हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
सांस्कृतिक निरंतरता क्या होती है ? cultural continuity in hindi definition example इतिहास संस्कृति
cultural continuity in hindi definition example इतिहास संस्कृति सांस्कृतिक निरंतरता क्या होती है ?
सांस्कृतिक निरंतरता
भारतीय संस्कृति की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि इसकी प्राचीन कड़ियां आधुनिक भारत तक एक सूत्र में बंधी रहीं। चीन को छोड़कर विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताएं यूनानी, मिश्र, मेसोपोटामिया इत्यादि अपनी महानता में तो कम न थीं, किंतु इनका अपने अतीत से अलगाव था। सांस्कृतिक निरंतरता का जो तत्व भारत की सभ्यता में उपस्थित था, वह इन सभ्यताओं में अनुपस्थित था।
किंतु निरंतरता ने कभी भी नमनीयता या परिवर्तन को अस्वीकार नहीं किया। वस्तुतः, यदि भारतीय संस्कृति सदियों तक प्रवाहित रही, जीवंत और गुंजायमान बनी रही, तो इसकी वजह यही थी कि इसने कभी भी किसी प्रकार की हठधर्मिता प्रदर्शित न करते हुए सर्वदा नए विचारों और प्रभावों को आत्मसात किया और नए संयोग हेतु द्वार खोले रखे। ए.एल. बाशम ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति का इतिहास’ की प्रस्तावना में उल्लेख किया है, ‘‘भारत हमेशा नियमित रूप् से बदलता रहा।’’ जब हम भारत की संस्कृति की बात करते हैं तो विभिन्न आंदोलनों और संस्कृतियों को भी सामने रखते हैं, जिन्होंने सप्तरंगी इंद्रधनुष का रूप पा लिया है। इसमें वे संस्कृतियां शामिल हैं, जो प्रागैतिहासिक काल में विद्यमान थीं, जो अस्थायी रूप से भारत के सम्पर्क में आईं, जो बाहर से आईं और भारत में स्थायी रूप से गाुल-मिल गईं। इसके अतिरिक्त देश के बौद्धिक मंथन से निकले क्रांतिकारी आंदोलन भी समाहित हुए।
हमारी संस्कृति की प्रकृति यही रही है कि इसने सीमाओं को कभी स्वीकार नहीं किया। उसने एकता के लिए संघर्ष किए हैं। यह संस्कृति जीवन की प्रयोगशाला का साधारण यंत्र मात्र नहीं है। न वह केवल पाषाण-मात्र है, जिसकी बनी हुई चक्की के दोनों पाटों से वैदिक ऋषि की माता अन्न पीसती थी और न ही यह संस्स्कृति वह चरखा है, जिसमें अनेक लोग अपनी प्रवृत्तियों को मूर्तिमान देखते हैं। सभ्यता ने अनेक रूप धारण किए हैं वह दूसरों से समय-समय पर उधार के रूप में ग्रहण की गई है। हमारे सामाजिक और धार्मिक विश्वास समय के साथ-प्रत्येक युग की सभ्यता के साथ बदलते रहे हैं। हमें संस्कृति को अविच्छिन्नता और निरंतरता के रूप में प्राप्त करना है, या फिर एकता की चेतना में।
एस. आबिद हुसैन ने अपनी पुस्तक ‘भारत की राष्ट्रीय संस्कृति’ में उल्लेख किया है, ‘‘यदि हम भारत के सांस्कृतिक इतिहास का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि जब कभी कोई नई विचारधारा, चाहे वह यहीं पैदा हुई या बाहर से आई, उसने विद्यमान मतभेदों को अस्थायी रूप से बढ़ा दिया। किंतु जैसे ही भारतीय मानस ने विविधता में एकता की प्रक्रिया प्रारंभ की, कुछ समय पश्चात ही एक नई संस्कृति की आधारशिला रखने हेतु उन परस्पर विरोधी तत्वों में सामंजस्य स्थापित हो गया।
