JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

ह्रासमान प्रभाव किसे कहते है | हासमान प्रभाव की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब crowding out effect in hindi

crowding out effect in hindi meaning and definition ह्रासमान प्रभाव किसे कहते है | हासमान प्रभाव की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब ?

ह्रासमान प्रभाव (Crowding Out) ः सरकारी व्यय अथवा निवेश में वृद्धि होने से ब्याज दर बढ़ती है, परिणामस्वरूप गैर सरकारी (निजी) निवेश हतोत्साहित होता है क्योंकि उधार लेने की लागत बढ़ जाती है। इस प्रकार सार्वजनिक निवेश गैर सरकारी (निजी) निवेश को बाहर (कम) कर देता है।

1951-65 के दौरान औद्योगिक विकास
इस भाग में 1951-65 के दौरान औद्योगिक विकास पर चर्चा की गई है। इस अवधि के दायरे में भारत की प्रथम तीन पंचवर्षीय योजनाएँ आती हैं और इसकी विशेषता भारत में सुदृढ़ औद्योगिक आधार का निर्माण करना था। बाद के दो उपभागों में औद्योगिक कार्य निष्पादन पर, समग्र विकास स्वरूप और औद्योगिक संरचना के विविधिकरण की दृष्टि से विचार किया गया है।

 समग्र विकास स्वरूप
इस अवधि के दौरान रहे समग्र औद्योगिक विकास को तालिका 10.1 में दर्शाया गया है। इस अवधि के दौरान वृद्धि-दर अत्यन्त ही आकर्षक रही और प्रतिवर्ष यह दर 7.6 प्रतिशत के आस-पास रही। इस अवधि के अंतिम पाँच वर्षों, विशेषकर तीसरी योजना अवधि (1961-65) के दौरान वृद्धि-दर उल्लेखनीय रूप से अधिक 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष थी। किंतु इतने सराहनीय कार्य निष्पादन के बावजूद भी, पहली पंचवर्षीय योजना को छोड़ कर, वास्तव में प्राप्त औद्योगिक वृद्धि-दर लक्षित वृद्धि-दर को नहीं प्राप्त कर सकी। यह वास्तव में भारत में नियोजन के पूरे पचास वर्षों के दौरान औद्योगिकरण की विशेषता रही है।

तालिका 10.2 में औद्योगिक समूहों के शुद्ध मूल्य-योजित संवर्धित (N.V.A.) और शुद्ध निर्गत मूल्य (NVO) को दर्शाया गया है। एन वी ए में वृद्धि-दर की गणना दो आरम्भिक अवधियों एक 1956-57 में और दूसरा 1959-60 में की गई है। आरम्भिक अवधि के ऐसे चयन के निरपेक्ष, विद्युत ने सर्वाधिक वृद्धि-दर दर्ज किया जबकि खनन और पत्थर तोड़ना तथा विनिर्माण क्षेत्र में भी न्यूनाधिक इतनी ही वृद्धि-दर थी। विनिर्माण क्षेत्र के अंतर्गत, जिन उद्योगों में एन वी ए और एन वी ओ दोनों

तालिका 10.1: औद्योगिक उत्पादन वृद्धि-दर
पंचवर्षीय योजना/अवधि वृद्धि-दर
लक्ष्य वास्तविक
प् 1951-52 से 1955-56 7.0 7.3
प्प् 1956-57 से 1960-61 10.5 6.6
प्प्प् 1961-62 से 1965-66 11.0 9.0
स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण

में उद्योग के औसत से दोगुनी वृद्धि-दर देखी गई। वे थे फुटवियर, मूल धातु, गैर-विद्युत और विद्युत-चालित मशीनें। इतना ही नहीं, यदि आरंभिक वर्ष के रूप में 1956-57 के स्थान पर 1959-60 को लिया जाए तो मूल धातुओं को छोड़कर, इन उद्योगों की वृद्धि-दर अधिक थी। इसका अभिप्राय यह हुआ कि 1960 के दशक में वृद्धि-दर में बढ़ोत्तरी हुई।

