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Categories: control system

DC LEVEL SHIFTER in hindi दिष्ट धारा स्तर विस्थापक क्या है

दिष्ट धारा स्तर विस्थापक (DC LEVEL SHIFTER ) प्रत्यक्ष युग्मित प्रवर्धकों (direct coupled amplifiers) में प्रत्येक प्रवर्धक चरण ( amplifier stage) के आधार पर निविष्ट धारा पिछले प्रवर्धक के संग्राहक से आती हैं जिससे भू-विभव के सापेक्ष प्रत्येक आगामी प्रवर्धक के आधार का दिष्ट धारा वोल्टता स्तर बढ़ता जाता है। अतः प्रत्येक चरण के ट्रॉजिस्टर के आधार पर दिष्ट धारा स्तर को पुनः उस अवस्था में जिस पर भू-विभव के सापेक्ष शून्य निविष्ट वोल्टता के लिए शून्य निर्गम वोल्टता होती है, लाने के लिए दिष्ट धारा स्तर विस्थापक का उपयोग करते हैं। एकीकृत परिपथों (integrated circuits) की रचना में इनका विशेष महत्व होता है। चित्र (9.3-1 ) में dc स्तर विस्थापक की मूल संरचना प्रदर्शित की गई है। 

ट्रॉजिस्टर Q1 उत्सर्जक अनुगामी ( emitter follower) का कार्य करता है जिसके आधार व भू- टर्मिनल के मध्य निवेशी संकेत लगाया जाता है। ट्रॉजिस्टर Q3 के उत्सर्जक तथा भू- टर्मिनल के मध्य निर्गम वोल्टता प्राप्त की जाती है । यह भी उत्सर्जक अनुगामी का कार्य करता है। ट्रॉजिस्टर Q2 नियत धारा युक्ति (constant current device) है जिसके आधार पर नियत निर्देश वोल्टता के स्रोत से धारा निवेश किया जाता है। ट्रॉजिस्टर Q3 में निविष्ट आधार धारा का मान अत्यल्प होता है। इसलिए Q की उत्सर्जक धारा IE का मान Q2 की संग्राहक धारा I के लगभग बराबर होता है और नियत होता है। अतः वोल्टता IR, नियत होती है। 

निवेश बिन्दु 1 से निर्गम बिन्दु 3 तक संकेत वोल्टता पथ के लिये = VBE1 + IE R1 + VBE3 = K वोल्ट …(1) 

वोल्टता पतन Vi तथा Vo संकेत की अनुपस्थिति में निवेशी व निर्गम स्थायी वोल्टता है तथा Vi और Voक्रमशः निविष्ट वोल्टता एवं निर्गम वोल्टता में परिवर्तन हो तो 

तथा Vi – K = Vo 

(Vi + Vi) – K = (Vo + Vo) ……… …(2)

 अतः निविष्ट वोल्टता का परिवर्तन निर्गम पर स्थानान्तरित हो जाता है, अर्थात्

Vi = Vo…………….(3)

साथ ही समीकरण (2) से निर्गम पर संकेत अनुपस्थिति की अवस्था में वोल्टता स्तर Vo निवेशी स्तर Vi से

कम होता है।…………….(4)

निर्गम पर वोल्टता स्तर में यह कमी वोल्टता K पर निर्भर होती है जिसको प्रतिरोध R1 के द्वारा नियंत्रित किया

जा सकता है।

 संक्रियात्मक प्रवर्धक (OPERATIONAL AMPLIFIER )

यह एक अत्यधिक उच्च लब्धि का प्रवर्धक होता है जिसकी निवेशी प्रतिबाधा बहुत अधिक तथा निर्गम प्रतिबाधा अत्यल्प होती है और ऋणात्मक पुनर्निवेश के साथ इस प्रवर्धक की परिणामी लब्धि केवल पुनर्निवेश अनुपात पर निर्भर होती है 