बीसवीं सदी के प्रारंभ तक इतिहासकारों का मत रहा है कि भारत में संस्कृति की द्वितीय अवस्था, लगभग 1500 वर्ष ईसा पूर्व आर्यों के आगमन के बाद प्रारंभ हुई, इसलिए वह भारतीय संस्कृति प्राचीन संस्कृतियों में सबसे नवीन मानी जाती थी। किंतु इस सदी के चैथे दशक में भारत के पुरातत्व विभाग ने हड़प्पा और मोहगजोदड़ो की खोज करके यह प्रमाणित कर दिया है कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व तक सिंधु घाटी में सभ्यता विद्यमान थी और यह सिर्फ सिंधु घाटी तक ही सीमित नहीं थी, वरन् देश के अन्य भागों में भी इसका विस्तार था।
चूंकि मोहगजोदड़ो और हड़प्पा की मोहरों पर अंकित चित्रलेखों का अभी तक अर्थ नहीं निकाला जा सका है, इसलिए सिंधु घाटी के प्राचीन निवासियों के मानसिक और आध्यात्मिक जीवन के सम्बंध में कम ज्ञात है। प्राप्त सामग्री के आधार पर यह निष्कर्ष अवश्य निकाला गया है कि उनके धार्मिक विश्वास और व्यवहार कुछ सीमा तक हिंदुत्व की झलक देते हैं। सिंधु घाटी के लोगों द्वारा देवी की पूजा बाद की शक्ति पूजा में झलकती है। कुछ मुहरों पर शिव के समान भगवान का रूप देखा गया है। नदियों, पशुओं तथा पीपल की पूजा की जागकारी भी उसी काल से मिलती है।
लगभग 2000 ईसा पूर्व, जब उत्तर-पश्चिम भारत में सिंधु घाटी सभ्यता आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट की जा रही थी, तब दक्षिण भारत में द्रविड़-तमिल संस्कृति विकास के बहुत ऊंचे स्तर तक पहुंच चुकी थी। पुरातत्वीय खोजों से, सिंधु घाटी संस्कृति और तमिल संस्कृति के बीच एक लम्बे समय तक व्यावसायिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान के संकेत मिलते हैं। स्पष्ट है कि भारत की संस्कृति के इतिहास में शून्य या रिक्तता की स्थिति नहीं रही।
बलूचिस्तान के कुछ भागों में बोली जागे वाली ब्रोही भाषा में लगभग 50 प्रतिशत द्रविड़ शब्दों का प्रयोग इस बात का निश्चित प्रमाण है कि इन दोनों सभ्यताओं में निकट संबंध थे। शोध कार्यों ने यह सामने रखा है कि इस विकसित सभ्यता में कृषि एवं अभियांत्रिकी उन्नत स्थिति में थी, नदियों पर सिंचाई हेतु बांध बना, जाते थे, समुद्र एवं थल माग्र से व्यापार होता था और द्रविड़ों की अपनी लिपि, अंक प्रणाली और कैलेंडर था।
ईसा के लगभग 1500 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता के विनाश के बाद उत्तर-पश्चिम अप्रवासी आर्यों ने उत्साह एवं जीवन शक्ति से भरपूर नई संस्कृति की नींव रखी। ये आर्य यद्यपि भौतिक सभ्यता में उतने आगे नहीं थे, लेकिन इनका आध्यात्मिक स्तर काफी ऊपर था। इन्होंने न तो मंदिरों का निर्माण किया और न ही मूर्तियों की पूजा की। वस्तुतः इन्हें सत्य का माग्र ज्ञात था। ऋग्वैदिक काल का सात्विक रूप काल चक्र प्रवर्तन के अनुसार विकसित हुआ और उत्तर-वैदिक काल (1000-600 ई.पू.) में ही हेतु मूल जागने, परमात्मा की खोज, पुगर्जन्म के सिद्धांत और पुगर्जन्म (आवागमन) के चक्र से मुक्ति की खोज की जिज्ञासा जागृत हुई।
आर्यों का सबसे अधिक विस्तार 800-550 ई.पू. में हुआ और इसी अवधि में अनार्यों की संस्कृति का भी प्रभाव आर्य संस्कृति पर पड़ा। वैदिक सभ्यता बाद की हिंदू सभ्यता की ओर बढ़ चली। दक्षिण में आर्यों का जो भी प्रभुत्व या प्रभाव पड़ा, वह किसी भी रूप में विजय या आधिपत्य से नहीं जुड़ा है। यह एक सांस्कृतिक क्रिया थी, जो दक्षिण में गहरी पैठ बना रही थी। जनश्रुति यह है कि अगस्त्य मुनि, जिन्होंने पहला तमिल व्याकरण ‘अगतियम’ लिखा, आर्य मिशनरी थे, जो दक्षिण में वैदिक धर्म के प्रचार हेतु आए थे।