तालिका 10.2
उद्योग समूहों की वृद्धि-दर रू शुद्ध मूल्य योजित और शुद्ध निर्गत मूल्य उद्योग
कूट
(Code) उद्योग समूह शुद्ध योजित मूल्य शुद्ध निर्गत मूल्य
1956-57 से
1965-66 1959-60 से
1965-66 1959-60 से
1965-66
1 खनन् और पत्थर तोड़ना 7.3 7.3 7.8
5 विद्युत और गैस 9.6 9.3 –
2 विनिर्माण (योग) 6.9 7.6 8.4
20 खाद्य बीवरेज (पय पदार्थों
को छोड़कर 2.0 0.7 4.6
21 बीवरेज 5.1 9.3 9.2
22 तम्बाकू 3.2 1.5 1.8
23 वस्त्र 2.3 3.9 6.0
24 फुटवियर 10.0 15.3 17.3
25 काष्ठ और कॉर्क 10.4 1.1 5.7
26 फर्नीचर और फिक्सचर 8.9 11.7 12.6
27 कागज और कागज के उत्पाद 12.3 11.4 12.5
28 मुद्रण और प्रकाशन 7.0 6.8 7.5
29 चर्म और फर उत्पाद 7.2 0.5 0.4
30 रबर उत्पाद 7.9 4.6 8.6
31 रसायन और रसायन उत्पाद 12.6 10.7 13.6
32 पेट्रोलियम उत्पाद -2.9 -5.9 6.2
33 अधातु खनिज उत्पाद 8.7 7.0 9.2
34 मूल धातु 15.5 15.0 12.8
35 धातु उत्पाद 12.0 12.0 12.4
36 गैर विद्युत मशीनें 15.9 17.9 18.9
37 विद्युत मशीनें 13.1 14.7 15.7
38 परिवहन उपकरण 7.2 10.3 10.8
39 प्रकीर्ण 10.2 14.2 10.9
उद्योग 7.1 7.6 8.4
स्रोत: आई.जे. अहलूवालिया, 1985

धातु उत्पादों, परिवहन उपकरणों, रसायन उत्पादों, बीवरेज और कागज तथा कागज उत्पादों ने भी समग्र उद्योग वृद्धि-दर से काफी अधिक वृद्धि-दर दर्ज किया। दूसरी ओर, खाद्य, तम्बाकू, काष्ठ और कॉर्क, रबर उत्पाद और चर्म जैसे उद्योगों में, आरंभिक वर्ष का चयन अधिक महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है। कॉलम 2 और 3 में दिए गए वृद्धि आँकड़ों में तुलना करने से पता चलता है कि 1960-65 में उनका कार्य निष्पादन विशेष रूप से खराब रहा था। इससे यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि इन उद्योगों में 1956-59 के दौरान वार्षिक वृद्धि-दर 1956-65 के दौरान औसत वार्षिक वृद्धि-दरों से काफी अधिक थी।

विविधिकरण और क्षेत्रगत वृद्धि
पहली योजना के आरम्भ के समय, भारत में औद्योगिक विकास मुख्य रूप से उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र तक ही सीमित था। सूती वस्त्र, चीनी, नमक, साबुन, चमड़े की वस्तुएँ और कागज महत्त्वपूर्ण उद्योग थे। कोयला, इस्पात, विद्युत, अलौह धातु और रसायन जैसे मध्यवर्ती उत्पादों का उत्पादन करने वाले उद्योगों की उत्पादक क्षमता अत्यन्त ही कम थी जबकि पूँजीगत वस्तुओं का उत्पादन शुरू ही हुआ था।

दूसरी योजना से, पी.सी. महालानोबिस के प्रभाव के अन्तर्गत, भारी उद्योगों के विकास के माध्यम से आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया था। मशीन टूल्स उद्योगों, हैवी इलैक्ट्रिकल्स, मशीन निर्माण और अन्य हैवी इंजीनियरिंग उद्योगों की स्थापना के लिए बड़े कदम उठाए गए। रसायनों के उत्पादन में भारी वृद्धि के साथ-साथ नए रसायनिक उत्पादनों के प्रचलन से रसायन उद्योग का अत्यन्त तीव्र गति से विकास हुआ। धातु-आधारित और परिवहन उपकरण उद्योगों में भी तेजी से वृद्धि हुई, जबकि रसायन आधारित उद्योगों में 1956-60 के दौरान प्रतिवर्ष लगभग 9 प्रतिशत की सतत् दर से वृद्धि दर्ज की गई। परिणामस्वरूप, उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र के सापेक्षिक महत्त्व में तीव्र गिरावट हुई थी। औद्योगिक योजित मूल्य में इसका हिस्सा 1956 में 48.4 प्रतिशत से गिरकर 1960 में 37.2 प्रतिशत रह गया।

तालिका 10.3
औद्योगिक निर्गत का क्षेत्रफल वार्षिक वृद्धि-दर ()

