JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

सांस्कृतिक तत्वों के कारण समस्याएँ क्या होती है समाज के लिए cultural factors of social change in sociology in hindi

cultural factors of social change in sociology in hindi सांस्कृतिक तत्वों के कारण समस्याएँ क्या होती है समाज के लिए ?

सांस्कृतिक तत्व
भारत में कतिपय सांस्कृतिक तत्व ऐसे हैं जिन्होंने भारत में कुछ सामाजिक समस्याओं के बने रहने में खास योगदान किया है। इस संदर्भ में निम्नलिखित सांस्कृतिक विशेषताएँ विशेष तौर पर देखी जा सकती हैं:
ऽ भाग्यवाद,
ऽ विशिष्टतावाद,
ऽ सार्वजनिक सपंत्ति के प्रति दृष्टिकोण,
ऽ पितृसत्तात्मक व्यवस्था।

भाग्यवाद
भारत में सामाजिक समस्याओं से जुड़ा रहने वाला एक सांस्कृतिक तत्व भाग्यवाद है। ‘‘कर्म‘‘ और पुनर्जन्म के सिद्धांत में जीवन के प्रति भाग्यवादी प्रवृत्ति के मजबूत तत्व हैं – एक ऐसी प्रवृत्ति जो जीवन में असफलता को भाग्य एवं कर्म के फल के रूप में स्वीकार करती है। भाग्य और कर्म का सिद्धांत अन्याय और शोषण के विरुद्ध जन सामान्य के प्रतिरोध को रोकने का एक तरीका सिद्ध हुआ है। छुआछूत, भेदभाव, बंधुआ मजदूर जैसी कुप्रथाएँ लंबे समय तक भारत में रही हैं। उनके बने रहने के बारे में और इनसे प्रभावित लोगों ने इन्हें कोई चुनौती नहीं दी। ऐसा इसलिए हुआ कि प्रभावित लोगों ने इन प्रथाओं को अपने पिछले जन्म के कर्मों और भाग्य का फल माना। कल्याण और विकास कार्यक्रम, धर्मनिष्ठ भाग्यवाद में विश्वास करने वाले जन सामान्य की उदासीनता और भेदभाव के कारण ऐसी स्थिति में पीछे रह जाता है।

 विशिष्टतावाद
भारतीय समाज में बड़े पैमाने पर पाई जाने वाली दूसरी सांस्कृतिक विशेषता, सर्वहितवाद के विरुद्ध विशिष्टतावाद है। यह अपने लोगों, अपने संबंधियों, अपनी जाति या धर्म के लोगों के लिए अत्यधिक ध्यान रखने की अवधारणा में झलकता है। प्रायः अपने निर्णय व कार्यों में सर्वहितवाद का मानव अलग-थलग रख दिया जाता है। हमारे समाज में चल रहे पक्षपात या भेदभाव जैसा भ्रष्टाचार सर्वहितवाद के मानदंडों के प्रति उपेक्षा के परिणाम है। जाति, जनजाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर एक समाज का दूसरे समाज से कुछ आपसी विवाद भी अपनी-अपनी अलग पहचान बनाने और अपने को विशिष्ट मानने के आधार पर सामाजिक राजनीतिक हैसियत प्राप्त किए जाने की कोशिशों के कारण उत्पन्न हुए हैं।

 सार्वजनिक संपत्ति के प्रति दृष्टिकोण
भारतीय समाज की दूसरी विशेषता, जिसका संबंध भ्रष्टाचार से है, सार्वजनिक संपत्ति और धन के प्रति उपेक्षा का भाव रखना है। ऐसा विश्वास है कि भारतीयों को यह औपनिवेशिक शासन की विरासत में मिला है। दुर्भाग्यवश भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी यह प्रवृत्ति अभी भी बनी हुई प्रतीत होती है। सार्वजनिक संपत्ति के प्रति इस प्रकार ध्यान न देना ही भ्रष्टाचार, काला धन, कर-चोरी, सार्वजनिक वस्तुओं के दुरुपयोग और सार्वजनिक निर्माण में निम्न कोटि की सामग्री के इस्तेमाल का एक मूल कारण है।

