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आदर्श क्रिस्टल , त्रुटि या दोष , इलेक्ट्रॉनिकी दोष , बिंदु त्रुटि या परमाण्विक त्रुटी , अन्तराकाशी दोष defect in crystal in hindi
संकुलन क्षमता = एकक कोष्ठिका में उपस्थित अवयवी गोलों का कुल आयतन / एकक कोष्ठिका का आयतन
ठोसो में त्रुटी या दोष (defect in crystal in hindi)
आदर्श क्रिस्टल : ऐसा आयनिक क्रिस्टल जिसमे सभी एकक कोष्ठिकायें समान जालक बिन्दुओ से युक्त हो तथा इलेक्ट्रॉन निम्न ऊर्जा स्तर मे उपस्थित हो तो वह आदर्श क्रिस्टल कहलाता है।
यह व्यवस्था 0 K ताप पर होती है।
0 K (शून्य केल्विन) से उच्च ताप पर आदर्श क्रिस्टल की नियमित व्यवस्था में परिवर्तन आ जाता है इस कारण ठोसो में त्रुटी या दोष उत्पन्न हो जाते है।
त्रुटी या दोष के प्रकार
2. बिंदु त्रुटि या परमाण्विक त्रुटी
1. इलेक्ट्रॉनिकी त्रुटी या दोष : शून्य केल्विन ताप पर क्रिस्टलीय ठोस में इलेक्ट्रॉन निम्न ऊर्जा स्तर में उपस्थित होते है लेकिन 0 K से उच्च ताप पर इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते है तथा उस स्थान पर छिद्र बन जाता है ,इस प्रकार मुक्त इलेक्ट्रान व छिद्र के कारण उत्पन्न त्रुटी इलेक्ट्रॉनिक त्रुटी कहलाती है।
अन आयनिक ठोसो में बिंदु त्रुटी
इनमे दो प्रकार के बिन्दु दोष पाए जाते है –
(i) रिक्तिका दोष
(ii) अन्तराकाशी दोष
(i) रिक्तिका दोष : इस प्रकार के दोष में कोई अवयवी कण अपना स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक से बाहर चला जाता है तथा क्रिस्टल जालक में उस स्थान पर रिक्तिका बन जाती है इसलिए यह रिक्तिका दोष कहलाता है।
इस दोष के कारण क्रिस्टल जालक का घनत्व कम हो जाता है।
(ii) अन्तराकाशी दोष : इस प्रकार के दोष में बाहर से कोई अवयवी कण आकर क्रिस्टल जालक के अन्तराश में समा जाता है , इसीलिए यह अंतराकाशी दोष कहलाता है।
इस दोष में क्रिस्टल जालक का घनत्व बढ़ जाता है।
आयनिक ठोसों में बिंदु दोष :
यह तीन प्रकार के होते है –
1. स्टाइकियोमिट्रीक दोष
2. नॉन स्टाइकियोमिट्रीक दोष
3. अशुद्धता दोष
1. स्टाइकियोमिट्रीक दोष : ऐसे दोष जिनमे क्रिस्टल जालक की स्टाइकियोमिट्री में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात क्रिस्टल में धनायन व ऋण आयन का अनुपात उसके मुलानुपाती सूत्र के समान बना रहता है तो ऐसे दोष स्टाइकियोमिट्रीक दोष कहलाते है।
यह दोष दो प्रकार के होते है –
(a) फ्रेंकल दोष या विस्थापन दोष : इस प्रकार के दोष में कोई धनायन अपना स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक के अन्तराकाश में समा जाता है।
इस दोष के कारण क्रिस्टल जालक का घनत्व अपरिवर्तित रहता है।
इस दोष में अवयवी कण के पुराने स्थान पर रिक्तिका दोष व नए स्थान पर अंतराकाशी दोष उत्पन्न होता है।
यह दोष अन आयनिक क्रिस्टलो में पाया जाता है जिनके धनायन व ऋण आयन के आकार में अन्तर अधिक हो तथा समन्वय संख्या अधिक हो।
AgCl , AgBr , AgI व ZnS
फ्रेंकेल दोष उत्पन्न करने वाले आयन Ag+ , Zn2+।
(b) शोट्की दोष : इस प्रकार के दोष में क्रिस्टल जालक से बराबर संख्या में धनायन व ऋण आयन लुप्त हो जाते है।
इस दोष के कारण क्रिस्टल जालक का घनत्व कम हो जाता है।
यह एक प्रकार का रिक्तिका दोष है।
यह दोष उन आयनिक क्रिस्टल में पाया जाता है जिनमे धनायन व ऋण आयन का आकार लगभग बराबर हो तथा समन्वय संख्या उच्च हो।
उदाहरण : NaCl , KCl , CsCl , AgBr , KBr
नोट : AgBr फ्रेन्कल व शॉटकी दोनों प्रकार के दोष दर्शाता है।
2. नॉन स्टाइकियोमिट्रीक दोष
a. ऋण आयन के अभाव से उत्पन्न धातु आधिक्य दोष
b. धनायन के आधिक्य से उत्पन्न धातु आधिक्य दोष
(A) धनायन के अभाव से उत्पन्न धातु न्यूनता दोष
(B) ऋण आयन के आधिक्य से उत्पन्न धातु न्यूनता दोष
3. अशुद्धता दोष
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