संभवतः यही समय था जब पौराणिक परंपराएं ‘महाभारत’ एवं ‘रामायण’ के रूप में स्थायित्व प्राप्त कर रही थीं। धर्म के क्षेत्र में भी नई.नई बातें सामने आ रही थीं, जो वैदिक धर्म से कई मायनों में भिन्न थीं और कई मामलों में विपरीत थीं। इन्हीं परिवर्तनों ने संभवतः बाद के हिंदू धर्म को एक सुनिश्चित आकार दिया। सामाजिक जीवन और भौतिक संस्कृति हिंदू समाज के चार वर्णों को स्थायी रूप प्रदान कर रही थी। लोहे का प्रयोग होने लगा था। हाथी पालतू पशु के रूप में मनुष्य के साथ रहने लगा। इसके अतिरिक्त आदिवासी
सरदारों के कबीले अस्तित्व में आने लगे। जाति प्रथा की जटिलता बढ़ने लगी। इसका प्रमुख कारण यह प्रतीत होता है कि स्वतंत्र कबीलों को भी आर्यों के समाज में उचित स्थान देना पड़ा, क्योंकि अधिकांश जीते गए इलाकों में इनकी संख्या बहुत अधिक थी। इन्होंने आर्यों की वैदिक संस्कृति को कई प्रकार से प्रभावित किया।
अनार्यों के प्रभाव का ही यह परिणाम था कि प्राचीन आर्य देवताओं ने अपना पूर्व महत्व खो दिया। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पूरा उपमहाद्वीप एक संस्कृति के दायरे में आ गया। यह संस्कृति ऐसी थी, जिसमें आर्यों और अनार्यों ने बराबर का योगदान दिया था।
किंतु कालांतर में हिंदू धर्म में अनेक विसंगतियां आ गईं। आडंबर बढ़ गया। कर्मकाण्डों की महत्ता सर्वोच्च हो गई। परिणामस्वरूप हिंदू दर्शन और विचारधारा को चुनौती देने वाले मत भी सामने आए। इनमें जैन और बौद्ध प्रमुख थे। इन्होंने जो सिद्धांत प्रतिपादित किए, वे कर्मकाण्डों से अछूते एवं अनावश्यक बंधनों से मुक्त थे। इन मतों की लोकप्रियता ने हिंदू विचारकों को प्रेरित ही नहीं, वरन् बाध्य भी किया कि वे हिंदू धर्म में परिवर्तन लाएं। इस प्रयास में कई सुधार हुए। हिंदू धर्म को लचीला और व्यापक बनाया गया ताकि उभरने वाले सभी मत इसमें समा सकें। परिणामस्वरूप षड्दर्शन का निर्माण हुआ। बौद्धिक और सांस्कृतिक जीवन में एक हलचल पैदा हुई। महाभारत और भागवतगीता पर मंथन हुआ। उपनिषद अपना दर्शन बिखेरने लगे। उपनिषद के अनुसार ‘‘ईश्वर सत्य का नाम है, ईश्वर बुद्धि का नाम है, ईश्वर पुण्य का नाम है, ईश्वर असीम का नाम है और ईश्वर प्रेम का नाम है।’’ इसमें प्रेम पर बल है। प्रेम से ही हमारा अस्तित्व है। प्रेम की ही ओर हम बढ़ रहे हैं और फिर प्रेम में ही समा जाते हैं।
विष्णु और शिव के अलग-अलग उपासक बने। त्रिदेव की महिमा सामने आई। आलोचकों ने यह गलतफहमी फैलाई कि हिन्दू तीन ईश्वरों के भक्त हैं। ईश्वर के भिन्न-भिन्न गुणों को एक-दूसरे से नुमाया करके उनके अलग-अलग नाम दिए गए हैं, इससे भी भ्रम पैदा हुआ कि हिंदू 33 कोटि देवताओं को मानते हैं। लेकिन यह गलतफहमी उचित नहीं है, क्योंकि असली सिद्धांत जिसकी निस्वत सब हिंदू विद्वान और बुद्धिमान एकमत हैं, वह यह है कि ईश्वर एक है और उसमें कोई शामिल नहीं है।
साथ ही साथ समानांतर रूप से चल रहे जैन और बौद्ध मतों ने भी भारतीय संस्कृति को व्यापक रूप से प्रभावित किया। हालांकि वर्ण व्यवस्था में उतनी ढील तो नहीं आई, किंतु कुछ लचीलापन अवश्य आया। वैश्य जाति को कुछ महत्व दिया गया। पशु बलि में इन मतों के कारण ही कमी आई, शाकाहार का महत्व बढ़ा। कला, साहित्य, वास्तुकला भी इनके प्रभाव से बचे न रहे।