 पितृसत्तात्मक व्यवस्था
जैसा कि विश्व में अन्यत्र भी है, भारतीय समाज के बहुत से समाजों में कुल मिलाकर पितृसत्तात्मक व्यवस्था रही है जिसमें पुरुष का प्रभुत्व होता है। भारतीय समाज में महिला की भूमिका की संकल्पना पत्नी और माँ के रूप में ही रही है। भारत में महिला की सामाजिक परिस्थिति पुरुष की तुलना में हीन मानी जाती रही है।

यह समस्या सांस्कृतिक आवश्यकताओं के कारण और भी गहरी हो जाती है। यह मानकर चला जाता है कि लड़का परिवार की वंश परंपरा को आगे चलाएगा और मृत्यु होने के बाद धार्मिक अनुष्ठान भी वही पूरा करेगा। इस धारणा ने लड़कों के लिए सांस्कृतिक रूप से तरजीह दी है और लड़की को निम्न दर्जा दिया है तथा उसे एक बोझ माना है। इससे महिलाएँ पुरुष की आधीनता का शिकार हुई हैं और सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उनके खिलाफ भेदभाव बरता जाता है। दहेज, बहू के साथ दुव्र्यवहार, पत्नियों को मारना-पीटना, निरक्षरता, व्यवसायगत भेदभाव, सामाजिक अलगाव और मनोवैज्ञानिक रूप से आश्रित होना आदि जिन समस्याओं का सामना महिलाओं को करना पड़ता है, उनका मूल कारण लड़के को वरीयता दिए जाने की अवधारणा में निहित है।

 अर्थव्यवस्था, गरीबी और शिक्षा
आर्थिक रूप से भारत एक ऐसा देश रहा है, जहाँ कृषक समाज की प्रधानता रही है। स्वाभाविक रूप से मजदूर वर्ग की कृषि पर निर्भरता अधिक है। अल्प विकसित कृषि पर मजदूर वर्ग की इस प्रकार की अत्यधिक निर्भरता भारत में सामाजिक समस्याओं में से प्रमुख कारण हैं। इससे प्रत्यक्ष तौर पर गरीबी बढ़ती है जो कि भारत में बहुत-सी अन्य सामाजिक समस्याओं के मूल कारणों में एक है। कुपोषण, खराब स्वास्थ्य, भिक्षावृत्ति, वेश्यावृत्ति आदि का मूल कारण भारत में बड़े पैमाने पर गरीबी ही है।

भारतीय समाज में संपत्ति का असमान बँटवारा है। भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में व्याप्त गरीबी के बीच समृद्ध लोग भी रहते हैं। इस असमानता के कारण विकास और कल्याण सेवाओं के लाभ भी समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों को असमान रूप से प्राप्त होते हैं। परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में गरीबों में तथा समाज के पिछड़े वर्गों में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ। अर्थव्यवस्था, गरीबी और शिक्षा के बीच गहरा संबंध है। भारत में निरक्षरता का सीधा संबंध गरीबी से है। उच्च शिक्षा में अनियोजित वृद्धि से शिक्षित बेरोजगारी की समस्या हुई है।

भारत में मानव विकास के कुछ पहलू
भारत उन देशों में से एक देश है जिसका मानव विकास सूचकांक में निम्न स्थान है। भारत के मानव विकास सूचकांक (2000) के कुछ पहलू नीचे दिए गए हैं:
कोष्ठक 3.02
मानव विकास सूचकांक आयु
1) जन्म के वर्षों में जीवन प्रत्याशा 63.3 वर्ष
2) प्रौढ़ साक्षरता (15 वर्ष और उससे अधिक) 57.2 प्रतिशत
3) संयुक्त नामांकन दर 55 प्रतिशत
4) संशोधित पेय जल संसाधनों का प्रयोग नहीं करने
वाली जनसंख्या का प्रतिशत 12 प्रतिशत
5) पाँच वर्ष से कम आयु के अल्प वजन वाले बच्चों का प्रतिशत 47 प्रतिशत
6) राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों का प्रतिशत 35.0 प्रतिशत
7) वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 1.9 प्रतिशत
8) शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 27.7 प्रतिशत
9) जनसंख्या जो पर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं का प्रयोग नहीं करती 69 प्रतिशत
10) कम वजन के बच्चे (पाँच वर्ष से कम) 47 प्रतिशत
11) एच.आई.वी.ध्एड्स में जीवनयापन कर रहे व्यक्ति 0.79 प्रतिशत
स्रोत: यू एन डी पी, 2003

