार वनों का प्रति वर्ष 20 मिलियन हैक्टेयर की दर से सफाया हो रहा है। इस शताब्दी के आरम्भ से ही वनों की कटाई इतनी तेज गति से हुई है कि अनेक पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो गयी है। आर्थिक लाभ के नशे में लिप्त लोभी भौतिकवादी आर्थिक मानव यह भी भूल गया कि वनों के व्यापक विनाश से उनका ही अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। विकासशील और अविकसित देशों में ग्रामीण जनता द्वारा नष्टप्राय और अवक्रमित वनों से पशुओं के लिए चारा और जलाने की लकड़ी के अधिक से अधिक संग्रह करने से बचाखुचा वन भी नष्ट होता जा रहा है।

7. बहु उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के समय विस्तृत वन क्षेत्र का क्षय होता है क्योंकि बांधो के पीछे निर्मित वृहद जलभण्डारो में जल के संग्रह होने पर वनों से आच्छादित विस्तृत भूभाग जलमग्न हो जाता है जिस कारण न केवल प्राकृतिक वन संपदा नष्ट होती है वरन उस क्षेत्र का पारिस्थितिकीय संतुलन भी बिगड़ जाता है।

 

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now