तथापि, इन मतों की ही वजह से हिंदू धर्म परिष्कृत और परिमार्जित हुआ तथा एक बार फिर जन मानस पर अपनी पकड़ बनाने में सफल रहा। गुप्तकाल हिंदू सभ्यता का स्वर्णिम काल माना जाता है। ए.एल. बाशम ने भी गुप्त वंश के उदय से लेकर हर्षवर्धन की मृत्यु तक के समय को भारतीय सभ्यता का गौरवशाली काल माना है।
गुप्त काल में लौकिक साहित्य ने उल्लेखनीय प्रगति की। इसमें चिकित्सा, गणित और ज्योतिष शास्त्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण माने जाते थे। संस्कृत ने पुनः धर्म, शास्त्र और साहित्य की भाषा के रूप में अपना स्थान बना लिया था। इस काल के महान शिक्षा शास्त्रियों का न केवल भारत के बल्कि विश्व के विज्ञान जगत में ऊंचा स्थान था। आर्यभट्ट, वाराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त के गणित और ज्योतिष में, चरक और सुश्रुत के चिकित्सा विज्ञान में किए गएशोधों ने दूसरे देश के वैज्ञानिकों का शताब्दियों तक माग्र दर्शन किया तथा अरब और अन्य इस्लामी देशों के विज्ञान सम्बंधी विचारों पर सीधा तथा यूरोप पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डाला। साहित्य की जिस शाखा ने इस काल में सबसे उल्लेखनीय प्रगति की, वह नाटक था। भास संभवतः पहले नाटककार थे, जिन्होंने राजदरबारी या सांसारिक नाटकों के क्षेत्रा में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। वे कालिदास के पूर्ववर्ती थे, जो ईसा पूर्व की चैथी या पांचवीं शताब्दी में रहे। कालिदास को सर्वमत से भारतीय नाटककारों और कवियों के सम्राट के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनके अतिरिक्त, भवभूति, भारवि जैसे नाटककार उनके ही समकालीन थे। सातवीं शताब्दी में भर्तृहरि भी अपने क्षेत्रा में अद्वितीय थे। वे थोड़े काव्य रत्नों के लिए विख्यात हैं, जिन्हें शतक कहा जाता है। इनमें कला कौशल और सिद्धांतों की गहराई परिलक्षित होती है।
लेकिन गुप्त शासकों के कमजोर होते ही राजनीतिक बिखराव प्रारंभ हो गया। हालांकि हर्षवर्धन ने साम्राज्य निर्माण की एक कमजोर कोशिश अवश्य की, लेकिन हृास न रुका। बाणभट्ट ने हर्षचरित की रचना की, जिसकी सहायता से इस काल के बारे में जागकारी मिलती है। हर्षवर्धन के बाद लगभग 300 वर्षों का समय राजनैतिक फूट और बौद्धिक निष्क्रियता का समय था। देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया था और राष्ट्रीय एकता की भावना लगभग गायब ही हो गई थी।
आक्रमणकारी शक, हूण और गुर्जरों ने गुप्त साम्राज्य का अंत कर दिया और भारत में बस गए। गयारहवीं सदी तक ये जातियां संपूर्ण भारत में फैल गई थीं और इन्होंने प्राचीन बड़े राज्यों के अवशेषों पर अपने बहुत से छोटे-छोटे राज्य स्थापित कर लिए थे। किंतु ये अपनी सांस्कृतिक पहचान न बना, रख सके। भारत के सांस्कृतिक जीवन को देखकर उन्होंने क्रमशः हिंदू धर्म और संस्कृति को अपना लिया। हिंदू समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करने के लिए उन्होंने अपने को प्राचीन क्षत्रिय वीरों का वंशज बताया और स्वयं को राजपूत कहने लगे।