 बाल श्रमिक
बाल श्रमिक, जिससे कि देश में स्पष्टतया गरीबी प्रकट होती है, भारत में एक सामाजिक समस्या बन गए हैं। समाज के गरीब वर्गों के परिवारों की एक बड़ी संख्या अपने बच्चों की कमाई पर निर्भर रहने के लिए मजबूर है। वे ऐसी स्थिति में नहीं होते हैं कि अपने बच्चों को पूर्णकालिक स्कूली पढ़ाई के लिए या अंशकालिक पढ़ाई के लिए भी छोड़ सकें। इस प्रकार से जिन बच्चों की आयु स्कूल में पढ़ाई करने की होती है, वे मजदूर के रूप में काम करते पाए जाते हैं।

कार्यरत बच्चों के परिवारों की आर्थिक मजबूरियों के अलावा लघु उद्योगों को लगाने वाले कुछ मालिक भी बाल श्रमिकों को काम पर लगाने के लिए वरीयता देते हैं। उनके लिए बाल श्रमिक सस्ते पड़ते हैं, इससे उत्पादन की लागत में कमी आती है और लाभ अधिक से अधिक होता है। इस प्रकार से बाल श्रमिकों को उनके माँ-बाप और उद्योगों के मालिकों दोनों ही के द्वारा प्रोत्साहन मिलता है। अतः भयंकर परिस्थितियों के अंतर्गत बच्चों के काम करने और कम मजदूरी पाने के बावजूद, भारत में बाल श्रमिक फलते-फूलते हैं।

अभ्यास 1
कृपया अपने आसपास रहने वाले दस परिवारों की मासिक आय और उसके स्रोतों के आधार पर दो पृष्ठों की एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

 निरक्षरता और शिक्षा
व्यापक पैमाने पर गरीबी का कुप्रभाव भारत में शिक्षा पर भी पड़ा है। देश में व्यापक स्तर पर निरक्षरता की समस्या, गरीबी की उस स्थिति का एक बड़ा परिणाम है जिसमें जनसामान्य रहते हैं। गरीब लोग अपने जीवन-निर्वाह के लिए पहले से ही इतने दबे और चिंतित रहते हैं कि शिक्षा के प्रति उनका कोई रुझान ही नहीं होता है या समय ही नहीं मिल पाता है। गरीब व्यक्ति जब सुबह-शाम की रोटी का जुगाड़ करने के लिए संघर्ष कर रहा है तो उसे शिक्षा के मूल्यों के बारे में समझाना ही हास्यास्पद है। गरीब वर्ग के अधिकांश लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने तक को तैयार नहीं होते। जो लोग अपने बच्चों को स्कूल में दाखिल करवा देते हैं उनमें से अधिकांश लोग अपने बच्चों को साक्षरता के किसी सार्थक मानक स्तर पर पहुंचने से पहले ही स्कूल भेजना बंद कर देते हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत को व्यापक निरक्षरता की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। साक्षरता प्राप्त करने में सक्षम देश की जनसंख्या के लगभग 50 प्रतिशत लोग अभी भी निरक्षर हैं।