 प्रारम्भ में ऐसे प्रवर्धक गणितीय संक्रियाओं जैसे योग (sum), अन्तर (subtractor), समाकलन (integrator), अवकलन (differentiator) आदि के प्रचालन करने के लिये प्रयुक्त किये जाते थे जिसके कारण इन्हें सक्रियात्मक प्रवर्धक (operational amplifer, संक्षेप में OP AMP) कहते हैं। अब इनका उपयोग अधिक व्यापक हो गया है ये तुलनित्र (comparator), वोल्टता नियामक (voltage regulator), तरंग जनित्र (wave generater) आदि के रूप में भी उपयोग में लाये जाते हैं।

यह एक भेद प्रवर्धक होता है जो दो निविष्ट संकेतों के अन्तर का प्रवर्धन करता है। इस प्रवर्धन की यह विशेषता होती है कि यह अनावश्यक वोल्टता संकेतों को अस्वीकार कर देता है।

(i) आदर्श OPAMP के अभिलाक्षणिक गुण

आदर्श OP AMP के निम्नलिखित गुण होते हैं-

 (1) अनन्त वोल्टता लब्धि (Infinite voltage gain) 

(2) अनन्त बैंड विस्तार ( Infinite band width) 

(3) अनन्त निवेश प्रतिबाधा ( Infinite input impedance) 

(4) शून्य निर्गम प्रतिबाधा (Zero output impedance)

(5) पूर्णतया संतुलित (Perfect balance) परिपथ अर्थात् दोनों निवेश समान होने पर निर्गम वोल्टता शून्य प्राप्त होती है।

(6) पूर्णत: स्थाई (Perfectly stable) अर्थात् ताप, वोल्टता आदि के परिवर्तन से अभिलाक्षणिक गुणों में अन्तर नहीं आता है।

व्यावहारिक OP AMP सन्निकटत: आदर्श OPAMP होता है।

(ii) OP AMP का परिपथ प्रतीक

OP AMP का परिपथ प्रतीक चित्र (9.4-1) में दर्शाया गया है। इसमें दो निवेशी व एक निर्गम टर्मिनल होता है व भू- टर्मिनल तीनों टर्मिनलों के साथ युग्मित होता है। प्रतीक चित्र (9.4-1) में 1 व 2 निवेशी टर्मिनल तथा O निर्गम टर्मिनल हैं, भू-टर्मिनल प्रदर्शित नहीं किया जाता है। टर्मिनल पर ऋण चिन्ह लगाने का तात्पर्य यह है कि इस टर्मिनल पर निविष्ट संकेत की ध्रुवणता निर्गम टर्मिनल पर विपरीत हो जाती है। अर्थात् प्रवर्धक के द्वारा इस निवेश के लिये 180° कला परिवर्तनं उत्पन्न होता है, इसलिए इस टर्मिनल को प्रतिलोमी निवेश टर्मिनल (inverting input terminal) कहते हैं। टर्मिनल 2 पर धनात्मक चिन्ह का तात्पर्य है कि इस टर्मिनल पर निवेश किये गये संकेत वोल्टता की ध्रुवणता में निर्गम टर्मिनल पर कोई परिवर्तन नहीं होता है। दूसरे शब्दों में 2 पर निविष्ट वोल्टता तथा इससे O पर प्राप्त निर्गम वोल्टता की कला समान रहती है। इस टर्मिनल 2 को अ-प्रतिलोमी निवेश टर्मिनल (non-inverting input terminal) भी कहते हैं।

निर्गम टर्मिनल 0 पर निर्गम वोल्टता का मान 1 तथा 2 टर्मिनलों पर निवेशित वोल्टताओं के अन्तर के अनुक्रमानुपाती होता है अर्थात् 

Vo  (V2 – V1 ) या Vo = A ( v2 – V1) यहाँ अनुक्रमानुपाती नियतांक A संक्रियात्मक प्रवर्धक (OP AMP) की वोल्टता लब्धि कहलाती है। 

विशिष्ट 8- पिन वाले रैखिक OP AMP के पिन संबंधन निम्न चित्र (9.4-2) में प्रदर्शित हैं। पिन 1 व 8 का उपयोग नहीं होता है।

 पिन 1 की स्थिति विशिष्ट चिन्ह जैसे डॉट (Dot), खौंच (Notch) आदि से प्रदर्शित की जाती है। 