इन राजपूतों ने हिंदू समाज के दुर्बल शरीर में ताजा रक्त भरा। राजपूत दरबार कला, साहित्य-कविता और नाटक के केंद्र बन गए। विशेषकर मालवा के राजा भोज ने (1018 ई. से 1055 ई.), जिन्हें द्वितीय विक्रमादित्य के नाम से जागा जाता है, कला और विद्या को संरक्षण प्रदान कर गुप्त सम्राटों की स्मृति ताजा की। इसके पहले कन्नौज के महींद्रपाल विख्यात नाटककार शेखर के संरक्षक थे। इस काल के अंत में बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन ने गीत गोविंद के रचयिता जयदेव के संरक्षक के रूप में कविता और साहित्य को खूब बढ़ावा दिया। विद्याध्ययन और साहित्य का यह नवजागरण कश्मीर भी पहुंचा सोमदेव ने ‘कथा-सरित्सागर’ और कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ की रचना की।
राजपूतों के अधीन शिल्पकला ने भी बहुत विकास किया। चित्तौड़, रणथंभौर, मांडू और ग्वालियर के किले तथा खजुराहो (बुंदेलखंउद्ध और भुवनेश्वर के मंदिर उनके यश के प्रमाण हैं। लेकिन इस काल में संस्कृति का प्रवाह उल्टा हो गया। कई तरह की सामाजिक बुराइयां सामने आ गईंः जैसे बाल विवाह, बालिका वध, सती प्रथा आदि।
इस समय, दक्षिण भारत सभ्यता के अतिरेक तथा विदेशी आक्रमणकारियों के प्रभावों से मुक्त था। इसलिए वह उत्तर की भांति राजनीतिक फूट का शिकार नहीं हुआ। चालुक्यों, राष्ट्रकूटों, पल्लवों, चोलों और पांड्यों ने शक्तिशाली राज्यों की स्थापना की और आर्य संस्कृति जैसी संस्कृति को बढ़ावा दिया। दक्षिण में अनुकूल परिस्थितियों ने बौद्धिक जीवन को निष्क्रियता से बचा लिया। यहां यह काल धार्मिक विचारों के क्षेत्र में उल्लेखनीय आंदोलन और गतिविधियों के कारण महत्वपूर्ण बन गया। ईसा के बाद 7वीं शताब्दी में शैविते तथा विश्नाविते संतों के दो धर्म संघों ने अपनी धार्मिक भावना के उत्साह से प्रेरित होकर प्रेम और उपासना के पंथ को प्रचारित करने हेतु पुराणों की शिक्षा को तमिल छंदों में प्रस्तुत किया, जिसे बाद में भक्ति कहा गया।
दूसरी तरफ शंकराचार्य ने उत्तर मीमांसा की अपनी टीका के द्वारा वेदांत धर्म को पुनरुज्जीवित किया। फिर रामानुज ने अपनी व्याख्याएं दी, माधवाचार्य ने भी ‘एकमेवाद्वितीयम’ को अपने तरीके से रखा। कुछ इतिहासकार इस पुनरुत्थान को विदेशी यानी क्रिश्चियन धर्म की प्रतिक्रिया मानते हैं, किंतु डाॅताराचंद ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव’ में यह सिद्ध किया है कि ये आंदोलन इस्लाम से प्रेरित थे। बहरहाल, धार्मिक जीवन में गतिशीलता तो आई।
Recent Posts
नियत वेग से गतिशील बिन्दुवत आवेश का विद्युत क्षेत्र ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi
ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi नियत वेग से…
four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं
चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…
Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा
आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…
pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए
युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…
THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा
देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…
elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है
दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…