 शिक्षा प्रणाली
शिक्षा प्रणाली समाज को विभिन्न तरीके से व्यापक स्तर पर प्रभावित करती है। भारत में उच्च स्तर पर शिक्षा का अंधाधुंध विस्तार, सामाजिक माँगों और राजनीतिक दबावों के कारण हुआ है। भारत में शिक्षा प्रणाली की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं:
ऽ व्यापक निरक्षरता,
ऽ शिक्षा के सर्वसुलभीकरण के अप्राप्त लक्ष्य,
ऽ प्राथमिक शिक्षा पर समुचित बल न दिया जाना,
ऽ उच्च शिक्षा पर अनुचित जोर जो कि कुल मिलाकर प्रविधि, प्रबंधन, चिकित्सा संस्थानों और बड़े शहरों के कुछ कालेजों एवं विश्वविद्यालयों को छोड़कर गुणवत्ता की दृष्टि में स्तरीय नहीं है।

परिणामस्वरूप, यह देखने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया कि शिक्षा प्रणाली ने उच्च स्तर पर जिन शिक्षितों को जिस गुणवत्ता और संख्या में तैयार किया, वे देश की आर्थिक प्रणाली में खप न सके। इस अनियोजित विस्तार का कुल परिणाम यह रहा कि शिक्षित बेरोजगारी और अल्प रोजगारी में वृद्धि होती रही है। यह स्थिति स्पष्टतः ही आर्थिक प्रणाली की माँग से अधिक शिक्षितों को पैदा करने अथवा शिक्षा और अर्थव्यवस्था के बीच तालमेल न होने के कारण है।

भारत में अर्थव्यवस्था और शिक्षा के बीच तालमेल न होने का अन्य प्रकार भी है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें भारत में कुछ शिक्षा संस्थाओं द्वारा पैदा किए गए कुछ उच्च योग्यता प्राप्त शिक्षितों को देश में अनेक अनुकूल पद नहीं मिल पाता है। परिणाम ‘‘प्रतिभा पलायन‘‘ होता है और भारत, सार्वजनिक संसाधनों की अत्यंत भारी कीमत पर उच्च योग्यता प्राप्त शिक्षितों की सर्वोत्तम श्रेणी को खो देता है।

 औद्योगीकरण और शहरीकरण
भारत में औद्योगीकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया धीमी रही है। औद्योगीकरण देश के कुछ ही भागों में हुआ है। परिणाम यह हुआ कि कुछ शहरों की जनसंख्या में बेहद वृद्धि हुई। कुछ शहरों में जनसंख्या में इस बेहद वृद्धि से शहरी गरीबी, बेरोजगारी, भीड़-भाड़, प्रदूषण, मलीन बस्तियाँ आदि जैसी विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।

ग्रामीण गरीबी और बेरोजगारी ने शहरी समस्या को और भी बढ़ाया है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में आने वाले लोगों की संख्या इतनी अधिक थी कि शहरी क्षेत्र उन्हें पूरी तरह खपा नहीं सकते थे। चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों से आने वालों की एक बड़ी संख्या निरक्षरों और अकुशल कामगारों की होती है, इसलिए वे अपने को शहरी आर्थिक स्थिति के अनुसार ढाल नहीं पाते हैं जिसके कारण वे बेरोजगारी और गरीबी से ग्रस्त हो जाते हैं और कुछ असहाय स्त्रियों को अपनी जीविका के लिए मजबूरन वेश्यावृत्ति अपनानी पड़ती है। इस प्रकार से जहाँ एक और शहरीकरण और औद्योगीकरण की प्रक्रिया, विकास का लक्षण होती है, वहीं दूसरी ओर भारत में इसका अपना प्रतिकूल पहलू भी है जो कि सामाजिक समस्याओं के रूप में उभरती है।

राज्य और राज्य व्यवस्था
भारत में सामाजिक समस्याओं को रोकने या उनका समाधान पाने के लिए राज्य का हस्तक्षेप बहुत महत्वपूर्ण रहा है। औपनिवेशिक काल के प्रारंभ में सती प्रथा (1829) को मिटाने तथा ठगी पर नियंत्रण लगाने के लिए राज्य द्वारा कई कदम उठाए गए। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अंतर्सामुदायिक और अंतर्जातीय विवाह के लिए कानूनी अवसर प्रदान करने हेतु कई कदम उठाए गए। बाल विवाह को रोकने के लिए (1929) में ‘‘शारदा एक्ट‘‘ पारित किया गया। स्वातंत्र्योत्तर काल में भारत ने एक लोकतांत्रिक, संप्रभुतासंपन्न, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी समाज गठित करने का संकल्प लिया। संविधान में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों, महिलाओं और बच्चों के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए।