1951-55 1955-60 1060-65
उपयोग आधारित वर्गीकरण
बुनियादी वस्तुएँ 3.8 12.0 10.5
पूँजीगत वस्तुएँ 15.1 13.7 19.7
मध्यवर्ती वस्तुएँ 6.4 6.2 7.0
उपभोक्ता वस्तुएँ
गैर-टिकाऊ 3.7 3.8 3.8
टिकाऊ 12.3 25.5 10.8
आदान आधारित वर्गीकरण
कृषि आधारित 3.6 3.6 3.8
धातु आधारित 10.9 14 18.3
रसायन आधारित 8.1 9.7 9.0
परिवहन उपकरण 11.1 10.5 14.7
विद्युत और सम्बद्ध 8.5 16.0 14.7
स्रोत: केन्द्रीय सांख्यिकी संगठनय भारतीय रिजर्व बैंक बुलेटिन
इसके अंतर्गत खनिज, सीमेंट, भारी रसायन, धातु और विद्युत सम्मिलित हैं।

आप खंड 1, इकाई 3 में उद्योगों के वर्गीकरण के बारे में पहले ही पढ़ चुके हैं। तालिका 10.3 में उस अवधि के लिए उपयोग आधारित और आदान आधारित वर्गीकरण के आधार पर औद्योगिक निर्गत की क्षेत्रगत वार्षिक वृद्धि-दर दी गई हैं। तालिका 10.3 के निचले आधे भाग में उद्योगों के आदान आधारित वर्गीकरण के अनुसार क्षेत्रगत वृद्धि दर्शाई गई है। कृषि आधारित उद्योगों की वृद्धि न्यूनाधिक एक समान दर पर हुई है। दूसरी ओर तीन योजना अवधियों के दौरान धातु आधारित उद्योगों और पहली दो योजना अवधियों के दौरान विद्यत की औसत वृद्धि-दर में बराबर वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप, 1951-65 के दौरान इन उद्योगों के प्रति उद्योगों की संरचना में भारी परिवर्तन हुआ।

बोध प्रश्न 1
1) पहली तीन पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक वृद्धि का सामान्य स्वरूप क्या रहा था?
2) 1951-65 के दौरान औद्योगिक वृद्धि कितनी विविधिकृत थी?
3) सही उत्तर पर ( ) निशान लगाएँ:
क) आदान-आधारित उद्योगों में से किन उद्योगों ने न्यूनाधिक स्थिर वृद्धि-दर दर्शाया था,
प) कृषि आधारित
पप) धातु आधारित
पपप) परिवहन उपकरण
पअ) रसायन आधारित
ख) औद्योगिक वृद्धि का लक्षित स्तर इसके दौरान प्राप्त किया जा सका,
प) पहली पंचवर्षीय योजना
पप) दूसरी पंचवर्षीय योजना
पपप) तीसरी पंचवर्षीय योजना
पअ) दूसरी और तीसरी पंचवर्षीय योजना दोनों

बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) उपभाग 10.2.1 पढ़िए ।
2) उपभाग 10.2.2 पढ़िए।
3) (क) (प) (ख) (प)

उद्देश्य
इस इकाई में स्वतंत्रता के बाद औद्योगिक विकास के स्वरूप का लेखा-जोखा दिया गया है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ 1960 के दशक के मध्य तक के औद्योगिक विकास को समझ सकेंगे;
ऽ उसके पश्चात् के मंदन और गत्यावरोध को समझ सकेंगे; और
ऽ सुधार अवधि के दौरान हुए औद्योगिक विकास के स्वरूप को समझ सकेंगे।

प्रस्तावना
सतत् आर्थिक विकास और समृद्धि के लिए औद्योगिक संरचना के विविधिकरण के साथ घरेलू उद्योगों का तीव्र औद्योगिक विकास अनिवार्य है। इसे पहली पंचवर्षीय योजना (1951-55) से ही स्वीकार किया गया था और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में औद्योगिक नीति का लक्ष्य निर्धारित कर दिया था। किंतु नियोजन के पचास वर्षों बाद भी, यद्यपि कि भारत ने अत्यन्त ही विविधिकृत औद्योगिक संरचना का निर्माण कर लिया है किंतु वृद्धि-दर के स्तर और समय बीतने के साथ इसके स्थायित्व दोनों के संबंध में विकास कार्य निष्पादन में काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। पहली पंचवर्षीय योजना से लेकर 1990 के दशक के आरम्भ में सुधारों और संरचनात्मक समायोजन की अवधि के दौरान विकास के तीन चरणों को चिन्हित किया जा सकता है: 1960 के दशक के मध्य तक तीव्र विकास, उसके पश्चात् गत्यावरोध जो 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध तक जारी रहा; और 1980 के दशक में औद्योगिक पुनरुद्धार। बेहतर औद्योगिक कार्यनिष्पादन पर से नीतिगत विघ्नों को दूर करने के उद्देश्य से विनियमों में ढील देने और उदारीकरण के बावजूद भी इस शताब्दी के अंतिम दशक में, विशेषकर 1996 के पश्चात् औद्योगिक विकास अपेक्षाकृत चक्रीय रहा है।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

14 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

14 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now