(iii) OP AMP ant and farfar OP AMP के प्रतिलोमी टर्मिनल के साथ एक प्रतिबाधा Z1 संयोजत करते हैं तथा ॠणात्मक पुनर्निवेश (negative feed back) के लिए प्रतिलोमी टर्मिनल तथा निर्गम टर्मिनल के मध्य पुनर्निवेशन प्रतिबाधा Zf लगाते हैं जैसा कि परिपथ चित्र (9.4-3) तथा (9.4-4 ) में दर्शाया गया है। OPAMP के परिपथ में वोल्टता Vi का दो प्रकार से निवेश कर सकते हैं। जब निवेश वोल्टता को चित्र (9.4-3) के अनुसार प्रतिलोमी टर्मिनल तथा भू- टर्मिनल के मध्य लगाया जाता है तथा धनात्मक टर्मिनल (अ-प्रतिलोमी टर्मिनल) को भूसम्पर्कित करते हैं तो यह परिपथ प्रतिलोमी प्रवर्धक (inverting amplifier) कहलाता है। जब प्रतिलोमी टर्मिनल को Z1 के द्वारा भू-सम्पर्कित कर अप्रतिलोमी टर्मिनल तथा भू- टर्मिनल के मध्य संकेत वोल्टता का निवेश किया जाता है तो यह परिपथ अ-प्रतिलोमी प्रवर्धक (non inverting amplifier) कहलाता है, चित्र (9.4-4 ) 

। Z1 www Z4 ww V, V, G m ran चित्र (9.4-3) + mim mirm चित्र (9.4-4) 

(a) प्रतिलोमी प्रवर्धक-चूँकि OPAMP की वोल्टता लब्धि A का मान अत्यधिक (~10) होता है तथा निर्गम वोल्टता का अधिकतम् मान लगभग 10 V के बराबर होता है इसलिए OPAMP के ऋण टर्मिनल Gव भू- टर्मिनल के मध्य विभवान्तर अत्यल्प (10-3 V की कोटि का) होता है अर्थात् V1 लगभग शून्य होता है। दूसरे शब्दों में, बिन्दु G वास्तविक रूप से भूसम्पर्कित नहीं होते हुए भी आभासी रूप से भूसम्पर्कित (virtual ground) माना जा सकता है।

इस प्रकार प्रतिबाधा Z से प्रवाहित होने वाली धारा

OPAMP का निवेश प्रतिरोध अत्यधिक होने के कारण यह भी माना जा सकता है कि पुनर्निवेशी प्रतिबाधा Zf, में से प्रवाहित होने वाली धारा I2 का मान  I1के तुल्य होता है, I2 = I1}|

यदि बिना पुनर्निवेशन के OP AMP का वोल्टता लब्धि A है तो

A = – VO/V1 ……………..(4)

ऋण चिन्ह यह प्रकट करता है कि निर्गम वोल्टता Vo की कला और निविशिष्ट वोल्टता V1 की कला में 180° का अन्तर होता है।

समीकरण (4) को (3) में रहने पर

निर्गम वोल्टता Vo तथा निविष्ट वोल्टता Vi का अनुपात परिणामी वोल्टता लब्धि Af होती है।

अतः प्रतिलोमी प्रवर्धक में वोल्टता लब्धि पुनर्निवेशी प्रतिबाधा Zf तथा निवेश पर प्रयुक्त प्रतिबाधा Z1 के अनुपात पर निर्भर करती है। यह प्रवर्धक की आन्तरिक लब्धि A पर निर्भर नहीं करती है।

(b) अ-प्रतिलोमी प्रवर्धक – इस प्रवर्धक में चित्र (9.4-4) के अनुसार निविष्ट वोल्टता VOPAMP के धन टर्मिनल तथा भू- टर्मिनल के मध्य प्रयुक्त की जाती है।

पुनर्निवेश ऋणात्मक (प्रतिलोमी) निवेश टर्मिनल पर होता है। इस प्रकारे इस विधा में प्रवर्धक पर विभेदी निवेश (Vi – Vf) प्रयुक्त होता है जहाँ Vf पुनर्निविष्ट वोल्टता है। प्रवर्धक का निवेश प्रतिरोध अत्यधिक होने से निवेश पर प्रवर्धक से धारा प्रवाह नगण्य होता है। अतः

Vf= Z1 Z1+Z  Vo ……(7)

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