छुआछूत की प्रथा को एक अपराध घोषित किया गया। हिंदू समाज में सामान्य तौर पर और ‘‘हिंदू विवाह प्रथा‘‘ में विशेष तौर पर सुधार किए जाने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम जैसे कुछ विशेष उपाय अपनाए गए। युवाओं, बच्चों और सामान्य रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए कल्याण कार्यक्रम चलाए गए। भारतीय समाज में सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ चलाई गईं। 1970 के बाद गरीबी हटाने, ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम विकास और रोजगार सृजन के लिए विशेष ध्यान दिया गया।

इन कार्यक्रमों का प्रभाव भारत के लोगों के सामाजिक-आर्थिक जीवन पर दिखाई देता है। पर्याप्त उपलब्धियों के बावजूद भारत अभी भी गरीबी, बेरोजगारी और भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग तंगहाली की जिंदगी जीने जैसे बहुत सी समस्याओं से ग्रस्त है। स्वातंत्र्योत्तर काल में भारतीय राजनीति और निर्वाचन प्रक्रिया द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण भी हमारी बहुत सी सामाजिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी है।

निर्वाचन प्रक्रिया
राजनीतिक दृष्टि से भारत में बहुदलीय प्रणाली है और संसदीय लोकतंत्र है। आदर्शतः राजनीतिक दलों का गठन सर्वहितवाद की विचारधारा पर होता है और नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सर्वहितवाद के सिद्धांत पर अपने प्रतिनिधियों को चुनेंगे। किंतु वास्तव में विशिष्टतावादी प्रवृत्तियाँ, देश की निर्वाचन प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किसी को भी इस बात का पता चल सकता है कि राजनीतिक दल, संप्रदाय अथवा क्षेत्रीय संकीर्णता के आधार पर बनते हैं और राजनीतिक दलों तथा व्यक्तियों द्वारा जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर राजनीतिक लामबंदी की जाती है। इस प्रकार के राजनीतिक क्रियाकलाप, स्वस्थ लोकतंत्रीय राज्य व्यवस्था का नकार है। इससे अलगाववादी संघर्ष भी होता है और कमजोर वर्गों एवं भाषायी तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति अत्याचार भी बढ़ता है। इस प्रकार से वर्तमान स्वरूप की राजनीतिक कार्य-शैली तथा निर्वाचन प्रक्रिया संप्रदायवाद, जातिवाद, और समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों के बीच संघर्षों की समस्याओं को जन्म दे रही है।

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 3
प) क) अपने संबंधियों, जाति और जनजाति या धर्म के लोगों को अत्यधिक महत्व देना। .
ख) पक्षता से जुड़ा हुआ भ्रष्टाचार,
ग) भेदभाव,
घ) विभिन्न समूहों का आपसी संपर्क।
पपद्ध सार्वजनिक संपत्ति के प्रति इस प्रकार से ध्यान न देना ही भ्रष्टाचार, काला धन, करचोरी, सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग और सार्वजनिक निर्माण कार्य में घटिया स्तर की सामग्री के इस्तेमाल का मूल कारण।
पपपद्ध अर्थव्यवस्था, गरीबी और शिक्षा के बीच एक गहरा संबंध है। भारत में निरक्षरता की समस्या गरीबी से सीधे जुड़ी हुई है। भारतीय संदर्भ में अर्थव्यवस्था और शिक्षा के बीच गलत तालमेल है।
पअ) वस्तुतः विशिष्टतावादी प्रवृत्तियाँ देश की निर्वाचन प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बहुत से राजनीतिक दलों का गठन संप्रदायवाद और क्षेत्रवाद के आधार पर हुआ है। निर्वाचन के समय जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार की राजनीतिक लाभबंदी भी भारत में बहुत सी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी हैं।

 

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now